देवगौड़ा सरकार से अचानक समर्थन वापसी, राजनीतिक अपराध, इतिहास करेगा निर्णय
सभापति जी, आज जो संसद में बहस हो रही है, मैं ऐसा मानता हूँ कि भारत के संसदीय इतिहास में यह सबसे अधिक लज्जाजनक और दुःख का दिन है। मेरे मित्र श्री जसवंत सिंह ने राजनीतिक मामलों में बहुत से मतभेद होने के बावजूद भी मैं आदर के साथ यह कहना चाहंूगा कि सोमनाथ जी की बात से सहमत नहीं हूँ, क्योंकि जसवंत जी ने इस विवाद को उस स्तर पर उठाने की कोशिश की, जिस स्तर पर हमें और आपको देश भर के बारे में सोचना चाहिए। साथ ही मैं अपने गुरुदेव श्री अटल बिहारी बाजपेयी से भी यह कहना चाहूँगा कि यह वानर सेना का मामला केवल इस तरफ नहीं है, आप भी जाने-अनजाने उसी वानर सेना का अंग बन रहे हैं। यह बात मैं बहुत सोच-समझकर कह रहा हूँ।
आज भारत जिस स्थिति में है, उसका जिक्र सोमनाथ जी ने किया और जब से कांग्रेस के मित्रों ने समर्थन वापस लेने का निर्णय लिया है, वह स्वयं में एक शंका, एक रहस्य पैदा करता है। आखिरकार 30 मार्च को ही क्यों चुना गया है? जिस समय पाकिस्तान से हमारे रिश्ते सुलझाने की कोशिश हो रही थी, जिस समय बंगलादेश के साथ हमारे देश के लोग और हमारे विदेश मंत्री एक नया रिश्ता कायम करने की कोशिश कर रहे थे, जिस समय हमारे प्रधानमंत्री और हमारे वित्तमंत्री रूस के साथ एक नया समझौता कर रहे थे, उस विवादास्पद सवाल पर, जो आज से दो-तीन वर्ष पहले दुनिया की बड़ी ताकतों के लिए बड़े संकट का समय मालूम होता था, जिस समय प्रधानमंत्री मास्को में थे उसी समय कांग्रेस में उच्च स्तर पर यह निर्णय लिया जा रहा था कि सरकार से समर्थन वापस लिया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री वापस आये चार दिन भी नहीं बीत पाये, रूस से समझौता करके कोई प्रधानमंत्री लौटे और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बना रहे, यह कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा, इसे आप और हम सब लोग जानते हैं। इसके पीछे एक इतिहास है, जिस इतिहास से और कोई अवगत हो या नहीं हो, हमारे विदेशमंत्री, गृहमंत्री, श्री सोमनाथ जी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी भली प्रकार से परिचित हैं। क्या हम लोग इस स्तर पर पहुँच गये हैं और इन बातों को सोचने के लिए अपने को मजबूर नहीं मानते जब कि ‘नैम’ की मीटिंग हो रही है, पाकिस्तान से हमारे रिश्ते बिगड़ रहे हैं। यह बात आज से नहीं 50 वर्षों से कुछ ताकतें चाह रही है। जसवंत सिंह जी ने अब कुछ और चीजों के लिए इस सरकार की आलोचना की लेकिन गुजराल साहब अगर अपने पड़ोसियों के साथ अपने देश के रिश्ते सुधारे तो मैं ऐसा समझता हूँ कि भारत की इससे बड़ी सेवा दूसरी नहीं हो सकती है।
आज दुनिया की बड़ी ताकतें भारत की ओर एक कुपित दृष्टि से देख रही हैं, दुनिया के लोग इस कोशिश में हैं कि भारत कोई बड़ा राष्ट्र न बन जाए, कोई महान राष्ट्र न बन जाए। कोई शक्तिशाली राष्ट्र न बन जाए। हम सब एक ही परिवार के लोग थे जो अलग-अलग हिस्सों में बंट गये, यह दुर्दैव था। इसे चाहे आप इतिहास की भूल कहिए या इतिहास की दुर्घटना कहिये। चाहे वह बंगलादेश हो, पाकिस्तान हो, श्रीलंका हो और चाहे बर्मा हो, हम सब लोग एक साथ थे लेकिन आज अलग हो गये। अगर इन देशों में एकता हो जाए, अगर सार्क के लोग एक दृष्टि से सोचने लगें तो दुनिया में भारत को महान राष्ट्र होने से कोई नहीं रोक सकता। यह चुनौती उन देशों के लिए है जो दुनिया को अपने रास्ते पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं और समझते हैं कि गरीब राष्ट्रों को सम्मान और मर्यादा की जिंदगी जीने का अधिकार नहीं है।
ऐसे समय इस देश में अस्थिरता पैदा करना ठीक नहीं है। मैं उन बातों का जिक्र नहीं करना चाहता जिनका जिक्र अभी सोमनाथ जी ने बजट के सवाल पर, राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के चुनाव पर और हमारे देश की अनेक समस्याओं पर किया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय जगत में जब इतनी बड़ी बातें हो रही हों, ऐसे समय कांग्रेस पार्टी समर्थन वापस ले तो इससे राजनीति के एक विद्यार्थी के नाते मेरे मन में शंका जरूर पैदा होती है।
उसी आशंका के कारण मैं कहता हूँ कि यह केवल एक अविवेकपूर्ण निर्णय नहीं है बल्कि यह देश की राजनीति का एक महान राजनीतिक अपराध है जिसका इतिहास कभी न कभी निर्णय करेगा। मैं यह बात इसलिए नहीं कहता क्योंकि मैं जानता हूँ कि जिन सवालों पर आज सरकार की आलोचना की जा रही है, जिन सवालों के ऊपर आज देवेगौड़ा के ऊपर लांछन लगाया जा रहा है, क्या वे सवाल जायज है? आर्थिक मामलों में क्या उनकी राय और आपकी राय अलग है? मैंने कभी भी चिदम्बरम जी के सपने को साकार होते हुए नहीं देखा। हमने कभी यह नहीं सोचा कि उस बजट में कुछ भी ऐसा है जिससे गरीबों को राहत मिल सकेगी।
हमारे मित्र मुरली मनोहर जोशी जी बराबर मुझसे कहते रहते हैं कि यह बजट हमे ंबरबादी की ओर, अध्ंाकार की ओर ले जाएगा। मैनंे उसकी आलोचना की है। जिन नीतियों को आज अपनाया जा रहा है, दुनिया के सहारे जिस तरह से इस देश को विकसित करने का सपना प्रधानमंत्री जी और वित्तमंत्री जी देख रहे हैं उससे मैं असहमत हूँ और वह कोई छिपी असहमति नहीं है। इस सदन क ेअदंर आरै इस सदन क ेबाहर उस असहमति का ेमनंै ेहमश्ेाा व्यक्त किया ह।ै
सभापति महोदय, क्या हमें अपने देश की मर्यादा का कुछ ख्याल है या नहीं? हमें अपने देश के भविष्य का ख्याल है कि नहीं? यह 100 करोड़ का देश जिसको हजारों साल पुरानी सभ्यता और संस्कृति रही है, जिसकी ओर आज सारी दुनिया आशा भरी निगाह से देखती हे, जिसका जिक्र हमारे विदेश मंत्री ने किया है, मैं उन बातों का जिक्र फिर से नहीं करना चाहता हूँ। श्री प्रिय रंजन दासमुंशी यहाँ नहीं हैं। उन्होंने बड़े जोश में भाषण दिया। जोश कभी-कभी अच्छा भी होता है और जब कहा जाए कि गलत बात का समर्थन करना है, तो जरा ज्यादा जोश दिखाना जरूरी भी हो जाता है, लेकिन जो बातें कही गई, क्या उनका तथ्यों से कोई सामंजस्य है, क्या उसका संबंध वास्तविकता से है?
सारे देश के अखबार, सारी दुनिया के लोग कह रहे हैं कि पिछले वर्षों में श्री गुजराल ने जिस तरह की विदेश नीति चलाई है, वह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। गुजराल साहब हमारे मित्र हैं। मैं उनकी ज्यादा तारीफ नहीं करना चाहता। शायद प्रधानमंत्री भी होने वाले हे। इसलिए यह डर भी है कि कोई शायद यह समझे कि मुझे उनसे कुछ पाना हे, लेकिन मैं यह जरूर कहना चाहता हूँ कि देश के विदेश मंत्री चाहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी हों, चाहे गुजराल साहब हों, चाहे कोई दूसरा हो, दुनिया के रंगमंच पर हरेक अपनी भूमिका निभा रहा है। ऐसे समय उसका पैर खींचना, कांग्रेस की कौन सी परंपरा का अंग है, कांग्रेस की कौन सी महत्ता का अंग है? में यह नहीं जानता।
आप धर्मनिरपेक्षता की बात करते हो, मैं नहीं जानता सही है या नहीं, लेकिन अखबारों में खबर छपी है कि देवेगौड़ा छिपे-छिपे बी.जे.पी. से बात कर रहे हैं। इसलिए उनकी धर्मनिरपेक्षता में संदेह है। हमारे मित्र संतोष मोहन देव जी, पार्टी के सचेतक बन जाते हैं और स्वयं सोये रहते हैं और सचेतक बनने का काम करते रहते हैं। क्या उस समय आप सोये हुए थे जिस समय बाबरी मस्जिद गिर रही थी? क्या उसका सारा दोष अटल बिहारी वाजपेयी जी का है, सारा दोष मुरली मनोहर जोशी जी का है? या सत्ता में बैठे हुए प्रधानमंत्री पद पर हैं। उस समय आप भी मंत्री थे। उस मस्जिद को गिरते हुए आपने भी देाा है। आज देवेगौड़ा को आम धर्मनिरपेक्षता की बात सिखा रहे हैं? देवेगौड़ा को मैं भी जानता हूँ। इस तरह से दूसरे सर्टिफिकेट देने का काम आप न करें, तो ज्यादा अच्छा है। रोज-रोज धर्मनिरपेक्षता का नारा देकर कब तक आप भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करते रहोगे? क्या कभी आपने अपने दामन में भी झांक कर देखा?
सभापति, जी मैं बोलना नहीं चाहता था। आपके निर्देश से बोल रहा हूँ। मन में एक पीड़ा होती है, एक कसक होती है। संसदीय जनतंत्र अगर चलाना है, तो हम किसी को अछूत नहीं रख सकते। मैं जानता हूँ कि इसका गलत अर्थ लगाया जाएगा या गलत बातें की जाएंगी। मैंने एक बार नहीं अनेक बार कहा है कि मैं भारतीय जनता पार्टी की नीतियों से बहुत मायने में असहमत हूँ, लेकिन जब तक भारतीय जनता पार्टी इस संसद का एक अंग है, सोमनाथ जी, उनको अछूत समझ कर हम संसदीय जनतंत्र को नहीं चला सकते। तानाशाही भले ही चला सकते हैं। यह बात हमको याद रखनी चाहिए। इसीलिए हमारे एक मित्र, जो यहीं कहीं बैठे होंगे, जो भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं, हमारे मित्र हैं। मैं नाम नहीं लूंगा, उन्होंने कहा कि आप दोनों तरफ की बात मत बोला कीजिए। मैं दोनों की तरफ की बात नहीं बोलता हूँ। जो मैं सही समझता हूँ वह कहता हूँ, चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा लगे। न मुझे कुछ इधर से लेना है और न उधर से कुछ लेना है। मैं अपनी बात जो सही समझता हूँ वह कहता हूँ ओर आज ही नहीं कह रहा हूँ, 1962 से लेकर 1997 तक, जो मैंने सही समझा है, कहा है।
गुजराल जी कम से कम आप इसके गवाह हैं। आप उन दिनों कितनी बार मंत्री पद का संदेशा लेकर मेरे पास आये थे। आज हमको सिखाया जा रहा है- कांग्रेस की परम्परा, कांग्रेस का इतिहास। कौन सा कांग्रेस का इतिहास? वह इतिहास जो आपने 30 मार्च को बनाया है या वह इतिहास जिसमें सुभाष चन्द्र बोस महात्मा गांधी जी की मुखालफत करते हैं और लोग सुभाष चन्द्र बोस के पीछे जाते हैं।
कांग्रेस में बैठे हुए नेताओं में कुछ लोगों पर मुझे दया आती है खासकर हमारे मित्र सनद मेहता पर, पता नहीं वह यहाँ हैं या नहीं, पुराने समाजवादी आन्दोलन में वह हमारे साथी रहे हैं। विचारों की दृढ़ता और आदर्शों के साथ प्रतिबद्धता थी लेकिन किस आदर्श के अनुसार यह पत्र लिखा गया है वह पत्र मेरे पास नहीं है क्योंकि वह कूड़े में जाने लायक है। इससे अधिक मैं उसको महत्व नहीं देता। जिस व्यक्ति ने पत्र लिखा है, क्या वह भारत की अस्मिता और गरिमा को जानता है? क्या इतिहास में अपनी जिम्मेदारी को परखता है? क्या वह जानता है कि इसके पीछे कितना बड़ा बवाल खड़ा हो सकता है? क्या वह जानता है कि इससे कितनी बड़ी अस्थिरता समाज में आ सकती है? मैं इतिहास की और बातों को यहाँ नहीं दोहराना चाहता।
सभापति जी, मैं भी कांग्रेस में रहा हूँ और उस समय कांग्रेस मेें रहा हूँ जब उसमें आज के कांग्रेसी नहीं थे बल्कि महान दिग्गज नेता रहे हैं। मैं उस वर्किंग कमेटी में रहा हूँ जिसमें इंदिरा गांधी जैसी महान् नेत्री के विरुद्ध खड़े होकर जीता था। आज राजेश पायलट जी यहाँ बैठे हुए हैं मुझे उनसे बड़ी उम्मीद थी। पूना में रहता है तो शिवाजी को प्रेरणा लेता है और यहाँ आता है तो पता नहीं कहाँ-कहाँ से प्रेरणा लेता है।
सभापति जी, मैं एक बात यह भी कहना चाहता हूँ कि बहुत चर्चा चलती है, यहाँ तक कि अटल जी भी हमसे पूछते हैं कि शरद पवार की क्या राय है। मैं आपको बता दूँ कि 30 मार्च के बाद आज मुझे शरद पवार जी के दर्शन हुए हैं। टेलीफोन पर भी मेरी कोई वार्ता उनसे नहीं हुई। मुसीबत में पड़ने पर लोग मेरे पास आते हैं, मुसीबत पैदा करने के समय मेरे पास नहीं आते। मैं यह बात इसलिए कहता हूँ क्योंकि संकट गंभीर है, समय गंभीर है और ऐसे समय को हमें हंसी में नहीं टालना चाहिए। इसे गंभीरता से लेना चाहिए।
आप किसी व्यक्ति से नाराज हो सकते हैं, व्यक्ति आयेंगे जायेंगे लेकिन इतिहास का अंतिम व्यक्ति कोई नहीं है। बड़े से बड़ा पुरुष भी इतिहास में केवल अर्द्धविराम है, पूर्णविराम नहीं है। कोई व्यक्ति इतिहास में पूर्णविराम नहीं है। यहाँ तक कि विभागीय लोग भी अर्द्धविराम हैं। ये सब नेता तथा प्रधानमंत्री आयेंगे-जायेंगे लेकिन कम से कम कांग्रेस पार्टी की जो मान्यतायें बनी थीं, जिस पार्टी में मैं भी बहुत दिनों तक रहा हूँ, संतोष मोहन देव जी, उन मान्यताओं को इस तरह पैरों के नीचे धूल में मत कुचलिये। आप समर्थन दें या न दें, यह आपकी पार्टी का निर्णय है।
सभापति जी, इनके निमंत्रण के लिए मैं बड़ा आभारी हूँ लेकिन इनको याद रखना चाहिए कि मैंने कांग्रेस तब छोड़ी थी जब उसकी नेता श्रीमती इंदिरा गांधी थीं। गुजराल जी आप जानते हैं कि मैंने कांग्रेस किन परिस्थितियों में छोड़ी थी। 1975 में इमरजेंसी के दिनों में विरोधी पार्टियों को निर्णय करना था कि क्या करें? उनके सामने एक ही रास्ता था कि जेल जायें, लेकिन मेरे पास दो रास्ते थे कि मैं भारत सरकार में जाऊँ या जेल में जाऊँ लेकिन मैंने जेल में जाना स्वीकार किया था। गुजराल जी आप याद रखिये कि मैंने सरकार में जाना स्वीकार नहीं किया, आप भी मेरे पास आये थे। इसलिये मैं ऐसी बातें कभी नहीं कहता।
सभापति जी, उस समय मैं कांग्रेस को छोड़कर चला गया था तो आज जो कांग्रेस के नेताओं के कहने पर मैं कांग्रेस में चला जाऊँ, आपकी बुद्धि की बलिहारी है। कांग्रेस कार्यक्रमों में, नियमों में, सिद्धांतों में, आदर्शों में अगर आस्था रखने वाला संगठन बने तो मैं अकेला व्यक्ति हूँ जिसने कहा था कि कांग्रेस पार्टी का एक इतिहास है। कांग्रेस पार्टी एक बड़ी पार्टी है। कांग्रेस पार्टी का व्यापक समर्थन है। कांग्रेस पार्टी फिर पुनर्जीवित हो सकती है लेकिन उसे पुनर्जीवित करने के लिए संतोष मोहन देव जी, थोड़ी हिम्मत चाहिए। राजेश पायलट जी, हिम्मत दिखाते हो तो उस हिम्मत के लिए अकेले चलने की शक्ति होनी चाहिए।
प्रियरंजन दास जी, रविन्द्र नाथ ठाकुर को कोट करना आसान है लेकिन समूह के साथ चलने की प्रवृत्ति मन की कमजोरी है, यह बात याद रखो। यदि कांग्रेस के चंद लोगों में अकेले चलने की प्रवृत्ति हो जाए तो कांग्रेस आज भी ऊँचा संगठन बन सकती है। संतोष मोहन देव जी जिस दिन कांग्रेस बनाएंगे और मुझे निमंत्रण देंगे तो मैं उस पर जरूर विचार करूंगा लेकिन आज की कांग्रेस को मैं दूर से भी छूना नहीं चाहता, आप यह बाद याद रखना।
मैं एक बात अपना राष्ट्रीय कर्तव्य समझकर कहता हूँ। आज ऐसा समय आ गया है जब हम सब, चाहे उधर बैठे लोग हों चाहे इधर बैठे लोग हों, मिलकर सोचें कि हमारे सामने चुनौतियां क्या हैं? हमारी समस्याएं क्या हैं? राष्ट्रीय सवाला ंेपर हम एक सहमति बना सक,ंे उन सवाला ंेक ेसमाधान क ेलिए कोई कार्यक्रम बना सकें और उनके अनुसार इस संसदीय जनतंत्र को चलाने की कोशिश करें तो शायद भारत को इस संकट से उबार सकते हैं। यह संकट वास्तविक संकट है। जो घिनौना संकट आपने पैदा किया है, वह आपको मुबारक हो लेकिन जल्दी ही यदि इस संकट से आप अपने को मुक्त कर सकें और देश को मुक्त कर सकें तो वह अच्छी बात होगी।
मैं नेता, विरोधी दल से कहना चाहूँगा कि यह सरकार आज के बाद आपकी मर्जी पर चलती रहेगी। क्या यह जरूरी है कि जो पत्र लिखा गया है उसी के आधार पर समर्थन करें? जो पत्र लिखा गया है, आज इस सरकार के खिलाफ मत देकर आप उसका समर्थन करेंगे, अपने आक्रोश का प्रदर्शन नहीं करेंगे- यह बात हमेशा याद रखिए। सात दिनों में कोई सत्ता भोगी नहीं जा रही है। अगर 13 तारीख को यह सरकार नहीं जाती तो उनके मुँह पर कालिख लगेगी जिन्होंने अमर्यादित व्यवहार किया है, जिन्होंने गैर-जिम्मेदाराना हरकत की है, जिन्होंने राष्ट्र के साथ एक बड़ा अपराध किया है, जिन्होंने नैतिकता को, राष्ट्रीय कर्तव्य को तिलांजलि दी है। सभापति जी, आप उसमें आज शामिल न हो क्योंकि मैं उनसे कोई सद्बुद्धि की आशा नहीं करता लेकिन आपसे सद्बुद्धि की जरूर आशा है।