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प्रधानमंत्री विदेश में, मंत्री अपने क्षेत्र में और तीन अफसरों ने ले लिया चीनी आयात करने का फसैला

13 जून, 1994 को लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय मैं इस विषय पर बोलना नहीं चाहता था, लेिकन मरे ेस ेपर्वू वक्ता न ेमुझ ेप्ररेणा दी कि मै ंभी इस विषय पर कुछ कहूँ। इस कारण इतने गम्भीर विषय पर, जिस स्तर हम लोग विवाद कर रहे हैं, शायद यह विषय के साथ न्याय नहीं है। जार्ज फर्नान्डीज साहब ने कुछ बुनियादी सवाल उठाए और उन सवालों का जवाब उन्होंने हमारे खाद्य मंत्री जी से चाहा। मैं नहीं जानता कि खाद्यमंत्री उनका जवाब देने में कितने समर्थ हैं। मैं बहुत दिनों से उनको जानता हूँ, लेकिन जाने हुए चेहरे आज अनजाने पहचान पड़ते हैं, क्योंकि पहले जो लोग थे, वे नहीं हैं। सच्चाई से कतराते हुए लोगों को जरा भी हिचक नहीं होती। मैं जार्ज की इस राय से तो सहमत नहीं हूँ कि नौकरशाही में जितने लोग हैं उन पर कोई यकीन रखना अब संभव नहीं। आखिरकार देश चलाना है, इन्हीं के जरिये चलना है, अपने ही देश के लोग हैं। मेरा बहुत अनुभव नहीं लेकिन जो थोड़ा अनुभव है, उससे मैं कह सकता हूँ कि जो अधिकांश लोग देश के बारे में सोचते हैं और अगर उन्हें सही निर्देश दिया जाये तो सही कदम भी उठाते हैं।

चीनी के मामले में एक ही सवाल है जो मैं उठाना चाहूँगा और सरकार से जानना चाहूँगा कि क्या उचित समय पर निर्देश दिये गये? अगर दिये गये तो क्या उनका पालन सही ढंग से हुआ? मैं जानता हूँ, यह सही है सरकार को मालूम था कि चीनी की पैदावार कम होगी यह कोई गुप्त बात नहीं थी। सारी दुनिया को मालूम था, खाद्य मंत्रालय को मालूम था। हमारे मित्र मुखर्जी जी को मालूम था। पब्लिक अकाउंट्स कमेटी की रिपोर्ट थी जिस रिपोर्ट में कहा गया कि किसी भी हालत में फूड कारपोरेशन आॅफ इंडिया जो है, खाद्य निगम जो है, वह आयात करे या तो एस.टी.सी. करे या एम.एम.टी.सी. करे यह बंधन था और खाद्य मंत्रालय ने पब्लिक अकाउंट्स कमेटी को यह आश्वासन दिया था कि उसने जो सिफारिश की है उस सिफारिश को हम पूरी तरह से लागू करेंगे। उसके बाद उनके लिये संभव नहीं था कि वे आयात करते।

महोदय, आज कल्पनाथ राय पर आरोप लगाना आसान है। अभी हमारे मित्र यहाँ बैठे थे, इस तरह वह यहाँ नहीं हैं जो पहले विधि राज्यमंत्री थे, सच बात बोलने की कोशिश की तो आज हमारे बगल में बैठे हुए दिखाई पड़ते, कुमार मंगलम जी, वह भय लोगों को सताता रहता है शायद उसी भय से श्री कल्पनाथ राय जी भी आतंकित हों। कहा गया कि हमारे वाणिज्यमंत्री जी अगर कहें तो हमारे वित्तमंत्री जी उनको स्वीकृति देने के लिये तैयार हैं। यह बातें निरंतर अखबारों में छपती रही हैं कि कोई सरकार की फाइलों की बात नहीं करता, इनका जवाब कौन देगा? कल्पनाथ राय जी देंगे या प्रणव मुखर्जी देंगे या वित्तमंत्री देंगे या सबसे ऊपर बैठे हुए हमारे मित्र राव जी देंगे। इनमें से किसी न किसी को तो इसका उत्तर देना होगा।

इस मामले में हर विभाग इसलिये निष्क्रिय हो गया कि उसके ऊपर कोई न कोई कहीं बंधन लगा हुआ था और यह बंधन हमारी जो आंतरिक मजबूरियां हैं, उसकी वजह से नहीं लगा हुआ था, वह बंधन इसलिये लगा था जैसा कि जार्ज ने कहा कि हमने कुछ वायदे कर रखे हैं, हमने कुछ लोगों को विश्वास दिला रखा है, उन परिधियों से हम बाहर नहीं जा सकते। हमारे लोग भूख से तड़पें, हमारे यहाँ चीनी महंगी बिके लेकिन हम आयात नहीं कर सकते क्योंकि हम उस पर धन नहीं खर्च कर सकते, पैसा नहीं लगा सकते। हम अपने बजट को बढ़ा नहीं सकते, यह बातें हमारे देश में हो रही हैं।

अभी हमारे कृषिमंत्री जी चले गये, बड़ी सफल कृषि नीति है, हमारे मित्र सूर्य नारायण जी कह रहे थे, सही है। जार्ज जी ने कहा कि आज गन्ना महाराष्ट्र में कम बोया जा रहा है। अंगूर का आप निर्यात कर रहे हैं। महाराष्ट्र के लोगों को बधाई है। मुझे प्रसन्नता भी होती है कि अंगूर बिकेगा, किन्नू बिकेगा, अमरूद बिकेगा। दुनिया के बाजारों में आएगा, पैसा डालर वहाँ से, लेकिन चीनी फिर हम लोगों को खाने को नहीं मिलेगी ये दोनों बातें आपस में जुड़ी हुई हैं। मैंने उस समय जब गैट करार पर चर्चा हो रही थी तब मैंने खाद्य मंत्री जी से कहा था कि आप क्या नीतियां अपना रहे हैं, निर्यात के लिये कृषि उत्पादन करने की योजना हमारे देश को पहली बार बताई जा रही है। आज से 20-25 वर्ष पहले यह योजना अफ्रीका के देशों को बताई गई, कहा गया किसलिये अनाज पैदा करोगे, पैदा करो काॅफी और कोकवा। इसी सदन में मैं कह चुका हूँ, कहा गया बहुत पैसा मिलेगा 12 वर्षों तक काॅफी और कोकवा की बड़ी कीमत मिली। वहाँ के लोग प्रसन्न थे जिनके हाथों में उद्योग था उन्होंने एक दिन में उस उद्योग की मिट्टी पलीत कर दी। सारे उद्योग ठप हो गये, बड़े-बड़े फार्म मिट गये, बड़े-बड़े कारखाने टूट गये और आज अफ्रीका के वे देश भूख से तड़प रहे हैं।

खाद्य के मामले में, चीनी के मामले में, गेहूँ, चावल और चने के मामले में। छोटे देश इन चीजों के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर नहीं कर सकते, तो हमारा तो बड़ा देश है, हमारा देश दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रह सकता। यह बात मैं नहीं कह रहा हूँ, बल्कि आजादी की लड़ाई के जमाने से, जो लोग स्वदेशी और स्वावलंबन में विश्वास रखते थे, उन्होंने इस बात को कहा है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में प्रधानमंत्री जी की यह बात सुन कर हमको प्रसन्नता हुई कि यह देश स्वदेशी और स्वावलंबन का देश है, गांधी की परंपराओं का देश है। गांधी ने गांव को स्वावलंबी बनाने का सपना देखा था, हम देश को स्वावलंबी बनाने में शर्माते हैं और हम इसको गांधी की परंपरा की सरकार कहते हैं और गांधी की नीतियों का उद्घोष करते हैं, यह हमारे देश की सबसे बुनियादी बात है।

आज महाराष्ट्र का किसान गन्ना क्या बोए, अगर उसी कीमत कम मिलती है, अंगूर क्यों न बोए, जिसमें जयादा पैसा मिलता है, फिर इसके बदले में चाहे अधिक पैसा देकर सरकार को चीनी का आयात ही क्यों न करना पड़े। वित्तमंत्री जी अड़ंगा लगाते हैं कि वाणिज्यमंत्री इंपोर्ट नहीं कर सकते, पीएसी ने निर्देश दिया है कि हमारे खाद्यमंत्री नहीं कर सकते और कहा जाता है कि ओजीएल से चीनी मंगाई जाए। देश में उद्योगपति जब चीनी मंगाता है तो वह चीनी की कीमत कम करने के लिए नहीं मंगाता, गरीब के घर तक चीनी पहुँचाने के लिए चीनी नहीं मंगाता, सरकार की मदद करने के लिए चीनी नहीं मंगाता, वह मुनाफा कमाने के लिए मंगाता है। अभी हमारे मित्र बोल रहे थे, शायद उनका संबंध चीनी उद्योग से है।

माफ कीजिएगा, वे ऐसे महापुरुष के पुत्र हैं, जिनके प्रति मेरे मन में बहुत आदर है, लेकिन आज वसंत दादा पाटिल भी यह आश्वासन देते हुए 10 बार सोचते, वे सोचते कि 10-12 रुपए प्रति किलो बिक सकने वाली चीनी 18-20 रुपए प्रति किलो क्यों बिक रही है? क्या इसकी जांच होगी? इसके लिए किसी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा? क्या चीनी मिल-मालिक यह जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हंै? खाद्यमंत्री जी इस बात पर गौर करें।

अचानक क्या होता है हमारे प्रधानमंत्री विदेश जाते हैं, खाद्यमंत्री अपनी कांस्टीट्वेंसी में जाते हैं, तीन सरकारी अफसर, मैं नाम नहीं लूंगा, मिल कर फैसला करते हैं कि 400 करोड़ रुपए की चीनी मंगाई जाएगी। क्यों, किसने उनको अधिकृत किया, कोई पता नहीं। जैसे अभी जार्ज साहब कह रहे थे, एक दिन के नोटिस पर ग्लोबल टेंडर मंगाया जाता है। दूसरे दिन 8 घंटे के नोटिस पर टेंडर को खत्म करने की कोशिश की जाती है और खाद्यमंत्री जब दिल्ली में आते हैं तो उनको कहा जाता है कि प्रधानमंत्री के कार्यालय से निर्देश दिया गया है। जब खाद्यमत्रंी कहते है ंकि इस बात को फाइल पर लिखिए, तो फाइल पर भी इस बात को नहीं लिखा जाता है। उसी अधिकारी ने पीएसी को यह आश्वासन दिया था कि अटल बिहारी बाजपेयी जी की समिति ने जो निदेश दिए हैं, उनका पालन होगा। जब उससे पूछा जाता है कि तुमने यह लिख कर दिया था, फिर इस तरह से क्यों किया, तो वह फाइल खाद्य मंत्रालय से हटा ली जाती है और वह खाद्य मंत्रालय की फाइल पीएसी से मिलती है।

अध्यक्ष महोदय, मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या देश को चलाने का यही तरीका है? हम मंत्रियों को गाली दे लें, चन्द लोगों को गाली दे लें, इससे लाभ नहीं होगा। और जब तक वह फाइल नहीं मिलती पीएसी से, तब तक पीएमओ कंट्राडिक्शन नहीं करता कि खाद्य मंत्रालय कोई गलत काम कर रहा है। बराबर यह आता रहा है कि खाद्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के आदेशों का उल्लंघन किया है। सात दिन तक हिन्दुस्तान और दुनिया भर के अखबारों में छपता है, लेकिन पीएमओ चुप रहता है। जब यह पता चलता है कि खाद्य मंत्रालय ने कोई आश्वासन लिखित रूप में उसी अधिकारी के जरिए दिया है, लोक लेखा समिति के सामने, तब उसके बाद यह बयान आता है कि खाद्य मंत्रालय में और प्रधानमंत्री के कार्यालय में कोई अंतर नहीं है, कोई मतभेद नहीं है। मैं नहीं जानता कि खाद्यमंत्री जी का इस पर क्या कहना है, मैं नहीं जानता कि यह बात प्रधानमंत्री जी की जानकारी में है या नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री जी का कार्यालय एक नए रूप में चल रहा है।

अखबारों में पढ़ते हैं कि अधिकारी लोग स्वयं निर्णय लेते हैं। मैंने पहली बार सुना है किसी केबीनेट फाॅर्म आॅफ गवर्नमेंट में मंत्री की जानकारी के बिना अधिकारी फैसला लेते हों और कह दिया जाता हो कि प्रधानमंत्री कार्यालय से निर्देश आया है। जब अधिकारियों से कहा जाता है कि इस बात को फाइल पर लिखो, तो फाइल पर लिखने से इंकार कर दिया जाता है।

चीनी 5 रुपए या 5000 रुपए के भाव से बिके, मैं इसमें नहीं जाता, लेकिन यह जो प्रवृत्तियां हैं,इनके चलते एक दिन ये लोग देश बेच देंगे और हमको पता भी नहीं चलेगा कि किसने देश को बेच दिया। यह मामला साधारण नहीं है इसलिए मै ंबालेन ेपर मजबरू हुआ हँू। इस बहस का ेइस मामल ेम ंेमत ल ेजाओ कि चार या पांच हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो गया है। मैं इस सवाल पर नहीं जाना चाहता कि किसने कितनी चोरी की और कितनी घूस ली? सवाल यह है कि क्या हम लोग सभ्य राज या जनतंत्र चला रहे हैं? संसदीय जनतंत्र में हमारे मित्र जो कैबीनेट में बैठे हुए हैं, बहुत से मतभेद हो सकते हैं। क्या किसी कैबीनेट मंत्री के बिना जानकारी के या अन्य किसी मंत्री के जानकारी के ग्लोबल टेंडर जारी किए गए तो सवाल उठता है कि उसको अधिकृत किसने किया था?

पीएमओ का मतलब क्या होता है? प्रधानमंत्री, वाणिज्यमंत्री या वित्तमंत्री को इसकी जानकारी नहीं थी? खाद्यमंत्री को इसकी जानकारी नहीं थी, यह मुझे मालूम है और ये बयान दे चुके हैं। बाद में ये लोग अपने बयानों से मुकर जाते हैं। दूसरे सचिव ने मंत्री के खिलाफ बयान दिया। वाणिज्य मंत्रालय के उच्च अधिकारी कहते हैं कि हमको एक उच्च अधिकारी ने बार-बार दबाव डाला और बीस बार फोन किए गए कि ऐसी कंपनियों को आयात दो जो कि रजिस्टर्ड कंपनी नहीं हैं, यह सब कुछ हो रहा है। आपके जरिए कांग्रेस मित्रों से कहना चाहूँगा कि इसको पार्टी का सवाल मत बनाओ और हर सवाल को राजनीति का सवाल मत बनाओ।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।