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केवल बंदूक की गोली से नहीं, प्यार की बोली से भी बनाना चाहते हैं देश, अंतिम क्षण तक करेंगे बात

जम्मू-कश्मीर के मामले पर लोकसभा में 10 जनवरी, 1991 को प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर

उपाध्यक्ष महोदय, कश्मीर की समस्या के बारे में कई सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। वित्तमंत्री जी ने जो विधेयक रखा है और बजट के लिए जो स्वीकृति चाही है, उन दोनों के बारे में मैं इतना ही निवेदन करूँगा कि कश्मीर की स्थिति जैसी है, उससे निपटने के लिए कुछ अधिकार तो सरकार को चाहिए। इसमें जो प्रावधान है कि कोई दिक्कत हो, लोगों को कठिनाई हो तो उनकी दिक्कतों की जांच हो सके। इसमें दो-तीन बातें कही गई हैं जिनका मैं जिक्र करूँगा। उपाध्यक्ष महोदय, एक तो यह चर्चा की गई कि बात होनी चाहिए लेकिन सुभाषिनी जी ने कहा कि फंडामैन्टलिस्ट्स से बात नहीं होनी चाहिए।

मैं सफाई के साथ यह बात कहूँ कि जब हम किसी से बात करते हैं तो हर भारतीय से बात करने की बात करते हैं। फिर कौन फंडामैंटलिस्ट है, कौन प्रगतिशील है, यह चर्चा क्यों? अगर वही व्यक्ति चुनकर सदन में आ जाए तो न केवल उससे हम बात करते हैं, अपितु उससे हर तरह की चर्चा भी करते हैं। नागरिक के बीच में कोई विभेद करना लोकशाही में मान्य नहीं है, ऐसा मैं मानता हूँ। कोई राज्य के विरुद्ध विद्रोह करे, सरकार के विरुद्ध विद्रोह करे, सरकार के खिलाफ विद्रोह करे तब भी उससे बात करने के लिए मना नहीं करना चाहिए। जब तक वह देश का नागरिक है उससे बातचीत का दरवाजा हमेशा खुला रहना चाहिए। हमें कई बार सलाह दी जाती है कि नवाज शरीफ से सचेत रहिए, सजग रहिए, उनका दिल बहुत गड़बड़ है। मैं दिल का अन्दाजा करने वाला व्यक्ति नहीं हूँ, न दिल की ख्वाहिशों में मैं जाने की कोई कोशिश करता हूँ। दिल की पैमाइश करने वाले दूसरे लोग होंगे, मैं तो सियासत की बात, राजनीति की बात करता हूँ।

पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश है। एक दुर्घटना है इतिहास की कि हम अलग-अलग हो गए। मैं ऐसा मानता हूँ कि प्रारम्भ से आज तक हिन्दुस्तान का जो कोई रहनुमा रहा हो, जो मुस्तक्बिल के बारे में सोचता रहा हो, जो भविष्य के बारे में सोचता रहा हो, उसने सदन में यह कहा कि हम अलग हो गए लेकिन फिर भी भाई-भाई जैसे रहना चाहते हैं। मैं बताना चाहूँगा महात्मा गांधी की उन बातों को अगर शायद बापू जिंदा होते तो कुछ दिनों में पाकिस्तान जाने के लिए उन्होंने कार्यक्रम बनाया था। याद होनी चाहिए पंडित जवाहर लाल नेहरू की जिन्होंने बार-बार कहा कि इतिहास की दुर्घटना है कि हम अलग हैं लेकिन हम भाई-भाई हैं, एक-दूसरे की समस्याओं को समझेंगे, दिल में नफरत का कोई असर नहीं होने देंगे। यही काम बार-बार किया गया और मैं आपको याद दिलाऊँ जिस शिमला सम्मेलन की चर्चा रोज-रोज होती है, वह शिमला सम्मेलन भी उसी जहनियत का, उसी प्रवृत्ति का परिणाम था जिसमें हमने पाकिस्तान से लड़ाई नहीं चाही, हमने पाकिस्तान से दोस्ती चाही।

उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भी वही काम किया। यह एक राष्ट्रीय नीति पाकिस्तान के साथ चल रही है दोस्ती का रिश्ता बनाने के लिए। लेकिन कुछ लोगों के लिए पाकिस्तान का भूत उनके सिर पर सवार है और वह उस भूत से डर रहे हैं। भूत से डरने वालों के लिए मेरे पास इलाज नहीं है। सरकार जब काम करती है तो उसके काम करने की दो पद्धतियाँ हैं- एक तो अगर मान लीजिए देश के ऊपर कोई हमला हो गया तो उसका जवाब ठीक ढंग से दिया जाएगा लेकिन हमले के डर से बराबर नफरत का बीज बोने की कोशिश बिल्कुल गलत है। मुझे आश्चर्य है कि चाहे कोई दक्षिण पंथी हो, वामपंथी हो, दोनों के मन में भूत बैठा हुआ है कि पाकिस्तान समझौते की बात करोगे, नवाज शरीफ से कोई दोस्ती की बात करोगे तो देश के सम्मान, देश की एकता, देश की प्रतिभा सब समाप्त हो जाएगी। भारत को अपने आत्मविश्वास पर, अपने लोगों के पुरुषार्थ पर विश्वास है।

मुझे विश्वास है कि अगर कोई हमसे गलत बात कहकर धोखा देने की कोशिश करेगा तो उसकी वहज से न हमारे सेनाओं की शक्ति कम हो जाएगी, न सेना पर, सुरक्षा की व्यवस्था पर कोई कमी आने वाली है।

एक बात हमको याद रखनी चाहिए कि अगर पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच में तनाव का माहौल बनाया जाता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है। इतिहास की वास्तविकता है कि वह तनाव हमारे देश के गांवों तक पहुँच जाता है। इस बात को हमें समझना चाहिए। हम चाहते हैं कि यह तनाव का माहौल खत्म हो। इसीलिए हम यह चाहते हैं कि पाकिस्तान के साथ भी तनाव में कमी आए। कुछ लोगों के दिल में बहुत दर्द है कि नवाज शरीफ ने हमसे फोन में बात क्यों कर ली। कोई ऐसी बात तो है नहीं जिससे दर्द पैदा होना चाहिए। उसमें कोई ऐसे मोहब्बत के अफसाने तो गाए नहीं जाते हैं जिसमें कोई किसी को नाराजगी हो। कोई इसमें एक-दूसरे से प्रतिद्वंद्विता भी नहीं होनी चाहिए लेकिन इतना जरूर बता दूँ कि अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हम से यह कहते हैं कि हम दोस्ती चाहते हैं तो मैं सदन से यह जानना चाहता हूँ कि क्या मैं यह कहूँ कि मुझे आप पर विश्वास नहीं हैं, मैं तनाव का रिश्ता चाहता हूँ। अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री एक कदम दोस्ती बढ़ायेंगे तो हिन्दुस्तान का प्रधानमंत्री होने के नाते मैं पाँच कदम आगे बढ़ाऊँगा और एक बुनियादी माहौल पैदा करूँगा कि हम दोस्ती चाहते हैं।

उपाध्यक्ष महोदय, हिन्दुस्तान बड़ा देश है। हिन्दुस्तान के अपने इलाके के लिए जिम्मेदारियाँ हैं। यह सवाल कुछ लोगों के जज्बातों का नहीं है। सारी दुनिया की क्षेत्रीय शक्तियाँ एक हो रही हैं और हिन्दुस्तान के आसपास जो छोटे-छोटे देश हैं जो हमारे ही साथ कभी रहे थे, उनसे मिलकर हम एक नई शक्ति का उदय करना चाहते हैं। शिखर सम्मेलन केवल प्रस्तावों के लिए नहीं था। सार्क सम्मेलन इस क्षेत्र में एशिया को एक नई शक्ति पैदा करने का विनम्र प्रयास था। मैं यह नहीं कहता कि इससे बड़ी बात होने वाली है लेकिन कोशिश करनी होगी उसी दृष्टिकोण से हमें कश्मीर के मामले को समझना चाहिए। मैं यह मानता हूँ कि कश्मीर का सवाल यह नहीं है कि कितना क्षेत्र हमारे बीच में आये, यह सिद्धान्तों का सवाल है, आदर्शों का सवाल है। जिन आदर्शों के लिए इस देश में आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी। धर्मनिरपेक्षता की बात कोई कोरी कल्पना नहीं है, यह हमारी एक जीवन विधि है। किस तरह से देश को व समाज को चलाना है, यह हमने तय किया है।

मैं अपने साथी श्री भार्गव जी से विनम्र निवेदन करूँगा कि वहाँ 370 रहे या न रहे, यह विवाद हो सकता है, लेकिन याद रखें कि यह किसी के पुष्टिकरण का परिणाम नहीं है। एक खास परिस्थितियों में कश्मीर के लोग हमारे साथ आये। यह भी याद रखें कि कश्मीर के लोग पहली बार जब आये तो बहुमत तो वहाँ मुसलमानों का था और पाकिस्तान की सेनाएं हमारे अन्दर आ गई थीं लेकिन स्वर्गीय शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में वहाँ के लोगों ने हिन्दुस्तान में रहना स्वीकार किया क्योंकि उनको भरोसाा था महात्मा गांधी के ऊपर, उनको भरोसा था पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के ऊपर, उनको भरोसा था अबुल कलाम आजाद के ऊपर। इन लोगों ने उस समय कश्मीर के लोगों से वायदा किया था और उस वायदे को संविधान सभा ने 370 के रूप में स्वीकार किया था। एक हक और एक हमारा संकल्प है जो कश्मीर के लोगों के साथ किया है और बहुत छोटे दायरे में कश्मीरियों के साथ विशेष पक्षपात किया जा रहा है। अगर इस तरह से सोचेंगे तो न केवल अपने इतिहास को भुलाएंगे बल्कि अपने भविष्य के लिए भी एक अविश्वसनीयता का वातावरण पैदा करेंगे। यही स्थिति हमारी है। इसको हमें समझना पड़ेगा।

हमारे मित्र सोज साहब कि मैं बड़ी इज्जत करता हूँ। मैं मानता हूँ कि फौज जहाँ काम करती है और सुरक्षा बल जहाँ काम करते हैं, तनाव में ही काम करते हैं। कभी-कभी ज्यादती हो जाती है लेकिन यह माहौल बनाने की कोशिश की जाए कि कश्मीर में सुरक्षा बल के लोगों या हमारे फौज के लोगों ने केवल आगजनी की, केवल लूट किया, केवल रेप किया, यह ठीक नहीं है। मैं पूरे सदन से यह जानना चाहूँगा कि क्या माननीय सदस्यों ने कभी सोचा है 1947-48 में फौज वहाँ गई थी, तब से लगातार वहाँ फौज बैठी हुई है। उस फौज को किसी ने नहीं कहा कि फौज ज्यादती कर रही है, किसी ने नहीं कहा कि लूट कर रही है। जब आन्दोलन देश के अलगाव के लिए चल रहा है, जब दूसरे लोग इनसर्जेसी कर रहे हैं, तब यह आरोप इस फौज के ऊपर लग रहा है।

उपाध्यक्ष महोदय, मैं भी इस मामले को जानता हूँ और उसकी देखरेख करता हूँ। 2-3 जगहों पर ज्यादती हुई है। क्या यह सही नहीं है कि हमारी फौज के अधिकारियों ने उनके खिलाफ मुकदमे चलाये, उनका कोर्ट मार्शल किया गया? गलतियां हुई होंगी, मैं नहीं कहता कि गलती नहीं हुई लेकिन यह कहना कि फौज निकम्मी हो गई है, सुरक्षा बल निकम्मे हो गए हैं, सारे अत्याचारी हो गए हैं, गलत है। मैं मौत के खिलाफ हूँ- चाहे वह मौत बन्दूक से सिपाही की हो, चाहे मौत आतंकवादी की हो लेकिन मैं इस बारे में इस सदन से एक निर्देश चाहूँगा। अगर मान लिया जाए कि किसी जंगल से, किसी घर से सुरक्षा बलों के ऊपर हथियार चलाए जाते हैं, बम चलाये जाते हैं, तो क्या उनसे यह कहूँ कि यह तय करो कि वहाँ कौन बैठा है, उसके बाद गोली चलाओ। वह गोली चलाता है, उस घर में कोई निर्दोष भी उस गोली से मारा जाता है तो हमें इसका दुःख है लेकिन केवल निर्दोष को मारने के लिए फौज की गोली चले तो वह हमारे लिए लज्जा की बात है, यह भारतीय फौज के लिए सबसे बड़ी लज्जा की बात है।

जहाँ तक विकास की बात है, उसके लिए हम कोशिश कर रहे हैं। हमारे मित्र धर्मपाल जी ने कई योजनाओं की बात की। हम उसकी चर्चा कर रहे हैं,, अब योजना क्यों नहीं पिछले समय स्वीकृत हुई, उसके बारे में मैं नहीं जानता हूँ लेकिन जितने इलाके हैं, जहाँ पर लोग गरीबी में हैं, लोग पिछड़ेपन में हैं, हमने यह फैसला किया है कि इन सारी योजनाओं को तुरन्त स्वीकृत करने की हम कोशिश करेंगे। हम जानते हैं कि आपकी परिस्थितियां खराब हैं, अब उसके बारे में मैं चर्चा नहीं करना चाहूँगा।

उपाध्यक्ष महोदय, हमको कभी-कभी ऐसा लगता है कि हमको जन्नत दी गई थी, हमने दो महीनों में उसको जहन्नुम बना दिया, मैं उन लोगों को जवाब नहीं देना चाहता, क्योंकि, यह सवाल व्यक्तियों पर आरोप-प्रत्यारोप का नहीं है, यह सवाल देश के गौरव का है और देश के गौरव की रक्षा के लिए मैं यह नहीं चाहता कि हम दुनिया के सामने कहें कि हमारा खजाना खाली है और हमारे पास कुछ भी नहीं है। जो लोग स्वर्ग बना रहे थे, उन लोगों ने देश को कहाँ पहुँचाया है, उसकी जानकारी थोड़ा उनको भी होगी। जो लोग इधर से भाषण कर रहे हैं, उनको भी है। मैं आज फिर कहता हूँ कि मजबूर मत करो हमको कि हम उनके किए हुए को देश के सामने और दुनिया के सामने रखने के लिए विवश हो जाएं। हम इस बात को नहीं चाहते, इसलिए नहीं चाहते कि उससे हमारी इज्जत गिरती है, हमारे राष्ट्र की इज्जत गिरती है। हमारे मित्र पुजारी जी यहाँ से चले गये, वह कह रहे थे, बार-बार संकेत कर रहे थे, आप इतना कहोगे तो भी हम इस बात के लिए तैयार नहीं होंगे, हम इस झगड़े में नहीं पड़ेंगे।

जब हुकूमत हाथ में आती है तो अच्छाइयाँ, बुराइयाँ दोनों के साथ आती है। आज ही मैं यह नहीं कह रहा हूँ, जब पहली सरकार बनी थी, उस समय मैं भी उसका एक थोड़ा सा हिस्सेदार तो था, जो दूसरे बनाने वाले हैं, उनका उसमें ज्यादा हिस्सा रहा होगा लेकिन एक अदना सिपाही उस जनता दल का मैं भी था। उस समय भी उपाध्यक्ष जी, मैंने कहा था कि सरकार जब आती है तो सारी अच्छाइयों और बुराइयों की जिम्मेदारी उसके ऊपर होती है। हम यह नहीं कहते कि मीठा-मीठा गप-गप और कड़ुवा-कड़ुवा थू-थू। हुकूमत गिर गई, गद्दी पर हम बैठे, हुकूमत के सामने कमजोरियाँ हैं। उनके लिए दूसरे के ऊपर जिम्मेदारी डालना है, यह मैंने सीखा नहीं। जो हुकूमत करने वाले अतीत पर रोते हैं, वह कभी भविष्य नहीं बना सकते और यही बात है, जो आपके समझने की है इसलिए मैं आलोचना नहीं करता हूँ।

हमारे मित्र, जो बीकानेर से सदस्य हैं, वह बार-बार हमसे पूछते हैं, कोई मजबूरी नहीं, कोई डर से नहीं करते लेकिन मैं सिद्धान्ततः जानता हूँ, यह बात गलत है और इसीलिए हम उन सवालों में नहीं जाना चाहते। विकास होगा, कठिनाइयों के बावजूद भी, क्योंकि हमारे पास सामथ्र्य हमारी जनशक्ति का है, हमारे किसानों, मजदूरों की बांहों की ताकत का है।

इसीलिए हम अपने मित्र धर्मपाल जी को, उपाध्यक्ष जी, आपके जरिये विश्वास दिलाते हैं कि हम कोशिश करेंगे और चाहे दूसरी जगहों पर थोड़ी कटौती करनी पड़े, चाहे वह लद्दाख का इलाका हो, चाहे जम्मू का इलाका हो, चाहे देहली का इलाका हो, चाहे वह आसाम की घाटी हो, हमारे मित्र संतोष मोहन देव जी, इन इलाकों की बहबूदी के लिए, तरक्की के लिए, विकास के लिए हम विशेष रूप से ध्यान देंगे। अभी वित्तमंत्री जी यहाँ पर हैं, वहाँ पीड़ा है, दर्द है, उस दर्द को मिटाने के लिए कहीं न कहीं धन की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

हमारे सोज साहब हैं, वे एक मिनट में उत्साह में आ जाते हैं। अगर कर्मचारियों की हड़ताल वापस हुई तो उससे वह बड़े प्रसन्न हो गए। हड़ताल वापस होने के बाद उनके मन की बातें नहीं हुईं तो वह नाराज हो गये। इतनी जल्दी नाराजगी, क्षणे रूष्टा, क्षण तुष्टा वाली बात से काम नहीं चलेगा, एक क्षण में खुश हो जाना, एक क्षण में नाराज हो जाना। हम आपको यकीन दिलाते हैं, सोज साहब, उपाध्यक्ष जी, आपके जरिए कि हमारी वही मंशा है, जो मंशा मैंने सारे देश के बारे में कही है, बन्दूक की गोली से नहीं, प्यार की बोली से हम देश को बनाना चाहते हैं और हम उसकी कोशिश करेंगे लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि गोली के सहारे कोई हमको दबाना चाहेगा तो उसका जवाब न देने के लिए भी हम मजबूर हैं, चाहे वह कोई देश के अन्दर करे, चाहे देश की सीमाओं के बाहर से करे लेकिन व्यर्थ का अनर्गल प्रचार करने से कोई शौर्य का प्रदर्शन नहीं होता। हमें तुलसीदास जी की एक चैपाई याद आती हैः

‘‘सूर समर करनी करें, कहीं न जनावैं आपु, विद्यमान रण पाय के, कायर करहिं प्रलाप।’’

बहादुर जो होता है, वह लड़ाई आ जाती है तब अपनी ताकत दिखाता है। जो कायर लोग होते हैं, वे अनर्गल प्रयास करते रहते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि शायद इसी से हमारी बहादुरी का प्रचार हो रहा है। कुछ लोग हैं, मैं नाम नहीं लेना चाहूँगा, उन लोगों से कहा जाए कि बहादुरी का प्रचार थोड़ा कम करो, तो शायद शक्ति का ज्यादा अनुभव आपको होगा। कश्मीर का मामला हो, पंजाब का मामला हो या आतंकवादियों का सवाल हो, हर सवाल पर हमारा संयम हमारा धीरज निर्बलता के रूप में न देखा जाए। हम संयम और धीरज, आपसी ममत्व के आधार पर समस्याओं का समाधान चाहते हैं।

कश्मीर के बारे में बहुत-सी बातें कहीं गई। कहा गया कि बर्फ पिघलेगी तो फिर आ जायेंगे। मुझे ऐसा लगता है कि बर्फ पिघलेगी और उस वक्त तक कश्मीर की समस्या भी पिघल जाएगी। किसी मित्र ने कहा कि हमको मौसम मदद कर रहा है, मौसम मदद नहीं कर रहा है, अगर बड़ी संख्या में आतंकवादी आत्म-समर्पण कर रहे हैं, अगर 1200 से अधिक एक राइफलें कश्मीर में पकड़ी गई हैं, तो मौसम से तो वे राइफलें हमारे पास नहीं आयी हैं। जो आतंकवादी हैं, वे घूम करके अपने आप हमारे साथ मौसम की ठंडी हवाओं की वजह से नहीं आए हैं, आत्म-समर्पण करने के लिए। मैं सीधी बात कहना चाहूँगा, उपाध्यक्ष जी, कोई सदस्य अगर मदद करता है, कोई भी चाहे जेल के अन्दर हो या जेल के बाहर हो, अगर वह देश की विशेष धारा में आना चाहता है, अगर देश के साथ सहयोग करना चाहता है, हम हर व्यक्ति का स्वागत करेंगे। मैं जानता हूँ कि इसकी आलोचना होगी, अखबारों में टिप्पणियां लिखी जायेंगी और संसद में तरह-तरह के प्रचार किए जायेंगे। मैं एक बात, उपाध्यक्ष जी, बहुत विनम्रता के साथ बड़े दृढ़ निश्चय के साथ कहता हूँ कि समझौते की राह पर मैं अन्तिम दिन तक चलूँगा।

इससे मुझे कोई दुनिया की ताकत अलग नहीं कर सकती है। लेकिन समझौता न मानने वालों को मैं यह बात बताने के लिए भी कृतसंकल्प हूँ कि देश की अदृश्य शक्ति आज भी अक्षुण्ण है जिसको कोई मिटा नहीं सकता है। अगर इसको कोई मिटाने की कोशिश करेगा, अगर इसकी एकता और अखंडता के साथ कोई खिलवाड़ करेगा तो देश के करोड़ों लोगों के मनसूबे और संकल्प के सहारे हम उसका मुकाबला करेंगे। हम नहीं चाहते हैं कि हमको कोई अप्रिय निर्णय करना पड़े। हमें विश्वास है कि अप्रिय निर्णय नहीं लेना पड़ेगा और लोग समझौते की राह पर आयेंगे, चाहे वह कश्मीर हो, चाहे पंजाब हो और चाहे कोई दूसरा इलाका हो। धमकी हम नहीं देते हैं। मैं सुन रहा था, उपाध्यक्ष महोदय, असम के ऊपर किसी ने बोलते हुए कहा कि मैंने फिर धमकी दे दी, तमिलनाडु में और असम में। हम कहीं धमकी नहीं देते हैं। हम बहुत विनम्रता से निवेदन करते हैं।

उपाध्यक्ष जी, आपके जरिए कश्मीर के सवाल पर मैं एक ही निवेदन करना चाहता हूँ, आप भी अगर समझें हम सब मिलकर एक नए भविष्य की ओर आगे बढ़े, एकता की ओर बढ़ें, अखंडता की ओर बढ़ें और भारत के सारे लोगों को मिलाकर नए सिरे से एक नया मनसूबा बनाने के लिए, एक नया माहौल बनाने के लिए, मैं इस सदन को विश्वास दिलाता हूँ कि इस दिशा में सरकार आगे बढ़ेगी। आपने जो सहयोग और समर्थन दिया है, उस सहयोग और समर्थन का प्रयोग सारे देश में एक नया माहौल बनाने के लिए सरकार करेगी। कोई अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि देश की शक्ति बढ़ाने के लिए इस सारे सहयोग का उपयोग किया जाएगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।