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कश्मीर भारत का अभिन्न अंग, नहीं सहन किया जाएगा किसी तरह का बाहरी हस्तक्षेप

जम्मू कश्मीर के सवाल पर लोकसभा में 7 जनवरी, 1991 को प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, पिछली सरकार की नीतियों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है, वह माननीय सदस्य की अपनी राय होगी। मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि कश्मीर के हालात आज भी बहुत अच्छे नहीं हैं। पिछले कुछ दिनों में परिवर्तन हुआ है लेकिन सरकार की नीतियों की वजह से नहीं हुआ है, कुछ मौसम की वजह से और कुछ हमारे सुरक्षा बलों ने काम भी अच्छा किया है। वहाँ पर मिल-जुलकर काम करने की जरूरत है।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से सदन से कहूँगा कि कश्मीर जैसे सवाल पर सब लोग मिलकर सोचें तभी कोई समाधान निकल सकता है। हम एक एक्शन प्लान बना रहे हैं। हमने कश्मीर के नेताओं से बात की है। जहाँ तक सुरक्षा बल काम कर रहे हैं, वह अपनी जगह पर मैं विभिन्न दलों के राजनीतिक नेताओं से कहूँगा कि वे जाकर वहाँ से जनसम्पर्क करें, सरकार इसमें पूरा सहयोग और सहायता करेगी।

अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य कश्मीर के इतिहास से अवगत है। भारत और पाकिस्तान के विचारों में इसे लेकर लगातार विरोध रहा है। मैंने ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं देखी है जिसमें पाकिस्तान सरकार वहाँ के प्रधानमंत्री ने यह कहा हो कि वे आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि वे वहाँ आंदोलन कर रहे लोगों को नीतिक और अन्य समर्थन देंगे, किन्तु यह बात भी हमें स्वीकार्य नहीं है। हमने पाकिस्तान सरकार और वहाँ के प्रधानमंत्री को अपनी स्थिति पूर्णतः स्पष्ट कर दी है कि कश्मीर भारत का एक अखण्ड भाग है और कश्मीर में कोई भी हस्तक्षेप सहन नहीं किया जाएगा। यह स्थिति अभी भी है। जहाँ तक कार्यवाही का संबंध है, सभी संभव कदम उठाए जायेंगे ताकि कोई भी वर्तमान स्थिति को बिगाड़ न सके और कश्मीर भारत का एक अविभाज्य हिस्सा है और इसके लिये सरकार हरसंभव उपाय करेगी; इसमें कुछ भी कमी नहीं की जाएगी।

अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्य को यह बता देना चाहता हूँ कि सार्क सम्मेलन में कश्मीर का मामला नहीं उठाया गया और न ही हाउस पर कोई चर्चा हुई क्योंकि हम ऐसा समझते हैं कि कश्मीर का मामला हमारे देश का अन्दरूनी मामला है और भारत सरकार इसे किसी विदेशी मंच पर उठाने के विरुद्ध है। सार्क सम्मेलन में तो इस बारे में बात नहीं हुई लेकिन सार्क सम्मेलन के बाद जो हमारी वहाँ के प्रधानमंत्री जी से व्यक्तिगत बात हुई उसमें क्या चर्चा हुई। आप जानते हैं कि वह सार्वजनिक रूप से कहने की बात नहीं होती है। इसलिए उस चर्चा के बारे में मैं कुछ कहना नहीं चाहता हूँ। जहाँ तक दूसरा सवाल है, माननीय सदस्य वहाँ के शरणार्थियों के बारे में मुझसे मिले थे और उन्होंने कुछ सुझाव भी रखे थे। जहाँ तक उनके पुनर्वास का मामला है, आप जानते हैं कि इसके बारे में दो तरह की राय है। सरकार उसको भी देख रही है। उनको हर सुविधा देने के लिये हमारे पास कुछ सुझाव आये हैं। माननीय केदारनाथ साहनी जो माननीय सदस्य की पार्टी के सदस्य हैं, उन्होंने भी विस्तृत योजना बतायी है। उस दिशा में हम कुछ काम कर रहे हैं। जो लोग शरणार्थी बन कर आये हैं, वे सब बड़े परिवारों या धनी परिवारों से हैं। उनको कितनी ही सुविधा दी जाये, वह कम है। उन्हें वह सुविधा नहीं दी जा सकती जिसके अन्दर वह रह रहे थे। उनकी चिन्ता, उनकी बेचैनी को मैं समझता हूँ, अध्यक्ष महोदय, लेकिन सरकार के जो सीमित साधन हैं, उनमें पूरी सहायता की जा रही है।

महोदय, यह सत्य है कि आतंकवादियों को सीमा पार से कुछ मदद मिल रही है किन्तु उन्हें कौन प्रोत्साहित कर रहा है और किस हद तक उन्हें बढ़ावा मिल रहा है, अभी मैं यह बताने की स्थिति में नहीं हूँ किन्तु भारत सरकार को सीमा पार से मदद दिए जाने की सूचना है। जहाँ तक देश के उस भाग में राजनैतिक प्रक्रिया प्रारम्भ करने का संबंध है, हमने कश्मीर के विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं से अनुरोध किया है। मैं माननीय सदस्यों को आश्वासन देता हूँ कि हम उन सभी नेताओं को सभी संभव सहायता और सहयोग देंगे यदि वे वहाँ जाकर लोगों से सम्पर्क करें। हम कश्मीर के सभी नेताओं, यहाँ तक कि बाहर के नेताओं से भी व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से अनुरोध कर रहे हैं, कि अगर वे अपना दृष्टिकोण व्यक्त करने के लिए कश्मीर जाने को तैयार हैं जैसा कि माननीय सदस्य ने कहा है कि हमें लोगों के विचारों को बदलना है, तब मैं इसका स्वागत करूंगा। सरकार की ओर से उन्हें सभी प्रकार की सुविधा और सहायता दी जायेगी।

अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो चिन्ता व्यक्त की है, उसकी वास्तविकता को मैं समझता हूँ लेकिन यह सवाल नहीं है कि आर्मी लगाना उचित है या नहीं। फौज की जहाँ जरूरत पड़े, लगाना उचित हो जाता है। आवश्यक है कि नहीं, इस बारे में दो राय हो सकती हैं। मैं समझता हूँ कि हमारे सशस्त्र पुलिस बल ही इस बात के लिए पर्याप्त हैं कि वहाँ की स्थिति को संभाल सकें। माननीय सदस्य ने जो सुझाव दिया है, वह सुझाव सही है, उनको आधुनिक हथियार देने की व्यवस्था की गई है, की जा रही है। अधिक से अधिक केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल को हम वहाँ भेज रहे हैं। जहाँ तक फौज का सवाल है, सरकार यह नहीं चाहती कि आन्तरिक मामलों में फौज का इस्तेमाल हो, जब तक कि यह अत्यन्त आवश्यक न हो जाय। वहाँ स्थिति अभी इस स्थिति में नहीं है कि फौज को भेजना जरूरी हो। यह सीमावर्ती राज्य हैं, इस बात को भी ध्यान में रखा जाता है। इसलिए फौज को आपरेशन करने के लिए, कार्यवाही करने के लिए हम नहीं भेजे हुए हैं लेकिन हम अपने सशस्त्र पुलिस बल को अधिक से अधिक प्रभावी ढंग से काम करने के लिए कदम उठा रहे हैं।

अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य का सुझाव अभिवंदनीय है। देश के उस हिस्से में विप्लव को सहन नहीं किया जाएगा। राजनैतिक दलों के विभिन्न नेताओं से मैंने बात की है। इस मुद्दे पर सभी एकमत हैं। मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि सम्पूर्ण देश और देश का राजनैतिक मत यही है कि कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है और विद्रोह के किसी भी प्रयास से समय की मांग के अनुसार निपटा जाएगा।

अध्यक्ष महोदय, मुझे अभी आशा है कि वहाँ के जिन लोगों ने गलत मार्ग चुना है, वे अपने प्रयास की निरर्थकता को समझेंगे। वह देश की मुख्यधारा में लौट आएंगे और अधिक समस्या उत्पन्न नहीं करेंगे। इस दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठाये गए हैं। मुझे आशा है कि यह क्रम जारी रहेगा और निकट भविष्य में शायद वहाँ स्थिति को संभालने के लिये सेना भेजने की जरूरत न पड़े।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।