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मस्जिद नहीं, भारत की गौरवमयी परम्परा टूटी है, पक्ष-विपक्ष दोनों की विश्वसनीयता संकट में

अयोध्या में ढांचा गिराये जाने पर 17 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, आज जो सदन में चर्चा चल रही है, वह अत्यन्त दुःखद है। आज प्रातःकाल जब शरद यादव बोल रहे थे और उन्होंने कहा कि अगर ढोंग का ही वातावरण बनाना है तो आप इस बहस को चलाइये तो मुझे ऐसा लगा कि शरद यादव कुछ अत्यन्त कटु भाषा का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन इस बहस को जिस प्रकार चलाया गया है, जो भाषण हुये हैं, उससे मुझे ऐसा संकेत मिला या मेरा यह विश्वास बना कि शरद यादव इस बहस की भूमिका को ज्यादा अच्छी तरह समझते थे, अपेक्षाकृत मेरे। अटल जी के भाषण से प्रारम्भ हुआ, जो यहाँ पर नहीं हैं, जिन्होंने शालीनता, सद्भावना, सहिष्णुता का हमें पाठ सिखाया।

अध्यक्ष जी, उन्होंने हमें बताया, हमारी परम्परा क्या है? उन्होंने भारत के अतीत के गौरवमयी अध्याय को हमारे सामने मुखरित किया। ऐसा लगा सारी शालीनता, सहिष्णुता, सौष्ठव, आपसी भाईचारा, विश्वबंधुत्व की वह उज्ज्वलमयी परंपराएं, जो सनातन से हमारे इतिहास की रही हैं, हमारे देश में फिर मुखरित हो रही हैं।

मुझे ऐसा लगा कि शायद उस पार्टी में उनका संबंध नहीं, जिस पार्टी के लोगों ने बड़े गौरव के साथ कहा, एक कलंक का टीका भारत की धरती से उठ गया। शायद उन लोगों से उनका संबंध नहीं, जिन्होंने बड़े गौरव के साथ, अभिमान के साथ कहा, मस्जिद टूटी तो एक बर्बरता की निशानी टूट गई। अध्यक्ष महोदय मुझे लगा कि न उन्हें अपने इतिहास का पता है, न राष्ट्र की मर्यादा का पता है। मस्जिद नहीं टूटी, भारत की गौरवमयी परम्परा टूट गई, भारत का इतिहास टूट गया, भारत की सहिष्णुता, भारत की मानवतावादी परम्परा गई। यहाँ बड़े संन्यासी बैठे हैं, हिन्दू संस्कृति के जानने वाले बैठे हैं, कम से कम मैं नहीं जानता कि हिन्दू संस्कृति को मानने वाले किसी राजा, किसी पराक्रमी पुरुष ने किसी पूजा स्थल को कभी गिराया हो।

मैं जब यह कहता हूँ, अध्यक्ष महोदय, तो मैं उस बात को भी कहता हूँ, कई बार उतार-चढ़ाव आए, कई बार नीचे गिरे और ऊपर उठे, कई बार हारे और कई बार जीते, लेकिन याद रखिये यह वह देश है, जहाँ मोहम्मद गोरी, गजनी, चंगेजखां के आने के बाद भी हिन्दुस्तान के लोगों से सहनशीलता को नहीं छोड़ा। सहनशीलता और उन कटुता के दिनों में इतिहास के अंदर गिरे हुए क्षणों को हम नहीं मिटा सके।

आज मैं अटल जी से निवेदन करूंगा और जसवंत जी से निवेदन करूंगा कि आज हमने अपने अति उत्साह में या अपने क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए उन सारी मान्यताओं को तोड़ दिया। आज फ्रांस का सबसे बड़ा अखबार ‘‘लामोन्ड’’ ने लिखा है- ‘‘हिन्दुस्तान में धर्म-निरपेक्षता हमेशा के लिए मर गई।’’ हमारे सामने भारत में कई बार उतार-चढ़ाव आए है, लेकिन दुनिया में एक ही सभ्यता, अगर मिस्र की सभ्यता को छोड़ दिया जाए, जो कभी मिटी नहीं, कभी टूटी नहीं और कभी गिरी नहीं। हिन्दू धर्म अकेला धर्म है। मैंने एक बार इस सदन में कहा था, मुझे हिन्दू होने का इसलिए गर्व है कि हिन्दू धर्म ने सबको अपनाया, किसी को ठुकराया नहीं। हिन्दू धर्म ने सबकी इज्जत की, सब धर्मों के जो अच्छे गुण थे, उनको लिया। बौद्ध ने हिन्दू में ब्राह्मण धर्म को मिटाने की कोशिश की, लेकिन हिन्दू धर्म ने उसको अवतार बनाकर उसकी पूजा की। यह हमारी परम्परा रही है, यह हमारी भावना रही है और यह सभ्यता तथा संस्कृति रही है।

वह शालीनता, वह सौष्ठव, वह संवेदनशीलता कहाँ गई? अटल जी ने कहा कि हम दूसरे दिन लज्जित थे, दुःखी थे। उनका बयान छपा। आडवाणी जी, ने अपने पद से इस्तीफा भी दिया। उन्होंने कहा हमारी जिम्मेदारी, हम अपने वायदे को पूरा नहीं कर सके। हम देश के ऊपर कलंक लगाने के लिये जिम्मेदार हैं और सरकार ने गिरफ्तारी कर ली। क्या यह गिरफ्तारी, आई.पीसी. की जो मामूली धारा है, जिसमें आप विशेष अतिथि के रूप में जेल में बन्द किये जाते हो, अपनी सारी परंपराओं को तोड़ करके, आपने दूसरे दिन अपना रुख ही बदल दिया, शालीनता, सौष्ठव, संवेदनशीलता, भारतीय परम्परा, सभ्यता, संस्कृति, तहजीब और तबद्दुम-क्या चन्द लोगों की गिरफ्तारी से आप सब भूल गए। मैं मानता हूँ, आप जानते हैं कि उस गिरफ्तारी के हक में मैं नहीं था। आज भी मैं उसके हक में नहीं हूँ, लेकिन उसी गिरफ्तारी से आपके तेवर क्यों बदल गये? आपने अपनी भूमिका क्यों बदल दी। जो बात हमारे इन्द्रजीत गुप्त जी ने कही, उस समय चेतावनी दी कि मत चढ़ो शेर के ऊपर। आप उस बात को नहीं माने और आपने इकट्ठा कर लिया लोगों को।

आडवाणी जी कहते हैं कि डेढ़ लाख लोग संयत थे और पांच सौ लोग मस्जिद गिरा रहे थे। डेढ़ लाख लोग इतने निष्क्रिय थे कि पांच सौ लोगों को रोक नहीं सकते थे। दुनिया में आप किसको विश्वास दिलाना चाहते हैं। दुनिया में किसके सामने आप यह अपनी सफाई देना चाहते हैं। हो सकता है, आप यह नारे देकर सफल हो जाएं। हो सकता है, संसद में यहाँ बड़ी संख्या में आ जाएं। तीन दिन पहले मैंने अपने कुछ मित्रों को कहते सुनते हुये सुना कि किसमें हिम्मत है, मस्जिद बनायेगा, एक ईंट रखेगा, उसका घर-दरवाजा सब खत्म हो जायेगा। अगर दरवाजा खत्म कर दोगे, लेकिन याद रखो, उसी के साथ भारत के अतीत को समाप्त करने की जिम्मेदारी आपके ऊपर होगी। भारतीय संविधान और सभ्यता को कब्र में पहुँचाने की जिम्मेदारी आपकी होगी।

कई बार इतिहास ने देखा है, यह केवल पहला उदाहरण नहीं है। जो दुनिया में सभ्यता और संस्कृति की बात करते हैं, जो पुराने गौरव और परम्परा की बात करते हैं, वही संस्कृति, वही नीयत, वहीं राजनीतिक गतिविधियां हिटलर भी पैदा करती हैं। दुनिया ने एक बार देखा है, दुनिया फिर इसे न देखे। और कहीं देखे, लेकिन हिन्दुस्तान में न देखे, तो अच्छा है। क्योंकि हिन्दुस्तान ने सारी कटुता के बावजूद अपनी मान्यताओं को नहीं तोड़ा है। अध्यक्ष महोदय, कैसे यह सब हो गया, अचानक क्या हो गया, सचमुच, मैं उस बात में नहीं जाऊंगा। एक तरफ की बात है शालीनता की, सौष्ठव की, सहिष्णुता की, दूसरी तरफ इधर से जो पुरुषार्थ का प्रदर्शन हमने देखा, बहादुरी के वे शब्द और लड़ने की हुंकार, हमारे अर्जुन सिंह जी, यहाँ नहीं है, वे बोल रहे थे तो हमें ऐसा लगता था कि महाभारत का अर्जुन बोल रहा है। ‘‘अर्जुनस्य प्रतिज्ञा द्वै, न दैन्यम् न पलायनम्।’’ यानी, न पीछे हटेंगे, न दीनता दिखाएंगे।

आज यह बहादुरी, हमारे मित्र श्री शरद पवार बोल रहे थे, तो मुझे अभिमान हो रहा था कि भारत का रक्षामन्त्री बोल रहा है। लेकिन यह वीरता उस दिन कहाँ थी, यह पराक्रम, यह पुरुषार्थ उस दिन कहाँ था? हमारी समझ में नहीं आता है। हम लोग कोई अभिनय कर रहे हैं। या हम लोग किसी परिस्थिति के ऊपर बहस कर रहे हैं यह संशय अभिनय गृह नहीं है, यहाँ पात्र नाटक करने के लिए नहीं आते हैं, यहाँ देश की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आते हैं। दोनों तरफ से अभिनय हो रहा है और इसीलिए मैं कह रहा था कि शरद यादव मुझसे ज्यादा इन दोनों लोगों को समझते हैं ऐसा मुझे विश्वास है। यह ढोंग की राजनीति, यह ढोंग के प्रवचन इस देश के इतिहास को न बनाने वाले हैं, न बिगड़ी हुई घड़ी को बनाने वाले हैं।

यह देश आज किस स्थिति में पहुँचा है, किससे लड़ोगे? हमारे मित्र सोम दादा और इन्द्रजीत गुप्त कह रहे थे कि इकट्ठे हो जाओ, लड़ जाओ, लेकिन किनके साथ लड़ोगे, किससे लड़ोगे, मिल कर लड़े, आपके ही नेतृत्व में हमने नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल में प्रस्ताव पास कराया था। हमने उस प्रस्ताव को लिखा था। हमारे कई मित्रों को संदेह था। हमने कहा कि हम पूरी तरह आपका साथ देंगे। आप पर विश्वास इंद्रजीत गुप्त जी नहीं था, सोमनाथ चटर्जी आपके ऊपर नहीं था, राम विलास पासवान, चन्द्रजीत यादव आप पर विश्वास नहीं था। अटल बिहारी पर विश्वास नहीं था उस दिन विश्वास था आडवाणी के ऊपर, उस दिन विश्वास था वालासाहेब देवरस के ऊपर, उस समय विश्वास था संत-महात्माओं के ऊपर और हमसे कहा जाता था आपका सहयोग चाहिए। आपके सहयोग की भावना मुबारक हो लेकिन मेरे मन में एक संदेह है जिस संदेह को मैं आज देश के सामने और देश की जनता के सामने और आप माननीय सदस्यों के सामने रखना चाहता हूँ।

राष्ट्रीय परिषद की बैठक क्यों बुलाई गई थी, क्यों कहा गया था सहयोग का प्रस्ताव पास करो। क्या हम लोग कोई बच्चे थे? क्या हम लोग प्रधानमंत्री के दरवाजे पर सहयोग देने के लिए उतावले बैठे थे? क्या हमारे मन में यह लालसा थी किसी प्रधानमन्त्री के दरवाजे पर हमारे सहयोग की भीख स्वीकार कर ली जाए। हम लोगों के पास सत्ता नहीं है, हमारे पास सरकार नहीं है। हमारे पास बड़े लोगों का समर्थन नहीं है लेकिन हम समझ और नाहक! बहुत अदब के साथ मैं कहना चाहता हूँ प्रधानमंत्री जी की मैं इज्जत करता हूँ लेकिन उनकी एकाग्र दृष्टि के ऊपर मुझे तरस आता है इसलिए मैं कहता हूँ बार-बार मैंने कहा कि इस लड़ाई में हम सब साथ हैं क्योंकि यह लड़ाई किसी पार्टी के खिलाफ नहीं है।

मैं साम्प्रदायिक शक्तियों की बात नहीं करता, यह लड़ाई देश की मर्यादा को, प्रतिष्ठा को बचाने की लड़ाई, इस देश को जिन्दा रखने की लड़ाई। इसमें एक मस्जिद नहीं टूटेगी, एक मन्दिर नहीं टूटा, मस्जिद टूटे, मन्दिर टूटे हमें उसकी कोई चिन्ता नहीं है लेकिन आज करोड़ों का दिल टूट गया और इस दिल को आप नहीं जोड़ सकते। आप अपने भाषणों से उसको फिर से जागृत नहीं कर सकते। 15 करोड़ लोगों की आस्था को चोट पहुँची। मुझे याद है, हर बार मुझे ऐसे ही बात करनी पड़ती है, जो लोगों को अच्छी नहीं लगती। डेढ़ करोड़ सिक्खों के साथ जब कुछ हुआ था तब भी मैंने कहा था मत करो इस काम को। उस समय हमारा बड़ा उपहास हुआ था, बड़ी आलोचना हुई थी। इतिहास इसका गवाह है क्या हो रहा है आज पंजाब में, क्या उसको आप सेना के बल पर दबा लिये, क्या उसके ऊपर आप काबू पा लिए, गालियां दे लो, संविधान की दुहाई दो कि 15 करोड़ मुसलमान जो भारत में हैं ये सब अरब से नहीं आये, ये विदेश से नहीं आए। हमारे ही घर के लोग हैं, इनको दबा लोगे? इनको अरब सागर में ले जाकर डुबा दोगे? ये 15 करोड़ लोग कहाँ जाएंगे? जिस दिन इनमें से 15 हजार नौजवान चुनौती देने के लिए तैयार हो जायेगा। फिर? मैं कहना चाहता हूँ कोई नहीं जाता है पंजाब में चुनौती को स्वीकार करने के लिए, कोई नहीं जाता है कश्मीर में चुनौती को स्वीकार करने के लिए, जाते हो चुनौती देने के लिए अयोध्या में, राम की भूमि में जहाँ हर किसी को मानवता का, प्रेम का संदेश सुनाया गया।

मैं अटल जी से निवेदन करूंगा कि आज भी छोटे दायरे को तोड़ें, वह हम नहीं जानते कि वे भत्र्सना करेंगे या नहीं करेंगे। वे भत्र्सना करें या न करें, कंडम करें या न करें लेकिन जो पश्चाताप उनके दिल में उस दिन था जब उन्होंने इंडिया एप्रोव को बयान दिया था, क्या आडवाणी की गिरफ्तारी से सब कुछ बदल गया, क्या परिस्थितियाँ, वास्तविकताएं बिल्कुल टूट गईं। क्या आपकी मर्यादाएं उस दिन बिखर गईं। देश को बनाना होगा, कई बार लोगों के साथ ज्यादतियां होती हैं, उन ज्यादतियों से, जो ज्यादती किसी एक नामाकुल आदमी की हरकत से होती है, उसके लिए क्या देश के ऊपर इतनी बड़ी आप लांछना लगाने के लिए तैयार हैं। सारी दुनिया आज कहे कि भारत में धार्मिक आजादी मिटाने की कोशिश हो रही है। क्या इसके लिये हमको और आपको लज्जा नहीं आनी चाहिये।

आपने बयान दिया, कहा कि यहाँ पर हमने सही तस्वीर नहीं रखी। हमने यह नहीं कहा कि यह ढांचा मात्र था, पूजा होती थी, नमाज नहीं पढ़ी जाती थी, सही है अटल जी, लेकिन कुछ नहीं था फिर भी 500 वर्षों की, 421 वर्षों की इमारत थी। दुनिया के किसी देश में आप कहोगे कि 400 वर्ष पुरानी इमारत, चाहे वह पूजा का स्थान हो या नहीं, हमने राजनीतिक कारणों से तोड़ दिया है, तो दुनिया में कोई आपकी तरफ मुँह उठा कर नहीं देखेगा, दुनिया आपके मुँह पर कालिख लगाकर रहेगी, क्योंकि हमारी सभ्यता, संस्कृति, गौरवमय इतिहास का अंग है और आपने उसको उठाकर धरा-ध्वस्त कर दिया। क्या भारतीय जनता पार्टी के साथी यह समझते हैं कि इससे उनको दुनिया में गौरव मिलने वाला है? मुझे इस बात को कहने में थोड़ी भी हिचक नहीं है कि दुनिया के इस्लामिक देशों ने जो रुख दिखाया है, 1-2 देशों को छोड़कर, इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। उन्होंने अपना संयम नहीं छोड़ा।

आपको याद होगा अध्यक्ष महोदय आप तो नहीं थे, सोमनाथ जी वहाँ पर थे, एन.आई.सी. की मीटिंग में मैंने आडवाणी जी से कहा था कि मैं कल्याण सिंह को समझ सकता हूँ, पटवा जी को समझ सकता हूँ उनको भोपाल और लखनऊ चलाना है, लेकिन आप विरोधी दल के नेता हो और देश चलाने की इच्छा रखते हो, आपके ऊपर यह जिम्मेदारी आ भी सकती है, क्या कभी सोचा है कि दुनिया में इसका नतीजा क्या होगा? एक नेता नये उतरे हैं राष्ट्रीय जगत पर, राष्ट्रीय क्षितिज पर भारतीय जनता पार्टी क,े उन्होंने हमसे कहा, आप क्या समझते हैं, दुनिया में हम किसी की परवाह नहीं करते, हम सबसे मुकाबला करेंगे, बड़े-बड़े लोग हैं मुकाबला करने वाले, हम चुप हो गये। महापुरुषार्थी लोग पैदा हो गये हैं, सारी दुनिया का अकेले मुकाबला कर लेते हैं।

अध्यक्ष महोदय, मुझे खुशी है कि दुनिया के दूसरे देशों ने भारत की पुरानी गरिमामयी परम्परा को, जो मित्रता की परंपरा है, उसको कायम रखा है। याद रखिये, इस्लामिक देशों ने हमारी सैकड़ों वर्षों की दोस्ती की परम्परा को कायम रखा है और आपने इस देश की हजारों वर्षों की परम्परा को तोड़ा है। आप अपने को हिन्दू धर्म का सिपहसालार, सभ्यता-संस्कृति का दावेदार कहें, हमें आपसे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन अटल जी, आपसे हमें उम्मीद थी, जसवन्त सिंह जी, आपसे हमें उम्मीद थी। राजमाता जी से भी हमको उम्मीद थी, यह तो उम्मीद थी कि वे धर्म के लिए कुछ भी कर सकती है, लेकिन मस्जिद गिरने देंगी, यह उनसे उम्मीद नहीं थी।

मैं यह बात सीधे तौर से कहता हूँ, इन्द्रजीत जी ने जो शब्द इस्तेमाल किया, वह शब्द तो मैं इस्तेमाल करना नहीं चाहता, लेकिन इतना कहना चाहता हूँ कि मुरली मनोहर जोशी जी, आडवाणी जी, जो सारी दुनिया को चुनौती दे सकते थे, अपने 500 कार्यकर्ताओं के सामने खड़े नहीं हो सकते थे? क्या आप देश को चलाओगे, क्या आप राष्ट्र को इस कठिन समय से निकालोगे, यह बात मैं आपसे जानना चाहता हूँ, इसका जवाब इतिहास आपसे पूछेगा, हम नहीं पूछ सकते, शायद मेरे पास सामथ्र्य नहीं है, शक्ति और क्षमता नहीं है, शायद सरकार भी न पूछ सके, लेकिन इतिहास बड़ा कठोर निर्णायक होता है, वह किसी को क्षमा नहीं करता, देर लग सकती है, लेकिन वह निर्णय करके रहेगा। यह सबसे बड़ा सवाल हम आपसे पूछते हैं।

हमारे कई मित्र इधर से बोल रहे हैं कि क्या करते, गोली चला देते, नहीं, गोली मत चलाइए। पुलिस और फौज बैठी हुई है, उसकी गोली को मखमल का गद्दा बिछाकर रख दीजिए और जब जरूरत पड़े, वह आपको सेल्यूट दे सके, उन्हें गोली चलाने की जरूरत नहीं है। यह फौज, पुलिस जिस पर हर साल बजट पास करते हैं, किसलिए बनी हुई है। क्या गोली चलाने के लिए नहीं बनी हुई है? राज्य की कल्पना कैसे बनी? राज्य कोअर्सिव पावर्स का समुच्चय है, दमन की शक्तियों को समाज ने आपके हाथ में दिया है, ताकि समाज को तोड़ने वाली ताकतों का मुकाबला कर सकें, और उन शक्तियों का अगर आप उपयोग नहीं करते हैं तो आप अपने कर्तव्य से च्युत होते हैं। इसलिए यह हमसे मत कहिए।

हमसे कहा जाता है कि अविश्वास हुआ है, किसने किया, किसने धोखा दिया, हमें तो कोई धोखा नहीं हुआ। हमने अकेले ने नहीं, इधर बैठे हुए सभी लोगों ने कहा था। इधर बैठे हुए मित्रों को मैंने देखा, आज इन्द्रजीत जी और सोमनाथ जी की भाषा बड़ी कंसीडरेट थी। सरकार के प्रति, नई हमदर्दी जगी है, हमदर्दी हमारी भी है इनके साथ, क्योंकि इस पार्टी के लोगों ने भारतीय परम्परा को, धर्मनिरपेक्षता को, भारत के इतिहास को उधर के लोगों से ज्यादा समझा है और रक्षा भी की है, इन्होंने इस बात को किया है, इसको कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है।

दोस्तो, मैं अटल बिहारी जी और कुछ लोगों को छोड़ देता हूँ, क्योंकि जिन लोगों ने केवल राम से ही राजनीति शुरू की है और उनकी राजनीति का अन्त राम पर ही हो जाता है, उनसे हमें कोई उम्मीद नहीं है। इसलिए हमें उम्मीद तो आप लोगों से थी।

हमारे एक मित्र ने कहा, मुझे याद नहीं किसने कहा, हाँ, अटल जी ने कहा अर्जुन सिंह जी से कि इतना गुस्सा कर रहे हो तो आपने इस्तीफा क्यों नहीं दे दिया? अर्जुन सिंह जी ने बड़े नाटकीय ढंग से कहा कि मैं भागने वाला नहीं हूँ, मैं लड़ने वाला हूँ। मन्त्री पद से हट जाते तो लड़ने में कुछ कमी आ जाती? इतने कांग्रेस के मैम्बर्स बैठे हैं वे नहीं लड़ेंगे? केवल मन्त्री लोग ही लड़ेंगे? अगर मन्त्री पद नहीं रहेगा तो लड़ाई नहीं लड़ सकते। मैं आपसे कहना चाहता हूँ राजनीति एक अभिनय नहीं है, राजनीति एक सुविधा का खेल नहीं है, राजनीति कठोर निर्णय देने के लिए हर क्षण आपको निमन्त्रण देती है।

मैं आपसे यह नहीं कहूँगा कि निर्णय आप करें। क्योंकि हर आदमी के लिए नैतिकता और मर्यादा की अपनी सीमाएं हैं। लेकिन यदि हम किसी जन-प्रतिनिधि के नाते एक जिम्मेदारी का कदम उठाने के लिए बैठे हुए हैं और उस जिम्मेदारी को हम किसी भी कारण से नहीं निभा पाते हैं तो हमारे लिए उस जगह पर बैठे रहना, इससे बड़ी लज्जा की बात और शर्म की बात और कोई नहीं हो सकती। आपकी विवशता क्या है? दुनिया को आपकी विवशता से कोई मतलब नहीं। दुनिया आपसे निर्णय चाहती है। दुनिया आपसे यह जानना चाहती है कि आपने परिस्थितियों का मुकाबला किया या नहीं किया? यही नहीं अध्यक्ष महोदय, यह सरकार जिम्मेदार है निर्णय के लिए, इस सरकार ने लांछन लगाया हमारी सारी पुलिस फोर्स के ऊपर, इस सरकार ने लांछन लगाया हमारी सेना के जवानों पर, इस सरकार ने लांछन लगाया हमारे गुप्तचर विभाग के लोगों के ऊपर। क्या आप हमसे कहना चाहते हैं कि आपको खबर नहीं थी? मझे खबर थी कि यह होगा।

मैं नाम नहीं लेना चाहता, क्या मैंने इस तरफ से बैठे उच्च लोगों को नहीं कहा कि मस्जिद गिरने वाली है? क्या मैंने आपसे कहा नहीं कि आपको तैयार होना चाहिए दमन शक्तियों का उपयोग करने के लिए। मुझसे उस समय भी कहा गया था गोली चल जाएगी, कुछ लोग मर जाएंगे। मैंने कहा 10-20 को मारने के लिए तैयार नहीं होओगे तो हजारों लोगों को मौत के घाट उतारने के लिए आप जिम्मेदार होगे।

आज यहाँ पर अटल जी ने कहा, वे मुलायम सिंह सरकार पर बड़े नाराज हैं। उस समय भी नाराज थे। लेकिन, मुलायम सिंह ने गोली चलवायी थी तो केवल 16 लोग मरे थे और कल्याण सिंह ने गोली नहीं चलवायी थी तो कम से कम 1200 लोग मरे। आप फिर कहते हैं हम जिम्मेदार नहीं? आडवाणी साहब का बयान है ‘‘कल्याण सिंह, मुलायम सिंह नहीं हो सकते।’’ मैं जानता हूँ मुलायम सिंह और कल्याण सिंह में कोई तुलना नहीं है। मुलायम सिंह संविधान की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकते थे, कल्याण सिंह संघ के आदेश के पालन के लिए कुछ भी कर सकते थे। एक को संविधान का आदेश था और दूसरे को संघ परिवार का आदेश था। दोनों आदेशों में अंतर है। इस अन्तर को हमें और आपको पूछना पड़ेगा। यह अन्तर हम जानते थे। मुझे अन्तर मालूम था, यह अन्तर हमारे प्रधानमन्त्री जी को नहीं मालूम था, यह अन्तर अर्जुन सिंह जी को नहीं मालूम था, यह अन्तर नहीं मालूम था शरद पवार जी को।

अध्यक्ष महोदय, हमसे दुनिया के लोग जब पूछते हैं, हम सब चीजों का जवाब दे सकते हैं, क्या हमारे पास जवाब है 6 तारीख को, 11.45 बजे या 11. 30 बजे मस्जिद पर लोग चढ़े, 6.15 तक आप देखते रहे। ऐसी पंगु सरकार कहे कि हमसे गलती हो गयी, हमें धोखा हो गया। धोखा आपको नहीं हो गया, आपने अपने को धोखा दिया और आपने देश की जनता को धोखा दिया। इसलिए मैं कहता हूँ कि आज की इस बहस में बहस करना बड़ा मुश्किल है। दोनों ओर छद्म और ढोंग की होड़ चल रही है। किधर जाएं? मन में आता है कहें कि निकम्मी सरकार है, इसको जाना चाहिए। लेकिन फिर सोचते हैं कि किसकी ओर मिल कर कहंे? उन लोगों की ओर जो उससे ज्यादा ढोंग का व्यापार चलाना चाहते हैं। हमारे जैसे लोगों के लिए, मैं सच कहता हूँ, हमारे जीवन में, राजनीति में इससे बड़ी दुविधा की स्थिति कभी नहीं हुई। हम कांग्रेस वर्किंग कमेटी से सीधे जेल में गए, एक क्षण भी हमारे दिल में कोई दुविधा नहीं हुई। मैं कैसे कहूँ कि इस सरकार में हमारा विश्वास है।

मैं यह कैसे कहूँ कि अटल जी, जो आपके मित्रों ने किया है, उनके कहने पर सरकार को निकम्मा मान जाए और आपको राष्ट्रभक्ति का सर्टिफिकेट दे दें, यह भी मेरे लिए सम्भव नहीं है। यह मजबूरी है, आज देश को और इस मजबूरी में देश को लाने की पूरी जिम्मेदारी कांग्रेस सरकार के ऊपर है, कांग्रेसियों के ऊपर नहीं है। यह मत कहिए कि मैं कांग्रेसियों का डिवीजन करना चाहता हूँ या कोई राजनीति करना चाहता हूँ। अखबार के भाई रोज लिख देते हैं कि शरद पवार और अर्जुन सिंह से हमारी गुप्त मन्त्रणा हुई। कहीं कोई मंत्रणा नहीं हुई है। यहीं पर दर्शन हो जाते है। ये लोग घबराते होंगे कि हमसे कोई पद न चला जाए, हमसे बात करने में। हमसे किसी ने कोई बात नहीं की और न कभी कोई मिलता है।

मैं कांग्रेस के मित्रों से कहना चाहता हूँ कि यह जो कलंक का धब्बा राष्ट्र के ऊपर लगा है, इसकी जिम्मेदारी आप पर है। आप अर्जुन सिंह जी को जानते हैं। आपको ज्यादा ज्ञान है। मेरी इनमें बड़ी दोस्ती रही है। आज भी कहता हूँ कि इनमें से बहुत से लोगों को मैं बहुत निहित और बहुत आदर्शवादी व्यक्ति मानता हूँ। मुझे कहने में हिचक नहीं है कि आप सरकार के पद पर बैठे थे। आप सब कुछ जानते थे और चुपचाप बैठे रह गए। आपको भी क्या कोई कृष्ण चाहिए, गीता का उपदेश देने के लिए अर्जुन की तरह। कहाँ से कोई कृष्ण आता? आप महाभारत की बात करते हो। महाभारत आपने पढ़ा है और कुछ सीखा है और बुना है, केवल पढ़कर यहाँ भाषण देने के लिए, उसके दो शब्द याद कर लिए।

अध्यक्ष महोदय, आज यह देश एक ऐसे बिन्दु पर खड़ा है जहाँ हमारे और आपके लिए निर्णय लेना कठिन है। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि आज हमारी मान्यताएं दाँव पर हैं। आज हमारी विश्वसनीयता दाँव पर है। पहली बार ऐसी सरकार इस देश में है जिसकी विश्वसनीयता पर किसी को कोई भरोसा नहीं है। पहली बार ऐसा विरोध पक्ष है जिसके बारे में दुनिया को कोई गलतफहमी नहीं है, कम से कम मुझे कोई गलतफहमी नहीं है जो किसी मूल्य को नहीं रखना चाहते। इस देश की अजीब हालत है। जो सरकार को चला रहे हैं वे अपंग हैं और जो विरोध में बैठे हुए हैं वे सरकार पर हावी होना चाहते हैं। वे देश की मान्यताओं को तोड़ना चाहते हैं और देश की परम्पराओं के विरुद्ध काम कर रहे हैं। अपने गुरुदेव से, उन्होंने कहा कि शिष्य बहुत ही मदद कर सकता है। मैं गुरुदेव से चाहूँगा कि आप मेरी मदद करें। ऐसे में हम क्या करें और किधर जाएं। आपके लिए भी निर्णय करना होगा। भीष्म पितामह बन जाने से कलंक लेकर ही मरेंगे तो कोई ऊपर मर्यादा नहीं मिलने वाली है। आपका उपदेश कोई नहीं सुनेगा।

अध्यक्ष महोदय, आज यह विकट परिस्थिति इस देश के सामने है। मैं चाहता हूँ कि यह सदन एक बार इसकी वास्तविकता को समझे। मैंने पहले भी कहा था कि एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप को छोड़कर हम अपनी सही हैसियत को मानने के लिए तैयार हों। अगर हमसे अपराध हुआ है तो उसको स्वीकार करें। अटल जी, आपने जो ‘‘इण्डिया एब्रोड’’ को बयान दिया था, उससे मत डरिए। हर समय बदल जाना कोई राजनीति नहीं। परिस्थिति के अनुसार मुड़ जाना और हालत के रुख से अपने को बचा लेना, यह कोई राजनीति का कत्र्तव्य नहीं है।

प्रधानमंत्री जी से मैं निवेदन करूंगा कि बहुत हो गया। लेकिन अनिर्णय की स्थिति से आपकी छवि को जो धक्का लगा उससे बचने के लिए कोई भी कदम बिना सोचे-समझे मत उठाइए। अनावश्यक रूप से सरकारों को बर्खास्त करने का काम आप समझें कि पुरुषार्थ का प्रतीक है। लेकिन आपकी बिगड़ी हुई छवि को सुधारने का ढोंढा प्रयास है। मैं समझता हूँ कि जिस तरह से आरोप लगाए गए हैं, आडवाणी जी के ऊपर तो क्या उन आरोपों को किसी भी न्यायालय में साबित कर सकते हैं। इस समय निर्णय लेने के लिए आडवाणी जी के ऊपर पुलिस इंसपेक्टर ने आरोप लगाया है तो उस आरोप को लेकर आडवाणी जी को गिरफ्तार करते हो। किसने यह सलाह दी थी, किसने यह बात कही थी आज आप बैन करते हो दूसरे दिन हाईकोर्ट आपके ऊपर कहते हैं, यह गलत बैन आर्डर है। एक समय अपने कत्र्तव्य से चित होने के बाद निरन्तर अपनी साख बढ़ाने के लिए गलत काम न कीजिए। इससे देश का अहित होगा, टकराव और बढ़ेगा।

आपने सहमति की राजनीति से शुरू किया था लेकिन शायद किसी प्रधानमन्त्री ने इतनी बुरी टकराव की राजनीति नहीं की। इसीलिए हर समय बोलते समय कुछ अपने पौरुष का, अपने व्यक्तित्व का, अपनी क्षमता का, अपनी मर्यादा का ध्यान रखकर अगर लोग बोलें, जो सत्ता में हैं, तो ज्यादा अच्छा होगा। आपने कह दिया कि उसी स्थान पर मस्जिद बनेगी। बना सकते हैं क्या? गृहमन्त्री ने कहा थोड़े दिन बाद बनेगी, रक्षामन्त्री ने कहा कि एक साल बाद बनेगी या एक साल के अन्दर बनेगी। अब कहते हैं दोनों बनेंगे। जो काम बजरंग दल और वी.एच.पी. कह रही थी कि मन्दिर बनेगा लेकिन नक्शा नहीं बतायेंगे उसी तरह से नरसिंह राव मन्दिर और मस्जिद दोनों बनाएंगे, नक्शा नहीं दिखाएंगे। मैं नहीं जानता कि इनका आपस में क्या रिश्ता है। जो शरद यादव ने कहा था, लेकिन सोचने के तरीके हैं, आज देश विपदा में है। यह अचानक हो गया है या इसके पीछे कोई रहस्य है, मैं नहीं जानता कि रहस्य में क्या है? अगर रहस्योद्घाटन करना है तो आप लोगों को करना होगा, जो इधर बैठे हुए हैं। लेकिन मैं कहता हूँ कि इस तरह की निष्क्रियता से, इस तरह की ऊहापोह से राष्ट्र की मर्यादा को बहुत बड़ी क्षति पहुँची है।

सही मायनों में अगर किसी मंे थोड़ी भी चेतना हो, थोड़ी भी आत्मग्लानि हो तो इस सरकार के उस व्यक्वि का अपने पद पर बने रहना, न उसकी मर्यादा के अनुरूप है, न राष्ट्रहित के अनुरूप है और न राष्ट्रभक्ति के किसी भी दायरे में है। उसी तरह से अगर अटल जी को सही मायनों में पश्चाताप है, सही मायने में परिताप है तो जिन लोगों ने यह कुकर्म किया है जिससे भारत के माथे पर एक कलंक लगा है, उनसे आप संबंध तोड़ें। फिर आपको देश आशा भरी निगाह से देखेगा। आइए हम एक नई शुरुआत करें, केवल उधर से नहीं, इधर से भी लोग आएं एक नया देश बनाने के लिए, नया समाज बनाने के लिए, नई मान्यताओं के लिए इस देश को आगे बढ़ाने के लिए हम कोशिश करें।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।