Phone: 1-800-123-4567

Email:info@example.com

विदेश में जाकर कश्मीर में चुनाव की घोषणा उचित नहीं, अपनाना चाहिए नेशनल एप्रोच

जम्मू-कश्मीर में चुनाव के एलान पर 28 नवम्बर, 1995 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, सोमनाथ चटर्जी जी ने जो बात कही है, वही अपने मायने में मायने रखती है। उन्होंने कहा कि कश्मीर के सवाल पर हम सब को एक राष्ट्रीय रुख अपनाना चाहिए, नेशनल-एप्रोच। क्या हम लोग जो आज सबेरे से करीब एक घण्टे से, पचास मिनट से जो कह रहे हैं, इससे राष्ट्रीय रुख अपनाने में सहायता मिलेगी या नहीं मिलेगी, इस सवाल के ऊपर हमको जरा दिल पर हाथ रख कर सोचना चाहिए।

हमारे अन्तिम वक्ता ने जो भाषण दिया है आपकी अनुमति से, संसद में। इसका वीडियो टेप लिया जा रहा है और दुनिया में इसको देखा जाएगा। इसे देखने के बाद क्या यह माना जाएगा कि हम कश्मीर की समस्या को गम्भीरता से ले रहे हैं? अध्यक्ष महोदय, संसद में कभी कोई ऐसा अवसर आना चाहिए, जहाँ हम राष्ट्रीय समस्या को राष्ट्रीय समस्या के रूप में देखें और उसी रूप में उस पर बात करें। रोने की नहीं, रोते तो सभी लोग हैं, लेकिन कुछ लोग दूसरों की रुलाई में हँसी समझते हैं। आज देश रो रहा है और हम हँस कर प्रसन्न हो रहे हैं। मैं ऐसा मानता हूँ कि हमारे यहाँ जो चुनाव स्थगित नहीं हो रहे हैं, हमारी अपनी वजह से हो रहे हैं। क्योंकि कश्मीर उस जमाने में हमारे साथ आया था, जब धर्म के नाम पर देश का बँटवारा हुआ। जिन्ना के पाकिस्तान में कश्मीर नहीं गया, गाँधी के हिन्दुस्तान में आया था। आज जो हम कर रहे हैं, उससे क्या उस माहौल तक पहुँचने में हमें मदद मिलेगी या नहीं? मैं, अध्यक्ष जी, बहुत दुःख के साथ कहता हूँ कि जिस प्रकार से हमारे प्रधानमंत्री जी ने चुनाव की घोषणा की, उससे किसी भी आदमी को दुःख पहुँचेगा। विदेश में जाकर घोषणा करना, हमारे आदर्श के अनुरूप नहीं है। घोषणा करने के पहले सारे लोगों की सहमति न लेना, यह भी एक ऐसी बात थी, जो कम से कम मेरी समझ में नहीं आती। जब इतना पेचीदा मुद्दा है और सारी दुनिया उस मुद्दे को और पेचीदा बनाने की कोशिश कर रही है, तो अपने देश में ही विवाद का अवसर देना कोई बुद्धिमत्ता नहीं थी।

मैं यह भी नहीं जानता कि किस वजह से ऐलान हुआ। हर सवाल पर पहल करने की अपने मन में एक पिपासा, लालसा इच्छा राजनीतिज्ञ के लिए कभी-कभी अच्छी होती है लेकिन राष्ट्र नेता के लिए यह बात अच्छी नहीं होती है। खास तौर से ऐसे समय पर जबकि राष्ट्र के सामने संकट हो, उस संकट का सामना करने के लिए सबकी सहमति की जरूरत होती है। मैं माननीय आडवाणी जी से कहूँगा कि जब उन्होंने ब्राउन प्रस्ताव की बात की, मैं उसका जिक्र नहीं करना चाहता, लेकिन क्या यह सही नहीं है कि जिस तरह से हम कश्मीर के सवाल पर आज संसद में बहस करना चाहते हैं, उससे उन्हीं ताकतों को बल मिलेगा, जिन ताकतों के खिलाफ आप एक दूसरा काम रोको प्रस्ताव लाना चाहते हैं। आखिरकार कश्मीर का सवाल हमारे देश का ही सवाल नहीं रह गया है बल्कि हमारे लिए देश का सवाल है। दुनिया की ताकतें आज यहाँ हस्तक्षेप करना चाहती हैं और ब्राउन प्रस्ताव उसकी एक पृष्ठभूमि है। महोदय मैं समझता हूँ कि इस तरह के विवादों से ऐसी ताकतों को और बल मिलेगा।

अध्यक्ष महोदय, मैं पार्लियामेंट्री पद्धति नहीं जानता। कौल और शकधर ने क्या लिखा है, वह मैं नहीं जानता। मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि प्रधानमंत्री जी आज भी सदन के नेता के नाते कोई ऐसा कदम उठा सकते हैं कि सभी लोगों को बिठा कर वे कोई ऐसा राष्ट्रीय रुख अपनाएं जिसका जिक्र सोमनाथ चटर्जी जी ने लिखा है कि उस आधार पर अगर इस सदन में बहस हो तो शायद हम कश्मीर समस्या के समाधान की ओर आगे बढ़ेंगे और देश की अच्छी सेवा कर सकेंगे। आडवाणी जी ने कहा कि अगर एक साल पहले हम सब लोग सर्वसम्मत प्रस्ताव पास कर सकते थे तो एक साल बिगड़ी हुई परिस्थितियों में एक सर्वसम्मत राष्ट्रीय रुख अपना सकते हैं, ऐसा मैं मानता हूँ। महोदय, मैं यह जरूर चाहता हूँ मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि ऐसे राष्ट्रीय सवालांे पर इसे मसखरेपन का सवाल नहीं बनाना चाहिए, यह संसद की मर्यादा के अनुरूप नहीं हैं।


अनुक्रमणिका

संपर्क सूत्र

फोन नम्बर: +91-9415905877
ई-मेल: mlcyashwant@gmail.com
Website: www.chandrashekharji.com

दारुल सफा 36/37 बी-ब्लाक,
विधानसभा मार्ग,
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश

फोटो गैलरी

चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।