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मासूम बच्चों और औरतों को जिन्दा जलाने वालों के खिलाफ भारत सरकार करे शक्ति प्रदर्शन

23 फरवरी, 1993 को लोकसभा में अयोध्या विवाद पर चन्द्रशेखर

सभापति महोदय, अत्यन्त वेदना के साथ मैं इस विवाद में हिस्सा ले रहा हूँ। मैं नहीं चाहता था कि इस पर मैं भी अपनी बात कहूँ। मैंने कहा भी था कि अगर अटल जी नहीं बोलेंगे, तो कम-से-कम एक क्षीण आशा रहेगी कि कुछ विचारों में उधर तब्दीली होगी, लेकिन मैं दुःख के साथ कहता हूँ कि अटल जी के बोलने के बाद मैं कुछ कहने के लिए विवश हूँ।

मंै अयोध्या के बारे में कुछ नहीं कहना चाहता था। अटल जी ने कहा, उस पर चर्चा हुई और उस समय मैंने अपनी बातें रखी थीं, लेकिन अयोध्या के नायक आडवाणी जी उस समय नहीं थे और उन्होंने अयोध्या से आने के बाद जो कुछ कहा, उससे मेरे मन में एक बड़ी वेदना, एक बडी शंका, एक बड़ी व्याकुलता पैदा हुई हैं। आडवाणी जी ने शुरू में कहा था, जैसा अटल जी ने कहा था- हम असफल हो गए, हम भीड़ को नहीं रोक पाए, हमें इस बात का दुःख है, लेकिन आडवाणी जी के वक्तव्यों में मैंने बाद में पढ़ा उन्होंने कहा कि अयोया से हमें एक नयी प्रेरणा मिली और वह नयी प्रेरणा, हिन्दुत्व की नयी परिभाषा करने की है। हिन्दुत्व की नयी परिभाषा आडवाणी जी करेंगे याज्ञवल्क्य, कणाद और कपिल के बाद। आडवाणी जी ने यह कहा था कि हिन्दुस्तान के मुसलमान अपने को मोहम्मदीया हिन्दू कहें।

सभापति महोदय, क्या यह नयी परिभाषा, एक थियोक्रेटिक स्टेट की ओर संकेत नहीं है? आडवाणी जी मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि इसका अर्थ क्या होता है? क्या आप शब्द-कोष बनाने लगे हैं? क्या आप नई परिभाषा, कपिल, कणाद और याज्ञवल्क्य के बाद देने के अधिकारी हैं, यह सवाल हमारे मन को कचोटता है?

अटल जी आपने बड़े अभिमान के साथ, गर्व के साथ कहा और मैं आपकी ताईद करता हूँ, हम सबने संविधान की शपथ ली है, क्या यह सही नहीं है कि अयोध्या विवाद के बाद एक सन्त ने कहा कि यह संविधान हमारी राष्ट्रीयता के लिए एक कलंक है। यही नहीं, उन्होंने एक समिति बनाई। मैं नहीं जानता, बी.जे.पी. के किसी कार्यकर्ता ने, बी.जे.पी. के किसी नेता ने उसका खण्डन किया हो?

हमारे मन में जो दुःख हुआ, जो शंका हुई, इस कारण से हुई कि अभी अटल जी ने कहा कि मुरली मनोहर जी के किसी वक्तव्य से हमें दुःख नहीं हुआ। पार्टी का अध्यक्ष यह कहे कि 15 लाख आएंगे, 10 लाख लोग आएंगे, हम शांत रहेंगे, दूसरे अगर अशांति फैला दें, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? मैंने अटल जी को तुरन्त फोन किया, वे घर पर नहीं थे, दूसरे दिन उन्होंने मुझे फोन किया। मैंने उसी दिन भारत के प्रधानमंत्री जी को खत लिखा। मैं ऐसे मामलों में खत नहीं लिखता हूँ, लेकिन पिछले 3 महीने में प्रधानमंत्री जी के आचार से जो मेरी अनुभूति हुई है, मैंने समझा कि जुबानी शब्दों का वहाँ कोई अर्थ नहीं है। इसलिए मैंने विवश होकर उनको खत लिखा और उस खत में यह लिखा कि 6 दिसम्बर को आपने कहा कि मेरे साथ विश्वासघात हुआ है, मैं समझता हूँ कि राष्ट्र के साथ विश्वासघात हुआ है। 25 फरवरी को दूसरा विश्वासघात न हो जाए, इसके लिए मुझे आपसे यह निवेदन करना है कि यह आपके पास सूचना होगी और मन की तैयारी भी होगी कि 25 फरवरी, फिर 6 दिसम्बर में परिणत न हो जाए।

उसके बाद राज्यमंत्री (गृह) ने मुझसे फोन पर पूछा और मैंने उस समय कहा कि मैं चाहूँगा कि बी.जे.पी. की रैली हो जाए, लेकिन आपके मन में यह विश्वास होना चाहिए कि वह रैली शांत रहे। उसमें कोई गड़बड़ी न हो। अगर दिल्ली में गड़बड़ी की कोई भी आशंका होगी तो न केवल सारे देश में ज्वाला भड़क उठेगी बल्कि दुनिया की नजरों में हम और नीचे गिर जाएंगे। राजेश पायलट से मैंने उस समय कहा था, श्री सोमनाथ जी मुझे क्षमा करिएगा, मैंने कहा था कि अगर आपको कोई सूचना हो कि उस रैली में गड़बड़ी होने की आशंका है, तो इस रैली को आपको नहीं होने देना चाहिए।

यह विचारों की लड़ाई नहीं है अटल जी। विचारों की लड़ाई का जवाब अनाचारों से हो रहा है। आज आप विचारों का प्रचार नहीं कर रहे हैं, आप अनाचार का प्रचार कर रहे हैं और इस अनाचार को रोकने के लिए सत्ता को अपने हथियार संभालने है। विचार और अनाचार में अन्तर होता है। विचारों की लड़ाई विचारों के द्वारा होती है, अनाचार की लड़ाई सत्ता की शक्ति के जरिए होती है। सोमनाथ जी, मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि राज्य की संख्या कैसे बनी? यह सरकारें क्यों बनाई र्गईं? मनुष्य अकेले अपनी-अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर सका, उसने कबीले की जिन्दगी से राज्य की संस्था को इसलिए बनाया।

हम अपने कुछ अधिकार देते हैं, हमारे ऊपर संकट आए, हमारी सम्पत्ति पर, दौलत पर, जिन्दगी पर अगर कोई हमला आए तो आप हमारी सुरक्षा करें। हर नागरिक की सुरक्षा, उसकी मर्यादा की रक्षा, उसकी सम्पत्ति की सुरक्षा सरकार का कत्र्तव्य है। यह पुलिस, यह फौज किसलिए बनी है? यह हरि कीर्तन के लिए नहीं है, यह महा-आरती के लिए नहीं है, यह नमाज पढ़ने के लिए भी नहीं है। हर नागरिक के मन में एक नया विश्वास है, वह सुरक्षित है। विचारों के आदान-प्रदान पर कोई रोक नहीं है। लेकिन अनाचार को बढ़ते हुए देखकर जो सरकार मौन रह जाती है उस सरकार को एक मिनट भी सरकार में रहने का अधिकार नहीं है।

इसलिए मैंने कहा कि आखिरकार कानून क्यों बने, प्रतिबंध क्यों लगाए जाते हैं? रैलियां रोकी जाती हैं। सोमनाथ जी, आप भी कलकत्ता में कभी-कभी रोकते हैं, जब खतरा दिखाई पड़ता है। आपको यह कहने में डर क्यों लगता है? यह बात सरकार की है। सरकार अगर शांतिपूर्ण रैली करवा लेती तो मुझे बड़ी खुशी होती। ये बैठे हैं, इनके सामने कह रहा हूँ। लेकिन अगर सरकार अपने को समझे, उसके पास सूचना हो कि कुछ लोग ऐसे होंगे जो गड़बड़ी फैला देंगे और सरकार उस रैली को रोकती है तो कौन-सा आसमान गिर जाता है, मेरी समझ में यह बात नहीं आती। विचारों के ऊपर कोई प्रतिबंध नहीं है।

अटल जी, आपकी बात को नम्रतापूर्ण स्वीकार कर लेता। आप कहते हैं अयोध्या को मत याद करो। कैसे न याद करूं। इस संसद में, संसद के बाहर आप सबने कहा था, कुछ नहीं होगा। क्या हुआ अयोध्या में? आडवाणी जी आज पहली बार आए हैं, इसलिए कह रहा हूँ। उन लोगों ने कहा डेढ़ लाख लोग शांतिपूर्वक भाषण सुन रहे थे। कुछ लोगों ने जाकर उस मस्जिद को या ढांचे को या जो कहें, गिरा दिया। डेढ़ लाख असमर्थ लोग, जिनके हाथों में, पुरुषार्थ में, मनोबल में ताकत नहीं थी, वे 500 लोगों को नहीं रोक सकते थे।

आडवाणी जी, आज कल के होने वाले प्रधानमंत्री हैं। आप जो भाषण दे रहे हैं, ऐसा मालूम होता है कि अभी आप प्रधानमंत्री हो गए हैं। आप यह समझते हैं कि देश का संचालन आप कर रहे हैं। आपकी भाषा में वह अभिमान है जो अभिमान किसी दिन हिटलर की भाषा में हमने सुना था। आडवाणी जी, हम माॅडरेट लोगों की इज्जत करते हैं लेकिन जब चर्चित चेम्बरलेन जैसा माॅडरेट हमको याद पड़ता है तो मुझे ऐसा लगता है कि कहीं अटल जी भी वही न हो जाए। मैं गलत हो सकता हूँ। मैं इस बात को बहुत वेदना और दुःख के साथ कहता हूँ और आप समझते हैं कि उस कुर्सी पर आपकी आंख लगी हुई है। उस कुर्सी पर यहाँ से वहाँ तक पहुँचने में नरसिंह राव जी के आज जो हाथ पंगु दिखाई पड़ते हैं, कल आपकी गर्दन के ऊपर लग सकते हैं। इस बात के लिए आप जिम्मेदार होंगे कि इस देश में आप दूसरे लोगों को इस तरह काम करने के लिए विवश करें। फिर आपके साथ मातमपुर्सी करने वाला कोई नहीं मिलेगा।

आज इस देश के सामने दोहरा खतरा है। एक खतरा निकम्मी सरकार से है जो अपने कत्र्तव्य का पालन नहीं कर सकती और दूसरा खतरा आपसे, जो अपनी सीमाओं को नहीं जानते। आप समझते हैं कि आपकी वाणी के साथ इतिहास बदलेगा।

मैंने आज सबेरे मदन लाल खुराना जी से कहा, अशोक हाल से शपथ लेने की लालसा में कहीं तिहाड़ की जेल में मत पहुँच जाना। यह खतरा मुझे दिखाई पड़ रहा है। आप जानते हैं मैं उस प्रवृत्ति का विरोधी हूँ। 1975 में मैंने उसका विरोध किया था, आज भी उसका विरोध करता हूँ, लेकिन इस समय सैकड़ों, हजारों लोग मर रहे हैं। बरबाद हो रहे हैं, बड़े आंसू बहाए जा रहे हैं उधर से। क्या हुआ बम्बई में, क्या हुआ गुजरात में? जो बम्बई और गुजरात में हुआ, वह सबके लिए लज्जा की बात है, शर्म की बात है।

शिवसेना के सवाल पर जब इन्द्रजीत जी बोले तो आपने कहा कि कोई संबंध नहीं है। हमारे एक माननीय सदस्य, जिनकी मैं बड़ी इज्जत करता हूँ, वकालत करने के लिए खड़े हो गए। यह कौन-सी मानसिकता है। अहमदाबाद में क्या हुआ, गुजरात में क्या हुआ? वहाँ दंगे हुए। वहाँ की सरकार ने जब दंगों को दबाने की कोशिश की तो आपकी उस पर क्या प्रतिक्रिया थी? भारतीय जनता पार्टी ने वहाँ पर क्या रोल अदा किया? क्या कभी आपने इस पर सोचा है? चिमन भाई पटेल को गालियां दो, हमें कोई एतराज नहीं है लेकिन बी.जेपी. और आर.एस.एस. ने जो कुछ गुजरात में किया, वह मानवता के लिए इन्सानियत के लिए कलंक है। उसको अगर कोई दबाता है तो कहते हैं कि हमारे ऊपर दमन होता है।

सभापति महोदय, माननीय सदस्य ने जो कुछ कहा, हो सकता है उनके पास ज्यादा तथ्य होंगे और वे सही भी होंगे। मुझे विश्वास है कि गुजरात की सरकार इनके प्रोत्साहन के बाद कुछ और कदम उठायेगी। मैं उनकी बात का स्वागत करता हूँ। जो भी वहाँ दंगाई थे, चाहे वे एक धर्म के हों या दूसरे धर्म के, उनके खिलाफ कड़े कदम उठाये जाने चाहिए। मैं अपनी प्रतिक्रिया उस आधार पर व्यक्त कर रहा हूँ जो कुछ मैंने समाचार पत्रों में पढ़ा और जो कुछ प्रतिक्रिया आप लोगों और आपके नेताओं की वहाँ के बारे में हुई है। मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि अभी अटल जी ने 1966-68 की घटना की याद दिलायी। मुझे मालूम नहीं उनके सिर पर कितनी चोट पहुँची थी। यह बात सही है कि गोली चली थी। उस समय गुलजारी लाल नन्दा गृहमंत्री थे। जितने अटल जी गो-संवर्द्धन के ज्यादा पुजारी हैं, उससे ज्यादा प्रबल पुजारी गुलजारी लाल नन्दा जी थे। एक बार उन्होंने कहा था कि समाजवाद गो-रक्षा के जरिये ही आ सकता है। मुझे वह दिन याद है। मैंने उस समय उनसे कहा था कि नन्दा जी, गो-रक्षा के जरिये समाजवाद लाने की प्रक्रिया मैं बाद में सीखूंगा, इस समय देश में गृहमंत्री की हैसियत से जो कुछ करना है वह आप करिए।

मैं जानता हूँ कि मैं उस समय कांग्रेस पार्टी में था। उस समय, 1966-68 में कांग्रेस पार्टी में मैं अपने को एक महत्वपूर्ण संसद सदस्य मानता था। यद्यपि मैं गुरुदेव अटल जी का शिष्य था लेकिन कांग्रेस पार्टी में किसी का शिष्य नहीं था। मैं नहीं जानता कि कांग्रेस पार्टी में कोई भी साजिश नन्दा जी को हटाने के लिए हुई थी। मुझे कम से कम यह जानकारी नहीं है। मैं उसके बारे में नहीं कहता लेकिन यह अनुचित होगा यदि इस बात को न कहँू कि मुझे उस साजिश का पता नहीं जिसके जरिये दंगे हुए। वे लोग लाख-डेढ़ लाख कहते थे लेकिन 50 हजार साधु-संत इकट्ठे हो गए थे। भाषण दिये गये। घंटों भाषण होते रहे। लोगों ने समझा कि सरकार कुछ नहीं करेगी। जब संसद की चारदीवारी को पार करने लगे तो गोली चली। उसमें से 7-8 लोग मरे और किसी-किसी की लाशें उठा ली गईं, मुझे उनके बारे में जानकारी नहीं है लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि गुलजारी लाल नन्दा जैसा व्यक्ति क्यों गोलियां चलाने के लिए मजबूर हो गया।

सोमनाथ जी, मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूँ कि गो-संवर्द्धन के सहायक और सेवक नन्दा जी ने अपने कत्र्तव्य का पालन किया था। मैं चह्वाण जी और पायलट जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि जहाँ तक हो सके आप गोलियां मत चलाइए लेकिन अगर देश की मर्यादा और इज्जत को बचाने के लिए गोली चलानी पड़े तो हाथ में चूड़ियां पहन कर बैठ मत जाइये।

मासूम बच्चों और औरतों को जिन्दा जला देने की तैयारी करने वाली मानसिकता और जेहनियत को गोली का सामना करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जिन लोगों ने मासूम बच्चों और अबलाओं को जलाने के लिए इस देश में माहौल बनाया है, इसके वही लोग जिम्मेदार होंगे। अगर इस देश में कोई गोली चलेगी तो उसकी जिम्मेदारी उनको लेनी पड़ेगी। इस देश को अब सफाई के साथ यह तय करना पड़ेगा कि क्या केवल बर्छे और त्रिशूल मासूम बच्चों पर ही चलेंगे या सरकार की शक्ति का प्रदर्शन उन लोगों पर होगा जो मासूम लोगों को बिना मतलब, बिना दोष हत्या करने के लिए जिम्मेदार हैं। आज अगर आप यह नहीं करेंगे, यहाँ नरसिंह राव जी नहीं हैं, चह्वाण साहब, जो आपकी मनोवृत्ति थी, जो आपने फैसला किया था, अगर गृहमंत्री पद पर बने रहने के लिए आप नरसिंह राव के दबाव में नहीं आये होते तो इस राष्ट्र को यह लज्जाजनक स्थिति नहीं देखने को मिलती। हो सकता था कि दस, बीस, पच्चीस लोग मर जाते लेकिन जो हजारों लोग मरे, उनकी मौत का कलंक हमारे देश के ऊपर नहीं लगता।

कभी-कभी अप्रिय निर्णय लेने पड़ते हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है, अनाथालय नहीं है सरकार, सरकार चलाने के लिए कभी-कभी शक्ति का प्रदर्शन करना पड़ता है। मैं अपने नौजवान दोस्त नीतीश कुमार जी से निवेदन करता हूँ, मैं जानता हूँ सरकार की कमजोरियों को, लेकिन इस कमजोर सरकार के मनोबल को और कमजोर मत करो। विचारों का जवाब विचार से दो। लेकिन अनाचार का मुकाबला करने के लिए इनके हाथों में, थोड़ी ताकत पैदा करो। आज लड़ाई अनाचार और सद्विचार की है, शुभ और अशुभ की ताकतों का आज संघर्ष है। शुभ की शक्तियां विजयी हों, अशुभ की शक्तियां पराभूत हों, इसके लिए संघर्ष करना पड़ेगा। मैं नहीं जानता इसका नतीजा क्या निकलेगा। हर समय वोट से जीत जायेंगे, जीत जाओ वोट से। बहुत से लोग जीते, बहुत से लोग आये, बहुत से लोग गये, हजारों वर्षों का इतिहास है, इस देश का, आडवाणी जी, 5000 वर्षों के इतिहास में किस राजसत्ता में बैठे हुए आदमी ने इस देश की संस्कृति को बनाया है? भारतीय संस्कृति की बात करने वालों, मैं आपसे निवेदन करूंगा, यह संस्कृति बियाबानों और अरण्यों में, हिमालय की चोटियों में लिखी गई है। गद्दी पर निशाना रख कर भारतीय संस्कृति की बात मत करो। भारतीय संस्कृति का अगर पालन करना है, अगर भारत में हिन्दुत्व को नई परिभाषा देनी है, किसी कपिल मुनि के हिसाब से हिमालय की कंदरा में बैठकर फिर बात करो। संसद पर पहुँचने के लिए हिन्दुत्व को सीढ़ी बनाने का अपराध इस देश में नहीं होना चाहिए और आज अगर यह अपराध हो रहा है, हम जानते हैं, चुनाव में इसके नतीजे बुरे हो सकते हैं लेकिन किसी समय सत्य को उजागर करना हमारा कर्तव्य है और श्री चह्वाण साहब, मुझे विश्वास है, आप पुरानी परम्परा को याद करोगे, भारतीय सभ्यता, संस्कृति के नाम पर, भारत के गौरव के नाम पर, इस देश के इतिहास के नाम पर, इस देश की मर्यादा के नाम पर अपने हाथों में थोड़ा बल लाइये, अपने मन की, थोड़ी मानसिकता की सफाई कीजिए, बहुत दिन बातचीत हुई है, नेता विरोधी दल की और प्रधानमंत्री की।

अटल जी, आपको शिकायत नहीं होनी चाहिए, आपको भले न पूछा गया हो, क्योंकि आप मोड्रेट हैं लेकिन आडवाणी जी और नरसिंह राव का जो संभाषण बार-बार अखबारों में हमें देखने को मिलता था, हमारे कानों में आज भी वह शब्द गूंजते हैं, जो अमेरिका की धरती से आडवाणी जी ने कहे थे कि ‘‘हिन्दुस्तान का सबसे अच्छा प्रधानमंत्री’’ अब वह संवाद हमारी वजह से नहीं टूट रहा है। संवाद आपके दिए हुए विश्वास की वजह से टूट रहा है, मैं नहीं जानता वह विश्वास क्या है। मेरी जानने की कोई इच्छा भी नहीं है। अटल जी, अच्छा होता कि आप उसको जान लेते और हमारे जैसे अज्ञानी लोगों को भी कुछ ज्ञान देते। गुरु से कम से कम इतनी आशा तो मैं करता हूँ। लेकिन वह संभाषण जो देश से छिपाया गया, जो आपकी पार्टी से छिपाया गया, जो कांग्रेस पार्टी से छिपाया गया, जो संसद से छिपाया गया, वही संभाषण देश की इस दुर्दशा का आज कारण बना हुआ है और जिसके लिए नरसिंह राव और आडवाणी समान रूप से दोषी हैं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।