अयोध्या में घट सकती है तनाव बढ़ाने वाली अप्रिय घटना, राव और अडवाणी मिलकर निकाले रास्ता
अध्यक्ष महोदय, अत्यन्त दुःख का विषय है कि यह विषय बार-बार सदन के सामने पहले भी आया और आज फिर यह विषय अत्यन्त उत्तेजनापूर्ण वातावरण में हम लोगों के सामने प्रस्तुत हुआ है। मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इसमें संविधान की धाराओं का उल्लेख भी किया गया है।
अध्यक्ष महोदय, अगर राज्य और केन्द्र सरकार की सीमाओं का इसमें विवेचन किया गया तो मामला और उलझेगा। यह बात मैं पहली बार नहीं कह रहा हूँ, मैंने पहले भी इस सदन में कई बार कहा है और मुझे याद है, जब नेशनल इंटिग्रेशन काउन्सिल की मीटिंग हुई थी, उसमें भी आडवाणी जी ने यही भाषण दिया था। उस समय आडवाणी जी से मैंने निवेदन किया था, आपको जनादेश मिला है मंदिर बनाने के लिए, पाँच वर्ष का समय है, छह महीने-साल भर के लिए इसको स्थगित कीजिए और बातचीत से कोई रास्ता निकालिए।
देश में अनेक समस्याएं हैं। देश टूटने के कगार पर है। हालत बिगड़ जाएगी। उसमें मैंने यह भी कहा था अपने प्रधानमन्त्री जी से, कि आडवाणी जी को जनादेश है, तो एक जनादेश आपको भी मिला हुआ है। मान लीजिए- आडवाणी जी हमारे निवेदन को स्वीकार न करें, तो आप अपने जनादेश को तुरंत पालन करने के लिए कटिबद्ध हों। एक दिन का इन्तजार न करें। आपको भी अपना मन साफ करना चाहिए कि आपको जनादेश क्या मिला हुआ है। उस समय हमारी बात नहीं सुनी गई। मैं आडवाणी जी की तारीफ किए बिना नहीं रहूँगा, क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मेरी जो बात है, मैंने साफतौर स कह दी। प्रधानमंत्री जी बात नहीं सुनते तो मैं क्या करूँ। मैं तो मन्दिर बनाऊंगा, अदालत का जो फैसला हुआ है, अदालत में जाऊंगा उसके विरुद्ध निर्देश लूंगा।
अध्यक्ष महोदय, बार-बार अदालत की बात होती है। अदालत में क्या मामला जाएगा? अगर अदालत के सामने जाएगा कि राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण कर सकती है या नहीं, तो अदालत फैसला देगी कि अधिग्रहण कर सकती है। अगर राज्य सरकार के सामने किसी दीवार का बनाने का सवाल आएगा, तो उस पर अदालत उनके खिलाफ कोई फैसला नहीं देगी, लेकिन सवाल यह है कि यह मामला जनभावनाओं से जुड़ा हुआ है या नहीं? यदि एक बहुत बड़ा वर्ग, उसके मन में अंदेशा है, उसके मन में पीड़ा है, दर्द है, उसमें उनके जजबातों का ख्याल किया जाएगा या नहीं? आडवाणी जी मजबूर हैं, क्योंकि आडवाणी जी को जनादेश मिला है राम मन्दिर बनाने के लिए। उस तरफ दो तरह के लोग हैं। आडवाणी जी को राम की जरूरत थी, पार्लियामेंट में पहुँचने के लिए, लेकिन उधर बहुत सारे मित्र ऐसे हैं, जो पार्लियामेंट में आए हैं, राम तक पहुँचने के लिए। वे केवल मन्दिर बनाने के लिए आये हैं, उनको राजनीति से कोई मतलब नहीं है, उनको अर्थनीति से कोई मतलब नहीं है। आडवाणी जी उनके दबाव में हैं, यह बात वे स्वीकार करें।
अध्यक्ष महोदय, भारतीय जनता पार्टी का एक बहुत बड़ा वर्ग समन्वयवाली राजनीति चाहता है। अर्थनीति को भी उसमें जोड़ना चाहता है, सामाजिक समता का भी सवाल उसमें लाना चाहता है, गांधी जी को भी याद करना चाहता है, स्वदेशी और स्वावलंबन को भी चाहता है, लेकिन यह बात सही है, इसमें गुस्सा होने की बात नहीं है, इसमें आपकी मर्यादा ही बढ़ेगी, कुछ लोग ऐसे हैं जो केवल राम ही को जानते हैं, वहीं तक उनकी राजनीति सन्निहित है, उससे आगे न उन्होंने देखा है, न उससे पीछे उन्होंने देखा है।
अध्यक्ष महोदय, मुझे दुःख है कि कुछ माननीय सदस्यों को मेरे किसी वाक्य से दुःख पहुँचा है, मैं उनसे क्षमा चाहता हूँ। वे राममय नहीं हैं, यह कहना चाहता हूँ, केवल राम का नाम लेते हैं, राम से उनका कोई संबंध नहीं है, अगर इससे उनको संतोष होता है तो मैं यह भी कहने के लिए तैयार हूँ।
मैं केवल यह निवेदन कर रहा था कि यह एक राजनीति की विकृति है, जिस विकृति से हमको और आपको जूझना है। मुझे दुःख के साथ कहना
पड़ता है कि भारत सरकार का इसमें रुख क्या है, उसे बताना होगा। हम यह नहीं कहते कि धारा 356 लागू करो, धारा 356 राह चलते नहीं लग जाती है। मैं आडवाणी जी की यह बात मानता हूँ। गृहमन्त्री जी की धारा 356 की बात करनी थी तो इस धारा को लागू करने के बाद करनी चाहिए, बिना आधार के बयान देना सही नहीं है। अगर यह बात सही है कि आडवाणी जी ने यह कहा है कि साढ़े 9 बजे उनके पास सूचना आ गई थी और दूसरे सदन में उन्होंने यह कहा कि हमको सूचना नहीं मिली थी। कि मैं आडवाणी जी की बात को नजरअंदाज नहीं कर सकता। विचारों के मतभेद हो सकते हैं, लेकिन आडवाणी जी जब इस सदन में कोई बात कहते हैं तो उसको गम्भीरता से लेना मेरा कर्तव्य है।
मैं समझता हूँ कि यदि वह बात सही है तो यह बहुत बड़ी भूल गृहमंत्री जी से हुई है। उसका निराकरण होना चाहिए। क्या राज्यों और केन्द्र के बीच तनाव पैदा हो, क्या सरकार को कदम उठाना चाहिए, उस पर बहस हो सकती है, लेकिन अनावश्यक रूप से केवल अपना वीर-भाव दिखाने के लिए तनाव पैदा करना उचित नहीं है। हम देखते हैं सरकार में यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। पड़ोसी देशों के साथ जब चर्चा होती है तो एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, चार मंत्रिमंडल के सदस्य उठकर सबक सिखाने लगते हैं। बैठे हैं दिल्ली में, बम्बई में और पुणे में, सबक सिखा रहे हैं रावलपिण्डी में और इस्लामाबाद में। मत सिखाइए। इससे कोई बहादुरी प्रकट नहीं होती। इसलिए कदम उठाना हो, कदम उठाइये।
आडवाणी जी, मैं आपसे निवेदन करूंगा कि आपने जो कहा, वह सही नहीं है। फैजाबाद, अयोध्या में और उसके आस-पास तनाव है। वह तनाव इस कारण भी हो सकता है, जिसके संबंध में सोमनाथ चटर्जी जी ने कहा, लोगों में तरह-तरह की अफवाहें फैल रही हैं। लोग नहीं जानते उस दीवार के अन्दर क्या हो रहा है, क्या मंसूबे हैं? आप भी यह मानेंगे कि आपके साथ काम करने वाले बहुत से भाई ऐसे हैं जो रोज एक बयान देते हैं, जो बयान उत्तेजनात्मक हैं, जो बयान लोगों के दर्द को छूते हैं, जो लोगों के जज्बातों को उभारते हैं। ये बात न हों तो ज्यादा अच्छा है।
मैं कोई सर्टीफिकेट नहीं लेना चाहता। नरसिंह राव से मेरा बहुत अच्छा संबंध है। उनकी मैं बड़ी इज्जत करता हूँ। उतनी ही इज्जत करता हूँ जितनी मैं आडवाणी जी की करता हूँ। इसलिए मैं दोनों के सम्बन्धों को जानता हूँ। इसलिए आप गुस्सा न हों। आप लोग यह कह कर सम्बन्धों को न बिगाड़िए। संबंध अच्छे हो तो अच्छी बात है। मैं चाहता हूँ ये संबंध और गहरे हों और इन संबंधों का ये लोग उपयोग करें देश के दो वर्गों के बीच अच्छा संबंध बनाने में।
अध्यक्ष महोदय, मैं बड़े नम्र शब्दों से निवेदन करूंगा कि हालत बिगड़ रही है, तेजी से बिगड़ रही है। मैं कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहता, जिससे शंकायें मन में और बढ़ें। लेकिन किसी दिन अयोध्या में ऐसी घटना घट सकती है जिससे सारे देश में तनाव बढ़ेगा। आज भी, अध्यक्ष महोदय, अगर आप अपने पद का और मर्यादा का उपयोग करें तो सदन के नेता और विरोधी पक्ष के नेता को एक जगह बैठा कर सुलह-समझौते से, बातचीत से कोई रास्ता निकालने का प्रयास करें। कितने बहादुर लोग हैं बलिदान देने के लिए, वह मुझे मालूम है। यह बलिदान देने का समय नहीं है। आपसी सहयोग का समय है। यह वातावरण बना सकें तो अच्छा है।