केवल चुनाव जीतने के लिए हिमाचल प्रदेश में दिया गया प्रधानमंत्री का वक्तव्य दुर्भाग्यपूर्ण
सभापति महोदय, मैं इस विषय पर बोलना नहीं चाहता था लेकिन हमारे मित्र श्री मुलायम सिंह यादव जी ने दो वाक्य ऐसे कहे जिससे मैं दो शब्द कहने के लिए विवश हूँ। मैं इस मामले में निष्पक्ष नहीं हूँ। मैं पूरी तरह से उसी विचार का हूँ जिस विचार के श्री मुलायम सिंह यादव हैं। उनकी और मेरी भाषा अलग हो सकती है। वह भाषा शायद मैं न इस्तेमाल करूं। प्रधानमंत्री जी का हिमाचल प्रदेश में दिया गया वक्तव्य दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं समझता हूँ कि आज जो यहाँ कहा जा रहा हे, चाहे एक तरफ से या दूसरी तरफ जो कुछ कहा जा रहा है, वह मामले को और पेचीदा बनायेगा इसलिए मैं इतने दिन से चुप था।
अभी स्वामी जी ने अपने भाषण में कहा कि मैंने इस मामले को सुलझाने के लिए प्रयास किया था। मैंने कोई प्रयास नहीं किया था। प्रयास करने वाले श्री भैरो सिंह शेखावत, श्री शरद पवार और मुलायम सिंह यादव जी थे। मैं उन लोगों का सहायक था, उन लोगों को मदद कर रहा था। सारी बातें उनको मालूम हैं। लेकिन तब से चार सरकारें गयीं। पहले श्री नरसिंह राव जी प्रधानमंत्री हुए, फिर देवेगौड़ा जी प्रधानमंत्री हुए, उसके बाद श्री गुजराल जी प्रधानमंत्री हुए और अब श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री हैं। चारों प्रधानमंत्रियों ने चार मिनट भी हमसे बात नहीं कि वह मामला कैसे सुलझ रहा था। यदि मामले को सुलझाने की कोई नीयत होती तो मेरे जैसे छोटे से, अदने से आदमी के पास उनको आने में लज्जा हो सकती है। लेकिन वे श्री भैरों सिंह शेखावत, श्री मुलायम सिंह या शरद पवार जी से बात कर सकते थे। अगर उसमें भी कष्ट है तो सारे दस्तावेज गृह मंत्रालय में पड़े हुए हैं, लेकिन फिर भी कुछ नहीं किया गया।
यह बात सही है कि यह मामला सुलझ सकता था, आज भी सुलझ सकता है लेकिन जितनी अधिक बहस होगी, उतना ही मामला उलझता जायेगा। मैं यह समझता हूँ कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार इस बहस को बढ़ा रही है। मैं नहीं समझता, चाहे हमारे मित्र श्री अरुण जेटली जी जितने भी चतुर, सुजान वकील हों, सरकार इस समय अदालत क्यों गई? इस समय सरकार का उच्चतम न्यायालय में जाना केवल एक ही बात को दर्शाता है कि उनके ऊपर कोई दबाव है। प्रधानमंत्री जी के वक्तव्य का भी यही द्योतक है कि उनके ऊपर दबाव है। दबाव के अंदर अगर सरकार, प्रधानमंत्री जी और मंत्रिमंडल काम करेगा तो इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
मुझे दुःख इस बात का है कि जिस मामले को हम लोग आपस में बैठकर सुलझा सकते थे, उसमें तरह-तरह की दलीलें दी जाती हैं कि उच्चतम न्यायालय के पास जायें, वकीलों की बहस करें और जो बहस हमारे मित्र श्री जयपाल रेड्डी जी ने किताबें पढ़कर कीं, वही किताबें सुप्रीम कोर्ट में पढ़ी जायेंगी। मैं नहीं जानता कि छह तारीख को फैसला क्या होगा?
मैं न्यायपालिका का बड़ा आदर करता हूँ लेकिन न्यायलय में श्री अरुण जेटली जी कोई प्रस्ताव लेकर गये होंगे तो बिना अर्थ नहीं गये होंगे। बिना जाने नहीं गये होंगे। कुछ तो उनकी दृष्टि में रहा होगा कि उनके पक्ष में भी फैसला हो सकता है। अगर छह तारीख को फैसला हो गया तो फिर क्या होगा? मैं नहीं समझता कि इससे कोई देश में अच्छा वातावरण बनेगा अभी जो हमारे मित्र सरकारी पक्ष में हैं चाहे एन.डी.ए. में हों या भाजपा में हों, उन्होंने एक नारा दिया है- सांस्कृतिक राष्ट्रवाद। पता नहीं वह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद क्या है? मैं तो इसे समझ नहीं पाता हूँ लेकिन सांस्कृति राष्ट्रवाद का यही मतलब है जो मतलब, स्वामी जी यहाँ पर नहीं हैं, मैं बड़े विनम्रतापूर्वक शब्दों में कहना चाहता हूँ कि राम में सारा देश है तो राम का वह भक्त है जो सारे स्टेट्स को अपना मानता है। कण-कण में राम व्याप्त हैं, जब यह माना जाता है तो फिर किसी से विरोध क्यों? आज जितना काम हो रहा है, जिस तरह के नारे लगाये जा रहे हैं, जिस तरह के कदम उठाये जा रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि हमारे देश के वासी जो बड़ी संख्या में हैं, उनके मन में एक तनाव पैदा होगा, अविश्वास पैदा होगा।
मैं बड़े विनम्रतापूर्वक शब्दों में इस सरकार से निवेदन करूँगा कि उसके सुप्रीम कोर्ट में जाने से उनके मन में एक संदेह पैदा हुआ है। वास्तविकता क्या है, कानून क्या है, दोनों में बड़ा अंतर हैं। अगर वास्तविकता यह है कि सरकार के कदम से अल्पमत के लोगों में अविश्वास पैदा होता है, उनके मन में एक वेदना, पीड़ा होती है तो उससे समाज में और गतिरोध पैदा होगा। जिस दौर से दुनिया आज गुजर रही है, उसमें भारत के लिए एक बड़ा भारी संकट उपस्थित हो सकता है। अगर उनकी व्याख्या का राष्ट्रवाद बदले तो मैं नहीं जानता कि कश्मीर में यह दावा कितना सफल हो सकेगा। हम उत्तर पूर्व के राज्यों को अपने साथ बनाये रखें या नहीं, आदिवासी इलाकों के असंतोष को दबा पायेंगे या नहीं, पंजाब हमारे साथ रहेगा या नहीं, यह बात सोचनी चाहिए कि हम शांति की ओर, आपस में बातचीत के जरिए ही बढ़ सकते हैं।
कानूनी दायरे में जाकर अरुण जेटली जी आप जीत सकते हैं लेकिन लोगों का मन नहीं जीत सकते हैं। लोगों का मन जीतने की कोशिश कीजिए। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, मुझे दुःख इस बात का है कि अरुण जेटली जी से मुझे बड़ी आशा थी। जनता पार्टी के दिनों में मैंने उनको बहुत सराहा था जिसे वह जानते हैं और सारे लोगों के विरोध के बावजूद भी सराहा था। उसी तरह मेरे मन में अटल जी के लिए बहुत आदर था और आज भी है लेकिन मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि हिमाचल प्रदेश का चुनाव जीतने के लिए और जीतेंगे कि हारेंगे, मैं नहीं जानता लेकिन जीतने के लिए वह वक्तव्य देश का प्रधानमंत्री, चाहे कोई भी हो, कैसे दे सकता है जो वक्तव्य उन्होंने दिया जिसका जिक्र उन्होंने किया है। मैं अपना दुःख प्रकट करना चाहता हूँ और यही दुःख प्रकट करने के लिए आपसे मैंने समय मांगा क्योंकि किसी आवश्यक कार्यवश मुझे कहीं और जाना है और मैं आपसे और सदन से क्षमा चाहता हूँ कि मैं इसके बाद यहाँ सदन में नहीं रह सकूंगा।