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गैर देश के राजदूत को कश्मीर में हस्तक्षेप की छूट उसके बयानों पर सरकार की चुप्पी, दुर्भायपूर्ण

जम्मू-कश्मीर पर प्रधानमंत्री के वक्तव्य पर 28 जुलाई, 1997 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

उपाध्यक्ष महोदय, जो कुछ भी जसवंत सिंह जी ने कहा है, वह बहुत आपत्तिजनक है। देश के भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत है। मैं उसके विस्तार में नहीं जाना चाहता हूँ। लेकिन, बाहर से खबरें आई हैं कि कोई विदेशी राज्य या सत्ता हमें इंगित करती है कि कौन सी दिशा अपनाई जानी चाहिए और हमारी सरकार उस पर मौन रह जाए, इससे बड़ी अशोभनीय बात कोई और नहीं होगी। मैं याद करूं, पुराने समय में जब आर्थिक नीतियां अपनाई जा रही थी, तब मैंने कहा था कि अगर आर्थिक नीतियों में हम हस्तक्षेप सहन करेंगे, तो राजनीतिक हस्तक्षेप सहन करने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।

लेकिन मैंने यह नहीं सोचा था कि इतने भौंडे ढंग से यह राजनीतिक हस्तक्षेप इस देश में होगा। एक विशिष्ट देश के दूत को निरन्तर छूट दी गई कि वह कश्मीर में जाए और वहाँ जाकर न केवल लोगों से बात करें, बल्कि उस देश के विदेश विभाग ने लगातार खबर दी है कि हम भारत सरकार को यह सलाह दे रहे हैं कि कश्मीर के मसले पर वह किस तरह से कदम बढ़ाए- इससे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति कोई और नहीं हो सकती है।

उपाध्यक्ष जी, मैं प्रधानमंत्री जी से बहुत विनम्र निवेदन करूंगा कि जरा गुस्सा कम करें। क्योंकि यह उनके लिए शोभा नहीं देता। पहली बात मैं कहूँ, मैं इस बात में पड़ना नहीं चाहता था। बड़ा गुस्सा आता है, जब धर्म के नाम पर तोड़ने की बात होती है। उसमें हम भी उनके कम विरोधी नहीं हैं, लेकिन धर्म के नाम पर यह देश नहीं टूटेगा। इस देश को तोड़ने के लिए बाहर से जो बयान आते हैं, उस पर प्रधानमंत्री जी आपका एक दिन भी गुस्सा मैंने नही देखा। पिछले दो महीनों में कितने बयान आये हैं। क्या भारत सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि उन बयानों का खंडन करे। गुस्सा यहाँ अटल बिहारी जी पर करने के पहले श्रीमान प्रधानमंत्री जी थोड़ा अपने पर गुस्सा करना सीखिये कि बाहर की ताकतें भारत के बारे में अनाप-शनाप बयान देती हैं और आपकी सरकार मौन रह जाती है, तो देश में ही नहीं दुनिया में आपके बारे में भ्रम पैदा होता है। इस गुस्से से भ्रम नहीं मिटने वाला है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।