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अमरनाथ त्रासदी राष्ट्रीय शोक, सरकार असंवेदनशील, राज्यपाल क्यों रहे दिल्ली में

अमरनाथ यात्रा के दौरान हुई त्रासदी पर 26 अगस्त, 1996 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

उपाध्यक्ष महोदय, यह राष्ट्रीय शोक है। श्री जसवन्त सिंह और श्री चमन लाल जी ने इस सदन में जो कुछ कहा है, यदि उसका 50 प्रतिशत अंश सही है तो इससे यह संकेत मिलता है कि सरकार खराब मौसम के कारण उत्पन्न स्थिति के प्रति न केवल असंवेदनशील थी बल्कि उस दुर्घटना के बाद सरकार निर्दय भी है, उस पर अपने कत्र्तव्यपालन में ढील बरतने पर दोषरोहण किया जाना चाहिए।

कोई भी आशा नहीं कर सकता कि इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद राज्यपाल दिल्ली में रहे। ऐसा कोई कारण नहीं कि वे जम्मू या कश्मीर नहीं जाते और वहाँ प्रबन्ध व्यवस्था नहीं करते। सरकार से यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि राज्यपाल के दिल्ली में रहने के ऐसे क्या कारण थे और कश्मीर के सभी अधिकारी दुर्घटनास्थल पर क्यों नहीं गए? प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित भारत के उत्तरदायी अधिकारियों ने अपने कार्यक्रमों को रद्द कर दुर्घटनास्थल पर पहुँचना क्यों नहीं उचित समझा? कोई और अत्यावश्यक समस्या नहीं थी और मैं जानता हूँ कि सरकार कोई महत्वपूर्ण निर्णय करने में व्यस्त नहीं है जिससे कि देश के भाग्य का निश्चत हो। फिर उन्होंने इस त्रासदी पर ध्यान क्यों नहीं दिया।

उपाध्यक्ष महोदय, यह भावनात्मक विषय है। मैं माननीय विपक्ष के नेता से अनुरोध करूंगा कि इसे पक्षपाती मामला न बनाएं। किन्तु मैं प्रधानमंत्री से अनुरोध करूंगा कि वह स्थिति को समझते हुए कोई टालमटोल की बात न करें। यह ऐसी स्थिति है जिसमें हम सभी को एक होकर यह पता लगाना चाहिए कि कमी कहाँ रही है। कौन लोग इसके लिए उत्तरदायी हैं और उन्ह छोड़ा नहीं जाए। मुझे किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध कोई रंजिश नहीं है। मुझे ‘‘गोली चलने’’ के बारे में कोई पता नहीं है। किन्तु महोदय, राष्ट्र के लिए इससे अधिक निर्लज्जता और खेद की बात नहीं हो सकती। प्राकृतिक आपदाएं होती हैं और हमें उसका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन श्री चमन लाल जी ने जो कुछ कहा है वह बहुत आघात पहुँचाने वाली बात है कि तीन या चार दिन के बाद तो वहाँ नियन्त्रण कक्ष बन पाया। यह दुर्घटना के एक-दो घण्टे के भीतर ही बन जाना चाहिए। ऐसी गम्भीर दुर्घटना के तीन दिन बात तक सरकार क्या करती रही? रक्षा बलों को सतर्क क्यों नहीं किया गया और उन्हें तुरन्त नियन्त्रण कक्ष शुरू करने के लिए क्यों नहीं कहा गया?

महोदय, मैं इसे राजनीतिक मामला नहीं बनाना चाहता। लेकिन मैं समझता हूँ कि कश्मीर सरकार से इससे अधिक निकृष्ट की ही अपेक्षा की जा सकती है। और यदि मैं इस सरकार के बारे में भी यही कहूँ तो कोई अनुचित बात नहीं होगी। मैं समझता हूँ कि यदि गृहमंत्री वक्तव्य दें तो उन्हें श्री जसवन्त सिंह और श्री चमन लाल जी द्वारा उठाए गए प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तैयार होकर आना चाहिए। तभी इस विषय पर चर्चा सार्थक सिद्ध होगी।

अध्यक्ष जी, मैं एक ही निवेदन करना चाहता हूँ। अटल जी ने जो प्रस्ताव रखा है, मैं यह नहीं कहता कि उनका अधिकार नहीं है या वह अनुचित है। मैंने केवल निवेदन किया था, वे अपनी सीमाओं के अन्दर हैं, अपने अधिकार के अन्दर हैं और वह उनका कर्तव्य भी होता है। मैं उस बात पर नहीं कहना चाहता, लेकिन अभी प्रियरंजन दास मुंशी जी ने और अनंत मेहता जी ने सवाल उठाया कि इनके क्षेत्रों के लोग मरें है या गायब हैं, पता नहीं चला? क्या सरकार 3-4 दिन के बाद भी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि कहाँ के लोग, कितने लोग मर गये हैं? क्या इसकी जानकारी देने के लिए भी चार दिन चाहिए?


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।