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राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर संसद में दो टूक खंड 1


राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव वाद-विवाद में 20 फरवरी 1963 को राज्यसभा में चन्द्रशेखर उपसभापति महोदय, मैं राष्ट्रपति जी का संविधान की उन धाराओं की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु आभार व्यक्त करता हूँ, जिनके तहत हमने शपथ ग्रहण की है। हम देश के सामाजिक और राजनैतिक जीवन को उन्नत बनाने के लिए लगातार प्रयत्न करने की शपथ लेते हैं। वास्तव में, यह दर्शाने के लिए कि जब पहली बार मनुष्य के मन में राज्य की संकल्पना आई होगी, तो क्या हुआ होगा, मैं थोड़ा पीछे जाना चाहूँगा। मनुष्य ने अपने अधिकार छोड़ दिए और एक संगठन कासृजन किया, जिसे हम राज्य के रूप में जानते हैं। उन्नीसवीं सदी में रा...

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विनियोग (संख्यांक-2) विधेयक 1964 पर वाद विवाद में 23 अप्रैल 1964 को राज्यसभा में चन्द्रशेखर उपसभापति महोदय, इस विधेयक पर अपने विचार व्यक्त करने से पहले, मैं आपका और इस सभा का ध्यान एक प्रश्न की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। अभी-अभी हमारे माननीय मित्र श्री चैरडिया जी बोल रहे थे। उन्होंने वित्तमंत्री के किसी वक्तव्य का उल्लेख किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें पैसा दिया जाए तो वह अच्छी राजनीति दे सकते हैं। माननीय चैरडिया ने यह कहा कि सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। इससे धनराशि प्राप्त होगी। परिणामस्वरूप अच्छी राजनीति दिखाई देगी। माननीय चैरडिया जी ने यह भी कहा कि जो लोग व्यव...

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नीति परिवर्तन विश्व बैंक के इशारे पर मैं पीएम था, फिर भी नहीं दिखाई गई फाइल, चन्द्रशेखर लोकसभा में 18 जुलाई, 1990 को अध्यक्ष महोदय, मैं इन विवादों में नहीं पड़ना चाहता। कुछ ऐसे विवाद जो राष्ट्र के जीवन के बारे में हैं और जिन सवालों को देश के अन्दर और इस सदन के सामने उठाया गया है। कुछ सवालों पर मैं जिक्र करना चाहूँगा। मैं शायद इस सदन में नहीं बोलता लेकिन मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है प्रधानमंत्री जी यहाँ नहीं हैं। उन्होंने उस दिन अपने भाषण में कहा कि जो उन्होंने आर्थिक समस्याओं के समाधान के बारे में कदम उठाए हैं वे कदम उठाने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी। कागजात पहले से तैयार थे, म...

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तीन फीसदी वे हैं जिनका रिश्ता बाहर के पूँजी पतियों से हैं, अनुपूरक अनुदान की माँग पर 25 मार्च, 1992 को उपाध्यक्ष जी, मैं बजट का जोर से विरोध तो नहीं करूंगा, केवल दुःख प्रकट करना चाहता हूँ। मैं बधाई देना चाहूँगा जार्ज फर्नान्डीज जी को, जिन्होंने वास्तविकता को सामने लाने के लिए अथक प्रयास किया है। यदि मैं ऐसा कहूँ कि देश की स्थिति को तथा भारत सरकार की मानसिकता की जिस तरह उन्होंने देश के समाने रखा है, उससे शायद इस पक्ष के लोगों को भी नए सिरे से सोचने के लिए प्रेरणा मिलेगी। मैं इस बजट के बारे में केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि बजट लाने के पहले, हमारे वित्त मन्त्री जी जिस तरह की बाते...

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नयी आर्थिक नीति पर 20 अगस्त, 1993 को लोकसभा में चन्द्रशेखर आदरणीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं श्री सोमनाथ चटर्जी द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं का समर्थन करता हूँ। देश एक कठिनाई के दौर से गुजर रहा है और खास कर कमजोर वर्ग इससे सर्वाधिक पीड़ित है। आज सुबह बुनकरों का एक शिष्टमंडल मेरे पास आया। देश के अनेक भागों में बुनकरों ने आत्महत्या कर ली है। समस्या तो यही है कि कमजोर वर्ग बुरी तरह से पीड़ित है। उपाध्यक्ष महोदय, भारत सरकार ने एक नई आर्थिक नीति लागू की है और इस सभा तथा राष्ट्र को आश्वासन दिया गया है कि थोड़े समय में नीति के परिणाम अथवा फल राष्ट्र के सामने आ जाएंगे, राष्ट्र में खुशहाली आ ज...

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लोकसभा में 8 मार्च, 2001 को राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर सभापति जी, सर्वप्रथम मैं भारत के राष्ट्रपति जी को बधाई देता हूँ। जिस समय देश का गौरव दांव पर लगा हुआ था, जिस समय देश के बड़े-बड़े लोग विदेशियों के सामने सजदा करने को तैयार थे, उस समय भारत के राष्ट्रपति जी ने सारी दुनिया के सामने कहा कि विश्व एक गाँव बन रहा है, लेकिन हमने कभी यह स्वीकार नहीं किया था कि इस गाँव का कोई मुखिया होगा। उसके इस बयान की बड़ी आलोचना हुई थी। मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि भारत सरकार ने भी यह जरूरी नहीं समझा कि उस समय भारत के राष्ट्रपति के सम्मान की रक्षा में वे एक बयान देती।...

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सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति की स्थापना पर राज्यसभा में 20 नवम्बर 1963 को चन्द्रशेखर उप सभापति महोदया, लगभग एक दशक के कष्टप्रद विलम्ब के बाद इस प्रस्ताव को पेश करने में सफलता के लिए मै ंमंत्री जी को बधाई देता हूँ। इस प्रश्न को लोकसभा में सर्वप्रथम दिसम्बर, 1953 में लाया गया था। हम इस प्रश्न पर 1963 में चर्चा कर रहे हैं। सन् 1953 में जब लोकसभा में यह प्रश्न उठाया गया था तो माननीय सदस्य, डाॅ0 लंका संुदरम ने कुछ बहुत प्रासंगिक मुद्दे उठाए थे और इस बात पर बल दिया था कि लोक उद्यमों के समुचित संचालन हेतु ऐसी समिति अत्यावश्यक है। उस समय, लोकसभा में एक विस्तृत चर्चा हुई थी। महोदय, आपकी अनुम...

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उद्योगों का राष्ट्रीयकरण और देश का विकास पर राज्यसभा में 21अगस्त 1963को चन्द्रशेखर उपसभापति महोदय, मैं आज की चर्चा के संबंध में कहना चाहता हूँ कि उद्योगों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य उत्पादन और लाभ में वृद्धि करना नहीं है बल्कि यह पता करना है कि अर्थव्यवस्था और देश के आर्थिक तंत्र पर किसका नियंत्रण होगा। राष्ट्रीयकरण शुरू करके, सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि सम्पत्ति का नियंत्रण उद्योगपतियों के हाथों से निकलकर लोगों पास चला जाए और इसके लिए, मैं सरकार को बधाई देता हूँ। मेरे एक मित्र ने कहा है कि राष्ट्रीयकरण के पश्चात् राष्ट्रीय उद्योगों में उतनी अधिक प्रगति, विकास...

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सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख उपक्रमों की कठिनाइयों पर चन्द्रशेखर लोकसभा में 3अगस्त, 1995को अध्यक्ष जी, सोमनाथ जी ने एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया लेकिन हमारे वित्तमंत्री ने एक संकेत किया है। उनका कहना है कि जो कुछ संसद ने किया है, वे उसी के आधार पर काम चला रहे हैं। उनकी बात सही है। जिस दिन हमने नई आर्थिक नीतियों को स्वीकार किया, उसी दिन हमने सार्वजनिक क्षेत्र को समाप्त करने का निर्णय भी ले लिया। चाहे मनमोहन सिंह जी इस बात के लिए इंकार करें लेकिन मैं नहीं समझता, वे एक अर्थशास्त्री हैं। वह जानते हैं कि जहाँ स्वतंत्र अबाध प्रतियोगिता होगी और उस प्रतियोगिता में दुनिया के बड़...

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बीमा विनियामक प्राधिकरण विधेयक पर लोकसभा में 6 अगस्त 1997 को चन्द्रशेखर अध्यक्ष जी, मैं समझता हूँ कि इस वक्त समय देने का अधिकार नेता विरोधी दल को नहीं है। जब वोट हो रहा है तो बीच में वोट रुक नहीं सकता, मतदान होना चाहिए। जिसको जिस पक्ष में वोट देना, हो वह उस पक्ष में वोट दे। मतदान को बीच में रोकने का अधिकार संसद में किसी को नहीं है, मतदान पूरा होना चाहिए। महोदय, एक बार प्रोसेस शुरू होने के बाद मतदान में वित्तमंत्री जी को सरकार को कोई समय नहीं दिया जा सकता। अध्यक्ष महोदय, माननीय वित्तमंत्री जी पिछले काफी समय से सभा में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात समझाने का प्रयास कर रहे हैं। स...

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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा 28 मार्च, 1998को चन्द्रशेखर सभापति महोदय, कल से यहाँ जो बहस चल रही है, उस बहस का प्रारम्भ भारत के प्रधानमंत्री, श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने किया। उन्होंने जो भाषण दिया उनसे असहमत होते हुए भी मैं कहना चाहूँगा कि उनके भाषण में देश के बारे में चिन्ता थी। उन्होंने हमारी चुनौतियों को समझने का प्रयास किया था। उन्होंने देश को एक दिशा में ले जाने के लिए हमें संकेत दिया था। यह बात दूसरी है कि उसके बारे में विभिन्न विचार हों और मैं उनसे सहमत न हूँ लेकिन उसके बाद जो बहस चल रही है, उससे मुझे ऐसा लगता है कि उनके निवेदन का कोई असर इस सद...

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सार्वजनिक उपक्रम के निजीकरण पर 14 मार्च, 2000 को लोकसभा में चन्द्रशेखर सभापति, माननीय सदस्य ने बहुत गम्भीर मामला उठाया है। यह केवल सलेम स्टील प्लांट का प्रश्न नहीं है। वे जो भी कहते हों, सरकार की योजना पूरे स्टील प्लांट को बेचने की है। केवल एक ही दलील दी गई है कि वे बड़ा मुनाफा नहीं कमा रहे हैं। कृपया इन सरकारी उपक्रमों की शुरुआत का ध्यान करें। बहुत पहले पंडित नेहरू स्टील प्लांट स्थापित करने के लिए मद्द मांगने के लिए संयुक्त राज्य अमरीका गए थे। संयुक्त राज्य अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने पंडित नेहरू से कहा था कि आप अमरीका से सस्ती दरों पर स्टील प्राप्त कर सकते हैं। आप ...

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सार्वजनिक उपक्रमों के मामले पर 20 नवम्बर, 1991 को लोकसभा में चन्द्रशेखर मेरे मित्र श्री इन्द्रजीत गुप्त ने अत्यन्त मौलिक प्रश्न उठाया है। मैं उद्योगमन्त्री से इस प्रकार के जवाब की आशा नहीं करता हूँ। उन्होंने कहा है कि सार्वजनिक उपक्रमों के पीछे यह दर्शन था कि कुछ बड़े, विशेष मामलों में भारत जैसे देश की आकृति और सम्मान वाला देश विदेशी स्रोत पर निर्भर नहीं कर सकता। इसीलिए सार्वजनिक उपक्रम कुछ सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में स्थापित किए गए थे। यह एकदम अलग मामला है कि वे घाटे में चल रहे हैं अथवा लाभ कमा रहे हैं। प्रश्न यह उठता है कि जब माननीय वित्तमन्त्री देश के ...

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26 प्रतिशत शेयर विदेशी कम्पनियों को देने पर 26 जुलाई 2000 को लोकसभा में चन्द्रशेखर उपाध्यक्ष जी, पिछले बजट में सरकार ने कहा कि जो सार्वजनिक विभाग के प्रतिष्ठान हैं, उनके शेयर्स को बेच कर 10 हजार करोड़ रुपये हम बजट के लिए लाएंगे। देश को यह नहीं मालूम कि किस आधार पर ये 10 हजार करोड़ रुपये निर्धारित किए गए। उस समय यह कहा गया कि जो घाटे की कम्पनियाँ हैं, उनके शेयर्स बेचे जाएंगे। आज से चार हफ्ते पहले डिसइन्वैस्टमैंट मिनिस्टर और योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने यह कहा कि अगर केवल घाटे की कम्पनियाँ बेची जाएंगी तो 10 हजार करोड़ रुपया पूरा नहीं होगा। इसलिए मुनाफे वाली कम्पनियों को भी बेचना होगा...

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वायु निगम विधेयक पर 4 मई, 1992 को लोकसभा में चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, जिस दिन आर्थिक नीतियों का इस सदन ने समर्थन कर दिया, उस दिन हमें उसके परिणामों को समझना चाहिए था कि हर ऐक्ट, हर बिल, हर कदम इस सरकार का इसी नाम पर आएगा। चूंकि संसद ने लिबरलाइजेशन को स्वीकार कर लिया है, इसलिए हम इस काम को कर रहे हैं। मैं आपके द्वारा केवल इतना ही निवेदन करता हूँ कि देश की मर्यादा को गिरवी रखने के बाद यह असंभव सा लगता है कि इस संसद की मर्यादा रह सके लेकिन इस संसद की मर्यादा को रखने का कम से कम दिखावा तो होना ही चाहिए। एक दिन मैं आपसे कह रहा था कि जब सरकार न सुने तो आपके ज़रिए देश की जनता को सुनाना हम लो...

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राज्यसभा में 20 दिसम्बर 1963 को बैंकों का राष्ट्रीयकरण पर चन्द्रशेखर उपसभापति महोदय, मैं अपने मित्र श्री रघुनाथ रेड्डी को इस सभा के समक्ष यह प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए बधाई देता हूँ, क्योंकि इससे हमें इस देश के समक्ष एक महत्वपूर्ण समस्या पर अपनी राय व्यक्त करने का अवसर मिला है। मेरे माननीय मित्र श्री दह्याभाई पटेल ने यह कहते हुए एक बहुत भावपूर्ण भाषण दिया है कि कोई राष्ट्रीयकरण नहीं होना चाहिए। एक अन्य दिन, जब हम इस मामले पर चर्चा कर रहे थे, इस सभा के एक अति सम्माननीय सदस्य प्रोवाडिया ने यह कहा था कि यह प्रस्ताव देश के आर्थिक लाभ या किसी सामाजिक उद्देश्य की प्राप्ति क...

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28 फरवरी, 1992 को लोकसभा में राष्ट्रीयकरण समाप्त किए जाने पर चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, मैं कुछ मुद्दों पर आपका मार्गदर्शन चाहूँगा। माननीय सदस्य महोदया ने एक प्रश्न उठाया है कि आई.डी.बी.आई. का राष्ट्रीयकरण समाप्त किया जा रहा है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। क्या इस सम्माननीय सभा को दो या तीन दिनों तक प्रतीक्षा करनी चाहिए? माननीय वित्तमंत्री जी यहाँ बैठे हुए हैं। उन्हें यह बताना चाहिए कि क्या इसे गैर राष्ट्रीयकृत करने सम्बन्धी कोई प्रस्ताव उनके पास है अथवा नहीं या फिर यह खबर बिल्कुल ही भ्रामक है। क्योंकि इसका अपना ही आशय है। माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपकी इस बात से प...

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राष्ट्रीयकरण समाप्त करने की कोशिश पर 13 दिसम्बर, 2000 को लोकसभा में चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, इन बैंकों के राष्ट्रीयकरण की एक लम्बी कहानी है। सन् 1968 में आॅल इंडिया कांगे्रस कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया था और उसके लिए कांग्रेस में एक आंदोलन चला था। सौ सदस्यों ने इस संसद में उस समय के अध्यक्ष श्री कामराज जी को एक मैमोरेंडम दिया था और उसकी प्रतिलिपि श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को दी थी। उससे पहले मैंने विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुछ प्रोफेसरों को इस विषय पर अध्ययन करने के लिए कहा था और अध्ययन करके एक पुस्तिका निकाली थी जिसमें बैंकों के राष्ट्रीयकरण को देश के विकास के लिए और ग...

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लोकसभा में 6 अगस्त 1997 को प्राधिकरण विधेयक पर चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, माननीय वित्तमंत्री जी पिछले काफी समय से सभा में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात समझाने का प्रयास कर रहे हैं। संसदीय कार्यमंत्री जी ने कहा कि थोड़ी-बहुत आपसदारी होनी चाहिए। दुर्भाग्य से वे यह नहीं समझते कि पूरा देश उनको समझता है लेकिन कोई भी व्यक्ति उन पर विश्वास नहीं करता। लोग पिछले पांच-छह सालों से यह कह नहीं पा रहे हैं। यह इस राष्ट्र की त्रासदी है। धीरे-धीरे आप अपना सब कुछ बहुराष्ट्रीय और विदेशी पूँजीपतियों को दे रहे हैं। देश को ‘नहीं’ कहना आना चाहिए और मुझे इस बात की खुशी है कि कुछ माननीय सदस्यों को...

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लोकसभा में 10 मार्च, 1999 को पेटेंट (संशोधन) विधेयक पर चन्द्रशेखर उपाध्यक्ष जी, जो पेटेंट (संशोधन) विधेयक आया है, मैं केवल कुछ शब्दों में इसका विरोध करने के लिए खड़ा हुआ हूँ। हमारे मित्र ने अभी जो बात की, जिन भावनाओं का उन्होंने इज़हार किया, उनसे मैं पूरी तरह सहमत हूँ। आज देश को किस रास्ते पर ले जाने की कोशिश हो रही है, वह हमारे सामने साफ दिखाई पड़ रहा है, लेकिन दुःख इस बात का होता है कि जो पार्टियाँ या पार्टी सरकार में है और जो पार्टी विरोध में है, इस सवाल पर एकमत हैं। मुझे यह देखकर भी आश्चर्य होता है कि जैसे उन्होंने कहा कि एक समिति बनी थी जिसमें मैं भी कभी-कभी जाता था। हमारे मित्र मु...

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लोकसभा में 12 मार्च, 1999 को पेटेंट (संशोधन) विधेयक पर विधि आयोग की सिफारिशों पर चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, मैं आपके और इस सदन के समक्ष एक ऐसी गम्भीर बात रखना चाहता हूँ जिसे मैं समझता हूँ कि संसदीय जनतन्त्र में एक अनहोनी बात है। अध्यक्ष महोदय, 26 फरवरी को लाॅ कमीशन ने सरकार को एक रिपोर्ट दी है कि राज्यसभा में जो पेटेंट बिल पास हुआ है, उसमें कुछ ऐसी बातें छोड़ दी गई हैं जो राष्ट्र हित में नहीं हैं। उसमें कहा गया है कि इस बात को टी.आर.आई.पी. कानून के अन्दर कर सकते थे लेकिन यह काम नहीं किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि हमने स्वयं इस विषय को लेकर बहस की है और बहस करने के बाद यह रिपोर्ट आप...

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लोकसभा में 18 अगस्त, 2003 को अविश्वास प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर उपाध्यक्ष जी, सन् 1962 में मैं पहली बार संसद में आया था। करीब 42-43 वर्ष बीत गये हैं लेकिन आज जो दुःख अनुभव हुआ वह पहले कभी नहीं हुआ। मैंने कभी नहीं सोचा था कि संसद की कार्यवाही इस स्तर पर पहुँच जाएगी। मैं किसी व्यक्ति विशेष के बारे में कुछ नहीं कहूँगा। अविश्वास प्रस्ताव शुरू होने से पहले एक घंटे में हम लोगों ने पाँच विधेयक पास किये हैं जिसमें से दो विधेयक संविधान-संशोधन के थे। सरकार पक्ष और विपक्ष दोनों उनसे सहमत हैं। मैं नहीं जानता और न ही सोच पाता हूँ कि मैं किसके पक्ष में बोलूँ। देश की हालत के बारे में सोचता हूँ तो एक...

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विश्व बैंक की रिपोर्ट पर 26 फरवरी, 1992 को लोकसभा में चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, मैं प्रक्रिया संबंधी एक मामला उठाना चाहता हूँ। आज देश के सभी समाचार पत्रों में वित्तमंत्री द्वारा विश्व बैंक को भेद खोलने वाले पत्र लिखे जाने का समाचार है। उस मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई है। यह बहुत ही गम्भीर मामला है जिसमें देश की संप्रभुता के साथ समझौता किया गया है। या तो सरकार स्पष्ट वक्तव्य दे और यह कहे कि ऐसा कोई भी वक्तव्य या पत्र नहीं है या उक्त पत्र को सभा पटल पर प्रस्तुत करें। मुझे कुछ भी अप्रिय कहने का अवसर न दें। मैं किसी को धमकी नहंी देना चाहता। लेकिन, महोदय, इसमें देश की गरिमा और सम्मा...

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भारत की साख की पड़ताल पर लोकसभा में 13 मार्च, 1997 को चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मैं इस सदन और समस्त राष्ट्र का ध्यान एक समस्या की ओर दिलाना चाहता हूँ जो मेरे विचार से काफी गंभीर है। दिनांक 12 मार्च को बिजनेस स्टेंडर्ड नामक समाचारपत्र में एक समाचार प्रकाशित हुआ था जिसमें यह कहा गया था कि भारत सरकार को एक संगठन ने, जो कि सरकारी संगठन नहीं है जो किसी भी देश की साख के संबंध में अपनी राय देता है, लगभग 46 प्रश्न भारत सरकार से पूछे हैं। यह सभी प्रश्न विनिवेश, निजीकरण, बीमा और सहायता दिए जाने के संबंध में हैं। समाचार इस प्रकार से है ‘‘टफ मूडीज पोजर्स टु डिसाइड इंडियाज रेटि...

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संपर्क सूत्र

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विधानसभा मार्ग,
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश

फोटो गैलरी

चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।