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राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर संसद में दो टूक खंड 4


भारत सरकार के कार्यक्रम पर 16 नवम्बर, 1990 को लोकसभा में प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, मुझे इस सारे वाद-विवाद को सुनकर दुःख हुआ है। मैं अपने मित्र श्री साठे के भाषण के बारे में एक भी शब्द नहीं कहूँगा क्योंकि उन्होंने हमें अपना समर्थन दिया है। मुझे प्रसन्नता है कि सभी रंजिशों और शिकवा के बावजूद मेरे भारतीय साम्यवादी दल (माक्सर्वादी) और भारतीय साम्यवादी दल के मित्रों ने वाद-विवाद का स्तर उठाया है। मैं कटु दोषारोपण पर गौर नहीं करूँगा, न ही मैं उनका उत्तर देना पसंद करूँगा। अध्यक्ष महोदय, उन्होंने एक बहुत सार्थक प्रश्न किया है। इस सरकार का क्या कार्यक्रम है। या वे कौन ...

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मंत्रिपरिषद में विश्वास के प्रस्ताव पर 16 नवम्बर, 1990 चन्द्रशेखर मैं प्रस्ताव करता हूँ, ‘‘कि यह सभा मन्त्रिपरिषद म ंेअपना विश्वास अभिव्यक्त करती है।’’ अध्यक्ष महोदय, मुझे इस बात का बड़ा दुःख है कि मन्त्रिमण्डल के न बनने से हमारे कई मित्रों को बड़ा सदमा पहँचुा ह ैआरै उनकी बडी़ इच्छा ह ैकि व ेमन्त्रिमण्डल के सभी सदस्यों के चेहरे जल्दी-से-जल्दी देख लें। मिनिस्टरों की तस्वीर देखते-देखते आदत इतनी बिगड़ गई है कि बिना उन्हें देखे उनको संसद निरर्थक मालूम होती है। उन्होंने हमसे कारण जानना चाहा। कई कारण हैं। अध्यक्ष महोदय, बड़ी विनम्रता से यह काम हमने संभाला है और हमारे मित्रों ने ब...

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लोकसभा में 27 दिसम्बर 1990 को साम्प्रदायिक स्थिति के सवाल पर प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूँ। सांप्रदायिक स्थिति काफी तनावपूर्ण और खराब है। यह देश के लिए शर्म की बात है। हम चाहते हैं कि सदस्यों को इस मामले पर चर्चा करनी चाहिए और इस समस्या का समाधान ढूँढना चाहिए। माननीय सदस्य ने ठीक नहीं कहा है। जब दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुए तो मैं एक घण्टे के भीतर ही उस स्थान पर गया। मैं राज्यों में नहीं गया, वहाँ कानून और व्यवस्था की स्थिति के लिए राज्य सरकारें उत्तरदायी हैं और मुझे राज्य मुख्यमंत्रियों से सलाह लेनी पड़ी। मैं किसी भी स्थान पर ...

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22 फरवरी, 1991 को लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, इस मुद्दे पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई है। यह मुद्दा पूरे देश से सम्बन्धित है। इस मुद्दे पर न केवल पूरा राष्ट्र बल्कि पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा है। मैं यह भी जानता हूँ कि हमारे कुछ माननीय सदस्यों ने इस समस्या के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं। मैं उनकी भावनाओं को समझ सकता हूँ मैं उठाए गए सभी मुद्दों के बारे में विस्तारपूर्वक नहीं बोलना चाहता। मैं पिछली बातों को भी नहीं दोहराना चाहता। मैं किसी और व्यक्ति अथवा सरकार पर भी आरोप नहीं लगाऊँगा। मैं समझता हूँ कि जो कुछ भी हुआ, वह इस सरकार का ...

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6 मार्च, 1991 को लोकसभा में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के पहले चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, पिछले कई दिनों से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर इस सदन में चर्चा हो रही थी। मैं सबसे पहले तो क्षमा चाहूँगा कि बहुत से सदस्यों की बातों को मैं नहीं सुन पाया। कई सदस्यों ने इस चर्चा में भाग लिया और देश के सामने जो समस्याएँ हैं, उन समस्याओं के बारे में जिक्र किया। मैं सब समस्याओं की चर्चा करना न आवश्यक समझता हूँ, न उचित, क्योंकि कई बार उन समस्याओं के बारे में इस सदन में चर्चा हो चुकी है लेकिन कुछ मौलिक सवाल जो उठाये गए हैं, उनके संदर्भ में मैं दो चार शब्द कहना चाहूँगा। अध्यक्ष महोदय, मैं सबसे पहले त...

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लोकसभा में 16 जुलाई, 1992 को अविश्वास प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, बड़ी आशा और विश्वास से देश ने इस सरकार की ओर देखा था। यह कहने से मुझे कोई संकोच नहीं कि मैंने भी यह समझा था कि वर्तमान प्रधानमंत्री के कार्यकाल में माहौल बदलेगा, काम करने का तरीका बदलेगा। इसका आधार था कि वर्षों से उनको जानता हूँ। राष्ट्रीय आन्दोलन में उन्होंने हिस्सा लिया था। उन्होंने कांग्रेस की उस परम्परा में राजनीति शुरू की थी, जिस परम्परा को गाँधी ने, नेहरू ने, मौलाना आजाद ने शुरू किया था। उन्होंने शुरू में ही कहा था, सबसे विचार करके हम इस सरकार को चलाएंगे। देश में समस्याएं जटिल हैं, उन जटिल समस्या...

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लोकसभा में 7 नवम्बर, 1990 को मंत्री परिषद में विश्वास का प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय, मुझे अत्यन्त दुःख के साथ इस बहस में हिस्सा लेना पड़ रहा है। मैं कोई किसी की आलोचना करने के लिए खड़ा नहीं हुआ हूँ। मैं इसलिए खड़ा हुआ हँू कि हम जरा अपन ेदिल का ेटटाले ंेकि पिछल े11 महीनांे में हमने क्या किया है। जिन सिद्धान्तों का सवाल आज हम सोच रहे हैं और सही सोच रहे हैं, उन सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारने के लिए हमने क्या किया? मैं आपसे बहुत स्पष्ट शब्दों में निवेदन करना चाहता हूँ कि ऐसे सवालों पर हमारा आपसे मतभेद हो सकता है। जहाँ तक धर्मनिरपेक्षता का सवाल है, हमारे मतभेद भारतीय जनता ...

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लोकसभा में 28 जुलाई, 1993 को मंत्रिपरिषद में अविश्वास प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर अध्यक्ष जी, फिर एक बार अविश्वास प्रस्ताव पर बोलने का दुःखद प्रसंग उपस्थित हो गया। प्रस्ताव कई बार आ चुके, प्रस्ताव के बाद सरकार बनी रह जाती है और सरकार के लोग इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मान लेते हैं। मानना भी चाहिए, क्योंकि इस देश में एक बात बड़े जोरों से कही जाती है, किसी तरह से सरकार में बने रहो, जितनी लम्बी अवधि खींच जाओगे, उतने ही सफल राजनीतिक नेता आप हो, चाहे वह सफलता पाने के लिए कुछ भी करना पड़े। पिछले दिनों में जो कुछ हुआ है, अविश्वास प्रस्ताव के समय और आज जो हो रहा है, उससे सरकार मत जीत सकती है लेकिन सरकार ...

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17 अप्रैल, 1997 को लोकसभा में मंत्रिपरिषद में विश्वास के प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर सभापति जी, आज जो संसद में बहस हो रही है, मैं ऐसा मानता हूँ कि भारत के संसदीय इतिहास में यह सबसे अधिक लज्जाजनक और दुःख का दिन है। मेरे मित्र श्री जसवंत सिंह ने राजनीतिक मामलों में बहुत से मतभेद होने के बावजूद भी मैं आदर के साथ यह कहना चाहंूगा कि सोमनाथ जी की बात से सहमत नहीं हूँ, क्योंकि जसवंत जी ने इस विवाद को उस स्तर पर उठाने की कोशिश की, जिस स्तर पर हमें और आपको देश भर के बारे में सोचना चाहिए। साथ ही मैं अपने गुरुदेव श्री अटल बिहारी बाजपेयी से भी यह कहना चाहूँगा कि यह वानर सेना का मामला केवल इस तरफ नहीं...

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13 जून, 1994 को लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर अध्यक्ष महोदय मैं इस विषय पर बोलना नहीं चाहता था, लेिकन मरे ेस ेपर्वू वक्ता न ेमुझ ेप्ररेणा दी कि मै ंभी इस विषय पर कुछ कहूँ। इस कारण इतने गम्भीर विषय पर, जिस स्तर हम लोग विवाद कर रहे हैं, शायद यह विषय के साथ न्याय नहीं है। जार्ज फर्नान्डीज साहब ने कुछ बुनियादी सवाल उठाए और उन सवालों का जवाब उन्होंने हमारे खाद्य मंत्री जी से चाहा। मैं नहीं जानता कि खाद्यमंत्री उनका जवाब देने में कितने समर्थ हैं। मैं बहुत दिनों से उनको जानता हूँ, लेकिन जाने हुए चेहरे आज अनजाने पहचान पड़ते हैं, क्योंकि पहले जो लोग थे, वे नहीं हैं। सच्चाई से कतर...

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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।