दीक्षा लोक (उत्तराखंड ) में प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर का वक्तव्य
भारतीय संस्कृति का विकास राजभवनों और अट्टालिकाओं में नहीं, अरण्यों में हुआ है
भारतीय संस्कृति का विकास अट्टालिकाओं और महलों के बीच नहीं, बल्कि ऋषि -मुनियों की तपस्थलियों के रूप में अरण्यों में हुआ है। इसके चिंतक और मनीषी इसी आरण्यक संस्कृति के पोषक रहे हैं। जब दुनिया को ज्ञान का ‘क’ ‘ख’ नहीं आता था, तब हमारे यहां वैदिक परम्पराएं विकसित थी। आज भले ही हमारे गुरुकुलों और विद्यामंदिरों का वह पुराना आदर्श स्वरूप नहीं रहा, पर कभी जब राजा गुरुकुल में आते थे, तो अपने वाहनों से उतरकर पैदल चलकर आया करते थे। यही वजह है कि हमारी सांस्कृतिक पंरपराएं राजभवनों और अट्टालिकाओं के भरोसे नहीं चलीं।
हम तो आरण्यक संस्कृति के लोग हैं। राजा तो आते-जाते रहे हैं, पर विद्या-मंदिर और गुरुकुल तो हमेशा रहते हैं। इनमें पढ़ने वाले युवक-युवतियां ही देश की आशा है। लेकिन दुख है कि आज हमारी आशा ही आत्मविश्वास से दूर आत्मनिंदा और हीनभावना से ग्रस्त है।
हमारे अतीत में विकृतियां नहीं थीं, ऐसा मैं नहीं कहता, पर अतीत की उन विकृतियों को छोड़कर हमें उनके शुभ-पक्ष और कल्याण पक्ष की शिक्षा अपनी नई पीढ़ी को देनी है। गुरुकुल तो वह शिक्षा संस्था है जहां से समाज को नई आशा, नई ज्योति मिलती रही है। स्वामी शृद्धानन्द ने गुरुकुल की फिर से प्रतिष्ठा करके राष्ट्र को गौरव दिया था। लेकिन हम 40 वर्षों में भटक गए हैं। आज हमें सोचना है कि हम कृष्ण और सुदामा को एक साथ शिक्षा देने वाले संदीपनि के आश्रम की परम्परा को शिक्षा नीति से जोड़ें या एकलव्य का अंगूठा लेने वाले गुरु द्रौण की परम्परा को बढ़ाएं।
हमें अपने भीतर अपनी परम्पराओं, वेशभूषाओं, भाषा, सभ्यता और संस्कृति पर अभिमान करनेवाली शिक्षा अपने युवक-युवतियों को देने की दिशा में सोचना है। ऐसी शिक्षा जो आत्म-सम्मोहन से हमें भर सके, हमें देनी चाहिए। हमें शिक्षा नीति पर सोचने के तरीके में परिवर्तन लाना होगा। हमें ज्ञान और शिक्षा बिना भेदभाव के सभी के लिए उपलब्ध कराना होगा। जैसे गंगाजल सबके लिए है वैसे ही ज्ञान और शिक्षा सबके लिए हो। आज देश में 65 प्रतिशत निरक्षर हैं। दुख है कि पेट की आग बुझाने के लिए हमारे युवक निरक्षक रहकर अब भी छोटे-मोटे काम करके गुजर करते हैं।
गुरुकुल में युवतियां नहीं पढ़ पा रही हैं, यह दुख की बात है। युवतियों को भी यहां शिक्षा मिले , यह हमें सोचना है। एक युवक पढ़ कर एक दो को और पढ़ा सकता है। पर एक युवती पढ़ कर पूरी नयी पीढ़ी को साक्षर और शिक्षित करती है।
बृजेश कान्दू
प्रबंधक
श्री चंद्रशेखर स्मारक ट्रस्ट
आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश )