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चंद्रशेखर जैसा कोई नहीं


image1राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर गरीबों , किसानों , भूमिहीनों तथा कामकाज वर्गों के हितों और उनके विकास के लिए जीवन पर्यंत करते रहे| मानते थे कि समाजवादी रास्ते पर चलकर ही देश की एकता और अखंडता अक्षुण रखी जा सकती है| राजनीति में उनकी रूचि छात्र जीवन से ही पैदा हो गयी थी| उन्होंने आचार्य नरेन्द्र देव के सुझाव और उनके प्रभाव से ही सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया| उनका संसदीय जीवन राज्यसभा से शुरू हुआ , जहां वह तीन बार संसद सदस्य बने| संसद के नियमों और प्रक्रिया में पूर्ण रूचि रखने और सदन की गरिमा और अनुशासन बनाये रखने के लिए उन्हें उत्कृष्ट सांसद पुरुस्कार से सम्मानित किया गया| सभी दलों ने संसद के उनके सद्व्यवहार , विभिन्न विषयों पर उनकी पकड़ तथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विषयों के प्रति उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण की सराहना की |

राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर देश के उन गिने-चुने नेताओं में थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, मजलूमों, दलितों और कमजोर वर्ग की सेवा में लगा दिया आमजन ही उनकी राजनीति के केंद्र में रहा चंद्रशेखर जिन उद्देश्यों के लिए राजनीति में आए उसे पूरा करने की दिशा में उन्होंने भरसक प्रयास किया उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है देश और दुनिया में समाजवाद की अलख जगाने के लिए उन्हें सदैव याद किया जाता रहेगा पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर के पिता का नाम श्री सदानंद सिंह और माता का नाम श्रीमती द्रौपदी सिंह था 1945 में सुश्री द्विजा देवी से उनका विवाह हुआ वह छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम ए करने के बाद नरेंद्र देव की अपील पर समाजवादी आंदोलन के दुर्गम पथ पर चल पड़े

राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर को राष्ट्रीय स्तर पर 1977 में पहचान मिली जब कांग्रेस सरकार द्वारा थोपी गई इमरजेंसी के बाद लोकसभा के चुनाव हुए कांग्रेस की उम्र से त्रस्त विपक्षी दलों ने मिलकर कुछ समय जनता पार्टी बनाई चंद्रशेखर इस नई पार्टी के पहले अध्यक्ष बने इस चुनाव जनता पार्टी की ऐसी आंधी चली कि 27 साल बाद कांगरेस शासन का अंत हो गया देश में पहली बार कोई गैर कांग्रेसी सरकार गठित हुई चंद्रशेखर चाहते तो प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में शामिल हो सकते थे लेकिन उन्होंने पार्टी अध्यक्ष रहकर संगठन का काम करने को प्राथमिकता दी केंद्र सरकार में मंत्री बन कर सुख-सुविधाएं लेना उन्हें गवारा नहीं था वह सच्चे अर्थों में राष्ट्रपुरुष थे उनकी कथनी और करनी में कोई भेद नहीं था अपने सिद्धांतों और विचारधारा से चंद्रशेखर ने कभी कोई समझौता नहीं किया अपनी इसी प्रवृत्ति के चलते उन्होंने कांग्रेस में रहकर भी 1974 में चैती का साथ दिया और श्रीमती इंदिरा गांधी की लोकतांत्रिक नीतियों का विरोध किया 25-26 जून की रात में देश पर इमरजेंसी दी गई वह गिरफ्तार हुए और 19 महीने के बाद रिहा हुए और 1977 में देश के हीरो हो गए

संयोग से 1977 के इसी काल में मैं गोरखपुर विश्वविद्यालय का छात्र था लोकसभा चुनाव घोषित होने के बाद तमाम नेताओं के चुनावी दौर शुरू हो चुके थे जनता पार्टी के नेताओं को सुनने के लिए जनसभाओं में भारी भीड़ उमड़ी थी उस समय गोरखपुर के महाराणा प्रताप कॉलेज के मैदान पर ही चुनावी सभाएं आयोजित होती थी या कॉलेज शहर के बीचों बीच था मैं थोड़ी दूर पर ही रहता था इसलिए जनता पार्टी के नेताओं को सुनने जाता था एक शाम चंद्रशेखर जी को भी सुना पूर्वांचल के लोग अपना नेता मानते थे इसी तरह चरण सिंह नानाजी देशमुख अटल बिहारी बाजपेई जगजीवन राम आदि नेताओं की सभाएं हुई थी अपने क्रांतिकारी विचारों की वजह से चंद्रशेखर युवाओं में काफी लोकप्रिय हो गए थे इस नाते उन्हें युवा तुर्क नाम से जाना जाने लगा उस दौर में कई गैर कांग्रेसी दलों को एकजुट करने में राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर अमूल्य योगदान रहा यह दल जनता पार्टी के बैनर तले आए और कांग्रेस को उखाड़ फेंकने में में इन्हें कामयाबी मिली पहली बार मैंने यही सार्वजनिक सभा में चंद्रशेखर को देखा

मेरे जीवन में एक दिलचस्प वाकया चंद्रशेखर जी से जुडा़ हुआ है। वह पल याद कर मैं अब भी रोमांचित हो जाता हूं। लखनऊ में मैं नवभारत टाइम्स हिंदी समाचार पत्र में ट्रेनी पत्रकार के रूप में काम कर रहा था। प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को हत्या के बाद देश में लोकसभा के चुनाव हो रहे थे। चंद्रशेखर चुनाव प्रचार के लिए जगह-जगह सभाएं कर रहे थे। इसी बीच एक शाम लखनऊ के कोहिनूर होटल (हुसैनगंज के पास) में चंद्रशेखर को संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करना था। समय तो शाम 7-8 बजे का ही था लेकिन चुनावी दौरे की वजह से चंद्रशेखर सही वक्त पर नहीं पहुंच सके। काफी देर इंतजा़र के बाद कई पत्रकार वापस चले गये। नवभारत टाइम्स से वरिष्ठ पत्रकार शैलेश को प्रेस कॉन्फ्रेंस कवर करना था लेकिन जब चंद्रशेखर को आने में विलम्ब होने लगा तो उन्होंने यह ज़िम्मेदारी मुझे सौंप दी। मैं चूंकि रायल होटल स्थित विधायक निवास में रहता था आरै यह जगह कोहिनूर होटल से नजद़ीक थी, इसलिए मुझे जाने में कोई दिक्कत नहीं थी। मैंने शलैेश जी की बात मान ली आरै संवाददाता सम्मेलन के लिए पहुंच गया। रात करीब 11 बजे के बाद चंद्रशेखर का आगमन हुआ। तब तक गिने चुने पत्रकार ही बचे थे। बातचीत खत्म होने पर भोजन के दारैान मैं चंद्रशेखर से व्यक्तिगत रूप से मिला। बताया कि मैं भी पूर्वांचल के देवरिया जिले का मूल निवासी हूं। इसी दौरान मैंने चौधरी चरण सिंह के बारे में उनसे एक सवाल पूछा तो उन्होंने भोजपुरी में कहा, ‘काहे उनकर नाम लेत बाड़ । दरअसल, उन दिनों चरण सिंह ने अलग पार्टी बनाकर चंद्रशेखर से दूरी बना ली थी। शायद इसीलिए उन्होंने यह तल्खी भरा जवाब दिया। लेकिन जो भी हो भोजपुरी में बोलकर उन्होंने जो आत्मीयता प्रदर्शित की उससे मैं अभिभूत हो गया। चूंकि मैं और चंद्रशेखर दोनों ही पूर्वांचल की माटी से जुड़े थे, इस नाते यह मुलाकात मेरे लिए एक यादगार अनुभव बन गयी।

प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल बहुत छोटा (सिर्फ चार माह) रहा। 10 नवम्बर 1990 को चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 6 मार्च 1991 में उन्होंने त्याग पत्र दे दिया। उसके बाद लोकसभा के चुनाव घोषित हो गए राष्ट्रपति के अनुरोध पर वह 20 जून 1991 तक वह प्रधानमंत्री के पद रहे राजीव गांधी के आवास पर पुलिस तैनात कर जासूसी कराने का आरोप उनकी सरकार पर लगा इसे लेकर कांग्रेस ने समर्थन वापसी की चर्चा की और चंदशेखर ने समर्थन वापसी से पहले ही त्याग पत्र दे दिया प्रधानमंत्री के रुप में उनका संक्षिप्त कार्यकाल अयोध्या विवाद के समाधान की दिशा में गंभीर प्रयास के लिए याद किया जाता है दोनों पक्षों को बातचीत की मेज पर लाकर चंद्रशेखर ने इस जटिल मुद्दे का सकारात्मक हल निकालने की भरपूर कोशिश की लेकिन उनकी सरकार ज्यादा दिन नहीं रही इसलिए मामला फिर अधर में लटक गया मगर देश भर में यह संदेश जरूर चला गया कि यदि चंद्रशेखर को पद पर रहने का पर्याप्त समय मिला होता तो अयोध्या प्रकरण सुलझ जाता मगर पद की लालसा उन्हें कभी नहीं रही इसके लिए किसी तरह का समझौता करना उनके स्वभाव में नहीं था सरकार बचाने के लिए जोड़-तोड़ के खिलाफ थे।

राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर संसद में जब भी बोलते थे सत्ता पक्ष और विपक्ष में सभी सदस्य उन्हें बड़े गौर से सुनते थे उनके बोलने पर टोकाटाकी नहीं होती थी उनके जैसी स्वीकार्यता बहुत कम नेताओं को प्राप्त होती है चाहे लोकसभा हो यह राज्यसभा उन्होंने देश के सामने उठ रहे कई ज्वलंत मुद्दों को उठाया| संसद में उन के भाषणों का संकलन पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला इसी से मैं जान पाया कि देश की समस्याओं के बारे में चंद्रशेखर जी की समझ कितनी गहरी थी राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर में पानी के संकट को उन्होंने साठ सत्तर के दशक खुद वहां जाकर देखा ठीक है समस्या को राजस्थान में उठाते हुए कहा कि सरकार के पास इसके लिए 5 करोड रुपए नहीं है जबकि राजधानी दिल्ली में मंत्रियों और अफसरों की सुख सुविधा के लिए धन की कोई कमी नहीं है इसी तरह दिला जैसे पूंजीपतियों को संरक्षण देने के लिए उन्होंने सरकार की आलोचना की तर्क के साथ वह सदन में मुद्दे उठाते थे कोई अन्य सदस्य उनकी बात को काट नहीं सकता था संसद में प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रखने के लिए चंद्रशेखर को 12 दिसंबर 1995 को सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार से नवाजा गया था| इस मत के थे हमारे विचारों में भले भले ही अंतर हो लेकिन एक दूसरे के प्रति नफरत और घृणा नहीं रहनी चाहि वह इस बात से चिंतित रहते थे कि राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम आपस में छुआछूत और नफरत का व्यवहार करने लगे हैं।

चंद्रशेखर ने अपने संसदीय जीवन का आगाज 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए नव निर्वाचित होने के बाद किया वर्ष 1964 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1967 में उन्हें कांग्रेस पार्टी का महासचिव बनाया गया। 1968 में वह कांग्रेस की ओर से राज्यसभा में भेजे गए। बैंकों के राष्ट्रीयकरण आरै प्रिवीपर्स की समाप्ति में उनका अहम योगदान था। 1971 के चुनाव में कांग्रेस आई को मिली अभूतपूर्व विजय में भी उनकी बडी़ भूमिका थी। 1974 में कांग्रेस ने उन्हें फिर राज्यसभा में भेजा लेकिन जयप्रकाश नारायण को लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी से उनके मतभेद बढत़े गए आरै 25-26 जून की रात में जसैे इमरजेंसी लगी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पहले उन्हें रोेहतक जेल में रखा गया। इसके बाद चंडीगढ जेल भेज दिया गया। जेल में रहते हुए चंद्रशेखर ने अपनी ‘जेल डायरी’ लिखी जो काफी लोकप्रिय हुई। इसमें उन्होंने कांग्रेस सरकार द्वारा देश पर इमरजेंसी थोपने के कटु अनुभव का खुलासा किया है। इमरजेंसी खत्म होने के बाद देश के आम चुनाव हुए जिसमें जनता पार्टी को अभूतपूर्व विजयश्री मिली। 1977 में वह पहली बार बलिया से लोकसभा का चुनाव जीते। इसके बाद उन्होंने मुडक़र पीछे नहीं देखा। वह जनता पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। 1980, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 आरै 2004 में भी लोकसभा का चुनाव जीते आरै जीवन के अन्तिम दिन तक संसद सदस्य रहे। इस दौरान वह देश के प्रधानमंत्री भी रहे।

वह आम आदमी की सेवा को ही राजनीति मानते थे आरै इंसानियत के सवाल पर किसी को भी लताड़ देते थे। उन्होंने 22 अगस्त 1994 को लोकसभा में हुबली (कर्नाटक) में हुई पुलिस फायरिंग पर बोलते हुए न सिर्फ इसकी निंदा की बल्कि वोट बैंक की राजनीति को भी लताडा़। मामला पाकिस्तानी झंडा फहराने का था। चंद्रशेखर ने कहा, वोट बैंक तयैार करना कोई बुरी बात नहीं लेकिन इसके लिए इंसानियत की हत्या करना खतरनाक है। अगस्त क्रांति के स्वर्ण जयंती समारोह में जब सरकार ने आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण आरै डाॅ. राम मनोहर लोहिया को याद नहीं किया तो यह बात भी चंद्रशेखर को नागवार लगी। उन्होंने 11 अगस्त, 1992 को लोकसभा में यह मुद्दा उठाया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रों की फीस बढ़ाने का भी उन्होंने विरोध किया।

चंद्रशेखर मानते थे कि समाजवादी रास्ते पर चलकर ही देश की एकता आरै अखण्डता बरकरार रखी जा सकती है। छात्र जीवन से ही राजनीति में उनकी दिलचस्पी होने लगी थी। आचार्य नरेंद्र देव का उनके राजनीतिक जीवन पर काफी प्रभाव रहा। उनके सुझाव पर ही चंद्रशेखर ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। प्रधानमंत्री, जनता पार्टी के अध्यक्ष और एक सच्चे देशभक्त के रूप में उन्होंने देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोडी़। स्वाभिमानी वह इतने थे कि प्रधानमंत्री पद छोडऩे में तनिक देर नहीं की। 1980 में जब जनता पार्टी में बिखराव शुरू हुआ तो भी उन्होंने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुद्दे पर जन संघ के नेता अलग हो गए चरण सिंह ने दलित मजदूर किसान पार्टी बना ली इसके बाद भी चंदशेखर ने जनता पार्टी को जिंदा रखा बाद में इसका नाम समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) हो गया और चंद्रशेखर इसके अध्यक्ष बने|

6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक 4260 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की| इसे भारत यात्रा नाम दिया गया तमिलनाडु से कन्याकुमारी से शुरू करके या पदयात्रा नई दिल्ली में राजघाट पर समाप्त हुई चंदशेखर की इस यात्रा का मकसद ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं को जानना उसे उजागर करना और समाज में मौजूद असमानताओं एवं विसंगतियों को दूर करना था अपने इस अभियान से आमजन के बीच उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई इस पद यात्रा के दौरान चंद्रशेखर ने केरल तमिलनाडु कर्नाटक महाराष्ट्र मध्य प्रदेश गुजरात उत्तर प्रदेश व हरियाणा सहित देश के विभिन्न भागों में लगभग 15 भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना की यात्रा की समाप्ति पर चंद्रशेखर ने जो अनुभव बयान किया उसके अनुसार पहली बार लोगों को लगा कि कोई तो ऐसा है जो उनकी समस्याओं को जानने के लिए उनके घरों तक आया है इस तरह चंद्रशेखर ग्रामीण भारत की कड़वी सच्चाई से रूबरू हुए अपनी चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा देश में हर जगह बच्चे कुपोषण के शिकार हैं उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का मौका नहीं मिल रहा है यहां तक कि उन्हें जीवित रहने का भी अवसर नहीं मिल पाता सदियों से अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोग उपेक्षित महसूस कर रहे हैं| इस भेदभाव को खत्म करने के लिए हमें पूरी सामाजिक संरचना में बदलाव लाना होगा। महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए बहुत कुछ करना होगा। देश में 60 फीसदी से अधिक लोग निरक्षर हैं।

चंद्रशेखर ने चीनी मीलों, चाय बागानों , कपडा मीलों और पटसन उद्योग के राष्ट्रीयकरण का भी समर्थन किया। मगर ऐसा करते समय उन्होंने सार्वजानिक उपक्रमों में नौकरशाही को बढ़ावा देने का भी कभी समर्थन नहीं किया। उनक मत था कि देश में ऐसी कोई औद्योगिक नीति नहीं हो सकती जिसके सुनियोजित विकास में सार्वजानिक क्षेत्र की भूमिका का उल्लेख न हो। वह बैंको एवं उद्योग धंधों के निजीकरण के सख्त विरोधी थे। भ्रष्टाचार को लेकर भी उन्होंने संसद में अपनी आवाज बुलंद की। सरकार का किसी भी गलत नीति का विरोध करने में उन्होंने कभी संकोच नहीं किया। चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी सदस्य उनकी बातों को गौर से सुनते थे। अपने कामों से जान मानस में तो वह लोकप्रिय हुए ही , अपनी सरल तथा साफ़ सुथरी छवि के कारण विरोधी दलों के नेता भी उनका सम्मान करते थे।

चंद्रशेखर तत्कालीन सरकार की आर्थिक नीतियों के घोर आलोचक थे। उनका जोर इस पर था कि राष्ट्र की आर्थिक नीतियां भारत की सामाजिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर बननी चाहिए। 12 अप्रलै 1972 को राज्यसभा में चौथी पंचवर्षीय योजना पर चर्चा में भाग लेते हुए उन्होंने कहा था-‘हमारे इरादे और भावनाएं अच्छी हैं लेकिन इसके बावजूद हम लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सके हैं । गरीबी दूर करने के लिए हम सबको समाज का नए सिरे से निर्माण करना होगा।’ एक समाजवादी नेता के रूप में राष्ट्रपुरूष चंद्रशेखर तेजी से बढ़ते एकाधिकार, बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा सम्पति जमा करने, कालेधन में इज़ाफ़ा, भृष्टाचार ,वित्तीय संस्थानों द्वारा धन का अपव्यय, आय छिपाने आरै अन्य आर्थिक अपराधों को लेकर काफी चिंतित रहते थे। उन्हें ऐसे सवाल उठाने में कोई हिचक नहीं होती थी, भले ही इसमें कोई भी व्यक्ति संलिप्त हो। भारतीय समाज में अशिक्षा, अज्ञानता, गरीबी, कुपोषण आरै अमीर व गरीब के बीच बढ़ती खाई जैसे मुद्दे चंद्रशेखर को परेशान करते थे। एक अवसर पर उन्होंने कहा- ‘भारतीय समाज एक अनोखा समाज हैं। यह एक ऐसा लोकतंत्र है जहां आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है। लगभग दो-तिहाई देशवासी अनपढ़ हैं । एक चौथाई से अधिक जनसंख्या भूमिहीन श्रमिकों की हैं। साठ प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति, जनजाति आरै पिछडे़ वर्ग की हैं। शहरों आरै गावों के जीवन स्तर में अंतर बढ़ रहा हैं। बेरोजग़ारी की भरमार है। ' इन समस्यायों पर राज्यसभा आरै लाकेसभा में वह खलुकर बोलते थे।

प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने के बाद चंद्रशेखर ने 21 नवम्बर 1990 को मालदीव की राजधानी माले में आयोजित दक्षेस देशों (सार्क) के शिखर सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने वहां सभी से उपमहाद्वीप में शान्ति के लिए अपील की। उनका कहना था कि सार्क के सदस्य देश अपने यहां के लोगों की मूलभूत समस्याओं पर चितंन मनन करें। तिब्बत में चीन के कब्जे के भी वह खिलाफ थे। लम्बे समय तक कैंसर की बीमारी से जूझने के बाद 8 जुलाई 2007 को नई दिल्ली में चंद्रशेखर का निधन हो गया। उस समय वह 80 वर्ष के थे । एक लोकप्रिय जननेता के रूप में उनका राजनीतिक जीवन कई पीढ़ियों के साथ जुड़ा रहा। देशवासियों के हितों के लिए वह बराबर संघर्ष करते रहे। सडक़ से लेकर संसद तक उन्होंने हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अपने विचारों और सरोकारों से उन्होंने देश पर जो अमिट छाप छोडी़, वह सदियों तक बनी रहेगी। उनके निधन पर तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था कि ‘‘चंद्रशेखर एक वरिष्ठ सांसद, धर्मनिरपेक्ष आरै समाजवादी नेता के रूप में अपने सिद्धांतों में दृढ़ निश्चय रखने के लिए जाने जाते हैं। राष्ट्र के प्रति उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।’’ तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरौ सिंह शेखावत का कहना था कि ‘‘राष्ट्र ने गरीबों के मसीहा ,धर्म निरपेक्षता की प्रतिमूर्ति लाकेतांत्रिक मूल्यों एवं परम्पराओं का एक निर्भीक प्रहरी खो दिया है।’’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा ''प्रधानमंत्री के रुप में अपने संक्षिप्त कार्यकाल में चंद्रशेखर ने राजनीतिक कौशल और बुद्धिमानी के साथ देश को दिशा प्रदान की। '' पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार सही नहीं कहा ''युवा तुर्क के निधन से भारतीय राजनीति में संघर्ष का एक युग समाप्त हो गया साथ ही सार्वजनिक जीवन में शून्य पैदा हो गया हैं। इसमें संदेह नहीं कि चंद्रशेखर एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों व वंचितों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया देश दुनिया के प्रत्येक मामलों कि उन्हें यह जानकारी थी देश में उन जैसा प्रखर राजनेता और जननायक कोई दूसरा होगा, इसमें संदेह है। वह पद के पीछे नहीं भागे, इसी नाते सब के दिलों में समाए हुए है।

आदर्श प्रकाश सिंह
वरिष्ठ पत्रकार अमर उजाला
लखनऊ


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।