Phone: 1-800-123-4567

Email:info@example.com

चीन के साथ मिले हुए है मंत्री, इसलिए पश्चिम बंगाल सरकार का जाना राष्टन्न् और जनतंत्र के हित में

Dismissal of United Front Govt. in West Bengal 22 नवम्बर 1967 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


महोदय इसके पहले कि मैं हरियाणा और बंगाल के बारे में अपने विचार व्यक्त करूं, मैं अपने माननीय मित्र श्री भूपेश गुप्त और उनके सहयोगियों के लिए एक दूसरी दुःख की बात सुनाता हूं। अभी पंजाब के चीफ़ मिनिस्टर ने वहां की विधानसभा में जो घोषणा की है वह पी.टी.आई की खबर यह है किः

"Sardar Gurnam Singh, the Punjab Chief Minister, announced in the State Vidhan Sabha to-day that he was resigning." क्योंकि जो उनका समर्थन कर रहे थे, वे उनसे अलग हो गये।

श्री सुन्दर सिंह भंडारी ;राजस्थानद्ध ने कहा कि इन दोनों में तुलना नहीं है। जवाब में श्री चंद्रशेखर ने कहा कि तीन सरकारें दो दिन के अंदर गयीं। मेरे मित्र, श्री सुन्दर सिंह भंडारी, यह समझते होंगे कि मुझको इससे प्रसन्नता है, लेकिन मैं भी इससे दुःखी हूं। कोई भी जनतंत्र चल नहीं सकता जब तक जनतंत्र में एक पार्टी के अलावा दूसरी कोई पार्टी शासन को लेने का अधिकार न रखती हो और इस ज़िम्मेदारी को निभाने की उसमें क्षमता न हो। जो भी जनतांत्रिक प्रणाली में विश्वास रखता है, वह यह समझता है कि जनतंात्रिक प्रणाली की व्यवस्था होती है कि एक सरकार जाये, एक पार्टी जाये तो दूसरी पार्टी शासन को हाथ में ले ले।

मैं माननीय भूपेश गुप्त जी से और उन मित्रों से कहूंगा जिन्होंने चुनावों के पहले अपनी पार्टियों को मज़बूत करने की कोशिश नहीं की। केवल एक धारणा फैलाई कि किसी भी कीमत पर कांग्रेस को बर्बाद कर दो। इस कांग्रेस पार्टी को तोड़ दो और उससे देश का भला होगा। वे नहीं जानते थे कि जिस समय वे यह नारा दे रहे थे, उसी समय वे संसदीय जनतंत्र की जड़ों पर कुठाराघात कर रहे थे। आज हमारे मित्र दुःख से कह सकते हैं कि क्यों मिलिटन्न्ी बुलाई गयी, क्यों सेना बुलाई गयी? मैं माननीय भूपेश गुप्त जी का ध्यान उनके मुख्यमंत्री, जिनकी प्रशस्ति वे कर रहे हैं, अजय मुखर्जी साहब के उस वक्तव्य की ओर ले जाना चाहता हूं जिसमें उन्होंने वामपंथी साम्यवादियों को जवाब देते हुए कहा था कि सेना बुलाने के लिए भारत सरकार से निवेदन उन्होंने किया था और उसका कारण उन्होंने यह बताया था कि सरकार के अंदर ऐसी पार्टी है जो खुलेआम चीन से समझौता करने के लिए चीन को निमंत्रण देती है।

मैं मानता हूं, मैं अपने भाई भूपेश गुप्त जी से सहमत हूं कि बंगाल की एक परम्परा रही है। भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में बंगाल ने अपना नुमाया हिस्सा अदा किया है। मैं यह भी जानता हूं कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता में बंगाल का स्थान सबसे ऊँचा रहेगा। हमें भी इस बात का गर्व है कि बंगाल की वसुंधरा ने बटुकेश्वर द्वारा और सुभाषचंद्र बोस जैसे लोगों को पैदा किया। लेकिन बटुकेश्वर द्वारा और सुभाष चंद्र बोस बंगाल की वसुंधरा में इसलिए नहीं पैदा हुए कि वहां पर वहीं के रहने वाले लोग किसी विदेशी ताकत से मिल करके इस बात के लिए षड्यंत्र करें कि देश की स्वाधीनता, देश की आज़ादी उनके हाथों में बेच दी जाये। मुझे विश्वास है कि बंगाल की जनता, बंगाल के नौजवान आज भी यह समझते हैं कि जिस परम्परा को बटुकेश्वर द्वारा और सुभाष बोस ने स्थापित किया, उसको जारी रखा जाये। जिस परम्परा पर इस राष्टन्न् को गर्व है, जिस पर माननीय भूपेश गुप्त को गर्व है, उस परम्परा को नक्सलबाड़ी का षड्यंत्र करने वाले कुछ लोगों के हाथों में सौंपने के लिए बंगाल के नौजवान कभी तैयार नहीं होंगे। हमारा अगर कोई चार्ज है गृहमंत्री के ≈पर, भारत सरकार के ≈पर, तो वह यह है कि जिस दिन वहां के मुख्यमंत्री ने कहा था कि सरकार में ऐसे मंत्री हैं, जिनकी पार्टी चीन से समझौता किये हुए है, उसी दिन इस सरकार को बरखास्त क्यों नहीं कर दिया गया?

महोदय, मैं आपके ज़रिये इस सदन से कहना चाहता हूं कि जनतंत्र में बड़ी शक्ति है। जनतंत्र की आवाज और इच्छाशक्ति में यह ताक़त है कि वह राष्ट्रों का निर्माण करती है। लेकिन जनतंत्र में एक बड़ी भारी कमज़ोरी है कि जनतंत्र के दुश्मन जनतंत्र में मिले हुए अधिकारों का उपयोग जनतंत्र को नष्ट करने में करते हैं। यह सारे संसार की परम्परा रही है। चाहे वह हिटलर रहा हो, चाहे वह मुसोलिनी रहा हो, चाहे कोई दूसरा डिक्टेटर रहा हो, जनतांत्रिक समाज जो अधिकार उनको देता है, उन्हीं अधिकारों का इस्तेमाल करके वे जनतंत्र की हत्या का प्रयास करते हैं। बंगाल में आज से नहीं, पिछले 6 महीनों में कुछ लोग इस तरह के नज़र आए हैं जिन्होंने खुलकर बंगाल के अंदर देशद्रोह का काम किया है। मुझे सहानुभूति है, हमारे मित्र भूपेश गुप्त और राजनारायण जैसे लोगों से। मैं उनके शब्द उद्धृत नहीं करूगा। इसी सदन के अंदर माननीय राजनारायण जी ने कहा था कि नक्सलबाड़ी के अंदर जनतंत्र की हत्या हो रही है, इसी सदन में श्री राजनारायण जी ने उस दिन आंसू बहाये थे जब आसनसोल में एसएस.पी. के एक कार्यकर्ता की हत्या की गयी और बंगाल की गवर्नमेंट उस पर कोई कदम उठाने के लिए तैयार नहीं थी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के मित्रों से मैं कहूंगा कि कलकत्ता में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के द∂तर में घुसकर वामपंथी कम्युनिस्टों ने उनके कार्यकर्ताओं को सड़कों पर घसीटकर पीटा। मैं पूछना चाहता हूं जनतंत्र की बात करने वाले भूपेश गुप्त जी से, पूछना चाहता हूं, जनतंत्र की बात करने वाले राजनारायण जी से कि क्या यही जनतांत्रिक परम्परा है, क्या इसी के लिए भारत के लोगों ने शहादत दी थी, क्या इसी परम्परा के लिए यह संविधान बनाया गया था, जिसके अंतर्गत हम और आप बैठकर बात कर रहे हैं? मैं संविधान की परम्पराओं और उसके नियमों के बारे में बाद में निवेदन कंरूगा, लेकिन ये मौलिक प्रश्न है जिनका उत्तर देश आपसे चाहता है। आपका विद्रोह कांग्रेस के प्रति हो, मैं उसको समझ सकता हूं। आपका क्रोध शासन के प्रति हो, उसको मैं समझ सकता हूं। मैं यह भी समझ सकता हूं कि शासन की गलतियों को आप सामने लाए। मैं यह भी समझ सकता हूं कि आप कांग्रेस की भत्र्सना करें लेकिन मैं इन मित्रों से यह निवेदन करना चाहता हूं कि एक राजनीतिक अवसर का लाभ उठाने के लिए देश की जनतांत्रिक परम्पराओं के ≈पर जो लोग कुठाराघात कर रहे हैं, उनका साथ देकर जनतंत्र की जड़ों को न समाप्त करें। बंगाल में 6-8 महीनों से जो हो रहा था कलकत्ता के मैदानों में कांग्रेस की वह ऐसा नहीं था जिससे जनतंत्र की जड़ें मज़बूत हो रही हों। मैं भूपेश गुप्त से कहूंगा कि आम चुनाव के पहले क्या हालत थी? सभाओं का होना मुश्किल था। चुनाव के बाद जब आपकी सरकार बनी तो जनता ने उसे उम्मीद और आशा की निगाह से देखा, लेकिन 6 महीनों में आपने जनता को कहां पहुंचा दिया? तीन दिन पहले डेढ़ लाख लोगों ने कलकत्ता के मैदानों में इकट्ठे होकर कहा कि अजय मुखर्जी की सरकार जानी चाहिए।

मैं आपसे यह निवेदन करना चाहता हूं कि आखिरकार डेढ़ लाख लोग अगर कांग्रेस के नेतृत्व में आकर यह मांग करते है तो क्या आपको इसमें कोई परिवर्तन नहीं दिखायी पड़ता है। अगर कोई परिवर्तन नहीं दिखायी नहीं पड़ता है तो मैं यही कह सकता हूं कि सूरज की रोशनी में किसी पक्षी को नहीं दिखायी दे तो सूरज की रोशनी का दोष नहीं, उस पक्षी की आंख का दोष है।

मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि यह परिवर्तन बड़ी तीव्र गति से हो रहा है। 6 महीनों के अंदर गैर कांग्रेसी सरकारों ने यह सिह् कर दिया है कि कांग्रेस बीस बरस में अपनी छोटी-मोटी गलतियों से जहां पहुंची उससे आगे वे 6 महीनों में पहुंच गए है और आज देश की जनता का विश्वास उन पर से उठ गया है। न जनतंत्र के नाम पर, न राजनीतिक नैतिकता के नाते, न संवैधानिकता के नाते और न जनता की मर्यादा के नाते आप यह दावा करने का हक रखते हैं कि अजय मुखर्जी की हुकूमत बनी रहे। हमारे कुछ मित्र यह सवाल उठाते है कि अगर 20 दिसम्बर तक अजय मुखर्जी की हुकूमत बनी रहती तो क्या बज्रपात हो जाता। मैं आपसे यह निवेदन करना चाहता हूं कि गृहमंत्री जी के पास क्या जवाब है? अक्टूबर के महीने में जिस समय अजय मुखर्जी ने यह बयान दिया कि चीन के साथ कुछ मंत्री मिले हुए हैं, उसके बाद से अगर पिछले एक-डेढ़ महीने के अंदर इन मंत्रियों ने सरकार के पदों का लाभ उठाकर चीन के प्रति वफ़ादार देशद्रोही तत्वों का कोई गुट बना लिया हो नक्सलबाड़ी में, बंगाल में, तो उसकी जवाबदेही किसके ≈पर है? भारत सरकार इस ज़िम्मेदारी से बरी नहीं हो सकती है। अगर आज इस डिसमिसल के बाद कोई खूनखराबा होता है, अगर कोई कत्लेआम होता है और कोई गृहयुह् होता है तो उसकी ज़िम्मेदारी धर्मवीर के ≈पर जो कल उन्होंने किया, उस पर नहीं होगी, इसकी ज़िम्मेदारी होगी जो पिछले डेढ़ महीने तक माननीय धर्मवीर जी और गृहमंत्री जी सब शान्त, चुप बैठे रहे। यह ज़िम्मेदारी उनकी पिछले डेढ़ महीने की निष्क्रियता पर होगी। मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जब कोई भी मंत्री विदेशी शासन से मिला हो, तब वह देश के खिलाफ़ क्या नहीं कर सकता।

एक बात और बड़े ज़ोरो से कही जा रही है कि नरमुण्ड दिखाई पडें़गे, लोग कत्ल हो जायेंगे। हो सकता है कुछ लोग मारे जायें, हो सकता है आप लोग इस ÿिया में दक्ष हैं, लेकिन मैं उन मित्रों से कहना चाहता हूं कि इतिहास में कभी-कभी राष्टन्न् की एकता को बनाये रखने के लिए, आज़ादी को बनाये रखने के लिए, प्रजातंत्र को बनाये रखने के लिए अपने लोगों के खिलाफ भी हथियार उठाने पड़ते हैं और यह कोई शर्म की बात नहीं है। दुनिया के इतिहास में आखिरकार अब्राहम लिंकन भी पैदा हुआ है और अब्राहम लिंकन जैसे लोगों के ≈पर किसी भी समाज को, किसी भी राष्टन्न् को गौरवान्वित होना चाहिए। अगर देश की एकता के लिए, देश की सार्वभौम सŸाा के लिए, कुछ लोगों को बलिदान होना पडे़, तो इसमें दुःख की बात तो है लेकिन देश की एकता से ≈पर कोई शासन, कोई पार्टी, कोई दल नहीं है।

मैं विरोधी दलों के मित्रों से कहना चाहूंगा कि कांग्रेस के बारे में उनकी कोई धारणा हो, लेकिन 1885 से 1947 तक कांग्रेस की परम्परा, बलिदान की परम्परा रही है, वह बलिदान राष्टन्न् को स्वतंत्र करने के लिए था। जिस बंगाल की परम्परा का ज़िÿ माननीय भूपेश गुप्त ने किया है, वह बंगाल की परम्परा कांग्रेस की परम्परा रही है और उस परम्परा का निर्वाह करने के लिए कांगे्रस पार्टी सबसे बडी कुर्बानी करने के लिए तैयार है और कोई भी जो कांग्रेस पार्टी की सरकार है, ऐसे अवसर पर निष्ÿिय नहीं रह सकती, अगर वह रहना भी चाहे तो। जो उदारता माननीय चव्हाण जी ने दिखाई है, जो उदारता माननीया श्रीमती इन्दिरा गांधी ने दिखायी है, वह बहुत ज़्यादा है। जो आज जनतंत्र की बात कर रहे हैं, मैं अपने उन मित्रों से कहूंगा कि यह देश सिर्फ कांग्रेस का नहीं है। सभी लोगों का है। इसलिए सभी को मानना चाहिए कि कार्रवाई उचित है और अजय मुखर्जी का वक्तव्य ही काफी है, सरकार के डिसमिसल के लिए।

दूसरी तरफ कहा जाता है कि गवर्नर को अधिकार नहीं है। इस पर विवाद हो सकता है। उसमें एक पक्ष यह भी है कि गवर्नर को यह अधिकार है कि वह अगर यह समझे कि शासन संविधान के मुताबिक नहीं चल रहा है, तो उस सरकार को बर्खास्त कर सकता है। इस सम्बन्ध में संविधान की धारा को उद्धृत नहीं करना चाहूंगा क्योंकि बहुत से पंडित उस बारे में कहेंगे, लेकिन मैं एक उदाहरण डा. अम्बेडकर का देना चाहूँगा वह मैं अंग्रेज़ी में पढ़ रहा हूं:-

"Although the Governor has no functions, still even the Constitutional Governor, that he is, has certain duties to perform. His duties, according to me, may be classified into two parts. One is that he is to retain the Ministry in office because the Ministry is to hold office during his pleasure. He has to see whether and when he should exercise his pleasure against the Ministry. The second"

यह उदाहरण है डा. अम्बेडकर का। उन्होंने कहा है कि गवर्नर को, राज्यपाल को, इस बात का अधिकार है कि वह यह सोचे कि किस समय वह अपना डिस्ÿीशन, अपना प्लेज़र मिनिस्ट्री के खिलाफ इस्तेमाल करे। यह अम्बेडकर साहब ने जो हमारे संविधान के निर्माता थे, कहा है। ऐसी परिस्थिति में अगर राज्यपाल धर्मवीर ने यह समझा कि अब शासन ठीक ढंग से नहीं चल रहा है तो यह उनकी राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी थी। मैं विधान का पंडित नहीं हूं, मै नहीं जानता कि विधान क्या कहता है पर उनका राष्ट्रीय कर्तव्य पुकार-पुकार कर कह रहा था कि कार्रवाई करें।

संविधान निर्माता डा. अम्बेडकर के विचार पर बहस हो सकती है, विवाद हो सकता है, मैं नहीं कहता कि उन्होंने अन्तिम बात यही है लेकिन ऐसा नहीं है कि इसके पीछे संवैधानिक तथ्य या ज़ोर नहीं है। मैं तो केवल यह कहना चाहता था कि राज्यपाल धर्मवीर ने अपने राष्ट्रीय कर्Ÿाव्य का पालन किया है और इस सदन में मैं यह कहना चाहूंगा कि वे हमारी बधाई के पात्र हैं।

मैं राज्यपाल धर्मवीर को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता। हमारे मित्र ने कहा कि दो आई.सी.एस. अफ़सरों के ज़रिये दो मिनिस्ट्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। लेकिन जहां तक मैं जानता हूं और अखबारों के ज़रिये सारे देश को यह मालूम है कि धर्मवीर जी को राज्यपाल बनाने की सिफ़ारिश श्री अजय मुखर्जी साहब ने की थी, अजय मुखर्जी साहब को उस समय धर्मवीर जी अच्छे लगते थे और अब नहीं लगते। महोदय, मैंने अपने वक्तव्य के प्रारम्भ में ही कहा था कि हमारे मित्र श्री भूपेश गुप्त और उनके साथी कांग्रेस के लोगों के इतने खिलाफ हैं कि उसके विरोध में वह जघन्य से जघन्य अपराध करने के लिए तैयार हैं। यह उन्होंने खुद कह दिया कि कोई भी हो कांग्रेस का आदमी नहीं होना चाहिए और आज उसका फल अगर वह भुगत रहे हैं, तो यह उनकी मनोवृत्ति का परिणाम है।

महोदय, मैं अन्त में केवल यही कहना चाहूंगा कि राष्ट्र हित में बंगाल की गवर्नमेंट का जाना नितांत आवश्यक था, जो कुछ भी किया गया, वह राष्ट्र के भविष्य के लिए, जनतंत्र के भविष्य के लिए, इस देश की भलाई के लिए आवश्यक था। जहां तक हरियाणा का सवाल है, हरियाणा के राज्यपाल की रिपोर्ट से यह साफ प्रगट है कि वहां के राजनीतिज्ञ जिस तरह से इधर, उधर काम किये हैं, उससे जनतंत्र की मर्यादा को धक्का लगा है।

महोदय, मैं अन्त में केवल यही कहना चाहूंगा कि राष्ट्र हित में बंगाल की गवर्नमेंट का जाना नितांत आवश्यक था, जो कुछ भी किया गया, वह राष्ट्र के भविष्य के लिए, जनतंत्र के भविष्य के लिए, इस देश की भलाई के लिए आवश्यक था। जहां तक हरियाणा का सवाल है, हरियाणा के राज्यपाल की रिपोर्ट से यह साफ प्रगट है कि वहां के राजनीतिज्ञ जिस तरह से इधर, उधर काम किये हैं, उससे जनतंत्र की मर्यादा को धक्का लगा है।

इन शब्दों के साथ मैं माननीय गृह मंत्री जी के उस प्रस्ताव का समर्थन करता हूं जिसमें उन्होंने हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लागू करने का निवेदन किया है और मैं अत्यंत दुःख के साथ अपने मित्र भूपेश गुप्ता के प्रस्ताव का विरोध करता हूं।


अनुक्रमणिका

संपर्क सूत्र

फोन नम्बर: +91-9415905877
ई-मेल: mlcyashwant@gmail.com
Website: www.chandrashekharji.com

दारुल सफा 36/37 बी-ब्लाक,
विधानसभा मार्ग,
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश

फोटो गैलरी

चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।