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नौजवान कल के हिन्दुस्तान की आशा है, पुरानी पीढ़ी मर्यादा के साथ दे उसका अधिकार

English 24 नवम्बर 1967 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभाध्यक्ष महोदय, मैं श्री मोहन धारिया जी को इस बात के लिए धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने इस समस्या के पर विवाद करने के लिए अवसर दिया। लेकिन इस समस्या का विवाद तभी तक संगत हो सकता हे और उसका अर्थ तब सही मानों में निकल सकता है जब इस प्रस्ताव के साथ श्री दास के उस हिस्से को भी मिलाकर सोचें जो उन्होंने इस सम्बंध में दिया है। अगर श्री धारिया जी और श्री दास जी की भावनाओं को एक साथ जोड़ दिया जाए तो इस देश में नौजवानों की समस्या का समाधान निकल सकता है। अभी हमारे मित्र श्री चोरड़िया जी ने योजना के खि़लाफ़ अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कुछ अपने तरीके से सीख देने की कोशिश की कि अगर कोई उद्योग लगाना चाहता हो तो उसके पर रोक नहीं लगानी चाहिए। मेरे ख्याल में उनकी समझ में बेकारी की समस्या और नौजवानों की समस्या का यही समाधान है। मैं अपने मित्र श्री चोरड़िया जी की भावना का आदर करता हूं। मैं यह भी मानता हूं कि बेकारी की समस्या का अगर कोई समाधान करना है तो इस देश में अधिक से अधिक उद्योग किन परिस्थितियों में पैदा होंगे उस पर विचार करना होगा जब प्लानिंग कमीशन नहीं था, जब योजना आयोग नहीं था, तब क्या उसके पहले उद्योग के अधिक साधन थे? क्या उसके पहले हमारा औद्योगिक विकास अधिक हुआ था? मैं उन आकड़ों में नहीं जाना चाहूंगा क्योंकि श्री चोरड़िया जी को मालूम ही होगा कि प्रथम योजना के आने के पहले इस देश का विकास आधा प्रतिशत से भी कम हुआ था, नगण्य था और कोई विकास नहीं हो रहा था। योजना आने के बाद भी विकास की गति तीव्र नहीं हुई और विकास तीव्र गति को अग्रसर नहीं हुआ। जब मैं यह कहता हूं कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों पर रोक लगायी जानी चाहिए, तो इसलिए नहीं कहता हूं कि उनसे कोई बुरा भाव है।

उपसभाध्यक्ष महोदय, इस समय हमारे पास जो भी उत्पत्ति के साधन हैं, जो कुछ सभी साधन मनुष्य के पास हैं, उनका सही इस्तेमाल होना चाहिए। जब देश में साधन न हों तो जो कुछ भी साधन हमारे पास हैं, उनका इस्तेमाल सही ढंग से होना चाहिए। आज क्या हो रहा है? एक ओर तो हमारे भाई धारिया जी ने आंकड़े दिये कि करोड़ लोग इस देश के अंदर बेकारी में जी रहे हैं और उनकी जीविका चलाने के लिए कोई साधन नहीं है। हमारे शिक्षा मंत्री जी बैठे हुए हैं और हमारे नौजवानों को उनसे आशा थी कि वे उनकी समस्या का कोई हल निकालेंगे। लेकिन आज हम यह देखते हैं कि अगर देश में 20 नौजवान हैं तो उनमें से दो नौजवान विद्यार्थी है और 18 नौजवान वे हैं जो गलियों के अंदर, सड़कों के अंदर, खेतों और खलिहानों के अंदर मारे-मारे फिर रहे हैं। केवल एक शिक्षा मंत्री के बस की यह बात नहीं है। इसके निदान के लिए मौलिक परिवर्तन करना पड़ेगा।

मैं अपने माननीय मित्र श्री शाह साहब से कहना चाहूगा कि अगर किसी समय नौजवान लोग किसी बात पर क्रोध करते हैं तो इसलिए नहीं कि किसी व्यक्ति के विरोध में कोई बात कहना चाहते हैं, कोई इसलिए नहीं कि उनको संसद की मर्यादा का ध्यान नहीं है। मैं आप से निवेदन करना चाहता हूं कि मर्यादाएं टूट रही हैं क्योंकि अतीत के वैभव पर और अतीत की बातों को दोहरा कर भविष्य का निर्माण नहीं किया जा सकता है। अतीत हमारी धरोहर है, लेकिन भविष्य हमारी कल्पना है और उस कल्पना को संजोने के लिए नयी पीढ़ी को नये सिरे से काम करना पड़ेगा। मैं अगर मोहन धारिया जी से असहमत हूं तो केवल इस बात पर कि केवल बोर्डो के गठन से यह मामला हल होने वाला नहीं है। यह मामला मौलिक परिवर्तन का है और विचाराधारा के परिवर्तन का है।

हिन्दुस्तान जैसे देश में, जो अविकसित देश है, जिसमें समस्याएं जटिल हैं, उसमें खतरा मोल लेने की ताकत होनी चाहिए। वह ताकत हमारी पुरानी पीढ़ी में नहीं आ सकती है, चाहे उनके विचार कितने ही स्पष्ट और उज्जवल क्यों न हों। मैं कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहता हूं कि जो नयी बात हो। कल सायंकाल में शिक्षा मंत्री जी को एक उह्रण दिखा रहा था। महात्मा गांधी जी से किसी ने कहा कि आप कांग्रेस के अध्यक्ष हो जाइये क्योंकि कांग्रेस के पर संकट है। मैं महात्मा गांधी जी के उह्रण को शिक्षा मंत्री तथा राज्य मंत्री के सामने उदाहरण के तौर पर रखना चाहता हूं। उस समय महात्मा गांधी जी ने कहा था कि पुरानी पीढ़ी अपना काम खत्म कर चुकी है और अब नौजवानों को ज़िम्मेदारी लेनी पड़ेगी और पुराने लोगों को मर्यादा के साथ उस ज़िम्मेदारी को दे देना चाहिए। अगर वह नहीं देते तो समय उन्हें ठुकरा देगा और ज़िम्मेदारी नौजवानों के हाथ में दे देगा। यह महात्मा गांधी जी की बात थी। मैं आपके द्वारा श्री मोहन धारिया जी से और उनके मत के किसी भी व्यक्ति से कहना चाहूंगा कि केवल निवेदनों से सामाजिक परिवर्तन नहीं होता है। सामाजिक परिवर्तन संघर्षों से होता है। मानव जीवन शुभ और अशुभ शक्तियों का सम्मेलन है और उन शक्तियों में हमेशा संघर्ष होता है। हर एक नौजवान का कर्तव्य है कि वह शुभ की शक्तियों को विकसित करे और अशुभ की शक्तियों को नष्ट करे।

आज हमारे समाज में नौजवानों की कल्याण की समस्या इसलिए है कि चंद लोगों के पास जो साधन उत्पत्ति के हैं, वे उनके पर कब्ज़ा करके बैठे हैं। उनके पर उनका एकाधिपत्य है और उस एकाधिपत्य को तोड़े बिना समाज में परिवर्तन करना और नौजवानों की समस्या का हल करना असम्भव है।

उपसभाध्यक्ष महोदय, मैं आपको एक उदाहरण देना चाहता हूं। मैं यह नहीं मानता हूं कि नौजवानों को सारे सुख और वैभव मिलने चाहिए। मैं यह भी नहीं मानता हूं कि नौजवानों को बिना काम किये सारे सुख और सुविधा मिलनी चाहिए। लेकिन मैं यह मानता हूं कि नौजवानों को एक आशा, एक आकांक्षा और भविष्य के प्रति गारण्टी मिलनी चाहिए। नौजवान भी यह समझे कि देश के विकास के लिए, देश के भविष्य के लिए, इस मुल्क के मुस्तकबिल के लिए, बड़ी से बड़ी कुरबानी देनी पड़ेगी और ऐसी कुरबानी उसे देनी होगी। आज क्या हो रहा है? चारो तरफ लालच का समुद्र भरा हुआ है। व्यक्तिगत स्वार्थ की लहर-लहरा रही है और लोगों से कहा जा रहा है कुरबानी और उत्तरदायित्व का दीप जलाओ। इस तरह से दीप जलने वाला नहीं है। जब मैं दो साल पहले क्यूबा गया था तो मैंने हवाना में देखा था कि फिदेल कास्त्रो से लेकर नौजवान विद्यार्थी तक एक ही ड्रेस पहनता है। हिन्दुस्तान और जापान जैसे मुल्कों में 200 वैराइटी के कपड़े पहने जाते हैं। शिक्षा मंत्री जी को मालूम होगा कि हिन्दुस्तान में इसकी गिनती ज़्यादा हो सकती है। वह दो हज़ार और कई हज़ार तक हो सकती है। हमारे देश में पिछले छह वर्षो में 45 करोड़ रुपए का ऐडवर्स बैलेंस आफ ट्रेंड हमने इसलिए किया कि चन्द लोगों को पहनने के लिए मर्सेराइज्ड और मसलिन कपड़ा चाहिए। इस मनोवृत्ति के साथ हम चाहते हैं कि देश के नौजवानों का भविष्य हम सुधारें। वह नहीं सुधरने वाला है। क्यूबा में हमने देखा क्या हुआ। वह एक कम्युनिस्ट कंट्री है। हमारे बहुत से मित्रों को कम्युनिज़म से बड़ा विरोध होगा। लेकिन इसे देखकर मुझे वह दिन याद आया जब महात्मा गांधी की बातों को हम विद्यार्थी के नाते पढ़ा करते थे। महात्मा जी ने क्या कहा था? उन्होंने कहा था कि इन बड़ी-बड़ी कोठियों में मज़दूरों के बच्चों के लिए अस्पताल खोल दो। मैंने देखा कि हवाना की गलियों में सबसे अच्छी लोकेलिटी है जहां पर अमेरिकन लोगों ने बड़ी-बड़ी कोठियां बना रखी थी, उन सबके पर आज सरकार का कब्ज़ा है। आठ या दस देश के दूतावास वहां पर हैं क्योंकि कम्युनिस्ट देशों के साथ उनका दोस्ती का सम्बंध है। बाकी सारी कोठियों मे किसी में दस, किसी में 15, किसी में 20 और किसी में 25 लोग रहते हैं। ये गांव के उन किसानों के बच्चे हैं जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में सात पुश्तों से पढ़ाई का नाम नहीं सुना था। उसी तरह से उनमें कार्पेट लगे हुए हैं, उसी तरह से गलीचे लगे हुए हैं जिस तरह से अमेरिका के बड़े से बडे़ पूंजीपति उन मकानों को छोड़ गए थे। आज भी वैसे ही उनको मेनटेन किया जाता है और उनमें रखा कौन जाता है? उनमें रखा जाता है वह बच्चा जिसके सात पुश्त में शिक्षा देने के लिए किसी ने कोशिश नहीं की। मैं एक दूसरी घटना आपको बतलाता हूं। हवाना में एक हिल्टन होटल था। उसका नाम आज है लिबरल हवाना होटल, आज़ाद हवाना होटल। उस होटल मे कौन रहता है? ईख के खेतों में काम करने वाला वह मजदूर जो सबसे अधिक मेहनत करके अधिक पैदावार करता है, वह मज़दूर एक महीने के लिए सरकारी खर्चे पर उस हवाना के हिल्टन होटल में ठहराया जाता है। क्यों? इसलिए कि राष्ट्र निर्माण के काम में उसने काम किया है। यहां ओबेराय इंटरनेशनल और अशोका होटल में मैं किसी पूंजीपति का नाम नहीं लूंगा, वह लड़का जिसने जिन्दगी के पहले दिन से मौत के दिन तक, श्मशान तक पहुंचने तक देश के निर्माण के लिए कुछ काम नहीं किया, उसकी सारी जिंदगी बीतती है। दूसरी तरफ़ जो देश को बनाने के लिए पांच वर्ष की उम्र से सड़कों पर घिसटते हुए और मौत के समय तक, श्मशान घाट तक जाने तक इस शस्य श्यामला को सम्पींा बनाने के लिए मेहनत करता है, उस नौजवान को उसकी दीवार की भीतर में कभी जाने का मौका ही नहीं मिलता है। इन परिस्थितियों में आप चाहते हैं कि देश बनेगा। नहीं बनने वाला है।

मैं माननीय शिक्षा मंत्री जी से कहता हूं कि इन बोर्डों से यह मामला हल नहीं होगा। यह मामला हल होगा मनोवृत्ति बदलने से। आप मनोवृत्ति बदलिये, ज़हनियत बदलिये। अगर आप समझते हैं कि देश का नौजवान अपना उत्तरदायित्व समझे तो उसमें आस्था पैदा कीजिये कि इस देश के निर्माण की ज़िम्मेदारी उसके पर है।

मैं यह भी मानता हूं कि नौजवान जो आज करते है, वह नहीं करना चाहिए कि कहीं पर टन्न्ाम जलाना, बस जलाना, रेल जलाना। यह कोई नौजवान का काम नहीं है। लेकिन ऐसा क्यों होता है? इसलिए कि उसको कोई नेतृत्व नहीं मिलता है। उसके अंदर शक्ति है, उसके अंदर साहस है, लेकिन कोई उसको नेतृत्व देने के लिए तैयार नहीं है। हम लोग संसद सदस्य हैं। नहीं जानता कि मैं नौजवान हूं या नहीं। नौजवान हम लोग कहे जाते हैं, यद्यपि 40 के पर हो गए हैं। हमारे मित्र मोहन धारिया जब बूढ़े हो गए तो उनको नौजवानों की याद आ रही है तो मैं आपसे क्या कहूँ हम को तो डर लग जाता है जब हम सोचते हैं कि आज अगर हम उनकी आकांक्षाओं का नेतृत्व करेंगे तो कहीं हमारे माननीय शिक्षा मंत्री त्रिगुण सेन जी को कोई दुःख न लग जाये। इन भावनाओं के अंदर देश के नौजवानों को संगठित नहीं किया जा सकता और उनको निर्माण के कामों में नहीं लगाया जा सकता। मैं बुजुर्ग लोगों से कहना चाहूगां कि इतिहास की दीवार पर जो रेखाएं खिंच रही है, उनको पहचानिये। या तो आप स्वयं नेतृत्व दीजिये उन नौजवानों को या कम से कम उनको इस बात का अनुभव कराइए कि कल भविष्य बनाने की ज़िम्मेदारी उनके पर है। अगर आप वह नहीं करें तो जो अपने को नौजवान कहते हैं, चाहे वह बांके बिहारी दास जी कहते हों, चाहे मोहन धारिया जी कहते हों, वे इस नेतृत्व को देने के लिए संकल्प करें चाहे इसके लिए उनको बड़ी से बड़ी कठिनाई क्यों न उठानी पड़े।

बांके बिहारी दास जी ने एक सही दिशा दी है अपने दूसरे प्रस्ताव में। उनका प्रस्ताव यह है कि इस भारत देश में किसी परिवार की आमदनी डेढ़ हज़ार से अधिक नहीं होनी चाहिए। एक तरफ़ लाखों रुपया बरबाद किया जायेगा और दूसरी ओर कहा जाएगा की प्रारम्भिक शिक्षा के लिए पैसा नहीं है। मैं आप को बतां कि बाड़मेर के इलाके से, जैसलमेर के इलाके से श्री अमृत नाहटा जो लोक सभा के सदस्य हैं, उनको शायद हमारे माननीय शिक्षा मंत्री जी जानते होंगे। कहा जाता है कि प्रिवीपर्स के रूप में वहां के राजा वहां के एक राजा को दो लाख मिलता है। वे किस तरह से उसको खर्च करते हैं किसी को नहीं मालूम। लेकिन अगर कहा जाता है कि बाड़मेर के किसी गांव में पानी पीने के लिए पांच हज़ार रुपया कुंए के लिए दीजिये, तो दो वर्ष से कहा जाता है कि हमारे पास पैसा नहीं है। कौन नौजवान इस बात को मानने के लिए तैयार होगा। माननीय महोदय, मैं शिक्षा मंत्री जी से जानना चाहूँगा कि क्या आप हमको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि जब हम कहें कि नौजवानों को खेलने के लिए सुविधाएं दीजिए, जब हम कहें कि गांवो में जो हाई स्कूल फेल करके या पास करके नौजवान बैठा हुआ है उसको 50 रुपया इसलिए दीजिये कि वह पढ़े-लिखे लोगों को गांवों में घूमकर शिक्षा दे, तो आप कहें कि पैसा नहीं है और दूसरी तरफ हमारी आंखो के सामने ओबेराय होटल में पांच-पांच सौ रुपया एक दिन में एक-एक आदमी पर खर्च हो रहा है।

मैं आपसे कहूंगा शिक्षा मंत्री महोदय कि आपके पर बड़ी ज़िम्मेदारी है। दुनिया के सारे देशों में जब चारों ओर अंधकार दिखाई पड़ता है तो प्रकाश की किरण कहां से आती है? आज से नहीं, पुराने ज़माने से प्रकाश की किरण केवल विद्या मंदिरों से आती है। वहां से समाज एक नयी आशा रखता है। शिक्षा मंत्रालय का यह काम है कि अगर इस सरकार में नीतियों के प्रति ज्ञान स्पष्ट न हो, तो शिक्षा मंत्रालय उनको भी ज्ञान देने का काम करे।

आप जानते हैं कि किसी भी देश में नये समाज को लाने के लिए, नयी फिलासफी को लाने के लिए, नयी ज़हनियत, नयी ज़िंदगी को लाने के लिए केवल दो तबके काम करते हैं, एक तो मज़दूर जो कि मेहनत से समाज को बनाता है और दूसरी तरफ़ वह विद्यार्थी, वह पढ़ा-लिखा नौजवान जिसकी कल्पना भविष्य के प्रति होती है। आज इन दोनों का मिलन अगर इस देश में हो सके और अगर शिक्षा मंत्रालय इस दिशा में कुछ कर सके तो मैं यह समझूगंा कि मोहन धारिया जी ने जो प्रस्ताव किया है, उस प्रस्ताव का जो संकल्प है, उसका जो उद्देश्य है, वह पूरा हो गया। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमारे लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं रह जायेगा सिवाय इसके कि बांके बिहारी दास जी के दूसरे प्रस्ताव पर आयंे और इस देश में अपरिग्रह की भावना पैदा किया जाये। ये दोनों बातें नहीं चल सकती हैं कि एक ओर हम कहें कि ग़रीबी, भुखमरी, बेकारी, बेरोज़गारी से हम नौजवानों को बचायेंगे और दूसरी ओर अंबार लगा हो धन का, दूसरी तरफ व्यक्तिगत स्वार्थ और व्यक्तिगत लाभ के लिए लोग खुलेआम झूठ के साथ व्यापार करते हैं। इस बात को रोकने में सबसे बड़ा खतरा वह नहीं है जो मोहन धारिया जी ने कहा कि 36 हज़ार लोग कुछ दिनों में आयेंगे। सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि शायद जनतंत्र से लोगों की आस्था उठ जायेगी। गरीब की वाणी को इस संसद में, इस पवित्र स्थान में उठाकर के भी शायद हम अगर कुछ कर न पाये तो नौजवान यह समझेगा कि आज दूसरा कोई रास्ता नहीं सिवाय अराजकता के और फिर नौजवान को आपको दोष देना छोड़ देना चाहिए। मुझे विश्वास है, मुझे आस्था है कि हम शायद नाकामयाब हो जायें, हमे यह विश्वास है कि हम शायद असफल हो जायंे, लेकिन इतिहास की गाड़ी कोई रोक नहीं सकता। नौजवान कल के हिन्दुस्तान की आशा हैं। वह अपना क्लेम, अपना अधिकार ले करके रहेगा। दुनिया की कोई शक्ति उसे रोक नहीं सकती। मुझे खुशी होगी अगर पुरानी जनरेशन के लोग, पुरानी पीढ़ी के लोग वह अधिकार मर्यादा के साथ दे दंे, अन्यथा नौजवान उनसे वह अधिकार लेकर रहेगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।