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मुख्यसचिव से जवाब तलब हो कि भारत सरकार को क्यों नहीं किया सूचित

संदर्भ: उ.प्र. में राष्ट्रपति द्वारा जारी उद्घोषणा सम्बंधी संकल्प 14 अगस्त 1968 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष महोदय, यह बहुत गलत प्रÿिया है। क्या आप इसे एक सामान्य मामले के रूप में लेते हैं जिसे सामान्य ढंग से लिया जा सकता है? यह मामला श्री पांडे द्वारा सोमवार को उठाया गया था और आज बुधवार है। छह दिन बीत गए हैं। हम यहां पर जनता के प्रतिनिधियों के रूप में बैठे हुए है। जब हम इस मामले को उठा भी नहीं सकते हैं तो हम लोगों के पास कौन-सा मुंह लेकर जा सकते हैं। आप श्री पांडे और हमारी मनः स्थिति को समझिये जो 2,50,000 लोगों का ्रप्रतिनिधित्व करते हैं। वे हमें टेलीग्राम भेज रहे हैं और हम हैं कि अपनी आवाज ही नहीं उठा सकते हैं।

मैं आपके द्वारा किसी ध्यान दिलाने की सूचना को उठाने की अनुमति देने या न देने के सम्बंध में आपके विवेक पर सामान्यतः आपŸिा नहीं करता किन्तु क्या गृह-मंत्रालय का यह कर्Ÿाव्य नहीं है कि जब कभी ऐसा गोलीकांड होता है तो वह सभा के समक्ष एक वक्तव्य दे। सचिव, जो वहां पर बैठे हुए हैं, गृह-मंत्रालय को सूचित करना उचित नहीं समझते। इसलिए गृह-मंत्रालय अपनी असहायता व्यक्त कर सकता है। किन्तु वहां पर राज्यपाल क्या कर रहे हैं, मुख्य सचिव क्या कर रहे हैं? उन्हें किस बात की तनख्वाह दी जाती है?

उपाध्यक्ष महोदय मैं निवेदन करता हूं कि इस मामले को प्रश्नों के समय के बाद सबसे पहले लिया जाना चाहिए कि मुख्य सचिव ने इस घटना के बारे में भारत सरकार को सूचित क्यों नहीं किया? मैं जानना चाहता हूं कि बलिया में गोली चलने के बाद लखन के सचिवालय ने क्या किया? क्या उन्होंने यहां के गृह मंत्रालय को सूचना दी? यदि दी तो उसका क्या प्रतिवेदन है? यदि उसने सूचना नहीं दी तो मुख्य सचिव और राज्यपाल से कहा जाना चाहिए कि वे इस बात का स्पष्टीकरण दें कि जब यहां पर संसद की बैठकें हो रही है, तब उसने सूचना क्यों नहीं दी और गृह-मंत्रालय से वक्तव्य देने को क्यों नहीं कहा?

उपाध्यक्ष महोदय, मैं अत्यंत नम्रता के साथ आपके निर्देश को स्वीकार करता हूं किंतु मैं ‘यथाशीघ्र’ शब्द से सहमत नहीं हूं। मैं अत्यंत विनम्रतापूर्वक किंतु दृढ़ता पूर्वक कह रहा हूं कि मैं चाहता हूं कि इस वक्तव्य को सोमवार को प्रश्नों के समय के बाद दिया जाना चाहिए। यदि प्रश्नों के समय के बाद वक्तव्य नहीं दिया जायेगा तो मैं सभा में कोई कार्यवाही नहीं चलने दूंगा क्योंकि आपको हमारी भावनाओं पर विचार करना चाहिए, क्या मुख्य सचिव ‘यथाशीघ्र’ कह सकता है? उपसभाध्यक्ष महोदय, यह मानवाचित भावना का प्रश्न है, मानव जीवन का और मानव की मान-मर्यादा का प्रश्न है, यदि लखन में बैठा हुआ मुख्य सचिव और अन्य अधिकारी ॉदयहीनता का व्यवहार कर रहे हैं और गृहमंत्रालय उन पर नियंत्रण नहीं रख सकता तो यह सभा, जो देश की सर्वोच्च संस्था है, इस प्रकार के रवैये का विरोध करेगी और वह सुनिश्चित करेगी कि मुख्य सचिव और अन्य अधिकारी, चाहे वे कोई भी हों, इस तरह से व्यवहार न करें और वे इस सर्वोच्च संस्था की सŸाा को समझें।

मेरा एक औचित्य का प्रश्न है। श्री भार्गव तथा 30 अन्य सदस्यों के नाम पर जो प्रस्ताव पहले परिचालित किया गया था, उसमें समिति द्वारा प्रतिवेदन अगले सत्र के प्रथम दिवस तक दिये जाने के लिए कहा गया है। अब श्री भार्गव ने एकदम अपना संशोधित प्रस्ताव रख दिया है। यह न केवल अनुचित है, किन्तु 30 सदस्यों के साथ एक प्रकार से विश्वासघात है। मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि उन्हें मूल प्रस्ताव में, जिसे परिचालित किया गया है, कोई संशोधन करने की अनुमति न दी जाये।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।