भारत सरकार की खाद्य नीति तब बदलेगी जब उत्तर प्रदेश बर्बाद हो जायेगा
संदर्भ: Motion re Food Situation 21 सितम्बर 1964 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर
उपसभाध्यक्ष महोदय, इस खाद्य समस्या के विवाद के प्रारम्भ में हमारे मित्र माननीय श्री गुरुपद स्वामी जी ने कुछ सवाल उठाये और मुझे आश्चर्य है कि कुछ समाजवादी साथियों ने और हमारे मित्र श्री भूपेश गुप्त ने भी इन बातों को उचित नहीं समझा। श्री गुरुपाद स्वामी जी ने कहा था कि किसी भी पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था वाले देश में अगर विकास करना है तो उसमें शुरू में कुछ कठिनाइयों का मुकाबला भी करना पड़ता है तथा विकास के साथ ही साथ कीमतें भी कुछ बढ़ती हैं। मैं नहीं समझता कि अर्थशास्त्र के किसी भी विद्यार्थी के लिए यह एक ऐसी बात होगी जिसके बारे में कोई विवाद हो। हर आदमी जानता है कि पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था से विकास की ओर जाने में जो विकास के काम होते हैं, उनके साथ ही साथ कीमत भी बढ़ती है। लेकिन इन कीमतों के बढ़ने से परेशानी तब होती है जब किसी खास क्षेत्र में बहुत ऊँची कीमत हो जाती है और जिसका असर सारे समाज पर और स्वयं विकास के कार्यों पर पड़ता है।
दूसरी बात माननीय गुरुपाद स्वामी जी ने यह कही कि पुराने समाज से नये समाज में आने पर कुछ कठिनाइयां होती है और कुछ अव्यवस्था होती है। लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ जब माननीय प्रो. मुकुट बिहारी लाल जी ने यह कहा कि जो यह समझते हैं कि एक समाज से दूसरे समाज में जाने पर, एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में पहुंचने पर अव्यवस्था होती है, उनको शासक दल में रहने का अधिकार नहीं है। राजनैतिक शास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते मैं समझता हूं कि जो भी समाजवादी विचारों में आस्था रखता है, जिसने समाजवादी समाज के दृष्टिकोण को समझा है, वह समझता है कि एक समाज से दूसरे समाज की ओर जाने में कुछ कठिनाइयां उपस्थित होती हैं और इन कठिनाइयों को जाने बिना कोई भी समाज प्रगति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता। आज हमारे मुल्क में जो खाद्य समस्या है, उसको दो-तीन दृष्टिकोण से देखना पडे़गा। एक तो खाद्य समस्या हमारे देश के लिए नयी नहीं है, हर साल कुछ क्षेत्रों मे अकाल छाया के रूप में यह समस्या हमारे देश में बनी रहती है। अंग्रेज़ी हुकूमत के जमाने से लेकर आज़ादी के आने वाले दिनों मे भी हमारे सामने यह परेशानी बराबर उठती रही कि कभी भी देश भुखमरी से तबाह हो सकता है और उसके लिए कुछ उपाय किये जाने चाहिए। श्रीमन्, 1952-1953 में एक ऐसी हालत पैदा हुई कि इस देश में खाद्यान्नों पर से कण्ट्रोल उठा लिये गये। अगर हम इसके एक वर्ष पहले और चार वर्ष बाद की परिस्थिति को देखें तो उससे हमें ज्ञात होगा कि किस प्रकार हमारे देश के व्यापारियों ने खाद्य समस्या के साथ खिलवाड़ किया।
सन् 1960 से ही कांग्रेस पार्टी यह कह रही है कि इस मुल्क में खाद्याींा की कमी है और इसका समाधान यह है कि जो भूमि पर खेती करता है, जो भूमि पर मेहनत करता है, जो जमीन को जोतता है, उसे ही उसका मालिक बनाया जाय। यह बात एक बार नहीं, अनेक बार कही गयी है। आज़ादी आने के बाद भी आज़ादी आने के पहले भी। सन् 1936-37 में इस बात को फिर से दोहराया गया कि भूमि सुधारों में तेजी लायी जाये। सन् 1947 के बाद, पंचवर्षीय योजना लागू होने के बाद भी बराबर यह कहा गया है कि भूमि सुधार जितनी जल्दी होंगे, उतना ही खेती में उत्पादन ज्यादा होगा।
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इसके क्रियान्वयन के रास्ते में कौन सी कठिनाई आ जाती है। हमारे देश में बहुत से प्रदेश ऐसे हैं जिन्होंने भूमि सुधार के कामों को अभी तक पूरा नहीं किया। दूसरी पंचवर्षीय योजना के बाद जब-जब खाद्य समस्या के बारे में कोई आयोग या कमीशन बैठा तो उसने भी यही कहा कि भूमि सुधारों को तेजी से लागू किया जाये। कांग्रेस पार्टी ने भी अपने प्रस्तावों में यह कहा कि जमीन का फिर से बंटवारा होना चाहिए जो जमीन पर खेती करते हैं। लेकिन जमीन पर जो स्थिर स्वार्थ के लोग हैं, उनका दबाव इस हुकूमत पर पड़ता है, इस नौकरशाही पर पड़ता है जो सारी सरकार की नीतियों को चलाती है और इस तरह से भूमि सुधार का काम पूरा नहीं होने पाता।
इसी तरह से जो सहकारी कृषि की बात कही गयी उसका भी हमारे बहुत से मित्र विरोध करते हैं और कांगे्रस पार्टी की ओर से यह कहा जाता है कि यह सवाल पार्टियों की परिधि से बाहर है। लेकिन मैं आपके ज़रिये से इस सदन से नम्र निवेदन करना चाहता हूं कि आज की परिस्थिति में जमीन के सवाल का हल सभी वर्ग के लोग मिलकर नहीं कर सकते हैं।
आज कृषि के क्षेत्र में सहकारिता का विरोध हमारे जो मित्र कर रहे हैं, उनका ज़िक्र मैंने पिछले दिनों जब सहकारिता पर विवाद हो रहा था तो किया था। मुझे आश्चर्य है कि श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि वे कृषि क्षेत्र में सहकारिता के विरोधी नहीं है लेकिन परसों जब वे विवाद में हिस्सा ले रहे थे तो उन्होंने सहकारिता आंदोलन के बारे में कहा कि हमें इस पर बड़ी सावधानी से नज़र रखनी चाहिए और काम करना चाहिए क्योंकि इस मुल्क में सहकारिता आंदोलन चलने वाला नहीं है। आखिरकार विरोध किस तरह से किया जाता है? आज जमाने की गति को देखते हुए, समाज की प्रगति को देखते हुए हमारे जनसंघ के मित्र, हमारे स्वतंत्र पार्टी के मित्र सहकारिता आंदोलन का खुले तौर पर विरोध नहीं कर सकते हैं। लेकिन जिन स्वार्थी तत्वों का वे प्रतिनिधित्व करते हैं, उनकी जड़ में यह निहित है कि सहकारिता आंदोलन का वे विरोध करें।
श्रीमन्, हमारे देश में भूमि सुधार नहीं हुआ तो ऐसी हालत में अनाज का उत्पादन कैसे बढ़ेगा? सरकार की ओर से यह वादा किया गया है कि खाद का ज्यादा उत्पादन किया जायेगा और किसानों को खाद दी जायेगी। सरकार के और जो विशेषज्ञ हैं उनका कहना है कि एक एकड़ ज़मीन पर, जो सिचाई की जमीन है, 60 पौंड नाइटन्न्ोजन और 15 पौंड फासफेट्स मिलना चाहिए। इस बारे में बड़े मन्सूबे बांधे गए और कहा गया कि किसानों को फर्टिलाइज़र दिया जायेगा। मुझे याद है कि एक जमाने में किसानो से यह कहा गया था कि सिन्दरी के कारखाने से खाद दी जायेगी और उस समय सिन्दरी के कारखाने का नाम बड़े फश् से लिया जाता था कि सिन्दरी का कारखाना देश का नक्शा बदल देगा। सिन्दरी के कारखाने के आने से अनाज की समस्या हल हो जायेगी।
श्रीमन्, आज से एक महीने पहले मैं आपके साथ सिन्दरी के कारखाने को देखने गया था लेकिन आज हम अभिमान से और उस आवाज़ से सिन्दरी के बारे में कुछ नहीं कह सकते है। आज मैं नहीं जानता कि किन कारणों से, सरकार की गलत नीतियों के कारण या जिन अफ़सरों को वहां पर रखा गया था, उनकी वजह से, वह कारखाना सारे देश के लिए एक कलंक का विषय बन गया है। सिंदरी के कारखाने से हम लोग जो उम्मीद रखते थे वह नाउम्मीदी के रूप में आगे आने वाली है। आज वहां पर केवल नाउम्मीद की ही झलक दिखाई देती है।
श्रीमन्, आज हमारे देश में जो नयी फर्टिलाइज़र फैक्टरियां बन रही हैं, उनके बारे में भी यही हालत है। श्रीमन्, आपके प्रदेश में एक फर्टिलाइज़र फैक्टरी बनाने की योजना तीन साल से चल रही है और इसके लिए स्टाफ भी रख दिया गया है जिस पर लाखों रुपया माहवारी खर्च किया जा रहा है। अभी पिछले साल उस फैक्टरी के लिए जमीन एक्वायर की गयी। एक प्रश्न के उत्तर में यह कहा गया था कि विकास के कार्यों को करने के लिए सीमेंट की कमी है लेकिन उस कारखाने में ब्लैक में जितना सीमेंट चाहिए आपको मिल सकता है। गोरखपुर और महाराष्टन्न् में जो फर्टिलाइज़र फैक्ट्री बन रही है, उनकी क्या प्रगति है, उनका कितना विकास हुआ है, इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। अगर इस देश में फर्टिलाइज़र का उत्पादन ज़्यादा नहीं होगा तो हमारी पैदावार भी नहीं बढ़ेगी। इस सम्बन्ध में जो काम हो रहा है, उसके बारे में जितना कम कहा जाए, उतना अच्छा है। इसी तरह से जो सिचाईं की योजनाएं बनती हैं, उनमें समन्वय नहीं होता है। हम इस सदन में सुनते हैं कि पंजाब, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की हुकूमतें एक साथ नियोजन का काम नहीं करती हैं। आप इस बात को सोचें कि इसका नतीजा क्या होता है? एक तरफ़ तो सिचांई की योजनाएं बर्बाद होती जा रहीं है और दूसरी तरफ़ बाढ़ के पानी से वाटर लागिंग हो जाती है जिससे सारा देश बर्बाद हो जाता है।
भूमि सुधार की बात तो अलग है। उसमें लड़ाई-झगड़ा भी चल रहा है। अब एक नया नारा लगाया गया है कि फिर से शिकमी का कानून लागू किया जाये। हमने सुना है और बड़ी हैरत के साथ सुना है कि हुकूमत इस सम्बन्ध में राय ले रही है विभिींा प्रदेश सरकारों से कि क्या शिकमी देने का हक़ फ़िर से दिया जाये। यह दबाव किन की ओर से पड़ रहा है? यह दबाव उन लोगों की ओर से पड़ रहा है जिनके पास ज़मीनें हैं लेकिन जो ज़मीन के पर मेहनत नहीं करते हैं। जो बड़ी-बड़ी नौकरियां करते हैं, वे कह रहे हैं कि उनकी ज़मीन महफूज़ रखने के लिए अगर आप यह शिकमी का कानून फिर से जायज़ नहीं करार देंगे, तो उत्पादन नहीं बढ़ेगा। क्या इस तरह से कोई अर्थव्यवस्था ठीक चल सकती है? क्या इस तरह से कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ सकता है?
मैं आपसे निवेदन करूं कि इससे उत्पादन बढ़ने वाला नहीं है। अगर उत्पादन बढ़ाना है तो भूमि सुधारों को तेज़ी से करना होगा। अगर उत्पादन बढ़ाना है तो किसानों को खाद देना होगा। अगर उत्पादन बढ़ाना है तो कृषि में सहकारिता के आंदोलन को चलाना होगा। आज 70 फीसदी किसान ऐसे हैं जिनके पास एक और दो एकड़ के बीच जमीन है। वे तब तक तरक्की नहीं कर सकते जब तक वैज्ञानिक ढंग से खेती करने के लिए मिल-जुलकर काम करना न सीखें।
इन सारे क्षेत्रों में काम करने के साथ-साथ सामुदायिक विकास योजनाओं का प्रश्न आता है। सामुदायिक विकास मंत्री इस सम्बंध में आज जवाब दे रहे थे। एक बार नहीं अनेक बार कहा गया कि सामुदायिक विकास योजनाएं कृषि के क्षेत्र में काम ठीक तरह से नहीं कर पातीं। सन् 1947 में जब फूडग्रेस इन्क्वायरी कमेटी बनी तो उस कमेटी ने कहा कि सामुदायिक विकास योजनाओं से जो उम्मीद थी वह पूरी नहीं हुई। यह उम्मीद की गयी थी की आने वाले दिनों में योजनाएं हमारे सिर पर एक आथक बोझ के रूप में लदी हुई हैं और उनसे कृषि के क्षेत्र मे कोई विकास नहीं हुआ है। सन् 1946 में जब कण्ट्रोल हटाये गए थे तो क्या कहा गया था सरकार की ओर से कहा गया था कि कण्ट्रोल कि जो बुराइयां हैं, नियंत्रण की जो बुराइयां है उनको दूर करने के लिए धीरे-धीरे कण्ट्रोल को हटायेंगे। लेकिन हमेशा यह ख्याल रखेंगे कि व्यापार के पर पूंजीपतियों का एकाधिकार न होने पाये और स्पेकुलेशन की वजह से, अन्दाज लगाने की वजह से जो जनता को तकलीफ़ होती है, वह न होने पाये। फिर सन् 1953 से लेकर 1956 तक, इन चार वर्षो में धीरे-धीरे कण्ट्रोल हटाये गए और इन वर्षों में अनाज की कीमतें गिरी रहीं। लेकिन सन् 1956 में ज्यों ही डीकण्ट्रोल पूरी तरह हो गया, उसके बाद कीमतें बढ़नी शुरू हो गईं। सन् 1952-1953 तक व्यापारियों ने जानबूझ कर कीमतों को कम किया। उस ज़माने में बड़े ज़ोरों का यह नारा लगाया गया कि कण्ट्रोल हट जायेंगे, अनियंत्रण हो जायेगा, तो समाज में खुशहाली आ जायेगी।
मैं किसी की बुराई नहीं करना चाहता लेकिन यह अवश्य कहूंगा कि नियोजित अर्थव्यवस्था में इस तरह से अनियंत्रण की व्यवस्था को चला करके सबसे पहली भूल सन् 1953 में की गयी। जब हमारे बफर स्टाक बन रहे थे और जब व्यापार के पर हमारा नियंत्रण चल रहा था, तो उस समय अचानक कण्ट्रोल को तोड़ दिया गया, हटा दिया गया और सन् 1956 से हम फिर से स्पेकुलेटर्स के हाथ में खेलने लगे। तब से बराबर यह परिस्थिति बिगड़ती जा रही है। आज हालत क्या हो रही है? हालत आज यह हो रही है कि यहां पर कहा जाता है कि कण्ट्रोल मत करो फूडग्रेन्स के पर। हमारे जो नये खाद्य मंत्री हैं, उनसे बड़ी उम्मीद थी जब वे आये। मुख्य मंत्रियों का जो सम्मेलन दिल्ली में हुआ था, उसमें उन्होंने यह कहा था कि अनाज का व्यापार किया जायेगा लेकिन मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में नहीं मालूम इनको क्या मंत्र दे दिया गया जिससे इनकी आवाज धीरे-धीरे ठण्डी होने लगी, स्टेट टेन्न्डिंग कारपोरेशन बनाने के सम्बन्ध में। मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि उसका समर्थन कौन करते हैं। उसका समर्थन राजगोपालाचारी जी करते हैं, उसका समर्थन जनसंघ के भाई करते हैं।
जैसा कि माननीय अन्नादुरै जी ने कहा कि इसे व्यापार का एक छोटा सा हिस्सा मान लीजिये कि 30 फीसदी पर सरकार का नियंत्रण रहा और 70 फीसदी पर व्यापारियों का कण्ट्रोल रहा तो फिर क्या होने वाला है? यह व्यवस्था असफ़ल होने वाली है। उसके बाद जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के लोग कहेंगे कि राज्य व्यापार योजना निकम्मी है, इसको हमेशा के लिए इस हिन्दुस्तान में दफना दिया जाना चाहिए। आप जानते है कि ज्यों ही स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन बनाने की बात आई, राजगोपालाचारी जी ने अपने 4 अगस्त के ‘‘स्वराज’’ अख़बार में लिखा कि खाद्य मंत्री साहब वही करने जा रहे हैं जिसको स्वतंत्र पार्टी हमेशा से मानती रही है और जिसका प्रचार करती रही है। मैं यह मानता हूं कि नौकरशाही में भ्रष्टाचार है। इसके साथ मैं यह भी मानता हूं कि जो आज व्यापारी है वो नौकरशाही से ज़्यादा भ्रष्ट हैं। मैं ऐसा मानता हूं कि सरकारी योजनाओं में कमियां हैं। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि जो व्यापारी आज व्यापार चला रहे हैं, उनमें ज्यादा भ्रष्ट लोग हैं, उनमें ज़्यादा ऐसे लोग हैं जिनको समाज की कोई फिर नहीं है।
तो 4 अगस्त ‘‘स्वराज’’ में राजा जी ने लिखा कि माननीय सुब्र२ण्यम जी का वे समर्थन करते हैं। उन्होंने स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन की बात करके उनके मन की बात कर दी। 7 अगस्त को जनसंघ के अखबार ‘‘आर्गेनाइज़र’’ ने लिखा कि वे भी इसका समर्थन करते हैं। माननीय सुब्र२ण्यम साहब ने बड़ी अच्छी बात की है। अब आप देखिये कि मुंशी साहब ने स्वतंत्र पार्टी की मीटिंग में खाद्य समस्या पर प्रस्ताव पेश करते वक़्त क्या कहा। यह 2 अगस्त के अखबार में छपा है। उसमें कहा गया हैः
It was a resolution which was moved by Mr. K. M. Munshi, a former Food Minister, opposing the move towards state trading and the imposition of a ceiling It was a resolution which was moved by Mr. K. M. Munshi, a former Food Minister, opposing the move towards state trading and the imposition of a ceiling on individual land holdings and it said farmers should be allowed to hold bigger and economic holdings to help them increase the production.
महोदय, अगर कण्ट्रोल करना है, नियंत्रण करना है इस व्यापार के पर, तो उसका केवल एक ही तरीका है कि सरकार पूरी तौर से अपने हाथ में अनाज के व्यापार को ले ले। कोई भी देश, कोई भी हुकूमत, कोई भी राज्य उस तरह की धमकी को बर्दाश्त नहीं कर सकता जिस तरह की धमकी कल व्यापारियों ने दिल्ली में अपनी सभा में दी है।
मुझे हैरानी होती है कि कुछ दिन पहले दिल्ली में दो लाख मन अनाज कब्ज़े में किया गया और खाद्य मंत्रालय के लोगों ने कहा कि उन्होंने कमाल किया है, लेकिन तीन दिन के बाद फिर यह कह दिया कि यह वैरिफिकेशन ऑफ़ स्टाक है। सरकार को ऐसी ढुलमुल नीति को छोड़ना चाहिए।
अब, श्रीमान्, आपकी आज्ञा से मैं दो चार मिनट और लूंगा। उत्तर प्रदेश के बारे में। आप इसके लिए मुझे क्षमा करेंगे कि अगर मैं यह कहूं कि हमारा दुर्भाग्य है कि उत्तर प्रदेश के साथ अन्याय हुआ है। आज सवेरे खाद्य मंत्री ने प्रश्नों का जवाब दिया। उन्होंने यह कहा कि गल्ला देते समय केन्द्र सरकार इस बात का ध्यान रखती है कि किसी राज्य की पैदावार क्या है, वहां की आबादी क्या है, वहां की ज़रूरियात क्या है। अगर आप उत्तर प्रदेश के पिछले तीन वर्षों की पैदावार को लें तो ऐसा मालूम होगा कि वहां हर साल पैदावार गिरी है। जहां उत्तर प्रदेश में सन् 1960-61 में 142.53 लाख टन अनाज पैदा हुआ, वहां सन् 1961-62 में 168.35 लाख टन हुआ और सन् 1963-64 में 116.18 लाख टन हुआ। इस तरह से उत्तर प्रदेश में आज 40.66 लाख टन की कमी है। जब हिन्दुस्तान की सरकार से कहा गया कि उत्तर प्रदेश को गल्ला दो तो पहले जो खाद्य मंत्री थे माननीय स्वर्ण सिंह जी, उन्होंने कुछ वादा किया। पहले से वहां 68 हज़ार टन आटा मिलों और 25 हज़ार टन बरेली और मेरठ को मिलाकर पांच बड़े शहरों को दिया जाता था। इसके अतिरिक्त एक लाख टन प्रदेश सरकार को देने की बात थी। लेकिन अचानक नये खाद्य मंत्री आते हैं और वह कहते हैं कि उनका इस तरह का कोई वादा नहीं है। फिर कहा गया कि इतना हम पूरा नहीं कर सकते और 1 लाख 5 हज़ार टन सब मिला करके देने का इन्होंने वादा किया। बड़ी परेशानियों के बाद कहा कि 1 लाख 5 हजार टन के हिसाब से हर महीने में आप को गल्ला भेजा जायेगा लेकिन यह गल्ला भी नहीं दिया गया।
मेरे पास समय नहीं है कि मैं इस बारे में विस्तार से बताऊँ लेकिन जून से अगस्त तक उत्तर प्रदेश की सरकार के साथ खिलवाड़ किया गया। उत्तर प्रदेश की सरकार ने जो जून के महीनें में सस्ते गल्ले की दुकान खोलीं उनको गल्ला नहीं पहुंचा सकी इसलिए कि उत्तर प्रदेश सरकार को जो गल्ला केन्द्र से मिलना चाहिए वह उसे नहीं दिया गया। मैं खाद्य मंत्री से जानना चाहूंगा कि 1 लाख 5 हज़ार टन में से 60 हज़ार टन केवल कबाल टाउंस और दो बड़े शहरों के लिए चाहिए तो बाकी 45 हज़ार टन में सारे उत्तर प्रदेश की कमी को वह कैसे पूरा करेंगे। पटेल आयोग जिसको केन्द्रीय सरकार ने बनाया उसकी यह रिपोर्ट है कि 1960-61 में देवरिया, आज़मगढ़, जौनपुर और गाजीपुर में, केवल चार ज़िलों में करीब 4 लाख टन अनाज की कमी हुई और 1962-63 में हालत और खराब हुई। आज वहां की हालत यह है कि उत्तर प्रदेश की सरकार कहती है कि 25 फीसदी नुकसान हुआ अगर उनकी बात को न भी मानिये तो भी कम से कम 20 फीसदी का नुकसान हुआ ही और इस तरह से वहां तीन लाख या साढ़े तीन लाख टन की और कमी हुई है। तो सात या आठ लाख टन अनाज केवल चार पूर्वी जिलों के लिए चाहिए। अब श्रीमान्, आप ही बताइये 45 हजार टन महीने में जो यह हुकूमत देती है, उससे क्या होता है। आज उत्तर प्रदेश की क्या हालत है। यह आज का टाइम्स ऑफ़ इण्डिया है इसमें खबर निकली है कि देहरादून की घाटी में, पहाड़ी इलाकों में, जो हमारी सीमा पर हैं, 140 रुपया फी प्रति क्ंिवटल चावल बिक रहा है और देहरादून में, शहर में, 120 रुपया फी क्ंिवटल बिक रहा है। आज स्टेट्समैन की खबर है कि इलाहाबाद शहर में 105 रुपया फी क्ंिवटल गेहूं बिक रहा है। यह उत्तर प्रदेश की हालत है। यह सही है कि फूड मिनिस्ट्री ने जो पैम्∂लेट दिया है, मुझे समय होता तो मैं उसको पढ़ता और बताता।
उसमें कहा है कि जहां बम्बई में 104 रुपया क्विंटल है वहां सहारनपुर में 8711 रुपया क्विंटल है, कुछ ऐसा ही है, लेकिन मैं आपको क्या बताऊँ कि उत्तर प्रदेश की क्या दुर्दशा है, सितम्बर के महीने में क्या हालत है।
श्रीमान्, मैं आप को बता दूं कि आज 21 तारीख सितम्बर की हो गयी है और 21 तारीख तक 1 लाख 5 हजार टन में से कुल 66 हज़ार 293 टन अनाज उत्तर प्रदेश को भेजा गया। मैं इस गवर्नमेंट को इस बात के लिए चार्ज करता हूं कि यह हुकूमत जानबूझ करके उत्तर प्रदेश को बर्बाद करना चाहती है। यह मैं मानता हूं कि माननीय खाद्य मंत्री का या यहां की हुकूमत में बड़े ओहदे पर बैठे हुए लोगों को उत्तर प्रदेश की हुकूमत में बैठे हुए लोगों से कोई नाराज़गी है तो उस नाराज़गी को निपटाने का दूसरा रास्ता है लेकिन वहां की गरीब जनता के नाम पर वहां के, उत्तर प्रदेश के खेतिहर मजदूरों के नाम पर, वहां के भूखे लोगों के नाम पर मैं आपसे दरख्वास्त करूंगा कि यह खिलवाड़ आप न करें। 21 तारीख तक सितम्बर के महीने में, श्रीमान्, कुल 33 हज़ार टन अनाज वहां गया है। बरेली के गोदाम को ले लीजिये, एक मन अनाज भी बरेली के गोदाम में नहीं है। अब इन्होंने 541 टन भेजा है जो कल तक बरेली नहीं पहुंचा था। कुल 33 हजार टन 21 तारीख तक गया है। अगर श्रीमान् चाहें तो मैं बता दूं कि किन-किन पोर्टों से कांडला से, विशाखापट्नम से, बम्बई से और किन-किन तारीखों को कितना-कितना अनाज भेजा गया। यह हुकूमत एक तरफ यह खिलवाड़ कर रही है, दूसरी तरफ जब मैंने उत्तर प्रदेश की सरकार के लोगों से बात की तो पता चला कि आज़मगढ़ के कलेक्टर ने उत्तर प्रदेश के चीफ मीनिस्टर को कहा कि अगर हमें गेंहू नहीं दे सकते तो हम को शीरा दो, मोलैसेज़ दो, हम सीरा चाहते है। चीफ मीनिस्टर से जब मैंने पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसा ही है, उनके लिए शीरा भेजा जा रहा है। यही नहीं, श्रीमान्, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पंजाब के मुख्यमंत्री से बात की कि 5 हजार टन टूटा चावल जो जानवरों को खिलाने के काम में आता है वह टूटा हुआ चावल उत्तर प्रदेश के लिए दिया जाये। रामकृष्ण साहब ने वादा किया लेकिन फूड मिनिस्टर साहब, सुब्र२ण्यम साहब चंडीगढ़ जाते है और जा कर कहते हैं कि 5 हजार टन नहीं केवल 2 हजार टन जायेगा। यही नहीं, माननीय लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर पंजाब की हुकूमत ने 25 हज़ार टन गेहूं उत्तर प्रदेश को देना मंज़ूर किया तो सुब्र२ण्यम साहब खत लिखते हैं यू.पी. के चीफ मिनिस्टर को कि क्या आपको अधिकार है कि आप सीधे पंजाब के, मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्रियों से बातचीत करें और फिर जाकर के पंजाब के चीफ मिनिस्टर से खत लिखवाते हैं कि 25 हजार टन नहीं।
श्रीमान्, मैं एक अन्तिम बात कहकर अपनी बात समाप्त करूंगा। यह हुकूमत चलती रहेगी लेकिन याद रखें कि उत्तर प्रदेश के लोगों को बर्बाद नहीं कर सकते। मैं कांग्रेसी दोस्तों से कहूंगा कि जो कांग्रेस पार्टी की ओर से चुनकर आये हैं उनसे कहूंगा याद रखिये कि अगर इन बातों को आप देश के सामने, अपनी सरकार के सामने नहीं रखते तो आने वाले दिनों में क्या हालत होने वाली है यह सोच लें। माननीय वाजपेयी जी ने कहा कि भुखमरी होगी लेकिन मैंने अपनी आँखों से भूख से तड़पते हुए लोगों को देखा है, भूख से बेहोश होते हुए लोगों को देखा है। मैंने प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को खत लिखा कि इस स्थिति का कोई ठीक हल निकालना चाहिए। कहा गया कि हल निकाला गया है। हल यह है कि श्रीमान्, कोटा आधा किया गया। 2 लाख टन उत्तर प्रदेश की सरकार ने मांगा और 1 लाख 5 हजार टन दिया गया। अब 9 दिन बाकी है और अभी तक कुल 33 हजार टन ही इस सरकार ने वहां पर भेजा है।
अन्त में, श्रीमान्, मैं कहूंगा कि जो हुकूमत किसी प्रदेश की, किसी हिस्से की हालत को नहीं जानती, वहां की खुराक की हालत को नहीं जानती उसको हुकूमत में बने रहने का अधिकार नहीं है और खास तौर से मैं श्री सुब्रमण्यम साहब से कहूंगा कि मैं एक किताब को कोट करता लेकिन अब नहीं कर पांगा, वह किताब है-
"Worldwide wheat planning and economic planning in general."
वह इस के प्रिफेस को, पहले पींो को, पहले पैराग्राफ को पढ़ लें कि सुकरात के ज़माने में क्या हुआ। प्लेटो का भाई एथेंस का गवर्नर बनने के लिए सुकरात के पास जाता है और कहता है कि हमारा समर्थन कीजिए। सुकरात ने पूछा कि एथेंस में कितने सिपाही हैं, कितनी छावनियां हैं तो उसने कहा कि उसे ठीक से नहीं मालूम। तीन-चार सवाल उन्होंने और पूछे। अन्त में उन्होंने पूछा कि एथेंस को खिलाने के लिए कितना अींा चाहिए, उसने कहा कि उसे नहीं मालूम तो सुकरात ने कहा कि जिस राजा को यह नहीं मालूम कि उसके राज्य में खिलाने के लिए कितना अींा चाहिए, जिसको वहां की अींा की समस्या मालूम नहीं, उसको हुकूमत में रहने का, उसको स्टेट्समैन कहलाने का कोई अधिकार नहीं। जिस हुकूमत को, जिस वजीर को यह मालूम नहीं कि आज देहरादून की वैली में क्या हालत है, आज़मगढ़ में क्या हो रहा है, देवरिया में, बलिया में क्या हो रहा है, उसे बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। आज से तीन दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे साथ अन्याय किया गया है। तो मैं उत्तर प्रदेश के सदस्यों से खास तौर से और सारे सदन से भी सामान्य रूप से कहूंगा कि उत्तर प्रदेश की इस स्थिति पर विचार करें। कोई भी खाद्य समस्या तब तक ठीक नहीं हो सकती जब तक लोगों की उचित मांगों को पूरा न किया जाये।
श्रीमान्, मुझे विश्वास है कि खाद्य मंत्री, मैंने जो आरोप लगाये हैं उनकी जांच करेंगे। ये मेरे आरोप नहीं हैं, पिछले साल मैंने कहा था कि यहां का जो खाद्य मंत्रालय है वह उत्तर प्रदेश के खिलाफ़ काम करता है। गुड़ आंदोलन के ज़माने में मैंने यह कहा था, उस समय थामस साहब और एक दूसरे वजीर जो अब विदेशी मामलों के वज़ीर हो गए हैं, सरदार स्वर्ण सिंह ने कहा कि किसी भी हालत में गुड़ के पर से नियंत्रण हटेगा, मगर उस के पर से नियंत्रण हटा तब जब उत्तर प्रदेश बर्बाद हो गया। इसी तरह इनकी खाद्य नीति तब बदलेगी जब उत्तर प्रदेश बर्बाद हो जायेगा।
संदर्भ: ।चचतवचतपंजपवद (छवण् 5) ठपससए 1964 हुकूमत भूख की आवाज उठाने वालों के प्रति सहानुभूति रखे, नहीं तो देश जाएगा लोहिया के हाथ में 29 सितम्बर 1964 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखरउपाध्यक्ष महोदय, मैं इस अवसर पर केवल दो बातें आपके द्वारा इस सदन के सामने रखना चाहता हूं। पिछले दिनों खाद्य समस्या पर जब चर्चा हुई, उस चर्चा में जो विवाद उठा, उसका जवाब देते हुए हमारे माननीय खाद्य मंत्री ने यह कहा था कि उत्तर प्रदेश की स्थिति कुछ खराब है, मगर उसकी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी वहां के प्रशासन के पर हैऋ क्योंकि उन्होंने सजग हो करके काम नहीं किया। मै नहीं जानता कि किन विचारों से प्रेरित होकर खाद्य मंत्री ने यह बात कही थी। जिस तरह के भाषण हुए, उस विवाद में मैं नहीं पडूंगा, लेकिन जो उन्होंने कहा उससे स्पष्ट परिलक्षित होता हैकि खाद्य मंत्री जी उत्तर प्रदेश कीसमस्याओं के बारे में उतने उत्सुक नहीं थे, जितनी राजनैतिक सफाई देने के बारे में उनकी उत्सुकता जान पड़ती थी मैं वित्त मंत्री जी के ज़रिये उनसे निवेदन करूंगा कि वे आज के अखबारों की रिपोर्ट पढ़ लें। उत्तराखण्ड, जो तिब्बत से लगा हुआ हिन्दुस्तान का क्षेत्र है, उसमें खाद्य समस्या बहुत जटिल हो गई है। यही हालत पूर्वी उत्तर प्रदेश की है। अच्छा होगा कि खाद्य मंत्री और भारत सरकार इस बारे में कुछ सोचे और वहां के बारे में कुछ करन की कोशिश करें।
महोदय, इस खाद्य समस्या को ले कर जो आंदोलन सारे देश में चल रहे हैं, मैं सफाई के तौर पर यह कह दूंकि मेरा उन आंदोलनों के साथ कोई सम्बंध नहीं है। मैं उन आंदोलनों को उचित नहीं मानता जिस रूप में वे किये जा रहे हैं। इस आंदोलन के प्रणेता डा. राम मनोहर लोहिया ने जो यह कहा कि सारे देश में अराजकता पैदा कर दो, मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो इस बात को पसन्द करे और न मैं इन विचारों का समर्थक हूं। लेकिन साथ ही मैं अदब के साथ यह अर्ज़ करूंगा कि बहुत ऐसे लोग जो देशभक्त हैं, जो देश सेवक है, जो समाज की सेवा करना चाहते हैं वे अगर जनता की मांगो को ले करके कोई आंदोलन करते हैं, तो उनके प्रति सरकार का क्या रुख होना चाहिए।
आज ही सवेरे इसी सदन के एक माननीय सदस्य, श्री शिशिर कुमार जी ने मुझको टेलिफोन पर बताया कि माननीय वित्त मंत्री जी के ज़िला आरा में आंदोलन करने वाले लोगों को सडक पर पकड़-पकड़ करके और घसीट करके मारा गया। मैं किसी आंदोलन का समर्थन करूं, लेकिन किसी भी प्रदेश की सरकार आंदोलन करने वालों के साथ इस तरह का व्यवहार, जैसा कि आरा ज़िले में हुआ कि सत्याग्रह करने वालों के साथ हुआ है, जो लोग दुकानों पर सामान खरीद रहे थे या जो होटलों के अंदर बैठे हुए थे, उनको भी पकड़ करके मारा गया, मैं उचित नहीं कह सकता। इसी प्रकार माननीय प्रिय गुप्ता जी को एक जेल से दूसरी जेल में दो दिनों तक घूमना पड़ा। एक जेल वालों ने कहा कि हम नहीं रखेंगे और दूसरी जेल वालों ने कहा कि हम नहीं रखेंगे। बिहार के पूर्णिया ज़िले में गोली चली इसी तरह से हमारे मुल्क गोविन्द रेड्डी ने बताया कि मैसूर में गोलियां चलीं और भी कई जगहों पर गोलिया चली। यह सब क्या हो रहा है। मैं समझता हूं कि कहीं पर गुण्डागिरी हो रही हो, तो उसका दमन होना चाहिए, लेकिन खास तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं का अगर कोई प्रदेश सरकार इस तरह से दमन करती हो, तो भारत सरकार इसको चुप नहीं देख सकती और न देखना चाहिए। मैं वित्त मंत्री जी से निवेदन करूंगा कि वह बिहार की सरकार को कहें कि भूखी जनता की मांग को उठाने वाले लोगों को कभी संगीनों के बल से नहीं दबाया जा सकता और इस तरह का जो काम करते हैं, वह न देश की सेवा करते हैं, न समाज की सेवा करते हैं और न समाज के लिए कोई मर्यादा से आते है। जो कुछ आज बिहार में हो रहा है, जो कुछ पूणया में हो रहा है गृहमंत्री जी आ गए हैं, मैं उनसे निवेदन करूगां कि सरकार इन बातों का अन्त करे अन्यथा आप जाने-अनजाने में डा. राम मनोहर लोहिया के हाथों में इस देश की व्यवस्था को देने जा रहे हैं और इस बात के लिए मजबूर कर रहे हैं कि सारे देश में अराजकता फैले। मैं चाहूंगा कि हुकूमत भूख की आवाज उठाने वालों के प्रति ज़्यादा सहानुभूति से, सौहार्द से, ज़्यादा उदारता से और ज़्यादा साहस से काम ले, यह नहीं कि अपनी संकुचित मनोवृत्ति का प्रदर्शन इस बात में करे कि आंदोलनकारियों को हमने दबा दिया।
खादी ग्रामोद्योग भवन में भारी गड़बड़ी, कारवाई आवश्यक: एक बात जो मैं यह कहना चाहता था और दूसरी बात मैं आपके ज़रिये यह कहना चाहता हूं कि आजकल दिल्ली में खादी ग्रामोद्योग भवन में क्या हो रहा है। खादी कमीशन के बारे में, लेबर के सिलसिले में आज बात आई, मैंने यहां के लेबर मिनिस्टर को भी निवेदन किया है-खादी ग्रामोद्योग भवन जो दिल्ली के अंदर है वहां पर एक लेबर यूनियन है, आईएन.टी.यू.सी. की यूनियन है, कम्यूनिस्ट यूनियन नहीं है, सोशलिस्ट यूनियन नहीं है, यह एक रिकगनाइज्ड यूनियन है और वहां के मंत्री को बर्खास्त करने के लिए वहां के मैनेजर ने एक जाली मुकदमा बनाया। महोदया, मेरे पास कापियां हैं, फोटोस्टेट कापियां हैं घूस दी गयी वहां के कार्यकताओं को, खादी भवन के पैसे में से कि वे उस मंत्री के खिलाफ शहादत दें और उस शहादत के बल के बल पर उसको आज डिसमिसल की नोटिस दी जा रही है। खादी ग्रामोद्योग भवन दिल्ली में, यह हो रहा है। दो वर्ष से मैं यह कह रहा हूं, उस समय जो मंत्री थे, उनसे मैंने कहा था, लेकिन आज भी इस खादी ग्रामोद्योग भवन में जालसाजी हो रही है, चोरी हो रही है, कोई सुनने वाला नहीं है। आज सवेरे प्रश्न के समय मुझे आश्चर्य हुआ कि प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं और दूसरे सदन में सोशल सिक्योरिटी के मंत्री ने कहा कि खादी कमीशन में गड़बड़िया हैं, मुकदमें चल रहे हैं, जांच हो रही है। उन गड़बड़ियों का अगर कोई ज़िक्र लेबर यूनियन का आदमी करता है, श्रमिक आंदोलन का नेता करता है, जो कि आई.एनटी.यू.सी का है, तो उसे निकाला जाता है। मैं माननीय अर्जुन अरोड़ा से कहना चाहूंगा कि वे मजदूर नेता हैं, वह खादी भवन जाये और वहां जाकर मजदूरों की हालत को देखें। आज उसको डिसमिस करते समय मैनेजर क्या कहता है? वह कहता है कि डिसमिस कर देंगे और सुप्रीम कोर्ट तक सरकार के पैसे से लडें़गे और उसके बाद अगर कम्पेनसेशन देना पड़ेगा, मुआवजा देना पड़ेगा तो वह हमारे घर से नहीं जायेगा। उस वक़्त फिर माननीय वित्त मंत्री जी सप्लीमेंटरी डिमांड्स लेकर आयेंगे और कहेंगे कि लेबर मिनिस्ट्री को या खादी ग्रामोद्योग भवन को यह रुपया दे दोऋ क्योंकि मुआवजा देना है। तो मेरा निवेदन है कि इन बातों की जो जड़ है उसको देखना चाहिए। मैं मुबारकबाद ज़रूर दूंगा कि श्रम विभाग के जो उपमंत्री हैऋ उन्होंने मुझसे वादा किया कि वह इस मामले को देखेंगे। इसलिए अर्ज कर रहा हूं। भरोसा होता तो इस बात को यहां नहीं कहता। मुझे आश्चर्य है कि जिस समय यह पोल खुलना शुरू हुई तो एक बहुत बड़े नेता जो आज खादी कमीशन के चेयरमैन हैं, उन्होंने कहा कि सोशल सिक्योरिटी के अंदर से इस डिपार्टमेंट को निकालो। तो यह काम किया जा रहा है और इसके पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है। मैं वित्त मंत्री से कहूंगा कि आपने इसको करोड़ों रुपया दिया है मैं नहीं जानता, लेकिन शायद 90 करोड़ या 95 करोड़ रुपया तृतीय पंचवर्षीय योजना में इस खादी कमीश्न को आपने दिया है तो जरा इनके पर नज़र रखिए, ज़रा इनको कुछ रोकने की कोशिश कीजिए।
महोदया, एक दूसरी बात और कहूंगा। जो भ्रष्टाचार हो रहा है और चल रहा है उस सिलसिले में एक बात का और ज़िक्र करना चाहूंगा जो कि मेरी नज़र में एक दूसरी तरह का भ्रष्टाचार है। अभी जो रिहैबिलिटेशन मिनिस्ट्री है, इसके बारे में एक दिन और बहस हुई, काफी झड़प हुई और आज फिर माननीय भूपेश गुप्त जी ने बहुत गम्भीर आरोप लगाए। मैं माननीय रिहैबिलिटेशन मिनिस्टर से कहना चाहूंगा कि उन बातों की सफाई होनी चाहिए। मैं उनसे इस बात से एकदम सहमत हूं कि कोई भी सरकारी अफ़सर चाहे वह कितना ही बड़ा हो, अगर इस्तीफा देने की धमकी दे कर सरकार से कोई काम कराना चाहता है, तो कोई भी मंत्री जिसमें पुरुषार्थ होगा, शौर्य होगा, इसको बर्दाश्त नहीं करेगा, लेकिन अगर उस आदमी ने कोई आरोप लगाये हैं, तो उसकी जांच होनी चाहिए। मुझे आश्चर्य होता है कि क्यों मंत्रिमण्डल के लोग, सरकार के लोग चुप रह जायें? उस विभाग के सचिव के खिलाफ़ आरोप लगाये गए, वहां के दूसरे ज्वांइट सक्रेटरी कौन साहब हैं, मुझे पता नहीं, जानसन या क्या हैं के खिलाफ बातें की गयीं। तो ये जो बातें आई हैं, इनकी सफाई होनी चाहिए। मैं नहीं जानता कि उनके पीछे क्या है, कोई और झगड़ा है या कोई और बात है। लेकिन इसकी सफाई होनी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक चोर बाजारी: अन्त में एक बात और कहूंगा। हमारे मित्र चैरड़िया साहब ने कहा कि एजुकेशन मिनिस्ट्री ने पिछले दिनों बयान दिया था, मैं बड़े अदब के साथ अर्ज करूंगा कि यह बयान देना कुछ उचित नहीं है। माननीय लोकनाथ मिश्र ने सही बात कही कि माननीय नन्दा जी, जो गृह मंत्री हैं, वह कहते हैं कि भ्रष्टाचार है और सूचना मंत्री कहती हैं कि भ्रष्टाचार नहीं है, हमारा देश ऐसा ही है, जैसा कि और देश हैं और अब हमारी माननीय शिक्षा मंत्री कहती हैं कि सबसे बुरी अगर चोर बाज़ारी कहीं हैं, तो शिक्षा मंत्रालय में है या शिक्षा के क्षेत्र में है। मैं नही जानता कि जिस आदमी में ज़रा भी नैतिकता होगाी, वह ऐसे विभाग का मंत्री रहना कैसे पसन्द करेगा, जिसमें सबसे बुरी तरह की चोर बाजारी होती हो।
विभाग में नहीं, तो शिक्षा के क्षेत्र में सही, मगर शिक्षा में अगर सबसे ज़्यादा चोर बाज़ारी होती है तो किसी भी व्यक्ति के लिए जो यह बयान देता है कि एक मिनट के लिए भी वहां बना रहना ठीक नहीं है।
चालीस एम.पी. एक पूंजीपति की जेब में गृहमंत्री का कथन राष्टन्न् का अपमान: माननीय गृह मंत्री ने लखनऊ में बयान दिया कि 40 पार्लियामेंट के मेम्बरों को एक कैपिटलिस्ट अपने जेब में रखे हुए है और उन्होंने कहा कि उस कैपिटलिस्ट ने मुझसे, माननीय गृहमंत्री से, यह बात कही। उसके बाद अख़बारों में यह बात छपी। यू.एनआई. के रिपोर्टर ने जो बहुत सचरित्र और भले रिपोर्टर है...
The Minister of State in the Ministry of Home Affairs (Shri Jaisukhlal Hathi) : It has been contradicted. You know it perhaps.
वह कंट्राडिक्शन भी मेरे पास है। दूसरे दिन माननीय मंत्री जी दिल्ली से उसका कंट्राडिक्शन करते हैं, उसका खण्डन करते हैं और उस खण्डन में मैं पूरा तो नहीं पढूंगा उस बात का खण्डन करते हुए वह कहते हैं:
"In the same context, I said further that an industrialist helped 43, Members of Parliament in the election, and not that they were under his control."
यह बात गृह मंत्री ने किसके लिए कही, कौन वह 43 मेम्बर हैं? मैं इसको अपने लिए अपमान समझता हूं, मैं इसको भारतीय संसद् के लिए अपमान समझता हूं कि भारतवर्ष का गृह मंत्री कहे कि 43 पार्लियामेंट के मेम्बर पूंजीपतियांे के बनाये हुए हैं या पूंजीपतियों के हाथ में हैं। मैं गृह मंत्री की यह नैतिक ज़िम्मेदारी समझता हूं कि वह जांच करायें और यह बतायें कि वह कौन कैपिटलिस्ट हैं, वह कौन पूंजीपति हैं जिन्होंने इस तरह की हिम्मत की है कि गृह मंत्री से कहा कि हमने 43 मेम्बरों को खरीद रखा है या ये हमारी जेब के अंदर हैं। महोदया, अगर यह नहीं होता है तो मैं समझता हूं कि यह सारे भारतीय राष्टन्न् के लिए अपमान है,यह सारे संसद सदस्यों के प्रति अवहेलना की भावना है। ये जो सारे व्यापार होते हैं, काम होते हैं ये चलते रहेंगे, तो इस देश में कोई भी व्यवस्था, कोई भी शासन ठीक ढंग से नहीं चल सकता।
अन्त में मैं फिर आपसे यही निवेदन करना चाहूंगा की मैंने जो दो, तीन बातें कही हैं उन पर हमारे वित्त मंत्री जी ध्यान दें और खास तौर से खादी ग्रामोद्योग भवन के बारे में ध्यान दें, वहां की जो श्रमिक समस्या है उसको देखें और बतायें कि क्या हो रहा है। बिहार में जो कुछ हुआ है उससे किसी आदमी की गर्दन शर्म से झुक जानी चाहिए, कोई शौर्य की बात नहीं है। वहां हुआ क्या? डा. राममनोहर लोहिया ने कहा कि अठ्ठनिया और चवन्नियां कमेटियां बनाकर गल्ला बांट लो, बाद में पता चला कि वहां तो 47 नये पैसे प्रति किलो पर सस्ते गल्ले की दुकानों पर गल्ला बिकता है, जो कि अठ्ठनियां और चवन्नियां योजना से कम हुआ। डा. राम मनोहर लोहिया तो वहां जाते नहीं, इन आंदोलनों में अच्छे लोग, भले लोग, जिनको देश के प्रति प्रेम है, सुलझे हुए लोग जाते हैं, गरीबों की मांग को रखने के लिए और वहां अगर माननीय मंत्री जी के प्रदेश की सरकार उनके साथ ज़्यादती करती है, तो इसकी खोज खबर उनको लेनी चाहिए और मुझे विश्वास है कि वह इस दिशा में ध्यान देंगे।