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इस अक्षमता और अज्ञान के साथ परराष्टन्न् मंत्रालय कभी कामयाब नहीं हो सकता

संदर्भ: Motion re allegations against certain Chief Ministers and Other Ministers of State Governments 31 मार्च 1965 में राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, वाजपेयी जी ने इस सम्बन्ध में जो भावना व्यक्त की है मैं उनका आदर करता हूं। नागालैण्ड में हमारे 32 पुलिस के जवान जिसमें दो-तीन अधिकारी भी हैं, आज जेल के अंदर हैं। उनको जेल में भेजने के पहले इन सारी बातों को ध्यान में नहीं रखा गया जिनको रखा जाना चाहिए थे। ये लोग हमारे देश की सुरक्षा कर रहे हैं, जो कठिन जलवायु और दुर्गम पहाड़ियों में जमे हुए हैं। मैं चाहूंगा कि हमारा परराष्टन्न् मंत्रालय उनके मामले में जानकारी करे और इस बात की कोशिश करेगा कि उनको न्याय मिल सके। उनके साथ जो उचित व्यवहार होना चाहिए वो उनको मिलेगा।

दूसरी बात जो मैं कहना चाहता हूं और जिसके बारे में परराष्टन्न् मंत्रालय से स्पष्टीकरण चाहता हूं वह यह है कि पीस मिशन जो काम कर रहा है, चाहे उसमें जयप्रकाश नारायण जी हों, चाहें माइकल स्काट हों, चाहे चालिहा जी हों, उन्होंने इस काम को लिया और इस काम को लेने में भारत सरकार की रज़ामन्दी है। वे लोग वहां पर जो काम कर रहे हैं वह भारत सरकार की रज़ामन्दी से कर रहे हैं और जिन कठिन परिस्थितियों में वे काम कर रहे हैं, जितना किया जाना चाहिए, उतना वे लोग कर रह हैं। यद्यपि यह बात सही है कि पीस मिशन के एक सदस्य माइकल स्काट साहब ने कुछ ऐसे काम किये है जिसका हम कभी भी समर्थन नहीं कर सकते हैं। लेकिन इससे भी बड़े दुःख की बात यह है कि परराष्टन्न् मंत्रालय के पर नागालैण्ड की समस्या को चलाने की जिम्मेदारी है। अभी हमारे माननीय सदस्य श्री गुजराल ने इसके लिए परराष्टन्न् मंत्रालय को बधाई दी है, लेकिन जिस तरह से परराष्टन्न् मंत्रालय की कार्य करने की क्षमता है उसको देखकर मैं ऐसा समझता हूं कि नागालैण्ड की समस्या को सुलझाने में एक मंत्रालय कभी भी कामयाब नहीं हो सकता है। मेरा मतलब यह है कि जब कोई कठिन समस्या का समाध् ाान करना होता है तो मंत्रिमण्डल को और मंत्रालय को मिलकर काम करना चाहिए और हर एक को इसके बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। लेकिन आज परराष्टन्न् मंत्रालय इस तरह से कायम कर रहा है कि किसी कठिन समस्या का समाधान करना तो दूर रहा साध् ाारण बातों का निर्वाह करना भी मुश्किल जान पड़ता है। जब मैं परराष्टन्न् मंत्रालय के बारे में साधारण बात कहता हूं तो मेरा कोई आक्षेप या कोई संकेत किसी अधिकारी की ओर नहीं है, मेरा संकेत तो मंत्रियों की ओर है। जिस तरह से परराष्टन्न् मंत्रालय के मंत्री इस सदन में जवाब देते हैं उससे हमें आश्चर्य होता है। परराष्टन्न् मंत्रालय ने जिस तरह का गुरुतर भार लिया है उसकी कार्यक्षमता को देखकर ऐसा लगता है कि वह कोई अच्छा उदाहरण औरों के लिए प्रस्तुत नहीं कर रहा है।

अभी पिछले दिनों नागालैण्ड की समस्या के बारे में जब चर्चा हो रही थी तब मैंने तीन बार माननीय उपमंत्री महोदया का ध्यान इस ओर आœष्ट किया था कि हिन्दुस्तान और बर्मा की सीमा के बीच आने जाने में कोई रोक नहीं है? दोनों सीमाओं की जो सिविल पापुलेशन है, नागरिक लोग हैं, क्या वे आज जा सकते हैं? मेरे तीन बार चेतावनी देने के बाद भी माननीय उपमंत्री महोदया ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन 7 दिन के बाद एक दूसरे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसी परम्परा है। जब मैंने अध्यक्ष का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया, तो अध्यक्ष महोदय ने कहा कि इस मामले की जानकारी करूंगा और माननीय मंत्री से कहूंगा की वे इस बारे में सदन में वक्तव्य दें। लेकिन आज तक परराष्टन्न् मंत्रालय की ओर से कोई वक्तव्य नहीं दिया गया है। आज भी मैंने परराष्टन्न् मंत्री जी का ध्यान एक सवाल की ओर खींचा और कहा कि मामला गम्भीर है, तो इस पर माननीय मंत्री जी ने कहा कि इसमें गम्भीरता क्या है? मैं मानता हूं कि वे सरकार के एक उच्च पदाधिकारी हैं लेकिन इस सदन के अंदर जब कोई सदस्य एक बात कहता है तो उसका एक महत्व होता है। महोदया, मैं आपका ध्यान उस प्रश्न की ओर दिलाना चाहता हूं जिसको लेकर हमारे मंत्री जी आज इस सदन में यह बिल लाये हैं। मैं यह बतलाना चाहता हूं कि हमारे परराष्टन्न् मंत्रालय की काम करने की क्या क्षमता है। 19 तारीख को जब राज्य मंत्री जी अपना बयान दे रही थीं तो मैंने सवाल पूछा था और अगर आप इजाज़त दें तो मैं उसको पढ़ देना चाहता हूं:

"This question is very serious and i should like further clarification from the hon. Minister of state in the Ministry of External Affairs. Is it not a fact that the passport authorities objected to the procedure and they said that such passports should not be allowed to Shiekh Abdullah and his entourage because they have not mentioned their nationality? The decision was taken at the highest level in the country and the rules for procedure for granting passports were waived by the highest man in the country. If so, what was the consideration and what was the political thing involved, because Sheikh Abdullah has been indulging in anti-Indian propaganda outside? Is it the intention of Government to grant passport by going out of their way to such persons who are indulging in anti-Indian propaganda? Is it the political expediency by which the Government is going to be guided?"

Madam, you were kind enough to seek further clarification

माफ कीजिएगा, उपाध्यक्ष महोदया, फिर आपने कहा।

Is, it the general practice that any one could fill in the column in this vague manner?

फिर जवाब श्रीमती लक्ष्मी मेनन जी क्या देती है:

"No, it is not the general practice because the column specially asks whether you are a citizen by birth, by registration, by naturalization, etc. Against that column sheikh Abdullah and his party have written: Kashmiri Muslims. The matter was referred it to the commonwealth Secretary, the prime Minister and the Foreign Minister. It is on their authority. That the passport was granted."

मैं आपसे कहता हूं, महोदया, कि यह इस सदन का अपमान है कि जान बूझकर परराष्टन्न् मंत्रालय के दो मंत्री मिलजुल कर इस सदन की प्रतिष्ठा के विरुह् और इस सदन की मर्यादा का ख्याल किये बिना ऐसा जवाब देते हैं। जब उनसे कहा जाता है कि अपने वक्तव्यों को सुधार लीजिये, तो हम को गम्भीरता दिखायी जाती है और हम को यह सिखाया जाता है कि कौन मामला कितनी जिम्मेदारी का है। मैं आपसे कहूंगा, महोदया, कि चाहे कोई विधेयक पास कर लिया जाय, चाहे कोई अधिकार इस परराष्टन्न् मंत्रालय को दे दिये जायें, इस निष्क्रियता इस अक्षमता इस अज्ञान के साथ अगर यह मंत्रालय चलता रहा, तो परराष्टन्न् की बड़ी समस्याओं को छोड़ दीजिए, यह नागालैण्ड की समस्या या कोई छोटी से छोटी समस्या इस अज्ञान के वातावरण में, इस अक्षमता के वातावरण में और इस निष्क्रियता के वातावरण में कभी सुलझने वाली नहीं है। इसलिए मैं परराष्ट्र मंत्री महोदय से कहूंगा कि वे अपने मंत्रालय में कम से कम मंत्री स्तर पर कार्य करने की क्षमता और कार्य करने की प्रणाली में परिवर्तन करें, यदि वे चाहते है कि अच्छी तरह से और सही ढंग से यह मंत्रालय काम कर सके।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।