प्रधानमंत्री हाउस का बुलेटिन तैयार करने वाला रातो रात बन गया बिड़लाओं का सेवक
संदर्भ: विनियोग (संख्या 5) विधेयक, 1968 28 दिसम्बर 1968 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर
उपसभापति महोदय, भारत जैसे अविकसित देश में जहां लाखों लोग भूखे मर रहे हैं, यदि प्राथमिकताएं निश्चित न की गयीं, यदि सीमित संसाधनों का उचित दिशा में प्रयोग नहीं किया गया तो मैं नहीं जानता कि इस संसदीय संस्था के लिए क्या आशा की जा सकती है और इस देश के लाखों लोगों के लिए क्या आशा की जा सकती है।
मैं माननीय सदस्य श्री लोकनाथ मिश्र को सलाह देता हूं कि वह सरकार पर अपना प्रभाव डालें कि वह आयोजन को न त्यागें बल्कि और दृढ़तापूर्वक उस कार्य को आगे बढ़ायें।
यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बात के बावजूद कि प्रधानमंत्री योजना आयोग की अध्यक्ष हैं, यह सरकार योजना आयोग का पथ प्रदर्शन करने में असफल रही है। आयोजन को त्यागना भारत के संविधान को विफल करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
हाल ही में श्री राजगोपालाचारी ने कहा था कि कश्मीर को तीन बड़ी शक्तियों यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के नियंत्रण में रखा जाना चाहिए। कांग्रेस दल, श्रीमती इन्दिरा गांधी और श्री मोरारजी देसाई से भी अधिक स्वतंत्र दल के यह वृह् नेता विदेशी शक्तियों पर पूरी तरह से निर्भर करते हैं। भारत सरकार में जो लोग अपने को हाई कमान मानते हैं, वे जो विचार रखते हैं, वे विचार भारत सरकार के विचार नहीं हैं और कांग्रेस दल के वास्तविक आदर्शों का प्रतिनिधित्व वे लोग नहीं करते हैं जो श्री लोकनाथ मिश्र के विचार में हैं।
श्री गोपालाचारी ने जो सुझाव दिया है उससे अधिक लज्जाजनक कोई सुझाव नहीं हो सकता है। वह वृह् हो गए हैं और देश को उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। वे हमारी निंदा के भी अधिकारी नहीं है। यह बहुत अच्छा है कि जम्मू और कश्मीर कांग्रेस के प्रधान श्री मीर कासिम ने एक कड़ा वक्तव्य जारी किया है। इस विचार की निंदा करनी चाहिए तथा इसे तत्काल खत्म कर देना चाहिए।
श्री लोकनाथ मिश्र को उन लोगों की निंदा नहीं करनी चाहिए जिन्होंने अच्छा काम किया है। श्री हिम्मत सिंह ने ब्रिटिश इण्डिया कारपोरेशन के कतिपय कदाचारों को भारत सरकार तथा देश के समक्ष रखकर, अभूतपूर्व काम किया है।
जो व्यक्ति प्रधानमंत्री हाउस के बुलेटिन तैयार करता था, अब वह रातोंरात बिड़लाओं के लिए बुलेटिन लिखने के लिए बिड़लाओं की सेवा में चला गया है। मुझे पता नहीं कि वैधानिक रूप से यह सही है या नहीं। इससे सम्पूर्ण देश में बुरा प्रभाव पड़ा है और यह विभेद करना कठिन हो गया है कि बिड़लाओं का प्रभाव कहां पर खत्म होता है और भारत सरकार का प्रभाव कहां पर शुरू होता है।
यह सब उच्च क्षेत्रों में कमियों के कारण हुआ है कि हमें समाजवाद के विरुह् और दल और सरकार की आधारभूत नीतियों के विरुह् तमाम अपशब्द सुनने को मिलते हैं।