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कांग्रेस राज की जगह अव्यवस्था या उर्पीव की स्थिति को ठीक समझना गलत

संदर्भ: चुनावों में अधिक धन के व्यय व सरकारी साधनों के उपयोग को रोकने के सम्बंध में संकल्प 2 दिसम्बर 1966 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभाध्यक्ष महोदय, मैं श्री भूपेश गुप्त की भावनाओं का जिनके आधार पर उन्होंने इस संकल्प को प्रस्तुत किया है, आदर करता हूं। मैं उनकी इस बात से सहमत हूं कि देश में बड़े-बड़े पूंजीपति तथा राजा-महाराजा संसदीय प्रजातंत्र पर हावी होने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। मैं इस बात को भी स्वीकार करता हूं कि देश में प्रतिकारात्मक तत्वों को बलवती नहीं होने देना चाहिए तथा सभी प्रकार के विदेशी हस्तक्षेप को रोकना चाहिए। परन्तु मैं उनकी इस बात को समझने में असमर्थ हूं कि देश में किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये नज़रबंद नहीं करना चाहिए।

मैं जानता हूं कि सी.आई.ए. विश्व के सभी भागों में कार्य कर रही है और यह सम्भव है कि वह इस देश में भी कार्य कर रही हो। परन्तु आज जिस रूप में हमारा संविधान विद्यमान है उसके अनुसार सरकार यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि कोई विशेष व्यक्ति देश के खिलाफ जासूसी का कार्य कर रहा है, अदालत में उन आरोपों को सदा साबित नहीं कर सकती है। इस प्रकार न्याय के नाम पर ऐसे खतरनाक तत्वों को छूट देना, देश तथा प्रजातंत्रीय शासन व्यवस्था के हित में नहीं होगा।

श्री भूपेश गुप्त इस बात को मानने से इंकार नहीं कर सकते हैं कि वह (मार्क्सवादी) साम्यवादी दल की कतिपय गतिविधियों का विरोध करते रहे हैं और उन्हें इस सम्बन्ध में सदा असफलता का ही सामना करना पड़ा है जिसके फलस्वरूप उन्हें अपने पुराने साथियों से अलग होना पड़ा है।

उपसभाध्यक्ष महोदय, हमारे लोकतंत्रीय शासन में कतिपय त्रुटियां हैं और हमारा कर्तव्य है कि हम उन त्रुटियों को दूर करें। इस सभा के कुछ ज़िम्मेदार सदस्यों तथा कुछ अन्य लोगों का, जो समाजवादी होने का दावा करते हैं, विचार है कि यह संसदीय लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था निरर्थक है तथा नये समाज को जन्म देने हेतु इसे समाप्त कर देना चाहिए। कांग्रेस राज्य की अपेक्षा वे अव्यवस्था और उर्पीव की स्थिति को अच्छा समझते हैं। मेरे विचार में ऐसे विचार रखना ठीक नहीं है।

किसी संसद सदस्य को या अपने किसी साथी को गिर∂तार करना कांग्रेस दल के किसी भी विवेकशील सदस्य के लिए गर्व या प्रसन्नता का विषय नहीं है। परन्तु कर्तव्यपालन की विवशता के कारण उन्हें ऐसे अप्रिय कार्य करने पड़ते हैं।

मैं श्री भूपेश गुप्त से निवेदन करना चाहता हूं कि हम इस समय संकट की स्थिति से गुजर रहे हैं और यदि वह वास्तव में प्रजातंत्रात्मक और प्रगतिशील तत्वों को प्रोत्साहन देना चाहते हैं तो उन्हें अपना मार्ग भी बदलना होगा। मेरा श्री गोड़े मुराहरि से भी निवेदन है कि उन जैसे समाजवादी विचारों के व्यक्ति के लिए प्रतिकारात्मक शक्तियों के लिए आंसू बहाना उचित नहीं हैं।

किसी भी राष्ट्र के भाग्य का निर्णय उस राष्ट्र के लोगों की भावनाओं के द्वारा ही किया जा सकता है। जनता की इच्छा के सामने किसी दल विशेष की इच्छा कोई महत्व नहीं रखती है। कोई भी दल लोगों की भावनाओं की उपेक्षा नहीं कर सकता है। जो कोई व्यक्ति ऐसा करने की कोशिश करेगा वह कुचल दिया जायेगा, चाहे वह किसी भी दल से सम्बह् क्यों न हो यदि श्री भूपेश गुप्त वास्तव में कोई कार्य करना चाहते हैं तो मेरे विचार में उन्हें लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम सम्बंधी यह संशोधन प्रस्तुत करना चाहिए कि जिन व्यक्तियों को प्रिवीपर्स दिया जाता, उन्हें चुनाव लड़ने की आज्ञा नहीं दी जानी चाहिए।

अंत में, मैं श्री गुप्त और श्री मुराहरि से यह प्रार्थना करता हूं कि यदि वे वास्तव में देश में प्रजातंत्रात्मक शासन को बनाये रखना चाहते हैं और इस बात के इच्छुक हैं कि हमारे चुनावों में कोई विदेशी हस्तक्षेप न हो, तो उन्हें प्रतिकारात्मक शक्तियों का विरोध करना चाहिए तथा प्रजातंत्रात्मक शिष्टाचार का पालन करना चाहिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।