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ठेकेदारों को संसद की सदस्यता से वंचित करना मूल अधिकारों का उल्लंघन

संदर्भ: लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक, 1966 5 दिसम्बर 1966 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


महोदय, मैं अपने मित्र श्री रेड्डी द्वारा रखे गए संशोधनों का समर्थन करता हूं, संयुक्त प्रवर समिति द्वारा इन दो संशोधनों पर व्यापक रूप से विचार किया गया था। मुझे मंत्री महोदय तथा अपने कुछ वरिष्ठ साथियों के इस तर्क को सुनकर आश्चर्य हुआ है कि यदि ठेकेदारों को संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य कर दिया जायेगा तो वह मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा। रेलवे के छोटे ठेकेदारों और फेरीवालों को चुनाव लड़ने के लिए पहले ही मना किया जा चुका है और लाखों सरकारी कर्मचारियों को, जो केवल नाम-मात्र का वेतन पा रहे हैं, उन्हें भी इस संसद का सदस्य बनने की अनुमति नहीं है। इसे लेकर विधि मंत्री ने कहा है कि इंग्लैण्ड में ठेकेदारों को सदस्य बनाने की अनुमति है, किन्तु इंग्लैण्ड के संसदीय इतिहास में ऐसे कितने मामले हुए हैं जिनमें ठेकेदारों ने उस देश के संसदीय जीवन को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने का प्रयत्न किया है?

उपसभापति महोदय, यह विचित्र प्रतीत हो सकता है, किन्तु देश के सबसे बड़े व्यापारी श्री घनश्यामदास बिड़ला ने यहां तक कह दिया है कि लोक लेखा समिति के अध्यक्ष को संसद में प्रवेश नहीं लेने दिया जायेगा। क्या इंग्लैण्ड के संसदीय इतिहास में कभी किसी बड़े व्यापारी को लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के विरुह् चुनाव लड़ने का साहस हुआ है। देश का जो सामाजिक वातावरण इस समय है उसे देखते हुए यह सुनिश्चित करना संसद का कर्तव्य है कि बड़े-बड़े व्यापारी संसदीय लोकतंत्र को प्रभावित न कर सकें। वह समय आ गया है जब हम ऐसे लोगों को संसद या विधान मंडलों की सदस्यता प्राप्त करने के लिए अयोग्य ठहरा दें जो सरकार के साथ ठेका करके मुनाफा कमा रहे हैं अथवा जिन्हें सरकार वित्तीय अथवा अन्य प्रकार की सहायता दे रही है।

महोदय, मैं अपने मित्र श्री रेड्डी द्वारा रखे गए संशोधनों का समर्थन करता हूं, संयुक्त प्रवर समिति द्वारा इन दो संशोधनों पर व्यापक रूप से विचार किया गया था। मुझे मंत्री महोदय तथा अपने कुछ वरिष्ठ साथियों के इस तर्क को सुनकर आश्चर्य हुआ है कि यदि ठेकेदारों को संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य कर दिया जायेगा तो वह मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा। रेलवे के छोटे ठेकेदारों और फेरीवालों को चुनाव लड़ने के लिए पहले ही मना किया जा चुका है और लाखों सरकारी कर्मचारियों को, जो केवल नाम-मात्र का वेतन पा रहे हैं, उन्हें भी इस संसद का सदस्य बनने की अनुमति नहीं है। इसे लेकर विधि मंत्री ने कहा है कि इंग्लैण्ड में ठेकेदारों को सदस्य बनाने की अनुमति है, किन्तु इंग्लैण्ड के संसदीय इतिहास में ऐसे कितने मामले हुए हैं जिनमें ठेकेदारों ने उस देश के संसदीय जीवन को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने का प्रयत्न किया है?

उपसभापति महोदय, यह विचित्र प्रतीत हो सकता है, किन्तु देश के सबसे बड़े व्यापारी श्री घनश्यामदास बिड़ला ने यहां तक कह दिया है कि लोक लेखा समिति के अध्यक्ष को संसद में प्रवेश नहीं लेने दिया जायेगा। क्या इंग्लैण्ड के संसदीय इतिहास में कभी किसी बड़े व्यापारी को लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के विरुह् चुनाव लड़ने का साहस हुआ है। देश का जो सामाजिक वातावरण इस समय है उसे देखते हुए यह सुनिश्चित करना संसद का कर्तव्य है कि बड़े-बड़े व्यापारी संसदीय लोकतंत्र को प्रभावित न कर सकें। वह समय आ गया है जब हम ऐसे लोगों को संसद या विधान मंडलों की सदस्यता प्राप्त करने के लिए अयोग्य ठहरा दें जो सरकार के साथ ठेका करके मुनाफा कमा रहे हैं अथवा जिन्हें सरकार वित्तीय अथवा अन्य प्रकार की सहायता दे रही है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।