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राष्ट्र का भविष्य बनाने वालों को जेल जाने के लिए विवश होना दुर्भाग्यपूर्ण

संदर्भ: Short duration discussion 18 दिसम्बर 1968 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


माननीय उपाध्यक्ष जी, उत्तर प्रदेश के अध्यापकों की हड़ताल का सवाल कई बार इस सदन के समक्ष आ चुका है। यह अत्यंत दुख की बात है कि शिक्षक, जो हमारी भावी पीढ़ी को बनाने वाले हैं, जिनके पर राष्ट्र का भविष्य निर्भर करता है, उनको कोई ऐसा कदम उठाना पड़े जिसके कारण उन्हें कारागार में जाने के लिए विवश होना पडे़। महोदय, आप जानते हैं आज से नहीं सभ्यता के इतिहास के प्रारम्भ से जब-जब किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति के पर काले बादल मंडराये है तब-तब इन दारूलउलूमों ने इन विद्यामंदिरों ने एक नयी ज्योति, प्रकाश की, आशा की नयी किरण प्रदान की है। यदि इन विद्यामंदिरों के अध्यापकों के दिल खुद बैठे हों, उसमें अंधेरा छाया हो, उनके लिए भविष्य की कोई आशा न हो और उनका जीवन पीड़ामय हो तो फिर यह न केवल कुछ परिवारों का प्रश्न रह जाता है, न केवल कुछ अध्यापकों का सवाल रह जाता है बल्कि सम्पूर्ण देश के इतिहास और उसके भविष्य का प्रश्न इससे सम्बह् हो जाता है।

महोदय, मैं इस समस्या को इस रूप में आपके समक्ष नहीं रखना चाहता कि इसके आर्थिक पहलू क्या हैं, आथक पहलू के बारे में हमारे मित्र राजनारायण जी ने तफ़सील में विवरण दिया है, मैं तो केवल आपके द्वारा सरकार का ध्यान इसके संास्œतिक और मानवीय पहलू की ओर ले जाना चाहता हूं।

महोदय, उत्तर प्रदेश अपने देश का सबसे बड़ा प्रदेश है और न केवल शिक्षा के क्षेत्र में यह सबसे पिछड़ा प्रदेश है बल्कि शिक्षा जगत में जो कार्य करने वाले कर्मचारी हैं चाहें वह यूनिवसटी के अध्यापक हांे, चाहे माध्यमिक स्कूलों के अध्यापक हों, चाहें प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने वाले अध्यापक हों, चाहें इन विद्यालयों में काम करने वाले क्लर्क या चपरासी हों इनका वेतन सारे देश के वेतन से नीचे है, कम है। जब यह प्रश्न बार-बार उठाया जाता है तो मैंने कई बार बहुत उत्तरदायी लोगों से और मुझे लज्जा के साथ कहना पड़ता है कि केंद्रीय सरकार के उच्चाधिकारियों से कहते हुए सुना है कि उत्तर प्रदेश कुछ और नहीं कर सकता सिवाय इसके कि वह प्रधानमंत्री देश को दे सकता है। न केवल यहां का अध्यापक पिछड़ा है, यहां की आथक व्यवस्था पिछड़ी है बल्कि शायद उत्तर प्रदेश सबसे कमज़ोर प्रदेश इस माने में भी रहा है कि अपने प्रदेश पीड़ित और दलित वर्गों के लिए केंद्रीय सरकार पर हम दवाब नहीं डाल सकते हैं कि अधिक से अधिक सहायता और अनुदान उनको दिया जाये। इसका परिणाम यह है, महोदय, कि उत्तर प्रदेश सारे देश से पंचवर्षीय योजनाओं के क्रम में एक पंचवर्षीय योजना पीछे है और उसका सबसे बड़ा प्रभाव शिक्षा जगत पर पड़ा है और उसी का प्रभाव आज अध्यापकों के वेतन-क्रम और उनके जीवन पर पड़ा हुआ है।

अब, कुछ आंकड़े दिये जाते हैं और उन आंकड़ों के पर भी विवाद है। यह विवाद कोई छोटा-मोटा विवाद नहीं है। उत्तर प्रदेश की सरकार यह कहती है कि अगर अध्यापकों की सारी मांगे मान ली जाये तो पांच और छह करोड़ रुपये खर्च होंगे और अध्यापक संघ यह कहता है कि अगर मान ली जाये तो दो करोड़ पचास लाख या दो करोड़ पांच लाख रुपया खर्च होगा और यह विवाद कोई एक दिन से नहीं चल रहा है। पिछले एक पखवारे से तो कम-से-कम मैं जानता हूं कि चल रहा है। महोदय, जब मैं कई बार यह कहता हूं सदन के सामने कि उत्तर प्रदेश का प्रशासन जो है वह टूट गया है, बिखर गया है तो हमारे कुछ मित्र ऐसा मानते है कि मैं कोई अतिशयोक्ति करता हूं लेकिन क्या आप यह सोच सकते हैं कि आज के युग में 15 दिन तक या एक महीने तक यह फैसला न हो सके कि अध्यापक संघ के लोग सही हैं। मैं माननीय शिक्षा मंत्री जी से कहूंगा कि क्या यह सम्भव नहीं है कि अध्यापक संघ के लोगों को और वहां के अधिकारियों को बुला लिया जाये और उनसे बात की जाये, क्योंकि जितने आंकडे़ हैं सब देखे जा सकते हैं कि वह सही हैं या नहीं, लेकिन यह छोटा सा काम नहीं होता और विवाद चलता है, अध्यापकों को जेल में रखने के लिए आसानी से कारण मिल जाते हैं।।

मैं आपसे कहना चाहूंगा कि उत्तर प्रदेश का शासन इतना कठोर ॉदय हो गया है, मैं क्या कहूं, मैं नहीं कह सकता, कठोर ॉदय क्या इतना जड़वत हो गया है कि उसमें कोई कार्यक्षमता नहीं, उसमें कोई सोचने की शक्ति नहीं रह गयी है और, महोदय, मैं बहुत ही उत्तरदायित्व के साथ और बहुत गम्भीरता पूर्वक ज़िम्मेदारी के साथ यह कहता हूं कि इस सबका उत्तरदायित्व वहां के राज्यपाल महोदय के पर है। मैं यह बात कोई अचानक नहीं कहता हूं। राज्यपाल महोदय एक बड़े मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। वह ऐसा समझते हैं कि जो अधिकार-चाहे वह कांग्रेस का मुख्यमंत्री रहा हो-जो अधिकार वह लोग नहीं इस्तेमाल कर सके उसका प्रयोग माननीय गोपाल रेड्डी जी, जो आपके मित्र हैं महोदय, वह प्रयोग करना चाहते हैं। उनके सामने शासन केवल दमन की शक्तियों का समुच्चय है और दूसरी तरफ उनके लिए शासन कला को बढ़ावा देने के लिए है। या तो अध्यापक जेल में भेजा जा सकता है या गाज़ियाबाद में कलाकारों या नर्तकों के ज़रिये सिनेमाघर या स्टूडियो बनाने की योजना कर सकता है। मालूम होता है कि जयशंकर प्रसाद का नाटक इन्होंने पढ़ा है जिसमें वीर एक कान से तलवार की झनझनाहट सुनता है और दूसरे कान से नूपुर की झंकार सुनता है।

हमारे राज्यपाल या तो कलाप्रेमी हो सकते हैं या कलापारखियों को उनके राज्य में लाखों रुपये और सारी सुविधाएं मिल सकती हैं या दूसरी तरफ 8000 अध्यापकों के पर लाठी और गोली चलाने के लिए और जेल भेजने के लिए पुलिस की दमन शक्ति का उपयोग किया जा सकता है। महोदया, यह एक अत्यंत वेदनामय स्थिति है और इस स्थिति का अंत करने के लिए केंद्रीय सरकार यह नहीं कह सकती कि उत्तर प्रदेश का शासन निकम्मा है इसलिए वह कुछ निर्णय लेने में असमर्थ है। आज वहां राष्ट्रपति शासन है, वहां की शिक्षा के लिए माननीय त्रिगुण सेन जी, माननीय भागवत झा आज़ाद और माननीय शेर सिंह ज़िम्मेदार हैं। वे यह नहीं कह सकते कि चूंकि माननीय गोपाल रेड्डी साहब या जो वहां के शिक्षा सचिव होंगे मैं उसका नाम भी नहीं जानता वह कुछ नहीं कर रहे हैं इसलिए हम भी चुपचाप बैठे हैं।

महोदय, आपको हैरानी होगी जानकर कि उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी का महंगाई भत्ता बढ़ता है तो अगर अध्यापक कहता है उसी हिसाब से हमारा महंगाई भत्ता बढ़ाओ तो वह नहीं माना जायेगा। क्यों नहीं माना जाता है? क्या अध्यापक के लिए महंगाई नहीं आती है? आप खुद विचार करें। मैं दूसरा प्रश्न करता हूं सरकार से। अध्यापकों की मांग है कि जो वेतन हमें मिलता है उसको सरकारी खज़ाने के ज़रिये से दीजिए। स्थिति क्या है, कुछ पैसा विद्यालयों की फीस से, शुल्क से, वह विद्यालय एकत्रित करते हैं और बाकी जो पैसा बचता है, जो जरूरी होता है, आवश्यक होता है, उसको सरकारी खज़ाने में दिया जाता है। एड के रूप में, अनुदान के रूप में सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने एक आंकड़ा दिया कि जितना पैसा फीस में मिलता है और जितना अनुदान में मिलता है अगर उस सबको जोड़ा जाये और उसकी तकसीम की जाये अध्यापकों के बीच में, तो दो-ढ़ाई करोड़ रुपये की बचत होगी, यही नहीं उसमें 10 फीसदी कांटिजेंसी के लिए और दूसरे ‘खर्चों’ के लिए काटकर बचेगा। कहा क्या वहां के शिक्षा सचिव ने? मुझे बताया गया कि 30 फीसदी हम काटकर रखेंगे। अगर 30 फीसदी भी काटे, महोदय, तब भी वह धनराशि कम नहीं पड़ती है लेकिन सारे सूबे में सारे देश में कहीं भी रकम 30 फीसदी नहीं काटी जाती। कुछ प्रदेशों में 16 फीसदी है कुछ प्रदेशों में कला विभागों के लिए 10 फीसदी और विज्ञान विभागों के लिए 20 फीसदी है, लेकिन उत्तर प्रदेश का शासन 30 फीसदी रखना चाहता है। अब क्या कहा जाता है। लोग यह जानते है कि इन आंकड़ों में तो धनराशि इतनी है लेकिन वास्तविकता में यह धनराशि इतनी नहीं है। अगर यह धनराशि वास्तविकता में उतनी नहीं है तो इसका उत्तरदायित्व किसके पर है? इसका मतलब यह हुआ कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सामने जब आप बजट का तखमीना लेकर जाते हैं तो गलत आंकड़े पेश करके आप बजट स्वीकार कराते हैं। वहां का शिक्षा सचिव, वहां के राज्यपाल महोदय, यह नहीं जानते कि अध्यापकों की बातों को काटने के लिए जो तर्क वह देते हैं उसका साफ परिणाम यह निकलता है कि वहां की विधान सभा से पैसा लेने के लिए, बजट मंज़ूर कराने के लिए आप गलत आंकड़े विधान सभा के सामने प्रस्तुत करते हैं। अगर यह करते हैं तो इससे बड़ा भयंकर अपराध जनतांत्रिक संसदीय समाज में कुछ और नहीं हो सकता।

महोदय, मैं दो-एक प्रश्नों की ओर आपका ध्यान आœष्ट करूंगा। जी.टी.सीअध्यापक यह कहते हैं कि उनको सी.टी. दिया जाये। शिक्षा विभाग ने कहा कि पांच वर्षों तक जो जी.टी.सी. पढ़ा चुका है उसको कोई विद्यालय अपने यहां सी.टी. ग्रेड में रख सकता है लेकिन अगर वही अध्यापक अपने प्रारम्भिक स्कूल में रहे तो उसे सीटी. ग्रेड नहीं मिलेगा। ऐसे उदाहरण से आप स्वयं सोच सकते हैं महोदय, कि कोई मतिभ्रम किसी को हो गया है तभी इस तरह का विचार लोगों के सामने रखता है। महोदय, मैं आपके द्वारा एक और निवेदन रखना चाहूंगा कि वहां के जो क्लर्क हैं, जो चैथी श्रेणी के कर्मचारी हैं, उनकी तनख्वाहों की हालत भी बहुत बुरी है, उनका कोई ग्रेड नहीं, उनका कोई वेतन क्रम नहीं, जितने पर चाहा रख लिया। सारे देश में सामन्तशाही खत्म हो गयी लेकिन उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में सामन्तशाही आज भी विद्यमान है और सामन्तवादी परम्पराओं के पोषक राज्यपाल महोदय उससे शायद अत्यंत प्रसींा हैं क्योंकि सामंती शासन के कुछ भष्मावशेष वहां ज्यों के त्यों विद्यमान रहते हैं। किसी भी राज्य में या किसी भी राष्ट्र में जहां गरीब कर्मचारी दुःखी हो, जहां पर अध्यापक, जहां के शिक्षक असंतोष की आग में झुलस रहे हों, उस देश के लिए कोई भविष्य नहीं है। महोदय मैं आपसे यही निवेदन करूंगा कि आज हमारे भारत के भविष्य के पर जो काली घटा गहरा रही है उसमें एक और अंधकार फैलाने का काम उत्तर प्रदेश के अंदर हो रहा है। 18000 अध्यापकों को कारा की दीवार के पीछे रखकर कोई भी शासन अपने को जनतंत्रीय शासन कहने का दावा नहीं कर सकता। मैं मुबारकबाद देता हूं उन 8 हजार अध्यापकों को या जैसा माननीय राजनारायण जी कह रहे है 12,000 अध्यापक जेल गए, उन्होंने शान्ति बनाये रखी, उन्होंने व्यवस्था बनाए रखी, उन्होंने पुरानी परम्परा को कायम रखा। मुझे विश्वास है, इतिहास के इस रुख को अगर उत्तर प्रदेश का शासन समझेगा। अगर वह नहीं समझ रहा है तो मैं आपके द्वारा महोदय, माननीय प्रधानमंत्री जी से और शिक्षा मंत्री जी से निवेदन करूंगा कि उत्तर प्रदेश के अध्यापकों की मांगों को अविलम्ब स्वीकार किया जाये और उन्हें जेल की दीवार से मुक्त किया जाए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।