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राज्यकमयों को भी समानता के आधार पर वेतन के लिए बने कानून

संदर्भ: अविलम्बनीय लोक महत्व के विषय पर 21 अगस्त 1968 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष महोदय, मैं फिर से श्री एम.एस. धारिया की बात दोहराना चाहता हूं कि यह एक गम्भीर मामला है। जब भी भारत सरकार पर प्रभाव डाला जाता है, वे केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के वेतन तथा महंगाई भत्ते में वृह् िकर देते हैं लेकिन एक ही नगर में कार्य कर रहे राज्य सरकार के कर्मचारियों को उसका लाभ नहीं मिलता। इसके परिणाम स्वरूप राज्य कर्मचारियों में ईष्र्या उत्पन्न होती है। संवैधानिक न सही लेकिन अन्तर मनोवैज्ञानिक है। संविधान के अनुसार देश के विकास अथवा आथक व्यवस्था में जब भी असंतुलन हो, केंद्रीय सरकार का कर्तव्य है कि उसे दूर करे, संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार भी राष्ट्रीय महत्व के किसी भी मामले में राज्य से सम्बह् विषय पर राज्य सभा दो तिहाई मतों द्वारा कानून पास कर सकती है। यदि राज्य सभा यह संकल्प पारित करे कि समान परिस्थितियों में कार्य करने वाले राज्य सरकार तथा केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों को समान वेतन व भत्ते दिये जाने चाहिए तो यह समस्या हल हो सकती है। क्या मंत्री महोदय इस प्रकार का कानून पारित करने के लिए कदम उठाएंगे कि वेतन समानता के आधार पर दिए जाने चाहिए?


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।