Phone: 1-800-123-4567

Email:info@example.com

फलस्वरूप उत्पन्न स्थिति के बारे में प्रस्ताव चेकोस्लोवाकिया की स्वंतत्रता की रक्षा का होना चाहिए पुरज़ोर समर्थन

संदर्भ: सोवियत संघ आदि द्वारा चेकोस्लोवाकिया में प्रवेश के 23 अगस्त 1968 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


महोदय, श्री लोकनाथ मिश्र ने एक बहुत ही गम्भीर सवाल उठाया है। माननीय प्रधानमंत्री ने इस संसद को तथा राष्ट्र को आश्वासन दिया था कि भारत आक्रमण की निंदा करने में अडिग रहेगा अथवा उन्होंने जो भी शब्द प्रयुक्त किये हों और हम देखेंगे कि चेकोस्लोवाकिया की स्वतंत्रता, इज्ज़त और गरिमा की रक्षा करने के लिए उसके पक्ष का प्रभावपूर्ण तरीके से समर्थन करेंगे। जो कुछ भी लोकनाथ मिश्र ने कहा है, यदि वह सही है तो यह सारा वाद-विवाद तब तक निरर्थक है जब तक कि इस का बात स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता है।

महोदय, जो लोग वैदेशिक कार्य मंत्रालय को चला रहे हैं, उनकी इस बात को सुनकर आश्चर्य होता है कि निंदा का प्रस्ताव पारित करना गलता होगा क्योंकि ऐसा करना इस महान संसद की परम्पराओं के विपरीत होगा।

इस गुट-निरपेक्षता शब्द को अपनी वैदेशिक नीति के मूल आधार के रूप में बार-बार दोहराने से बढ़कर और कोई मूर्खता नहीं हो सकती। पण्डित नेहरू ने यह कभी नहीं सोचा था कि गुट-निरपेक्षता हमारी वैदेशिक नीति का मूल आधार है। यह एक प्रविधि हैऋ यह एक कूट कौशल है। हमारी वैदेशिक नीति के मूल आधार पंाच महान सिद्धांतों, पंचशील में प्रतिपादित किये गए हैं। वारसा संधि वाले पांच देशों की सेवाओं का चेकोस्लोवाकिया के राज्य क्षेत्र में घुस जाना एक ऐसा मामला है जिस पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए। यदि सरकार चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण की निंदा में हिचकती है या ढुलमुल है तो वह महात्मा गांधी तथा पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों से हटने की दोषी है। पण्डित नेहरू ने एक बार कहा था कि यदि कोई असामान्य स्थिति पैदा होती है तो देश के रोष और गुस्से का इज़हार इस सभा के ज़रिये होना चाहिए। इस सभा को इस महान देश की जनता के गुस्से को इज़हार देने का अवसर न देने से यह सरकार कर्तव्यच्युत होने की दोषी है।

माक्र्सवाद अथवा लेनिनवाद का बड़े-से-बड़ा प्रतिपादक भी यह दावा नहीं करेगा कि वारसा संधि वाले देशों की सेनाओं द्वारा चेकोस्लोवाकिया में जो कुछ किया जा रहा है वह राष्ट्रों के आत्मनिर्णय के अधिकार के सिद्धांत से, जिसका प्रतिपादन समाजवादी लेनिन द्वारा किया गया, किसी प्रकार भी संगत है। मैं उन लोगों में से हूं जो यह समझते हैं कि संसार के किसी भाग में किसी शक्ति द्वारा आक्रमण या हस्तक्षेप किया जाना शोचनीय, निन्दनीय, गहत कार्य है। मैंने वियतनाम और कतिपय अन्य स्थानों में की गयी अमेरिकी कार्रवाई की निन्दा की थी। परन्तु क्या कोई व्यक्ति यह कह सकता है कि यदि सोवियत संघ तथा वारसा सन्धि वाले अन्य देशों के टैंक और मशीनगने चेकोस्लोवाकिया में घुसेंगी तो वे केवल फूल बरसायेंगी, मार डालने वाली गोलियां नही? यदि संसार भर में समाजवादियों ने यह दृष्टिकोण अपनाया तो यह समाजवादी इतिहास की सबसे अधिक निंदनीय, दुर्भाग्यपूर्ण और दुःखद घटना होगी। एक भारतीय के रूप में जन्म लेने के कारण, गांधी तथा नेहरू के देश में पैदा होने के कारण, मेरा मन वर्तमान सरकार के व्यवहार पर पीड़ा और लज्जा की ही भावना से अमिभत है।


अनुक्रमणिका

संपर्क सूत्र

फोन नम्बर: +91-9415905877
ई-मेल: mlcyashwant@gmail.com
Website: www.chandrashekharji.com

दारुल सफा 36/37 बी-ब्लाक,
विधानसभा मार्ग,
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश

फोटो गैलरी

चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।