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कृषि क्षेत्र में सहकारी आंदोलन को कभी जनसंघ या स्वतंत्र पार्टी का समर्थन नहीं मिल सकता

संदर्भ: Appointment of a Parliamentory Committee to enquire into Agricultural Cooperatives 11 सितम्बर 1964 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष महोदय, मैं इस प्रस्ताव के सम्बंध में कुछ कहना नहीं चाहता था लेकिन हमारे माननीय दो सदस्यों ने जो भाषण दिये प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल और श्री जीरामचंद्रन ने, उसके बाद मैने यह आवश्यक समझा कि मैं इस सम्बंध में अपने विचार व्यक्त करूं।

आज देश में सबसे बड़ी समस्या यह है कि जो भी वास्तविक समस्याएं राष्ट्र के सामने हैं उनका समाधान करने के लिए हम लोग स्पष्ट रूप में सामने नहीं आते। मैं ऐसा समझता हूं कि सहकारी आंदोलन और खास तौर से कृषि क्षेत्र में जिसकी आज चर्चा की जा रही है, वह मौलिक रूप से एक राजनैतिक आंदोलन है। अगर स्वतंत्र पार्टी के लोग उसका विरोध करते हैं तो अचेतन रूप में उसका विरोध नहीं करते हैं।

गांधी विचारक होने के नाते श्री जी. रामचंद्रन यह जरूर समझते होंगे कि इसको राजनीतिक परिधि के अन्दर न लाया जाये लेकिन मैं समझता हूं कि कृषि के क्षेत्र में सहकारिता को लाया जाये तो इससे संपत्ति के अधिकार के सम्बन्धों में मूलभूत परिवर्तन होता है। कृषि के क्षेत्र में पिछले हज़ारों वर्षों से क्या होता रहा है। एक तरफ 60 फीसदी से अधिक लोग ऐसे हैं जिनके पास एक एकड़ से कम ज़मीन है, दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जिनके पास हज़ारों एकड़ के फार्म हैं। एक एकड़ से कम ज़मीन वालों के हक में सहकारिता आंदोलन उत्पादन को बढ़ाने वाला है। जो छोटा किसान है, जो गरीब लोग हैं, जिनकी आकांक्षाएं वर्षों से दबी हुई हैं, जिनका विकास रुका हुआ है, उनको बढ़ाने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं है, सिवाय इसके कि विज्ञान द्वारा जो साध् ान उपलब्ध हुए हैं उनको कृषि के क्षेत्र में लगाने के लिए सहकारिता आंदोलन का आश्रय लें। यदि वे सहकारिता आंदोलन का आश्रय लेते हैं और यह आंदोलन सफल होता है तो फिर नतीजा यह होगा कि बड़े लोग जिनका एकाधिकार बना हुआ है उनके अधिकारों पर कुठाराघात होगा। माननीय दह्याभाई पटेल और उनकी पार्टी एक निहित स्वार्थों का प्रतिनिधित्व करती है। उनका व्यक्तिगत विचार अच्छा हो सकता है, उनकी भावनाएं अच्छी हो सकती हैं लेकिन क्या वजह है, जैसा माननीय रामचंद्रन जी ने कहा, कि सहकारी आंदोलन का दूसरे क्षेत्रों में उतना विरोध नहीं किया जाता, जितना कृषि के क्षेत्र में किया जाता है। बड़ी और छोटी जोत के मालिक के अंदर यह भावना पैदा करने की कोशिश होती है मैं नहीं जानता जनसंघ के भाई यहां है कि नहीं ये स्वतंत्र पार्टी के भाई, जनसंघ पार्टी के भाई सारे देश में यह भावना फैला रहे हैं कि कृषि के क्षेत्र में सहकारिता हुई तो किसानों का स्वामित्व उसके हाथों में चला जायेगा। स्वामित्व का झगड़ा किन के लिए है? स्वामित्व का झगड़ा इस देश में कृषि के क्षेत्र में केवल दो फीसदी लोग के लिए है जिनका प्रतिनिधित्व दह्याभाई पटेल करते हैं, उनकी पार्टी करती है, जनसंघ के लोग करते हैं।

मुझे अफसोस है कि कांग्रेस के लोग इस मौलिक सैद्धांतिक सवाल पर सही माने में अमल करने की बजाय खुद बगलें झाकतें है। मुझे आश्चर्य तब हुआ जब प्रो. मुकुट बिहारी लाल जी जो जनतांत्रिक समाजवादी आंदोलन के नेता हैं और समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य हैं, उन्होंने यह कहा कि इसका राजनीति से कोई मतलब नहीं है। राजनीति से मतलब किस चीज़ का है, किस चीज़ का नहीं है, यह अंदाज़ लगाना बड़ा मुश्किल है लेकिन एक बात मैं आपके ज़रिेये बताना चाहता हंू कि जहां भी स्थिर स्वार्थों के खिलाफ कोई कदम अगर देर से भी असर डालने वाला होगा तो उसके खिलाफ स्थिर स्वार्थ वाले लोग उठ खड़े होते हैं। उस आंदोलन को चलाने के लिए जो लोग आगे हैं, उनके कदम डगमगा रहे हैं। अगर कांग्रेस हुकूमत से मुझे कोई बुनियादी ऐतराज है तो इससे ऐतराज है कि कांग्रेस के लोग इन सैद्धांतिक सवालों को गरीब जनता के पास क्यों नहीं रखते? अगर सहकार चाहिये, सब लोगों का सहयोग चाहिए तो किसका सहयोग चाहिए? अगर कृषि के क्षेत्र में सहकारी आंदोलन को कामयाब बनाना चाहते हैं तो आपको कभी स्वंतत्र पार्टी का सहयोग नहीं मिल सकता। यह सहयोग का झूठा नारा, यह सहयोग के बारे में मिथ्याचार जितनी जल्द इस देश में बन्द हो उतनी ही जल्द इसमें कामयाबी होगी।

महोदय, मैं यह कहना चाहता हूं कि इस नारे का असर क्या होता है? जैसा रामर्चंी जी ने कहा, गांधीवादी विचारक लोग यह कहते हैं कि राजनीति को जितनी दूर रखा जाये उतना ही अच्छा है लेकिन बदकिस्मती यह है कि एक समाजवादी होने के नाते मैं यह मानता हूं कि राजनीति का प्रभाव, उसका असर, इंसान के जीवन के हर पहलू पर होता है और खास तौर पर जहां हम आथक समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं, जहां हम गरीबों की माली हालत दुरुस्त करना चाहते हैं, वहां पर राजनीति अपने सबसे कुत्सित रूप में आती है। एक तरफ स्थिर स्वार्थ के लोग हैं, दूसरे वे हैं जिनके सामने नये समाज के निमार्ण का सपना है, जो नये समाज की रचना चाहते हैं। यदि यह राजनैतिक दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं है तो फिर सहकारी आंदोलन की स्थिति क्या होगी वही स्थिति जो आज माननीय डे साहब के नेतृत्व में हो रही है। माननीय डे साहब बयान देते हैं कि सहकारी आंदोलन ठीक ढंग से नहीं चल रहा है तो कांग्रेस के भाई मान लेते हैं। अभी दह्याभाई पटेल उह्हरण दे रहे थे कांग्रेस के बड़े नेताओं के। लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं ने क्या कभी सोचा है कि यह बात क्यों होती है? कृषि के क्षेत्र में सहकारी आंदोलन सफल इसलिए नहीं होता है कि जो गरीब हैं, जो गावों के अंदर रहने वाला है, उसके पास बुह् िनहीं है, अपना हित समझने की शक्ति नहीं है। जिनके पास यह समझने की शक्ति है, वे अपने हित को समझकर, अपनी भलाई को समझ करके अपने इन्टरेस्ट को समझकर उस गरीब के पास जाते हैं और कहते हैं, सब कुछ करो किन्तु कृषि के क्षेत्र में सहकारिता को मत आने दो।

आज दह्याभाई पटेल उसी स्वार्थ का, उसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुए जब वे चुनौती देते हैं तो हमारी तरफ से जो लोग समाजवादी समाज बनाना चाहते हैं, जो सहकारिता आंदोलन को चलाना चाहते हैं और रामचंद्रन जी ऐसे लोग गांधीवादी परम्परा में पले हुए हैं, वे मानव की सद्रवृतियों की चर्चा करते हैं। लेकिन समाज का निर्माण होता है निश्चित वर्गों के सम्बंधों के आधार पर। आज हमारे देश में दो वर्ग हैं, एक शोषित वर्ग है, दूसरा शोषक वर्ग। शोषित और शोषक वर्ग का कोई सहयोग ऐसे मामलों में नहीं हो सकता जहां पर प्रापर्टी रिलेशन बदलने वाले हैं।

महोदय, मैं यही कहना चाहता हूं कि जब तक कांग्रेस पार्टी और शासन इस बात को समझने के लिए नहीं तैयार है, तब तक यह सहकारिता आंदोलन कभी राष्ट्रीय आंदोलन नहीं हो सकता। जिस तरह से एक ज़माने में लोगों को समझाने की ज़रूरत थी कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद अगर सबसे बड़ा अहित किसी का करता है, तो गांवांे में बसने वाले किसान का करता है। महात्मा गांधी ने जैसे हमें यह मंत्र दिया, उसी तरह से अगर कृषि के क्षेत्र में सहकारिता आंदोलन को बढ़ाना चाहते हैं, तो आपको पार्टी रिलेशन के बारे में, संपत्ति अधिकार के सम्बंध में दृष्टिकोण स्पष्ट करना चाहिए। हमको यह कहना होगा कि संपत्ति का स्वामित्व जो ंचे वर्गों के दो फीसदी लोगों के हाथों में रहा है, उसको छीन कर 98 फीसदी, 90 फीसदी लोगों के हाथों में देना है और इसमें कुछ संघर्ष होगा, थोड़ा विद्वेष होगा और उसको बर्दाश्त करने की, सहन करने की हिम्मत होनी चाहिए। दह्याभाई पटेल सामूहिक खेती का जो विरोध करते हैं, वह क्यों करते हैं?

माफ कीजिये, मैंने अपने पुराने दोस्त श्री गौडे मुरहरी जी से वादा किया था कि मैं हिन्दी में बोलूंगा। तो मैं यह कह रहा था कि इस आंदोलन को चलाना है तो बुनियादी तौर पर दो चार काम करने होंगे कृषि के क्षेत्र में। सहकारी आंदोलन दो बातों की मांग करता है। एक तो खेत के पर अधिकार किसका हो। खेत के पर अधिकार जब तक खेती करने वाले का नहीं होता, जब तक बड़े-बड़े खेतिहर लोग मौजूद हैं, इस मुल्क में जिनके पास हज़ारों एकड़ फार्म हैं तब तक एग्रीकल्चर को-आपरेटिव के रास्ते में अड़चन पड़ी ही रहेगी। मैं इसके विवरण में नहीं जाना चाहता हूं। दूसरी बात यह कि इन सारी कठिनाइयों के बावजूद संगठनकर्ताओं को चाहिए, कार्यकर्ताओं को चाहिए कि गांव में जाकर बैठकर लोगों को समझायें महात्मा गांधी के ज़माने में जिस तरह स्वतंत्रता संग्राम के रास्ते में अनेक अवरोध के बावजूद महात्मा गांधी जी ने एक-एक किसान को समझाया कि तुम्हारा भला इसी में है कि अंग्रेजी राज को इस देश से बाहर निकालो। तो फिर क्या हुआ, महोदया, गावं का गरीब से गरीब आदमी भी जो बगैर पढ़ा लिखा था, जिसके पास कोई साधन नहीं थे वह भी सबसे बड़े साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़ा हो गया। अगर आज सहकारी क्षेत्र में काम करने के लिए छोटे छोटे कार्यकर्ता मिलें जो गांव में जाकर और वहां पर बैठकर बतलायें माननीय वाजपेयी जी और पटेल जी के दिलों में भले ही यह बात न हो, किन्तु उनकी पाटयां इसलिए विरोध करती हैं कि जिन लोगों का ये लोग प्रतिनिधित्व करते हैं, उन लोगों के मन में यह बात बसी है कि जो प्रापर्टी रिलेशन कृषि क्षेत्र में स्वामित्व हैं, वे बदलने नहीं चाहिए।

यह बात समझाई जाये तो यह सहकारी आंदोलन एक राष्ट्रीय आंदोलन बन सकता है। तो मैं माननीय डे साहब से अपील करूंगा कि अगर वे कृषि क्षेत्र में सहकारिता को फैलाना चाहते हैं, तो जो कृषि सुधार का काम उनकी दूसरी मिनिस्ट्री करती है उसके सहयोग लेने की बात करें। कभी-कभी डे साहब बयान दे देते हैं, लेकिन मौलिक बातों को समझाने का साहस नहीं करते और दूसरे मिनिस्टर साहब से यह नहीं कह सकते कि इस कार्य में इस तरह की मौलिक कठिनाइयां हैं। इन मौलिक कठिनाइयों को दूर किये बिना हुकूमत सहकारी आंदोलन को केवल उसी सीमा तक चला सकती है, जिस सीमा तक छोटे-छोटे कार्यकर्ता मिलकर गांव में जाकर लोगों में जागरण पैदा करें और उनको यह बताएं कि छोटे-छोटे किसान तब ही सफल होंगे, तब ही उनकी बुनियादी तरक्की होगी, जब वे मिल-जुलकर काम करेंगे। मुझे इस बात से हैरत होती है कि जब गांवांे में इस प्रकार का आंदोलन किया जाता है कि तुम्हारी जमीन छीनी जा रही है। मैं और सूबों की बात तो नहीं जानता हूं, लेकिन उत्तर प्रदेश में 70 फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके पास एक एकड़ से भी कम ज़मीन है, तो ऐसी जोत से वे क्या पैदा कर सकतें हैं और किस तरह से वे नयी पह्ति द्वारा कोई चीज़ पैदा कर सकते है। कम्युनिटी डेवलमेंट और विकास खण्ड के लोग उन्हें सारे ढंग बतलाते हैं, लेकिन वे कभी इस बात को भी सोचते हैं कि इतनी छोटी जोत के पर, जिसमें एक किसान अपने खाने तक लिए अींा पैदा नहीं कर सकता है, कैसे नये साधन का उपयोग करेगा? वह इतनी छोटी भूमि के होते हुए कर्ज़ नहीं ले सकता, पूंजी नहीं लगा सकता और खासकर नये वैज्ञानिक साधनों का उपयोग वह किसी तरह से भी नहीं कर सकता।

महोदय, मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कि प्रो. मुकुटबिहारी लाल और श्री रामचंद्रन ने यह कहा कि इस चीज़ को राजनैतिक दलों का शटलकार्क नहीं बनाया जाना चाहिए। अगर श्री डे. साहब को यह गलतफहमी हो रही है तो आने वाले दिनों में और कठिनाई होनी वाली है, इसको समझना चाहिए। यह मौलिक रूप से एक राजनैतिक सवाल है और इस सवाल का राजनैतिक स्तर पर सामना करना चाहिए और उसमें जो कठिनाइयां आयें उन्हें दूर करके इस आंदोलन को आगे चलाना चाहिए।

मैं धन्यवाद देता हूं कि आपने मुझे इस बहस पर बोलने का मौका दिया। माफ कीजिये, मैं अपनी एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं और वह यह है कि दो-तीन अखबारों में कहीं यह छपा है कि मैं संयुक्त समाजवादी दल में हूं। मेरा इस दल से कोई सम्बंध नहीं है। मैं संयुक्त समाजवादी दल में शामिल नहीं हुआ हूं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।