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गृह उद्योग की राह में खादी कमीशन की प्रणाली राहु-केतु जैसी, सुधार आवश्यक

संदर्भ: Committee to suggest ways and means to develop Agro-Industries in the Country 5 मार्च 1965 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्तावक महोदय को बधाई देता हूं कि उन्होंने यह अवसर दिया कि हम इस विषय पर इस सदन में चर्चा कर सकें।

इस विषय की महत्ता के सम्बंध में कई सदस्यों ने अपने विचार प्रगट किये हैं और विशेष रूप से भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या और बढ़ती हुई बेकारी को देखते हुए यह समस्या हमारे लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। सन् 1961 की जनगणना को अगर हम लें, तो 43 करोड़ 90 लाख लोगो में, जो इस देश में बसते थे, 42.98 प्रतिशत ऐसे लोग थे, जिनको काम चाहिए, जिनको हम भारत का वकंग फोर्स कह सकते हैं। 57 फीसदी मर्दों की तादाद है और 28 फीसदी औरतों की तादाद इसमें शामिल है। जो समय अनुमान लगाया गया था, तखमीना लगाया गया था, उस तखमीने के हिसाब से तीसरी पंचवर्षीय योजना में 1 करोड़ 70 लाख लोग उसमें जुड़ते हैं और फिर चैथी पंचवर्षीय योजना में 2 करोड़ 30 लाख, और अगर पाचवी पंचवर्षीय योजना को लें, तो 3 करोड़ लोग इस वकंग फोर्स में, जो काम करने वाले लोग होंगे, उसमें और शामिल हो जाते है। बाद में फिर विशेषज्ञों की एक कमेटी बनी। उन्होंने जो तखमीना लगाया और अभी हाल में जिनकी रिपोर्ट आई है, उससे यह पता लगता है कि पांचवी पंचवर्षीय योजना के अन्त तक तो यह तखमीना ठीक रहेगा, लेकिन तीसरी पंचवर्षीय योजना के अंत में इस तखमीना में कुछ हेरफेर करना पडे़गा।

इसका मतलब यह होगा कि काम करने वालों की तादाद तीसरी पंचवर्षीय योजना में उससे अधिक होगी जितने का तखमीना लगाया गया था। इस बारे में हमारे मित्र मोहन धारिया जी ने यह बताया कि किस तरह से अगली तीसरी और चैथी पंचवर्षीय योजनाओं में हमारी बेकारी की समस्या बढ़ती जा रही है। उन्होंने एक उदाहरण दिया महाराष्ट्र का।

अगर मैं उत्तर प्रदेश के बारे में इस सदन का ध्यान ले जां, तो वहां की हालत को सुनकर आप को हैरानी होगी। उत्तर प्रदेश में तृतीय पंचवर्षीय योजना के अन्त तक 27 लाख 30 हजार लोग ओर ऐसे बढ़ेंगे, जिनको काम चाहिए। चैथी पंचवर्षीय योजना में यह संख्या 35 लाख 10 हजार हो जायेगी। पंचवर्षीय योजना में वकंग फोर्स में 47 लाख 50 हज़ार लोग बढ़ेंगे, और उत्तर प्रदेश के बारे में आप जानते हैं, कि कृषि पर निर्भर रहने वाला, यह प्रदेश है, जहां पर औद्योगिक उत्थान बहुत कम हुआ है। आप सोचिये कि इस प्रदेश के लिए कितनी बड़ी समस्या उत्पन्न होने जा रही है। अगर हमने अपनी कृषि को सुधारने की कोशिश नहीं की और कृषि पर आधारित जो उद्योग हैं, उनको सुधारने की कोशिश नहीं की। उत्तर प्रदेश में कौन से उद्योग हैं?

मान्यवर, आपके ही प्रदेश के बारे में चर्चा कर रहां हूं और आपके ज़रिये इस सरकार का ध्यान खीचना चाहूंगा कि उत्तर प्रदेश में केवल एक इंडस्ट्री है और वह शुगर की इंडस्ट्री है, चीनी उद्योग है। आज से कुछ दिन पहले सारे हिन्दुस्तान में जितनी चीनी बनती थी, उसका 50 फीसदी केवल उत्तर प्रदेश बनाता था। सारे हिन्दुस्तान में उत्तर प्रदेश को यह गौरव हासिल था कि उसने चीनी उद्योग को आगे बढ़ाया। लेकिन ज्यों-ज्यों समय की प्रगति आगे बढ़ती गयी है, त्यों-त्यों उत्तर प्रदेश का चीनी उद्योग पीछे को हटता है। इस बात की आज से नहीं, पिछले दस वर्षो से हम मांग कर रहे हैं कि आप चीनी उद्योगपतियों से यह कहिये कि वे जो आधुनिक टेक्निकल तरीके हैं उनसे इस उद्योग को चलायें, या फिर सरकार इसको अपने हाथों में ले ले।

आज से तीन वर्ष पहले वही मांग की गयी थी, जिसकी ओर इशारा माननीय धारिया जी ने किया था। मैं उनका बड़ा शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मेरा काम आसान कर दिया। अगर महाराष्ट्र में सहकारी कृषि उद्योग और सहकारी शुगर फैक्ट्री चल सकती है और उनसे फायदा हो सकता है और उनसे महाराष्ट्र की सारी आथक पह्ति और आथक आधार बदल सकता है। श्रीमन् क्या वजह है कि उत्तर प्रदेश में वह नहीं किया जा सकता? क्या वजह है कि उत्तर प्रदेश में इस काम को नहीं किया जा सकता? पिछले पांच वर्षों में यह हमारी मांग रही है कि उत्तर प्रदेश के उद्योगपति अगर इस उद्योग को ठीक ढंग से चलाने की कोशिश नही करते, अगर उसमें सुधार नहीं लाते तो सरकार को उसे अपने हाथ में ले लेना चाहिए और यह काम केंद्रीय सरकार का हैऋ क्योंकि उत्तर प्रदेश की सरकार के सामने जब यह सवाल आता है, तो वह कहती है कि यह काम केवल केंद्रीय हुकूमत, मरकज़ी हुकूमत कर सकती है। लेकिन मुझे अफसोस है कि हमारे वज़ीरे-आज़म उसी प्रदेश से आते हैं, लेकिन जो पेपर उनका प्लानिंग कमीशन बनाता है, जो पेपर उनकी मिनिस्ट्रीज़ बनाती हैं, उन कागज़ों को देखने की वे कोशिश नहीं करते। मैं सचमुच कांप जाता हूं यह सोच कर कि अगले दस वर्षो में हिन्दुस्तान का यह जो गंगा-जमुना का प्रदेश है इसकी क्या हालत होने वाली है। बेकारों का, भूखों का, अशिक्षा में भरे हुए लोगों का वह एक प्रदेश होगा। और सब बातों का ज़िक्र मैं नहीं करूंगा, लेकिन मैं यह मांग करना चाहता हूं कि अगर कृषि पर आधारित उद्योगों को बढ़ाना है तो पहला कदम इस हुकूमत को यह उठाना पड़ेगा कि उत्तर प्रदेश की जो शुगर इंडस्ट्री है, जो चीनी मिलें हैं, उनको सहकारी क्षेत्र में लायें। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

मान्यवर, इस अवसर पर मैं आपका ध्यान एक और बात की ओर ले जाना चाहूंगा। यह तो सही है, जैसा हमारे मित्र मोहन धारिया जी ने कहा कि जगह-जगह पर इंडस्टिन्न्यल इस्टेट्स बननी चाहिए। जो कमेटी बनी थी उसने जो रिपोर्ट दी थी उससे भी मैं सहमत हूं, वह काम होना चाहिए, पायलट प्रोजेक्ट्स चलने चाहिए, लेकिन इस प्रस्ताव की महत्ता इसलिए बढ़ जाती है कि पिछले पांच, सात वर्षों में सरकार ने जो नीतियां बनायी, जो कदम उठाये उनके बारे में क्या किया गया? आज तक गृहउद्योग और कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने वाला अगर कोई सबसे बड़ा काम हुआ है तो वह विलेज इंडस्ट्रीज़ एण्ड खादी कमीशन को बनाया जाना है। खादी कमीशन क्यों बना, इसलिए कि गांवो में इस काम को बढ़ाया जाये। अगर मैं आपका ध्यान आœष्ट कर सकंू तो इस ओर आœष्ट करूंगा कि सन् 1945 में जेल से निकलते ही महात्मा गांधी ने एक आंदोलन चलाया, समग्र सेवा का आंदोलन, और उसमें उन्होंने कहा मैं अपनी याददाश्त से कह रहा हूं अखिल भारतीय चरखा संघ में उन्होंने एक प्रस्ताव रखा और उस प्रस्ताव का मक़सद यह था कि सहकारी संस्थाएं बढ़ायी जाएं खादी और ग्रामीण उद्योगों को चलाने के लिए।

उस प्रस्ताव में यह भी था कि वहीं पर ये उद्योग खोले जाएं जहां कि कच्चा माल उसके लिए पैदा किया जा सके। मुझे याद है, उस प्रस्ताव का एक फिकरा यह था, उसकी एक मान्यता यह थी, कि चरखे का काम वहां बढ़ सकता है जहां कपास की खेती भी आगे बढ़े। खादी कमीशन ने क्या उस काम को पूरा किया, क्या पिछले 10-15 वर्षो में खादी कमीशन उस दिशा में आगे बढ़ा है? मैं आपके ज़रिये कहना चाहूंगा मुझे दुःख है कि माननीय देवकीनंदन नारायण जी यहां नहीं हैं, लेकिन इस ओर हुकूमत का ध्यान खींचना चाहता हूं। मंत्री महोदय यहां मौजूद हैं मुझे हैरानी होती है कि एक रिपोर्ट 1960 में खादी कमीशन के बारे में बनी डा. ज्ञान चन्द ने यह रिपोर्ट पेश की, इस रिपोर्ट में क्या कहा गया है? इस रिपोर्ट में कहा गया कि खादी कमीशन अपने किसी मकसद को पूरा करने में कामयाब नहीं हुआ। इस रिपोर्ट के ज़माने में खादी कमीशन ने कहा कि हम 14 या 16 लाख लोगों को धन्धा देते हैं, लेकिन इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 70 या 75 हज़ार लोग इस खादी कमीशन के काम से फायदा पाते हैं। और दूर की बात जाने दीजिए, 1963-64 में इस्टीमेट्स कमेटी ने क्या कहा? 1950 में एक रुपये लागत पर 70 पैसे की खादी पैदा होती थी, लेकिन यह सारी योजना का असर हुआ या श्री बैकुण्ठभाई और ढेवरभाई के उद्योगों का यह असर हुआ कि अब 1 रुपये की लागत में 40 पैसे की खादी पैदा होती है। हमारे मित्र ने कहा कि कम पैसा दिया जाता है। कम पैसा ज़रूर है लेकिन अगर मैं भूलता नहीं हूं तो तृतीय पंचवर्षीय योजना में 92 करोड़ रुपया खादी कमीशन को दिया गया और आप इस्टीमेट्स कमेटी की रिपोर्ट को देख लीजिए, पब्लिक एकांउट्स कमेटी की रिपोर्ट को देख लीजिए कि क्या नतीजा निकला? 92 करोड़ रुपये में कितना बड़ा हिस्सा बर्बाद हुआ है, यह कहते हुए शर्म से गर्दन झुक जाती हैऋ क्योंकि हम खादी को पहनते है। मान्यवर, जरा इस रिपोर्ट को पढ़ लीजिए, जिसमें कि 75 हज़ार लोग को कहा गया है। यह गलत हो सकता है, लेकिन यह आपके गवर्नमेंट की रिपोर्ट है, मैं नही जानता। तौ मैं यह कहना चाहता हूं कि जो 92 करोड़ रुपया खर्च किया गया उसके बारे में अब क्या हो रहा है? जो खर्च किया गया उसको छोड़ दीजिए लेकिन 34 करोड़ रुपया आपने खादी कमीशन को कर्ज़ा भी दिया और पिछले साल जब पब्लिक एकांउट्स कमेटी ने कहा कि यह कर्ज़ा वापस क्यों नहीं होता है शर्म से गर्दन झुक जाती है। मुझसे कहा गया, हमारे कुछ मित्रों ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के आने के बाद ये बातें नहीं करनी चाहिए। मैं नहीं समझता कि कांग्रेस पार्टी में रहने का मतलब अक्षमता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना है या उसको छिपाना है। भ्रष्टाचार या निष्क्रियता जहां पर भी है, उसका पर्दाफाश होना चाहिए 34 करोड़ रुपया जो खादी कमीशन को कर्ज़ा दिया गया उसके लिए पब्लिक एकाउंटस कमेटी ने कहा कि उसकी जांच होनी चाहिए। लेकिन जांच की जगह क्या किया इस हुकूमत ने? मंत्री महोदया, मैं आपसे कहना चाहूंगा, आपने यह किया कि यह 34 करोड़ रुपया इनकी लम्बी अवधि का कर्ज़ रहेगा। हैरत होती है खादी कमीशन इतने से संतोष नहीं करता। चैथी पंचवर्षीय योजना के लिए 60 करोड़ रुपये की वकंग कैपिटल की मांग है। कोई तखमीना नहीं, कोई जांच नहीं और कोई वैज्ञानिक खोजबीन नहीं, और 60 करोड़ रुपया चाहिए। मैं जानता हूं कि वह शायद दे दिया जायेगाऋ क्योंकि इस साल के बजट में मैं देख रहा था कि उसमें 34 करोड़ की व्यवस्था की गयी थी, उसमें यह था कि जो लोन लिया था उसको वकंग कैपिटल के हिस्से के लिए दे दिया जाये। क्या इस तरह से कुटीर उद्योगों की प्रगति होगी? क्या इस तरह से इस देश में कोई अच्छा वातावरण बनेगा? 1960 में हमारे मित्रों ने प्रश्न पूछा, जब यह रिपोर्ट आई तो हिन्दुस्तान के सारे अखबारों ने एक स्वर से कहा कि इस काम को बन्द कीजिए या इस काम को किसी वैज्ञानिक आधार पर चलाइये। मेरे पास 1960 के अखबारों के सम्पादकीय हैं, हिन्दुस्तान टाइम्स, हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड टाइम्स ऑफ़ इण्डिया, ी प्रेस जरनल, जो भी हिन्दुस्तान में कोई गिनती के अखबार हैं, सबने कहा कि या तो इसे बन्द करो, लेकिन अगर चलाना है तो इसको वैज्ञानिक आधार पर चलाओ।

मान्यवर, इस सारी व्यवस्था को बदलना होगा। मैं आपसे कहना चांहूगा कि खादी के काम से भावनाओं का ताल्लुक ज़रूर है, लेकिन भावनाओं का ताल्लुक होते हुए भी हमें सोचना पड़ेगा कि यह भावनाओं का ताल्लुक हमें किस हद तक ले जायेगा, क्या देश की बेकारी, क्या देश की भुखमरी को बलाए ताक पर रखकर केवल भावनाओं के आधार पर काम करना है, इससे यह हिन्दुस्तान कब तक चलने वाला है? मैं आपसे कहूंगा, खास तौर पर मंत्राणी महोदया से कहूंगा कि जहां तक अधिक रुपया देने की बात है, मैं उन सारी बातों की ताईद करता हूं जो कि हमारे मित्र श्री मोहन धारिया ने कही हैं, लेकिन यह ज़रूरी है कि जो रुपया खर्च होता है वह ठीक तरह से खर्च किया जाये। बाढ़ हो, सैलाब हो, बहती हुई दरिया हो तो जितना चाहे पानी बहा सकते हैं, लेकिन जब सूखा पड़ा हो, अकाल पड़ा हो, तब एक बंूद की ज़्यादा अहमियत होती है। आज हिन्दुस्तान के इस सूखे हुए र्मुीा साधनों में, जहां एक-एक पाई के लिए कीमत है, जहां एक-एक पाई से हिन्दुस्तान का मुस्तकबिल बनने या बिगड़ने वाला है किसी भी नाम पर, किसी कमीशन के लिए, किसी योजना के लिए, किसी काम के लिए, एक पैसा भी बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए, और वह बर्बादी जो होती है वह इतिहास की बर्बादी है मुल्क की बर्बादी है, तवारिक की बर्बादी है और आने वाला इतिहास हमको या इस सरकार को या किसी को क्षमा नहीं करेगा। इसलिए, श्रीमन्, मैं आपसे कहूंगा कि कोई बात जरूर इस तरह की होनी चाहिए जिससे कि पता चले कि हैंडलूम में, हैंडीक्रा∂ट में, जितना रुपया लगता है, उसका क्या हो रहा है, खादी कमीशन में जो रुपया लगता है उसका क्या हो रहा है। हमारे माननीय सदस्य ने जो प्रस्ताव रखा है इसी तरह की एक तज़वीज़ पब्लिक एकांउट्स कमेटी ने पिछले साल रखी थी, उसने एक सिफारिश सरकार से की थी कि कोई कमेटी बनाये, जांच कराये कि यह जो रुपया लगता है उसका इस्तेमाल ठीक तरह से हो। तो मैं समझता हूं कि माननीय सदस्य श्री अस्थाना ने जो प्रस्ताव रखा है, वह इसलिए रखा गया है कि अधिक रुपया देने की ज़रूरत है। इसलिए भी रखा गया है कि जो रुपया दिया जाता है उसका सही उपयोग हो।

मान्यवर, अंत में इस सदन से केवल यही अनुरोध करना चाहूँगा कि जहां आने वाला भविष्य हमारे लिए सुनहरा नज़र आता है जैसा कि मोहन धारिया ने कहा कि अगली पंचवर्षीय योजना में हमें खादी के पर दोगुना-तिगुना खर्च करना ज़रूरी है, जहां वह उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक है, वहां पर खादी कमीशन ऐसा कमीशन जो गृहउद्योग की उन्नति के लिए ज़िम्मेदार है, उत्तरदायी है, उसकी कार्यप्रणाली उस सुनहरे भविष्य में एक बड़ा भारी राहु-केतु जैसा दिखाई देता है जो उस सुनहरे भविष्य के चन्द्रमा को ग्रसित करने के लिए एक कंलक के रूप में भारतीय आथक जगत में उदीयमान है। इसको या तो सुधारिये या इस कंलक को मिटा दीजिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।