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अन्ना दुरै साहब और राजा जी जैसे लोग तूफान पैदा कर सकते हैं, उसे शांत नहीं कर सकते

संदर्भ: Motion of Thanks on the President's Address 4 मार्च 1965 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


माननीय उपसभाध्यक्ष महोदय, आज इस देश का चित्र मिला-जुला हुआ चित्र है। एक ओर जहां निराशा के काले बादल हैं, वहां पर भावी भविष्य के लिए सुनहरी किरणें भी दिखाई पड़ती हैं। यह सही है कि हमारे राष्ट्रपति महोदय का अभिभाषण उसी दिशा में एक संकेत है और उसी चित्र का चित्रण है।

हमारे कई मित्रों ने, विरोधी पक्ष से और इस ओर ध्यान आकषत किया है। यह सही है कि जहां पर हमारे देश का एक बड़ा हिस्सा विदेशी के कब्ज़े में है, वहां पर 16 हज़ार और 14 हज़ार फुट की ऊंचाई पर मुस्कुराते हुए हमारे नौजवान हैं, जो उस अंधेरे में भी एक प्रकाश हमारे दिलों में संचारित करते हैं। यह सही है कि जहां देश में विघटनकारी ताकतें हैं, तोड़ने वाली शक्तियां हैं, उसके साथ-ही-साथ इस देश में आदि से लेकर आज तक एक ऐसा तार जुड़ा हुआ है, जिससे देश की एकता आज भी बनी हुई है। इसके साथ ही एक चित्र हमको इस सदन में भी देखने को मिलता है। जहां पर हमने प्रजातांत्रिक पह्ति अपनायी है, जहां पर हमने पालयामेंटरी डेमोक्रेसी अपनायी है, जहां पर हमने संसदीय जनतंत्र अपनाया है और जहां हर व्यक्ति को इस बात की स्वतंत्रता है कि अपने भावों का वह स्पष्ट रूप से और स्वतंत्रतापूर्वक प्रकटीकरण करे, वहां पर हम यह भी देखते हैं कि इस सदन के अंदर हमारे बहुत से मित्र न केवल अपने विचारों को रखते हैं बल्कि तथ्यों को तोड़-मरोड़कर रखते हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण मेरे पूर्व वक्ता महोदय हैं। मेरा संकेर्त ीविड मुनेत्र कड़गम के नेता श्री अन्नादुरै की और है। जिस समय श्री अन्नादुरै ने अपना भाषण प्रारम्भ किया था, उस समय माननीय रामचंद्रन जी ने एक प्रश्न उठाया था और वह एक सही प्रश्न था। उन्होंने पूछा था कि क्या आप भारतीय एकता में विश्वास रखते हैं और क्या आप समझते हैं कि भारत एक ऐसा देश है जिसकी एकता अक्षुण्ण रहनी चाहिए। उसके जवाब में अन्नादुरै साहब ने यह कहा था कि चाइनीज़ ऐग्रेशन के बाद, चीन आक्रमण के बाद, अनेक दर्शन में परिवर्तन हो गया और वे भारतीय एकता को मानते हैं। महोदय, मैं आपके ज़रिये माननीय अन्नादुरै जी का ध्यान उनके खुद के भाषण की ओर आकषत करना चाहता हूं। सन् 1963 में आॅफिशियल लैंग्वेजेज बिल पर भाषण करते समय, भाषा विधेयक पर अपने विचार व्यक्त करते समय, अन्नादुरै जी ने यह कहा था कि भारत एक देश नहीं है और इसको एक देश की संज्ञा देना गलत है। इसी सिद्धांत का कुछ अंश आज उन्होंने फिर कहा। उनकी पार्टी के अ§ध्यक्ष और र्मीास एसेम्बली में विरोधी पार्टी के नेता ने तीन दिन पहले र्मीास में एक अखबार के प्रतिनिधि को कुछ इसी तरह का अपना वक्तव्य दिया है। मैं अन्नादुरै जी का भाषण इसलिए उृत नहीं करता कि मेरे पास अधिक समय नहीं है। अगर वे चाहेंगे, तो मैं वह भाषण यहां पर रखे हुए हूं। लेकिन तीन दिन पहले र्मीास एसेम्बली में विरोधी पक्ष के नेता और उनकी पार्टी के जो अध्यक्ष है, उनका क्या कहना है। उनसे अखबार वालों ने यह पूछा:

"Will you carry on the agitation to the extent of secession?"

उनका उत्तर क्या है?

"The reply was: "No, we cannot secede. That fundamental-right has been taken away from us by law since the Chinese aggression. That is why the DMK had to end its agitation for a separate Dravidasthan but we will agitate peacefully."

यह बयान है, यह वक्तव्य है उनकी पार्टी के अध्यक्ष का, और मुझे अफसोस होता है कि न केवल विरोधी पक्ष के लोग बल्कि सरकारी बेंचों में बैठे हुए लोग और हमारे मोहतरम बुज़ुर्ग अकबर अली खान साहब जैसे लोग ऐसे भाषणों पर तालिया बजाते हैं। उपसभाध्यक्ष महोदय, ज़रा ध्यान रखियेगा मेरा समय। मैं यह कह रहा था कि क्या बातें की जाती हैं और क्या बातें कही जाती हैं। आप बुज़ुर्ग आदमी हैं और राजनीति में आपको ज़्यादा अनुभव हैर्। ीविड़ मुनेत्र कड़गम की जो पार्टी है, उसका पूरा-पूरा आधार जो है, उसकी नीति जो है, उसमें पहली चीज़ यह है कि भारत एक देश नहीं है,र् ीविड़स्थान के लोग अलग हैं और उस नीति से प्रचालित होता है उनका सारा कार्यक्रम। यही नहीं, मैं एक बात की ओर और ध्यान दिलाना चाहता हूं कि माननीय अन्नादुरै साहब ने कहा कि हम हिंसा के विरोधी हैं और सारे देश के साथ और इस सदन के साथ यह कहना चाहेंगे कि हिंसा की प्रवृक्रिायों को दबाना चाहिए। लेकिन जिस समय तमिलनाडु में, र्मीास में, आंदोलन चल रहा था तब उन्होंने जो बयान दिया विद्याथयों को यह कहने के लिए कि शान्ति से रहो, वह बयान क्या था? उन्होंने यह कहा अपने बयान में कि तमिलनाडु के विद्याथयों को इस बात पर फ़श् और संतोष होना चाहिए कि जो काम पूरा हो चुका था उसको उन्होंने अपने काम से अधूरा कर दिया। अगर यह हिंसा को भड़काना नहीं है, अगर यह मारपीट को भड़काना नहीं है, अगर वह आगज़नी को भड़काना नहीं है, अगर यह लूट को भड़काना नहीं है, तो किस तरह से हिंसा, आगज़नी, लूट और मार-पीट को भड़काया जाता है? मैं इन बातों को प्रारम्भ में इसलिए कह देना चाहता हूं कि भारतीय राजनीति में, संसदीय लोकतंत्र में जहां अच्छाइयां है, वहां हमें इन काले बादलों को भी देखना चाहिए। यहां बार-बार इस बात का ज़िक्र किया गया है कि श्रीमान् लाल बहादुर जी का दिल ऊंचा होना चाहिए और उन्हें लोगों के दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए। मैं इस पर बाद में आऊंगा।

हमारे दूसरे मित्र भूपेश गुप्ता जी ने कल इस बात पर बड़ा जोर दिया कि जो वामपंथी कम्युनिस्ट गिर∂तार हुए हैं, इससे बड़ा अधर्म इस संसार में कोई नहीं हो सकता और सबसे बड़ा पाप अगर माननीय नन्दा जी ने किया है तो यह किया है, जितने भी विशेषण हो सकते हैं, उन्होंने लगाये उस आलेख के पर जो इस सदन के सामने रखा गया है और कहा कि क्या सबूत है, मेरे पास और तो कोई सबूत नहीं है मुझे अफसोस है कि माननीय भूपेश गुप्ता जी इस समय यहां मौजूद नहीं है लेकिन मेरे पास सबूत के लिए उनकी पार्टी का एक अखबार है। यह अखबार है ‘‘न्यू एज’’। इस अखबार में जो उनकी पार्टी की रिपोर्ट बम्बई में शाया हुई है और जिस पार्टी के नेता हैं श्री भूपेश गुप्ता, उसमें कहा गया है कि यह जो कम्युनिस्ट पार्टी का एक वर्ग है, वह चीनी आक्रमण के बाद से उस नीति का विरोध करता रहा है, जिस नीति को हम मानते थे कि देश की रक्षा में हमें हुकूमत का साथ देना चाहिए। यही नहीं, इसमें एक जगह पर इस बात पर भी नाराज़गी ज़ाहिर की गयी है कि जिस समय चीनियों के खिलाफ हमारी नीति को बल देना चाहिए, हिन्दुस्तान की सरकार चुप बैठी हुई थी और यह चाहती थी कि जो कम्युनिस्ट पार्टी में फूट डालने वाले लोग हैं, उनको बढ़ावा मिले।

यह दक्षिण पंथी कम्युनिस्ट पार्टी का अधिœत बयान है, जिसके नेता भूपेश गुप्त जी हैं और वही भूपेश गुप्त जी कहते हैं कि क्या सबूत है माननीय गुलजारी लाल नन्दा के पास। मैं नही जानता उनके पास कोई सबूत है या नहीं। क्या यह सबूत ‘‘न्यू एज’’ अखबार जिसमें उनकी पार्टी की रिपोर्ट छपी है, क्या यह सबूत काफी नहीं है? और अगर यह सबूत काफी नहीं है तो दूसरा सबूत मैं बताना चाहूंगा। अभी तीन या चार दिन पहले मैं निश्चित तिथि तो नहीं बता सकता वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ई.एमएस. नम्बूदरीपाद ने केरल की एक इलेक्शन मीटिंग में कहा कि यह सही है कि हमारी पार्टी के लोगों ने माओ त्से तुंग की फोटो लगायी थी। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे अंदर एक वर्ग ऐसा है जो हमारे लिए कठिनाइयां पैदा कर रहा है और चीन का साथ दे रहा है। यह नम्बूदरीपाद का कथन है, जो ले∂ट कम्युनिस्ट पार्टी के लीडर हैं, और कहते है कि वह छोटा वर्ग है। उसके लिए सारी पार्टी को बदनाम और परेशान नहीं करना चाहिए।

मैं अपने माननीय मित्र से पूछना चाहता हूं कि क्या कोई भी सरकार कोई भी हुकूमत जिसके राज्य में एक तरफा कहा जाये कि देश एक नहीं है, देश के टुकड़े कर दिये जायें, जिसमें यह कहा जाये विधान की कापियां जला दो और दूसरी तरफ यह कहा जाये कि इस देश में जो आक्रमणकारी होकर आया है वह सही मानों में समाजवाद का अलमबरदार है, क्या हुकूमत में यह बर्दाश्त किया जा सकता है। मुझे अफसोस है, मुझे खेद है कि इस हुकूमत में बातों को छिपाया जा रहा है। भूपेश गुप्ता जी बहुत प्रसींा होते थे जिस समय माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने माननीय दह्याभाई पटेल से यह सवाल पूछा था कि बैंक ऑफ़ इण्डिया में किन लोगों का अकाउन्ट है और कम्युनिस्ट पार्टी को बैंक ऑफ़ चाइना से क्या मिलता है। उस समय हमारे माननीय वित्त मंत्री ने इस बात को छिपाया था। अगर उन बातों को छिपाया नहीं गया होता और कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों को मुल्क में बढ़ावा नहीं दिया गया होता तो यह अवसर नहीं मिलता कि माननीय भूपेश गुप्ता भी उठकर खड़े होते और कहते कि माननीय नंदा जी ने गलत बात की है। एक और उदाहरण देता हूं। 1963 में जब भाषा विधेयक आया, माननीय भूपेश गुप्ता ने क्या कहा था? उन्होंने कहा कि माननीय अन्नादुरै जी और माननीय राजगोपालाचारी जैसे लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद के एजेन्ट हैं। उन्होंने यह कहा था कि माननीय भूपेश गुप्ता की स्पीच मेरे सामने है कि मुझे इस बात के लिए शर्म है कि मैं हिन्दी सीख नहीं पाया। मगर आज श्री अन्नादुरै से भूपेश गुप्ता एक बात पर सहमत हैं कि माननीय गुलजारी लाल नंदा को किस तरह से बदनाम करें, उनको किस तरह दुनिया की नज़रों में ज़लील दिखाएं। मैं आपसे कहूं कि ऐसी स्थिति में इस देश के सामने, समाज के सामने और हम सब के सामने एक सोचने की बात हो जाती है कि हमको क्या करना होगा? मैं यह भी कहना चाहूंगा कि भूपेश गुप्ता जी को इसके पहले कि नंदा जी से अपील करते कि यहां की वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में जो उन्होंने बयान दिये हैं और जिनको कि अखबारों ने छापा है, उन बयानों को देना बंद कर दे।

श्रीमन्, भाषा के पर भी मुझे थोड़ा सा कहना है। आपकी आज्ञा से मैं थोड़ा सा वक़्त और लूंगा। माननीय मुकुट बिहारी लाल साहब ने जो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता हैं, मुझे अफसोस है वे इस समय यहां नहीं है। उन्होंने कहा कि चैथी पंचवर्षीय योजना तृतीय पंचवर्षीय योजना से भी अधिकाधिक प्रतिक्रियावादी योजना है। उनकी स्पीच से मुझे हंसी आयी कि राजनीति शास्त्र का विद्वान होकर उन्होंने यह कहा कि समाजवाद शब्द का नाम चैथी पंचवर्षीय योजना की रिपोर्ट में एक बार आया या दो बार आया। दो बार आया चाहे एक बार आया, लेकिन हैरत होती है कोई भी दस्तावेज जो आथक बातों का ज़िक्र करेगा क्या उसमें हर वाक्य में, सोशलिज़्म की बात कही जायेगी? उन्होंने कहा शिक्षा के क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं हुई। मेरे पास समय नहीं है इसलिए मैं भाषा के सवाल पर ही कहना चाहूंगा। मेमोरन्डम में सब बातें तो नहीं रखी जातीं, वह तो संकेत है कि किस दिशा में हमारा समाज अगले पांच वर्षों में जायेगा। प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल साहब ने अगर योजना आयोग ने शिक्षा के पर जो मसविदा तैयार किया है और उनको लेकर मैं सदन में आया हूं उनको देखा होता तो उन्हें मालूम हो गया होता कि योजना आयोग किस तरह से इस देश में आगे बढ़ रहा है। लेकिन चूंकि वे मौजूद नहीं हैं और वे हमारे गुरू भी हैं, इसलिए मैं अंत में भाषा के सम्बंध में कहना चांहूगा। बहुत से बुज़ुर्ग मित्रों ने कहा कि इसके पर हमें धैर्य से काम लेना चाहिए। मुझे अफसोस होता है कि सरकार के नेताओं नें भी ज़रा धैर्य से काम लिया, नहीं तो मामला बिगड़ जाता और हमारे माननीय शिक्षा उपमंत्री, भक्त दर्शन जी बैठे हैं, उनकी तो दुर्दशा हो गयी होती। मैं आपके ज़रिये कहना चाहूंगा कि मेरे पास महात्मा गांधी का लेख है। एक बार महात्मा गांधी ने एनी बेसेन्ट से कहा था कि मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि और बातों में मैं आपसे मतभेद नहीं रखता हूं लेकिन भाषा के सवाल पर मेरा कोई समझौता नहीं हो सकता। महात्मा गांधी ने इस बारे में जो लेख ‘यंग इण्डिया’ में लिखा उसकी प्रतिलिपि मेरे पास मौजूद है। दूसरे एक महान व्यक्ति ने, कविवर रवीनर््ी नाथ ठाकुर ने यह सवाल उठाया कि अंग्रेज़ों के सवाल पर कुछ आपको तरजीह देनी चाहिए। इसका महात्मा गांधी ने जो जवाब दिया रवीन्द्र नाथ टैगोर को, मैं आपकी आज्ञा से उसके दो-चार सेन्टेन्स आपकी सेवा में रख देना चाहता हूँ-

"The canker has so eaten into the society that in many cases, the only meaning of education is knowledge of English. All these are for me signs of our slavery and degradation."

यह महात्मा गांधी का बयान सन् 1928 का है। उसके बाद महात्मा गांधी ने एक दो बार नहीं, अनेक बार कहा। सबसे बड़ी जो बात उन्होंने कही वह यह कही कि अगर मेरे हाथ में शक्ति हो जाये तो मैं एक मिनट के लिए भी इस बात को बर्दाश्त नहीं करूंगा। आज मुझे आश्चर्य होता है कि महात्मा गांधी के नाम पर हमसे धैर्य की बात कही जाती है। महात्मा गांधी का एक वाक्य मैं आपके सामने पेश करना चाहूंगा,

"If I had the power of despot, I would today stop the tuition of our boys and girls through a foreign medium, and require all the teacher and professors on pain of dismissal to introduce the change forthwith. I would not wait for the preparation of text-books. They will follow the change. It is an evil that needs a summary remedy."

अंत में मैं आपसे यह कहूं कि यह एलियन रूल का, विदेशी रूल का सवाल नहीं है, सिद्धांत का सवाल है। माननीय लोकनाथ मिश्र जी की जानकारी के लिए मैं, जो उनकी दृष्टि में एक बडे़ भारी विचारक हैं, उनके विचार रखना चाहता हूं। वह इस प्रकार हैं,

"Can the deliberations of the Central Assembly and the transactions of the high officers of State and other exercising authority in the Central Government be permitted to be done in English? Obviously not, If we desire democracy to be true in fact as well as in form-if we do not went educated men to be appointed to places of power and influence and conduct their affairs apart from the people and the electorate. To make popular control real, the State language must be one spoken and understood by large masses of people. "Hindi is bound to be the language of the Central Government and the Legislature and also of the provincial Governments in their dealings with each other and with the Government of India."

यह आप सोच सकते हैं कि जो उह्रण मैं दे रहा हूं वह माननीय राजगोपालाचारी ने 1928 में लिखा।

मैं यह श्री भूपेश गुप्त की जानकारी के लिए कहना चाहता हूं कि न केवल गुलामी के दिनों में बल्कि आज़ादी के दिनों में गोपालस्वामी आयंगर ने श्री एंथोनी ने, श्रीमान चेटि∏यार ने, डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने और पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि अब अंग्रेज़ों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और 15 वर्ष की अवधि केवल इसलिए दे रहे हैं कि इस बीच लोग पढ़ लिखकर तैयार हो जायें। मुझे आश्चर्य है कि इन सारी बातों के बावजूद आज इस सवाल को उठाया जाता है कि शासन इस चीज को धैर्य से निपटाए।

अन्त में मैं एक बहुत बड़े डेमोक्रैट, प्रजातांत्रिक, स्टेट्समैन की बात कहकर अपनी बात समाप्त करूंगा। अपने लोगों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था,

"It is now for them to demonstrate to the world that those who can fairly carry an election can also suppress a rebellion( that ballots are the rightful and peaceful successors of bullets( and that when ballots have fairly and constitutionally decided, there can be no successful appeal back to bullets( that there can be no successful appeal, expect to ballots themselves, at succeeding, elections. Such will be a great lesson of peace( teaching men that what they cannot take by an election neither can they take by a war( teaching all the folly of being the beginners of a war."

उन तमाम लोगों से, चाहे वे चीन की तरफ नज़र रख रहे हों, चाहे वे नये पाकिस्तान बनाने की ओर नज़र लगाये हुए हों, उनसे मैं बड़े अदब से कहूंगा कि यह संसार के सबसे समझे-बूझे सुलझे दिमाग के आदमी एब्राहम लिंकन ने उस समय मजबूर होकर कहा था। जबकि अमेरिका के कुछ लोगों ने अमेरिकन राष्ट्र को तोड़ने की कोशिश की।

मैं आपके ज़रिये अन्त में इस हुकूमत से अपील करूंगा कि यह सवाल जोश का नहीं, यह सवाल कोई गुस्से का नहीं, यह सवाल देश की राष्ट्रीयता बचाने का है, देश की एकता को बचाने का है और मैं समझता हूं कि हुकूमत को इन पहलुओं के पर कभी झुकना नहीं चाहिए। मैं यह भी समझता हूं कि लोगों की दिक्कतों को समझना चाहिए लेकिन उसका यह मतलब नहीं है कि कुछ अन्नादुरै जैसे लोगों को, कुछ राजा जी जैसे लोगों को इस देश को बर्बाद करने के लिए छोड़ दिया जाये और इस देश को तोड़ने के लिए सारी बातें करने दी जायें।

मैं बहुत आग्रह के साथ अन्नादुरै साहब से कहूंगा कि वह ‘नेशनल हेराल्ड’ के सम्पादक श्री चलापति राव की सलाह को मान लें जिसमें उन्होंने कहा है कि अन्नादुरै साहब ऐसे लोग और राजा जी ऐसे लोग तूफान पैदा कर सकते हैं, बर्बादी पैदा कर सकते हैं लेकिन उसे पैदा करने के बाद उसे शान्त नहीं कर सकते।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।