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पब्लिक सेक्टर में अगर थोड़ी सी रोशनी कहीं दिखायी पड़ती है तो वह रेलवे में है

संदर्भ: रेलवे बजट 29 फरवरी 1964 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभाध्यक्ष महोदय, मैं रेल मंत्री को केवल इसलिए मुबारकबाद देता हूं कि हिन्दुस्तान की आथक अवस्था जहां सब तरफ से बिगड़ी हुई है, जहां चारो ओर अंधेरा दिखाई पड़ता है, उसमें कुछ रोशनी नज़र आती है तो रेलवे विभाग में नज़र आती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि रेलवे विभाग जिस तरह से चल रहा है और रेल का काम जिस तरह से इस देश में चलाया जा रहा है, वह ठीक तरह से चलाया जा रहा है। आप अगर इस वर्ष के बजट की अनुमानित आय को देखें तो ऐसा लगता है कि पिछले वर्षों की आमदनी में कमी हुई है। यही नहीं, जिस तरह रेल का काम चलाया जाता है और जिस तरह रेल की क्षमता दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है, वह भी एक बड़ी भयंकर स्थिति है। मैं आपके ज़रिये रेल मंत्री से कहना चाहूंगा कि आज रेलवे की ऐसी हालत नहीं है कि पहले की स्थिति में या पहले की हालत में काम करना है। आज रेल को सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्विता रेाड ट्रांसपोर्ट से करनी है। अगर पिछले एक वर्ष के आंकड़ों को लिया जाये तो हम देखते हैं कि जहां रेलवे में माल भेजने के लिए पहले लोग ज्यादा लालायित रहते थे वहां आज टन्न्कों से, बसों से माल भेजने की ओर लोगों की इच्छा, लोगों की मनोवृत्ति और लोगों की ज़हनियत बढ़ रही है। इसकी वजह क्या है? इसकी वजह केवल यह है कि रेलवे से जितनी तेजी के साथ सामान पहुंचना चाहिए, जितनी हिफ़ाज़त के साथ लोगों को सामान उनके लक्ष्य तक पहुंचना चाहिए, वह काम नहीं हो पाता है।

रेलवे विभाग के अगर आंकड़ों को लिया जाए तो ब्राड गेज़ पर जो माल के डिब्बे चलते हैं उनकी प्रति दिन औसत र∂तार 45 मील है अगर आप नैरो गेज़ की बात लीजिए तो केवल 35 मील की र∂तार से प्रतिदिन माल के डिब्बे चलते हैं। एक तरफ रेलवे की यह इनएफिशियेंसी, रेलवे की यह अक्षमता, और दूसरी तरफ टन्न्कों के ज़रिये माल तेजी के साथ हिन्दुस्तान के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंच जाता है। आज रेलवे विभाग को इस दिशा में सोचना चाहिए। उसकी नज़र इस तरफ़ जानी चाहिए। मुझे दुख है कि इस तरफ़ नज़र इस विभाग की नहीं जाती है। हैरानी इस बात से होती है कि रेलवे विभाग के अधिकारी और मंत्री महोदय केवल इसी बात से संतोष कर लेते हैं कि रेलवे में लाभ ज्यादा हो रहा है। इस संतोष का कारण यह होता है कि जहां और राजकीय उद्योगों में हानि हो रही है, नुकसान हो रहा है, वहां रेलवे में कुछ लाभ हो रहा है। इससे केवल संतोष नहीं किया जा सकता और इस दिशा में सरकार को अपनी नीति भी देखनी पड़ेगी कि टन्न्ंासपोर्ट के बारे में सरकार की पूरी नीति क्या हो। रेल कहां पर काम करे और रोड ट्रांसपोर्ट कहां पर काम करे। यह केवल इससे नहीं चलेगा कि समय समय पर सरकार की ओर से वक्तव्य निकाले जाये और कह दिया जाये कि इसकी जांच हो रही है और इस दिशा में हम सोच रहे हैं।

महोदय, मैं ऐसा समझता हूं कि देश में बढ़ते हुए विकास के कामों को देखते हुए, रोड ट्रांसपोर्ट के बढ़ते हुए क्रम को देखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है कि सारे देश में यातायात आयोग, ट्रांसपोर्ट कमीशन, बनाया जाये जो इस बात का फ़ैसला करे कि रेल ट्रांसपोर्ट और रोड़ ट्रांसपोर्ट में क्या सम्बंध होगा। जब तक इस तरह का कोई ट्रांसपोर्ट कमीशन बनाकर ट्रांसपोर्ट के बारे में कोई नीति नहीं अपनायी जाती, मुझे इस बात की शंका है कि आने वाले दिनों में रेलवे को बड़ी भारी कठिनाई का सामना करना पडे़गा। पिछले दिनों में रेलवे से माल भेजने में कमी आयी है और मैं समझता हूं कि आने वाले दिनों में अगर स्थिति यही रही तो रेल को बहुत बड़ा घाटा उठाना पडेगा। चाहे आप हमेशा किराया बढ़ाते जायें, लेकिन केवल किराये को बढ़ाकर आप अपनी आमदनी को कायम नहीं रख सकते जब तक आप सरकार की नीति इस बारे में स्पष्ट न करें तब तक केवल किराया बढ़ाना इस समस्या का हल नहीं हो सकता।

दूसरी बात आपसे यह कहना चाहता हूं कि रेल में जिस तरह से भीड़ बढ़ती जा रही है, उसकी तरफ़ भी आपका ध्यान जाना चाहिए। रेल मंत्री ने खुद ही यह स्वीकार किया है कि 3.36 प्रतिशत हर साल टैन्न्फिक बढ़ता जा रहा है, लेकिन भीड़ को कम करने का काम केवल 0.6 प्रतिशत के हिसाब से हर साल हो रहा है। देश का जब आथक विकास होगा तो लोग ज्यादा यात्रा करेंगे और भीड़ ज्यादा बढ़ेगी। अगर उसी हिसाब से रेल महकमे में काम में सुधार नहीं होता है तो हमें यह कहना पड़ेगा कि चार, पांच या दस वर्षों में रेलों में भीड़ इतनी बढ़ जायेगी कि जहां पर आज हमारे सामने यह समस्या है कि तीसरे दर्जें के यात्रियों को हम बैठने की जगह नहीं दे सकते, वहां हो सकता है कि आने वाले दिनों में उनको खड़े होने की भी जगह रेल के डिब्बों में न मिले। मैं नही जानता कि इस दिशा में सरकार कोई निश्चित नीति अपना कर काम कर रही है या नहीं। अगर हम पुराने ढर्रे पर ही चलते रहे तो बढ़ते हुए आथक विकास को देखते हुए, जनता की यात्रा करने की शक्ति में बढ़ोतरी होने के बाद यह समस्या गम्भीर रूप से हमारे सामने आएगी।

तीसरी बात जिसका मैं ज़िक्र करना चाहूंगा और खास तौर से जिसका ज़िक्र अभी माननीय मित्र ने किया, वह है दुर्घटनाओं से सम्बन्धित। दुर्घटनाएं रोज़-बरोज़ बढ़ती जा रहीे हैं। एक बार नहीं, अनेक बार इस सदन में दुर्घटनाओं का ज़िक्र हुआ, जांच कमेटी बैठी और उसकी रिपोर्ट भी आई। मैं उस रिपोर्ट के बारे में तफसील में नहीं जांगा, केवल कुछ थोड़ा उसका संकेत करना चाहूंगा। जब कोई दुर्घटना होती है और जांच आयोग बनता है तब यह नतीजा निकलता है कि मानव विफलताओं की वजह से दुर्घटना हो गयी। रेलवे विभाग या रेलवे मंत्री जी केवल यह कह कर बच नहीं सकते कि ‘‘ऽमन फ़ैक्टर’’ की वजह से दुर्घटना हो गयी। आखिर, इस ‘‘ह्यूमन फैक्टर’’ की वजह क्या है? एक रेल कर्मचारी या रेल के मजदूर से अगर उसकी शक्ति से ज्यादा काम लिया जाये तो उसमें कमज़ोरियां आयेंगी, उसमें गलतियां होंगी और इसके लिए वह मजबूर है। अगर यह मान लिया जाये कि ‘‘ह्यूमन फैक्टर’’ की वजह से यह दुर्घटनाएं हो रही हैं तो उसको दूर करने के लिए रेल विभाग की ओर से क्या काम किया गया है।एक-एक गार्ड को, एक-एक प्वाइंट्समैन को उसकी ताकत से ज्यादा जब काम करने के लिए विभाग मजबूर करता है तो उसमें कोई गलती हो जाती है तो फिर उसमें दोष किसका है? दूसरी बात यह है कि आज के विज्ञान के युग में जब मशीनीकरण इतनी तेज़ी से हो रहा है तो कोई हुकूमत यह कर कर अपनी ज़िम्मेदारी से अलग नहीं हो सकती कि ‘‘ह्यूमन फैक्टर’’ की वजह से विफलताएं होती हैं। अतः उसमें विज्ञान का सहारा लेना चाहिए। मुझे अफसोस है कि इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है।

एक दूसरी बात जिसके लिए मैं खास तौर से रेल विभाग को बधाई दूंगा, वह यह है कि जो आयात होता था, जो इम्पोर्ट होता था, यह जानकर हमको खुशी है कि उसमें कमी हुई है। जहां 30 प्रतिशत रेलों का सामान आयात होता था वहां अब 14 फीसदी मंगाया जाता है? इसके लिए कौन बधाई का पात्र है। बधाई के पात्र वर्कशाप में काम करने वाले, रेल के कारखानों में काम करने वाले वह मज़दूर हैं जो अपनी मेहनत से अपनी क्षमता से उन चीज़ों के निर्माण में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन, श्रीमान्, आपके ज़रिये मैं रेल मंत्री से यह जानना चाहूंगा कि उन मजदूरों को अधिक से अधिक संतोष देने के लिए आपने क्या किया है? क्या आपकी हुकूमत ने इस बात की कोशिश की है कि श्रमिकों के सम्बंध आपके साथ और आपके विभाग के साथ अच्छे बने रहें। महोदय सन् 1960 में हड़ताल हुई थी। मैं उस हड़ताल के कारणों में जाना नहीं चाहता, लेकिन इतना निवेदन ज़रूर करूंगा कि उस ज़माने में जो लोग बरख़ास्त किए गए थे, नौकरी से हटाये गए थे, उनके बारे में आपकी ओर से आश्वासन दिया गया था। स्वर्गीय पण्डित गोविन्द बल्लभ पंत ने आश्वासन दिया था कि जिस पर तोड़-फोड़ का कोई चार्ज नहीं होगा, उसको नौकरी पर फिर बहाल कर दिया जायेगा। सन् 1960 से आज 1962 तक भी वह काम नहीं हुआ है। हमारे बहुत से रेल मजदूर आज भी नौकरी से अलग हैं और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि सबसे अधिक मज़दूर अगर कहीं नौकरी पर वापस नहीं लिये गए तो वे नार्दर्न रेलवे में है जिसका हेडक्र्वाटर दिल्ली में है। इसी रेलवे के सबसे अधिक मजदूर उस हड़ताल के सिलसिले में निकाले गए और आज भी उनको काम पर नहीं लिया गया, यह बुरी बात है। यहीं नहीं, सरकार ने पिछले दिनों में जो कुछ काम किया उससे आश्चर्य होता है कि श्रमिकों के बारे में हमारी नीति क्या होने जा रहीे है। आपके एस्टैबलिशमेंट कोड का जो 1708 नम्बर का नियम था, उसको आपने हटा दिया, जिसमें यह कहा गया था कि मजदूर को बिना कोई वजह बताये नौकरी से नहीं हटाया जायेगा। यही नहीं, संविधान की धारा 311 में जो अधिकार मिला हुआ था उसमें आपने संशोधन किया। क्यों किया गया, किस लिए किया गया? यह कह कर किया गया कि इस देश की उींाति के लिए, देश में इमर्जेंसी की हालत को ठीक करने के लिए हमारे लिए ज़रूरी है कि श्रमिक और हमारे सम्बंध ठीक बने रहें।

मैं आपसे जानना चाहता हूं कि किसी भी जम्हूरियत में, किसी भी प्रजातंत्र में कोई भी हुकूमत लोगों के मौलिक अधिकारों को ले करके, नारा लगाये कि ५िटले कौंसिल्स बनेंगी सेंटन्न्ल गवर्नमेंट इम्पलाइज़ के लिए और रेलवे के लिए भी कहा गया कि ५िटले कौंसिल की पैटर्न पर यहां ऐसी संयुक्त समितियां बनेगी जिनसे सलाह ली जा सके, लेकिन हुआ यह कि उसका जो मसविदा पेश किया गया, उसमें पहले ही यह कहा कि किसी को हड़ताल करने का अधिकार नहीं होगा। मैं रेल मंत्री जी से निहायत अदब के साथ कहूंगा कि जो सरकार मज़दूर के इस मौलिक अधिकार को छीनकर ५िटले कौंसिल बनाने की बात करती है, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि उसकी मंशा ठीक नहीं है। वह नहीं चाहती की सरकार और श्रमिकों के बीच में कोई अच्छा सम्बंध, कोई अच्छा रिश्ता बना रहे। ५िटले कौंसिल का केवल एक ही मतलब है, उसकी केवल एक ही भावना है कि ऐसी परिस्थितियां पैदा की जाये कि मज़दूर को हड़ताल पर जाने के लिए मज़बूर न होना पड़े। ५िटले कौंसिल का यह मकसद नहीं है कि हड़ताल के अधिकार को छीन लिया जाये। उसे हड़ताल का अधिकार रहे लेकिन मज़दूर ऐसी हालत में हो जाये कि उसको संतोष मिले, इतनी सुविधा मिले, उसको पंचायती समझौते की ऐसी व्यवस्था मिले कि वह हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर न हो। हमारी हुकूमत उलटे तरीके से काम शुरू करती है, वह मज़दूर को पहले नाराज़ करती है। आज टेन्न्ड यूनियन के लोग, रेलवे में काम करने वाले लोग इस योजना का विरोध कर रहे हैं। तो उनसे दुश्मनी मोल लें, उनसे झगड़ा मोल लें और उद्देश्य यह है कि उनसे समझौता करेंगे, उनकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ायेंगे।

मैं माननीय मंत्री जी से कहूंगा कि आप इस योजना को सही मानों में एक जनतांत्रिक योजना बनाइये, एक ऐसी योजना बनाइये जिसमें कि मज़दूर सद्भावना के आधार पर आपके साथ सहयोग कर सके शक्ति के बल पर मजदूर को दबाकर अगर उसका सहयोग आप लेना चाहेंगे तो यह सम्भव नहीं होगा। मैं एक बात और इसी सिलसिले में कहूंगा। अभी आपके एस्टैबलिशमेंट कोड के नियम 149 के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गलत नियम है। उसके अंतर्गत आपने कितने मज़दूरों को बर्खास्त किया, कितनों को नौकरी से अलग किया तो क्या माननीय रेल मंत्री जी आज यह आश्वासन देंगे उस नियम के ज़रिये जितने भी लोग बर्खास्त किये गए हैं उनको बिना शर्त पुनः नौकरी में लिया जायेगा? अगर आप यह आश्वासन नहीं दे सकते, अगर आप यह आश्वासन देने के लिए तैयार नहीं है तो सद्भावना कैसे बनेगी, मैं यह समझ नहीं पाता? किसी भी राजकीय उद्योग को चलाने के लिए और खास तौर से रेल जैसे राजकीय उद्योग को चलाने के लिए यह ज़रूरी है कि हुकूमत श्रमिकों का सहयोग हासिल करे और वह सहयोग तभी मिल सकता है जब कि आप उनके साथ सद्भावना दिखायें, जबकि आप उनकी कठिनाइयों को समझें।

मैं इसी सिलसिले में आप से यह ज़िक्र करना चाहता हूं कि अभी आपने डेढ़ रुपए से लेकर दो रुपये तक का महंगाई भत्ता बढ़ाया है, एक तरफ आपने महंगाई भत्ता बढ़ाया और दूसरी तरफ कीमतें बढ़ गयी, नतीजा क्या निकला? द्वितीय वेतन आयोग ने सिफ़ारिश की थी कि मज़दूरों का मौलिक वेतन इंडेक्स नम्बर के हिसाब से तय होना चाहिए लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला, मजदूर आज भी परेशान है। यही नहीं, एक दूसरी कठिनाई भी इसके साथ-साथ है कि बड़े शहरों में रहने वाले मज़दूरों की दिक्कतें बढ़ गयी हैं। आपने शहरों का वर्गीकरण ए, बी-1, बी-2, और सी क्लास में किया है, लेकिन इस सदन के अंदर माननीय नियोजन मंत्री ने स्वीकार किया कि बहुत से शहर ऐसे हैं जिनकी आबादी कम है, अर्थात् उनकी आबादी 5 लाख से कम है पर वे बड़े महंगे शहर हैं। तो वहां के रेल मजदूरों के लिए आपने क्या कोई व्यवस्था की है? मैं और जगह की बात तो नहीं जानता मगर हमारे उत्तर प्रदेश में सरकार के आंकड़ों के मुताबिक सबसे महंगा शहर गोरखपुर है। गोरखपुर आपके नार्थ-ईस्टर्न रेलवे का हेडक्वार्टर है और वहां के रेलवे मज़दूरों ने, रेलवे इम्पलाइज़ ने आपसे निवेदन किया कि यह इतना महंगा शहर है और हमको भी वही सहूलियत मिलनी चाहिए जो दूसरी कैटेगिरी के बड़े शहरों को मिल रही है। तो मैं रेल मंत्रीजी से कहूंगा कि सारे सरकारी कर्मचारियों की बात को अलग कर दीजिये लेकिन क्या यह रेलवे विभाग के लिए सम्भव नहीं होगा कि उन शहरों के लिए जहां मान्य रूप से महंगाई ज्यादा है वहां रेलवे मज़दूरों को सुविधा देने के लिए कोई खास व्यवस्था करें। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप यह सोचें कि वहां के मज़दूरों की हालत क्या होगी?

इसी सिलसिले में एक दूसरी बात मैं और कहूंगा। वह मज़दूरों के कर्ज़ की बात है। आज मज़दूरों के पर बहुत कर्ज़ है, आपके सामने यह बात आयी होगी, मज़दूरों के पर कर्ज की डिग्री होती है और उनकी तनख्वाह कुर्क कर ली जाती है। मैं निश्चित रूप से तो नहीं कह सकता, लेकिन शायद आपने कोई नियम बना रखा है कि 100 रुपये से अधिक तनख्वाह है तो कुर्क की जा सकती है। क्या आज की महंगाई में यह उचित है? उस पर बताया गया कि उसे ढ़ाई सौ रुपया कर दिया गया है। इस पर श्री चंद्रशेखर ने पूछा कि क्या लागू हो गया है? उस पर जवाब मिला जी हां। तब उन्होंने कहा कि अगर हो गया है तो ठीक है लेकिन मज़दूरों के कर्ज के बारे में भी आपको सोचना चाहिए और इसके लिए आप कोई उपाय निकालें।

एक बात और मैं कहना चाहूंगा जो बहुत कटु बात है लेकिन उसको कहना पड़ेगा। हमारा गृहमंत्रालय संयुक्त सदाचार समिति बना रहा है भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए। यह सदाचार समिति इसलिए बनती है कि नैतिक तरीके पर जो भ्रष्टाचार है, उसका मुकाबला किया जाये, लेकिन श्रीमान, मैं आपसे कहना चाहूंगा कि हम लोग यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि कांग्रेस पार्टी का एक सदस्य रेल मंत्री की मौजूदगी में दूसरे सदन में यह कहता है कि उसको वैगन लेने के लिए रुपये देने पड़े तो इससे बुरी बात रेलवे विभाग के लिए और क्या हो सकती है? इससे बड़े दुख की बात हमारे और आपके लिए और कोई नहीं हो सकती है जब कांग्रेस पार्टी का एक सदस्य ऐसा कहता है तो उसमें कुछ सही है ही तो इसकी जानकारी आपको करनी चाहिए थी और इसमें कुछ एग्जेम्पलरी पनिशमेंट होना चाहिए था। कुछ ऐसा काम होना चाहिए था कि जिससे रेलवे विभाग के लोग सोचें। जहां पर मैं यह समझता हूं कि रेल मज़दूरांे को उनकी न्यायोचित मांगे मिलनी चाहिए, उनको सुविधाएं मिलनी चाहिए वहां पर मैं यह भी समझता हूं कि रेल मज़दूर अगर अपना काम न करें तो उसके लिए उन्हें दण्ड मिलना चाहिए।

एक तरफ जब हम कहते हैं कि रेल मज़दूरों की तनख्वाहें बढ़ाइये तो हमारे रेल मंत्री और रेलवे विभाग के लोग कहते हैं कि इसमें कुछ नहीं हो सकता, कठिनाइयां हैं और दूसरी तरफ जब हम कहते हैं कि जो रेल मज़दूर, रेल कर्मचारी, ठीक काम नहीं करते उनके खिलाफ कोई खास कदम उठाइये तो उसके बारे में भी कुछ नहीं किया जाता है मैं हैरान हो जाता हूं। चक्रधरपुर में, साउथ ईस्टर्न रेलवे में एक ठेकेदार ने लाखों रुपयों का गबन किया, गड़बड़ घोटाला किया और उसके लिए बिहार एसेम्बली के 40 मेम्बरों ने एक ज्वाइंट पेटीशन रेलमंत्री और तत्कालीन गृहमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को दी। मैंने खुद उन्हें एक खत लिखा तो माननीय लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि रेल मंत्री इस सम्बंध् ा में काम कर रहे हैं, लेकिन उस ज़माने के रेल मंत्री ने यह भी ज़रूरी नहीं समझा कि मेरे खत का जवाब दें।

बिहार एसेम्बली के चालीस मेम्बरों ने, जो निश्चित रूप से केवल पी.एस.पी. के नहीं रहे होंगे, क्योंकि उनकी कुल तादाद 29 है, एक कान्टन्न्ेक्टर के खिलाफ एक ज्वाइंट मेमोरेन्डम दिया, लेकिन कुछ नहीं किया जा सका। मैं नहीं जानता जांच हुई या नहीं? मेरा अपना अनुभव है कि इस सदन के अंदर मैंने कहा कि रेलवे विभाग के लोग गलत सूचना देते हैं। मुझे किसी से द्वेष नहीं। नार्थ ईस्टर्न रेलवे पर गोविंदपुर में एक स्टेशन बनाने की योजना हुई। मैं इस सिलसिले में आपको एक छोटी सी बात बताऊँ। कांग्रेस के दो गुटों में झगड़ा हुआ वहां पर। एक ग्रुप ने कहा, स्टेशन बन के रहेगा, दूसरे ने कहा नहीं। स्टेशन बनना शुरू हुआ और 23,000 रुपये उस स्टेशन को बनाने पर खर्च किये गये। एक दिन अचानक उस स्टेशन को बनाने का काम रोक दिया जाता है। उस ज़माने में मैंने वहां के जनरल मैनेजर साहब को लिखा। जनरल मैनेजर साहब ने कहा, टन्न्ैफिक पैटर्न चेंज हो गया है, इसलिए उस स्टेशन को हमने बनाना बंद कर दिया है। यहां पर भी मैंने सवाल पूछा। सवाल के उत्तर में फिर वही जवाब दिया गया।

उस समय जनरल मैनेजर सरदार हरबन्श सिंह ने मुझे खत लिखा कि स्टेशन नहीं बन सकता लेकिन हाल्ट बनाने को कहें तो हाल्ट बन सकता है। मेरे पास यह सूचना मौजूद है, जो जवाब उन्होंने दिया मौजूद है। यहां पर पालयामेंट में जब मैंने उसका ज़िक्र किया तो माननीय रामस्वामी जी ने कहा कि जांच होगी। मुझे आश्चर्य होता है जांच के बाद जो जवाब दिया गया था, वही जवाब फिर क्यों दे दिया। गोविंदपुर का स्टेशन बनाना शुरू किया गया तो क्या कहा गया कि मुकामापुर में चूंकि पुल बन गया गंगा के पर, इसलिए टैन्न्फिक पैटर्न चेंज हो गया।

मैं आपके ज़रिये बताना चाहता हूं कि मुकामापुर के पुल के बहुत दिन बाद गोविंदपुर स्टेशन बनना शुरू हुआ। मैं जानना चाहता हूं कि क्या रेलवे के अधिकारी ज़िम्मेदार है इसके लिए? अगर टैन्न्फ़िक पैटर्न चेंज हो गया था तो इस हुकूमत की, इस सरकार की, इस रेलवे की, 23,000 रुपये बर्बाद करने की, जो जनता का रुपया है, क्या ज़िम्मेदारी थी। लेकिन एक बार जब दिमाग बदल जाते हैं तो कोई न कोई बहाना ढूंढा जाता है। मैं कहूंगा इस एक मामले को मैं केवल इसलिए रखता हूं क्योंकि मैं समझता हूं कि इस तरह की ज़हनियत बिलकुल ग़लत बात है, बेमानी बात है, उसका कोई आधार नहीं। लेकिन जब ऐसा जवाब इस सदन के अंदर दिया जा सकता है, जब ऐसा जवाब पालयामेंट के मेम्बरों को दिया जा सकता है, तब साधारण जनता की क्या सुनवाई होगी? एक और घटना मैं आपको सुनांगा। चार दिन पहले ही गोरखपुर स्टेशन पर तीसरे दर्जे की जनता एक्सप्रेस में मुझे चलने का मौका मिला। स्लीपिंग कोच उसमें कोई था नहीं। मैंने गार्ड साहब से पूछा क्यूं नहीं स्लीपिंग कोच लगायी? उन्होंने कहा: मालूम नहीं मुझे, रिपेयर में गयी होगी। फिर थर्ड क्लास के एक डिब्बे में घुसा तो देखा सारी लेवोटरी इतनी गंदी थी कि उसमें बैठाना मुश्किल। मैंने गार्ड से पूछा ज़रा इसकी सफाई करा दीजिएगा। गार्ड साहब ने कहा, टी.एक्स.आर. से कहा, स्टेशन मास्टर से कहा। पनर््ीह मिनट गाड़ी रुकी रही लेकिन पनर््ीह मिनट के अंदर गोरखपुर में कोई मेहतर नहीं मिल सका।

आजकल रेलवे में, और खासकर नार्थ-ईस्टर्न रेलवे में, एक पैटर्न चल गया है कि फस्र्ट और सेकेण्ड क्लास में, कुछ सेक्शंस पर, आप चल नहीं सकते। जब से मैं इस सदन का मेम्बर हुआ हूं,मैं कई शिकायतें देख और सुन रहा हंू मगर कोई सुनवाई नहीं होती है। मैंने एक बार खड़े होकर बलिया स्टेशन पर गुंडों को फस्र्ट क्लास के डिब्बे से निकाला। गुंडों को हटाने में जी.आर.पी. भी साथ नहीं देती। मैं रेलवे मिनिस्टर को कह चुका हूं, यूपी. के होम मिनिस्टर को कहता हूं लेकिन कोई नहीं सुनता।

मैं, श्रीमान्, रेलवे मंत्री से कहना चाहता हूं कि अगर आप फस्र्ट और सेकेण्ड क्लास के पैसेन्जर्स की हिफ़ाज़त नहीं कर सकते तो आप फस्र्ट और सेकेण्ड क्लास को तोड़ दीजिए, केवल थर्ड क्लास की टन्न्ेने रहें इस देश में, और खास कर उन सेक्शन्स में जहां फस्र्ट और सेकेण्ड क्लास के लोग हूलीगन्स की वजह से या बदमाशों की वजह से परेशान होते हैं। झांसी के उरई में एक गार्ड का कत्ल कर दिया गया। खासकर नार्थ ईस्टर्न रेलवे में बड़ी बदअमनी की हालत फैलती जा रही है और कोई सुनने वाला नहीं है। ऐसा मालूम होता है कि सारा रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन इतना निकम्मा कमज़ोर और बुज़दिल हो गया है कि वह हूलिगन्स के हाथ में सारी व्यवस्था को सौंप देना चाहता है। जब-जब मैंने इस बारे में रेलवे बोर्ड की पत्र लिखे तब-तब जवाब आ जाता है कि आवश्यक कार्रवाई की जायेगी। मैं नहीं समझता कि यह आवश्यक कार्रवाई किस तरह से हो रही है। इसकी तरफ़ हुकूमत की निगाह जानी चाहिए।

मैं यह इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं अपना व्यक्तिगत अनुभव रखता हूं। पहले विद्याथयों ने टिकट लेना बंद किया। बलिया-इन्दारा सेक्शन के स्टेशन पर कुछ हूलिगन्स खड़े हो जाते हैं बुकिंग विन्डो के सामने और कहते हैं कि टिकट लेने की क्या ज़रूरत है, दो रुपये का टिकट है, एक रुपया हमको दो, तुमको हम दूसरे स्टेशन पर उतारकर स्टेशन के बाहर निकाल देंगे। जहां व्यवस्था ऐसी अवस्था में पहुंच गयी है, वहां हम क्या मुबारकबाद दें रेल मंत्री को किस दिल से मुबारकबाद दे सकते हैं? क्या इस दुव्र्यवस्था को रोकने के लिए हजार, दो हजार लोग पुलिस के नहीं लगाये जा सकते हैं? क्या जीआर.पी. के लोग नहीं लगाये जा सकते है? खुले आम अगर मैं अखबारों के ज़रिये और सार्वजनिक रूप से कहता हूं तो कांग्रेस के दोस्त और रेलवे मंत्री केवल इसलिए की वोट नहीं मिलेंगे इन हूलिगन्स का मुकाबला नहीं कर सकते। मैं एक बात और आपसे कहना चाहूंगा कि इस सिलसिले में कोई भी ढ़िलाई हुकूमत की ओर से नहीं होनी चाहिए। जहां गलती मिले वहां कड़ाई से काम होना चाहिए और जहां रेलवे कर्मचारियों की उचित मांगे है? उन पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए।

एक दूसरी बात मैं अन्त में कहूंगा। रेल मंत्री जी ने कुछ नयी रेलवे लाइनें बनाने का फैसला किया है। यह अच्छी बात है कि असम के इलाके में उन्होंने नयी रेलवे लाइनें बनाने का फैसला किया है। लेकिन एक बार मैंने खत भी लिखा और कहा भी था कि यह जो मिडल सेक्टर है, बीच का हिस्सा है, भारत तिब्बत के बार्डर पर, इसके बारे में आपको सोचना चाहिए। मुरादाबाद से काठगोदाम तक एक मीटर गेज की टन्न्ेन जाती है। उस ज़माने में जबकि यहा पर लड़ाई की बातें चल रही थी, स्वयं रेलवे के उपमंत्री जी को मालूम है कि कितनी कठिनाइयां मुरादाबाद से काठगोदाम तक हमारी फौज और रसद को पहुंचाने में हुई थी। सक्रार, अस्सी, पचासी, मील के इस घेरे को, हुकूमत को चाहिये, कि ब्राड गेज करे या इसी तरह की बातें योजना में जितनी जल्दी हो, रखनी चाहिए।

दूसरी बात, अंग्रेज़ों के ज़माने में एक योजना रेलवे विभाग ने बनायी थी टनकपुर से लेकर नार्थ-ईस्टर्न रेलवे का टमनल स्टेशन है टनकपुर पिथौरागढ़ तक रेलवे की लाइन बिछाई जायेगी। टनकपुर से अस्सी मील तक हमारे देश का बार्डर है और 95 मील की दूरी पर पिथौरागढ़ है जो हमारे बार्डर का डिस्टिन्न्क्ट है, हेडक्र्वाटर है वहां तक रेल बननी चाहिए। अंग्रेज़ों ने अपने ज़माने में बहुत दिनों तक इसके लिए योजना सोची थी और अब वह मौका आ गया है कि हम रेल मंत्री जी से यह अनुरोध करें कि आप उस ओर भी नज़र दें। उत्तर प्रदेश का जो यह बीच का हिस्सा है, इस बीच के हिस्से में आप गौर करें और गौर करके एक बार इधर भी अपनी निगाह देते जायें। मैं अंत में आपसे फिर यह निवेदन करना चाहूंगा कि रेल विभाग को अगर ठीक तरह से चलाना है तो ट्रांसपोर्ट की पॅालिसी तय कीजिए, ट्रांसपोर्ट कमीशन बनाइये और श्रमिकों को संतोष देने की बात कीजिए, उनकी उचित मांगांे को पूरा कीजिए और उसके साथ-ही-साथ जहां भी इनएफ़ीशियेन्सी है, जहां भी अक्षमता है, उसे दूर करने के लिए जितने भी बड़े कदम उठाने पड़ें, आप उठाएं और उसमें कभी न हिचकिचाएं प्रशासन का काम केवल इससे नहीं चल सकता कि यहां पालयामेंट में बातें करके पालयामेंट में जवाब देने का एक मौका निकाला जाये। जहां पर भी ग़लती नज़र आये, उसको दूर करें अन्यथा आने वाले दिनों में शायद आपकी रेल भी उसी मुबारकबाद की हक़दार न रह जाये, जिसको आज आप इसलिए पाते हैं कि सारे देश की बिगड़ी हुई घड़ी में, इस सारे अंधेरे में, अगर थोड़ी सी रोशनी कहीं पब्लिक सेक्टर में दिखायी पड़ती है तो रेलवे विभाग में दिखायी पड़ती है।


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