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बिड़लाओं की कम्पनी देने जा रही राष्ट्र को धोखा सरकार यूपी व बिहार को मांग के अनुसार अन्न दे

संदर्भ: खाद्य स्थिति के सम्बन्ध में प्रस्ताव 21 नवम्बर 1966 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभापति महोदया, मैं माननीय खाद्य मंत्री के भाषण का उस हद तक स्वागत करता हूं जिस हद तक कि उन्होंने देशी उत्पादन पर बल दिया है और देश के लोगों से अपील की है कि वे सहयोग दें। कोई भी देश, चाहे वह कितना छोटा क्यों न हो, दान पर जीवित नहीं रह सकता और भारत जैसा देश तो जिसकी जनसंख्या 48 करोड़ हो, बिल्कुल भी ऐसा नहीं कर सकता।

यह अच्छी बात है कि निरन्तर दो बार सूखा पड़ने के बाद भारत सरकार के रवैये में परिवर्तन हो गया है। अब वह यह महसूस करने लगी है कि हमें अपने अन्न के लिए विदेशी मंडियों पर निर्भर नहीं करना चाहिए। अतः सरकार के रवैये में यह परिवर्तन स्वागत योग्य है। किन्तु इस परिवर्तन का तब तक कोई लाभ नहीं है, जब तक कि आनुषंगिक कार्रवाई नहीं की जाती। पूर्व वक्ता ने कुछ ठीक सुझाव दिये थे और उनका पालन करने से आप उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

गत बीस वर्षों से हम इस देश में भूमि सुधार करने की वकालत करते आ रहे हैं। सरकार और कांग्रेस पार्टी बार-बार यह वकालत करती रही है कि भूमि किसान को मिलनी चाहिए। किन्तु बीस वर्ष बीत जाने पर भी देश में आवश्यक भूमि सुधार नहीं हो पाये हैं। इस देश में अब भी इस बात पर चर्चा हो रही है, कि क्या ये भूमि सुधार ठीक है अथवा नहीं, क्योंकि कुछ व्यक्तियों के मूल अधिकारों पर असर पड़ा है। उच्चतम न्यायालय में क्या कार्यवाही हो रही है मैं उसके बारे में कुछ नहीं कहना चाहता। किन्तु बीस वर्ष की हमारी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी हर भूमि सुधार के बारे में यह संदेह किया जा रहा है कि क्या यह उन लोगों के मूल अधिकारों पर असर डालेगा जो कि हज़ारों सालों से इस देश के करोड़ों लोगों का शोषण करने के उत्तरदायी हैं। सरकार को सदा के लिए इस बात को तय कर लेना चाहिए कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। भूमि उन लोगों की होनी चाहिए जो भूमि को जोतते हैं न कि उन लोगों की जो कि चालाकी से भूमि पर अपना अधिकार जमा लेते हैं। दुःख की बात है कि बीस वर्षों के दौरान भी भूमि सुधारों को पूरा नहीं किया जा सका है। मैं नहीं जानता कि निकट भविष्य में सरकार कुछ कर पायेगी।

एक और बात ग्राम-उधार के बारे में है। महाराष्ट्र राज्य में सहकारी संस्थाएं सबसे अच्छी हालत में हैं फिर भी वहां के सहकारी अधिकारियों ने मुझे बताया है कि बहुत से क्षेत्रों में ग्राम-उधार की पूत छह से दस प्रतिशत भी नहीं हो पाई थी। किसानों को कौन धन उधार दे रहा है? पुनः वही व्यापारी अथवा उनके एजेंट जो कि लोगों का शोषण कर रहे हैं। भारत सरकार अभी तक ग्राम-उधार की कोई उपयुक्त प्रणाली नहीं बना सकी है। केवल कुछ महीने पूर्व रिज़र्व बैंक ने एक प्रतिवेदन दिया था जिसमें यह कहा गया कि तीन पंचवर्षीय योजनाओं के बाद भी ग्राम-उधार की पूत की स्थिति 1951-52 की तुलना में भी बहुत बुरी थी। आजकल के किसान की आवश्यकताएं भी बढ़ गयी हैं। अतः वर्तमान ऋण उसके लिए पर्याप्त नहीं है। इस कठिन स्थिति से छुटकारा दिलाने के लिए सरकार को कोई मार्ग ढूंढ़ना चाहिए।

एक अन्य बात सिंचाई के बारे में कहनी है। सिंचाई का बहुत से राज्यों में विकास हुआ है और कुल मिलाकर स्थिति में सुधार भी हुआ है। किन्तु बिहार राज्य में वर्तमान सूखा पड़ने का मुख्य कारण सोन बांध परियोजना की सिंचाई व्यवस्था का असफल होना है। इसका कारण यह था कि एक ठेकेदार ने समय पर अपना ठेका पूरा नहीं किया सोन बांध का निर्माण टेक्समाको कम्पनी ने किया और यह कम्पनी बिड़लाओं की है। मैंने दो-तीन बार सिंचाई मंत्री को लिखा था कि यह कम्पनी राष्ट्र को धोखा देने जा रही हैऋ किन्तु मेरी बात की परवाह नहीं की गयी। इसपर श्री लोकनाथ मिश्र ने कहा कि आप कांग्रेस से त्यागपत्र क्यों नहीं दे देते? जवाब में श्री चंद्रशेखर ने कहा कि मैं कांग्रेस से इसलिए त्यागपत्र नहीं देना चाहता कि उन्होंने बिड़लाओं की सहायता करने का प्रयत्न किया है। वह इसके लिए लज्जित हैं। किंतु श्री लोकनाथ मिश्र की पार्टी बिना किसी लज्जा के बिड़लाओं का समर्थन कर रही है। केवल यही अंतर है। इस पर लोकनाथ मिश्र ने पूछा कि स्वतंत्रता के बाद अब तक किस दल ने बिड़लाओं को जीवित रखा है। जवाब में चंद्रशेखर ने कहा, मैं इस बात से सहमत हूं कि कांग्रेस को बिड़लाओं को इस समय तक समाप्त कर देना चाहिए था किंतु श्री मिश्र की पार्टी ने तो जमींदारी प्रथा को समाप्त करने की बात को भी मूल अधिकारों के विरुह् कहा है। ऐसे लोगों को इस देश में सहन नहीं किया जा सकता। इस बारे में एक जांच की जानी चाहिए कि टेक्समाको जिसने अपना ठेका पूरा नहीं किया है। क्या उसे राष्ट्र और देश के प्रति एक मुख्य अपराध के लिए उत्तरदायी ठहराया जाये।

एक अन्य बात का उत्तर प्रदेश से सम्बंध है। ऐसा आयोजन में त्रुटि के कारण हुआ है। रिहन्द बांध में बिजली का उत्पादन हो रहा था किन्तु योजना आयोग और भारत सरकार ने अपनी बुह् के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार को टन्न्फ्रांसमिशन लाइनों के लिए पर्याप्त धन नहीं दिया जिसके परिणामस्वरूप कई वर्षों तक बिजली व्यर्थ जाती रही है। महोदय, मैं भारत सरकार से केवल यह अपील करता हूं कि सिचाईं परियोजनाओं के मामले में उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से आयोजन करना चाहिए और इन परियोजनाओं का संचालन इस ढंग से किया जाना चाहिए ताकि मुनाफ़ाख़ोरी की अनुमति न दी जा सके और न ही किसी व्यक्ति द्वारा तोड़फोड़ की जा सके।

मुझे एक अन्य बात उत्तर प्रदेश के बारे में कहनी है। उत्तर प्रदेश में गत दो अथवा तीन वर्षों से सूखे की स्थिति बनी हुई है। 8 करोड़ की जनसंख्या में उत्तर प्रदेश की सरकार के अनुसार 5 करोड़ लोग सूखे से पीड़ित हैं और केंद्रीय सरकार के एक जांच दल के अनुसार 3 करोड़ लोग पीड़ित हैं। उत्तर प्रदेश सरकार भारत सरकार से आने वाले मार्च तक के लिए प्रतिमास 2 लाख मीटिन्न्क टन आवाज देने की मांग करती रही है। किन्तु उत्तर प्रदेश को केवल 60,000 मीटिन्न्क टन अनाज प्राप्त हुआ है। खाद्यान्नों के मामले में पूर्ण रूप से राज्य व्यापार होना चाहिए। हमारी खाद्य नीति के बारे में सबसे बड़ी गलती 1950 में की गयी थी जब स्वर्गीय श्री रफी अहमद किदवई ने खाद्य पर से पूर्ण रूप से नियंत्रण हटाने की नीति अपनायी थी। यदि सरकार खाद्य समस्या को हल करना चाहती थी तो सरकार को खाद्यान्नों के व्यापार पर पूर्ण रूप से नियंत्रण करना चाहिए और उनका नियंत्रण भी अपने हाथ में लेना चाहिए था। अमेरिका और आस्टन्न्ेलिया के पास जाने के बजाय उसे अपने लोगों को प्रोत्साहन देना चाहिए था। सरकार को अनाज के आयात पर इतनी अधिक राशि खर्च करने के बजाय, किसान को आथक सहायता देनी चाहिए ताकि वे अधिक अींा उपजाएं।

उत्तर प्रदेश और बिहार में इतनी अधिक गम्भीर स्थिति है कि यदि समय पर ठीक कार्रवाई नहीं की गयी तो न जाने दिसम्बर के महीने में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कतिपय भागों में क्या हो जाये। अतः मैं सरकार से अपील करता हूं कि वह उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारों को उतना अन्न दें जितने कि वे मांग कर रही हैं। मुझे आशा है कि सरकार इस कठिन समय में उनकी सहायता करेगी।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।