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राष्टन्न्विरोधी मनोवृत्ति का अंत नहीं होने तक बनी रहेगी संकटकालीन स्थिति, सरकार करेगी अपने दायित्व का पालन

संदर्भ: Short Duration Discussion 20 जून 1967 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


महोदय, माननीय भूपेश गुप्त के भावुकतापूर्ण भाषण का मुझे दुख है। मेरे पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मैं यह मानता हूं कि अगर उपसभापति महोदय, जैसा कि श्री भूपेश गुप्ता जी ने कहा है कि संकटकालीन स्थिति है तो सारे देश के लिए है, देश के किसी एक भाग के लिए नहीं हो सकती। अगर संकटकालीन स्थिति मिजो की पहाड़ियों में है, अगर संकटकालीन स्थिति नगालैण्ड में है, अगर संकटकालीन स्थिति नक्सलवाड़ी में है तो वह संकटकालीन स्थिति भारत के एक-एक नागरिक के लिए है, एक-एक प्रदेश के लिए है, एक-एक नगर और एक-एक गांव के लिए है।

मार्च में जब माननीय गृहमंत्री ने आश्वासन दिया था कि पहली जुलाई से यह संकटकालीन स्थिति समाप्त कर दी जायेगी तो उसकी पृष्ठभूमि में क्या था? उसकी पृष्ठभूमि में यह था कि सारे विरोधी दल के लोगों ने, हम लोगों ने भी यह समझा था कि देश की स्थिति कुछ सामान्य होगी। विरोधी दल के लोगों ने भी कहा था और हमने भी कहा था कि संकटकालीन स्थिति किसी राष्ट्र पर बनी रहे, यह किसी के लिए शोभा और प्रसन्नता की बात तो नहीं हो सकती। एक बड़ी वेदना की, कष्ट की बात होती है कि देश के किसी भी एक हिस्से में संकटकालीन स्थिति बनी रहे। एक कष्ट की बात होती है कि कहीं पर हमारे फौज के लोगों को, पुलिस के लोगों को अपने ही नागरिकों से या विदेश के दूसरे नागरिकों से लड़ना पड़े क्योंकि भारत और भारत की सरकार हमेशा मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना चाहती है, उन्हें प्रतिष्ठापित करना चाहती है।

कोई मनुष्य, मनुष्य से लड़े यह तो हम नहीं चाहते लेकिन राष्ट्र की सुरक्षा के लिए, देश की हिफ़ाज़त के लिए यदि आवश्यकता पड़ जाती है तो कोई सरकार अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकती। इसलिए मैं ऐसा मानता हूं कि सारे देश के पर संकटकालीन स्थिति है लेकिन हमने उस समय कहा था, इसका वादा किया गया था कि संकटकालीन स्थिति से निपटने के लिए जो शक्ति व अधिकार सरकार को मिले हैं, वे अधिकार उपयोग में नहीं लाये जाएंगे और केवल उन्हीं हिस्सों में उपयोग में लाए जाएंगे जहां पर हमको किसी विशेष स्थिति का सामना करना पड़ता है। क्या मैं किसी भी विरोधी दल के मित्र से यह जान सकता हूं कि कहीं पर सरकार ने संकटकालीन अधिकारों का दुरुपयोग किया है? आज ही प्रातःकाल मैं एक बहुत ही माननीय उत्तरदायी नेता के भाषण का ज़िक्र कर रहा था जिसमें उन्होंने प्रेस प्रतिनिधियों के सामने कहा कि अगर विरोधी दल के लोगों ने पुलिस के आंदोलन का साथ दिया होता तो यह शासन बदल गया होता और अगर शासन नहीं बदला होता तो दिल्ली की सड़कों पर बहुत से नेताओं की लाशें दिखाई देतीं। महोदय, मैं यह कहना चाहूंगा कि झूठ बोलने की आदत कुछ खास लोगों की है। मेरे कहने से उन पर कोई असर नहीं पड़ता है। इस पर श्री गौडे मुरहरि ने कहा कि आप जानबूझकर झूठ बोल रहे हैं जब कि उसी नेता ने सही चीज से आपको अवगत करा दी। फिर भी आप झूठ बोल रहे हैं। जवाब में चंद्रशेखर ने कहा कि उपसभापति जी, मैं उनकी बातों को कोई महत्व नहीं देता। क्योंकि उनको एक राजनैतिक बीमारी है लोहिया की, जिसमें झूठ और सच में कोई अंतर नहीं माना जाता। दिमाग कुछ ऐसा बन जाता है जिसमें झूठ सच और सच झूठ दिखायी पड़ता है। वैसे वे अपने में भले आदमी हैं।

मैं आपसे कहना चहता हूं कि एक तो ऐसे लोगों को यह अधिकार मिला हुआ है जो सरासर असत्य का प्रचार करते हैं, सारी संसदीय परम्पराओं को मिटाना चाहते हैं। ऐसे लोग जो राष्टन्नर््ीोही हैं, जो सारी संसदीय प्रणाली को समाप्त करना चाहते हैं, उनको भी मौलिक अधिकार इस प्रशासन ने दे रखे हैं। माननीय गुप्त जी को बड़ी बात कहने को मिल गयी है, कहीं पर विरोधी सरकारें मिल गई हैं। लेकिन कल हमारे मित्र मुरहरि अपने एक साथी की लाश को लेकर रो रहे थे कि सरकार ने कुछ नहीं किया, नक्सलबाड़ी में कुछ नहीं किया। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के द∂तर को किसने लूटा था? क्यों आये वह गृह मंत्री, भारत सरकार के पास कहने के लिए क्योंकि वहां अराजकता की स्थिति है। मैं जानना चाहता हूं श्री भूपेश गुप्त जी से, आप जाइये, कम्युनिस्ट पार्टी के मित्रों से पूछिये उत्तर प्रदेश में हमारे जनसंघ के मित्र क्या कर रहे हैं? रो नहीं रहे हो क्या? यह विरोधी दलों की जो एकता है केवल भावुकता की है, कांग्रेस के विरुह् र्विीोह की है। मैं मानता हूं कि र्विीोह की भावना है। लेकिन याद रखिये माननीय चैरड़िया साहब, कांग्रेस के साथ र्विीोह कीजिए मगर राष्ट्र के साथ र्विीोह न कीजिये। आप संविधान में संशोधन नहीं करना चाहते। संविधान में संशोधन करने को हम तैयार थे कि सारे देश में आपातकालीन संकट की स्थिति न रहते हुए कुछ हिस्से में रहे। विधान निर्माताओं ने कहा कि संकटकालीन स्थिति रहे तो सारे देश में रहे। आपने कहा कि किसी खास हिस्से में हो आप उसके लिए तैयार नहीं हैं तो हमें कोई एतराज नहीं है क्योंकि जनता को, लोगों को ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर कह देने से सरकार का जो उत्तरदायित्व है उसका हम निर्वाह न करें, तो यह असम्भव है। माननीय चैरड़िया जी ने कहा कि, क्या कर रही है सरकार? कैसे चीन और पाकिस्तान के जासूस सक्रिय हैं, उनको क्यों नहीं रोक पाते? अभी उनके नेता माननीय सुन्दर सिंह भंडारी ने आज प्रातःकाल कहा कि वाऽ संकट आसींा है। सारी सीमाओं पर, मैं उनके वाक्य को उह्ृत कर रहा हूं। जनसंघ के नेता प्रातःकाल कहते हैं कि हमारी सारी सीमाओं पर वाऽ संकट आसींा है और उनके एक नेता माननीय विमलकुमार चैरड़िया कहते हैं कि संकट देश के पर नहीं है। इसलिए महोदय, मैं केवल एक ही बात कहना चाहूंगा कि देश के अंदर ये जो प्रवृक्रिायां बढ़ रही हैं, यह केवल एक-आध घटनाएं नहीं है, चाहे नक्सलबाड़ी हो, चाहे मिजो हिल हो, चाहे नागालैण्ड में चीन और पाकिस्तान की दिलचस्पी हो। आज पीकिंग रेडियो ने कहा है जो अखबारों में आया है कि नक्सलबाड़ी की घटनाएं देश में एक नये जीवन को, नयी शक्ति को पैदा कर रही हैं। माननीय भूपेश गुप्त संसदीय परम्परा का उदाहरण दे रहे हैं। हमसे पूछते हैं कि हम आखिरकार कहां रहते हैं। पालयामेंटरी डेमोक्रेसी अगर नहीं होती तो आप यह सवाल नहीं पूछते, आपके मित्र नीरेन घोष जी आपको कभी का समाप्त कर दिये होते। लेकिन यह संसदीय प्रणाली है, संसदीय परम्परा है, भारतीय संविधान में आपको अधिकार मिले हुए हैं और उसी संविधान के अंतर्गत यह संकटकालीन स्थिति बनी हुई है। यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक राष्टन्न्विरोधी मनोवृत्ति का अंत नहीं हो जाता है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।