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राजा, रजवाड़ों और नवाबों ने किए हैं अंग्रेज़ों से अधिक जुल्म, बिल क्रांतिकारी सपनों की आवाज़

संदर्भ: Code of Civil Procedure (Amendment) Bill, 1964 26 नवम्बर 1965 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभापति महोदय, इससे पहले कि मैं इस बिल पर अपने विचार व्यक्त करूं, मैं सबसे पहले इस बिल को लाने वाले माननीय योगेश चन्द्र चटर्जी जी का अभिनन्दन करता हूं कि उन्होंने इस आवश्यकता को महसूस किया कि हमारे देश में जो यह व्यवधान पैदा हो गया है कानून के क्षेत्र में, उसको समाप्त किया जाये। श्रीमन्, माननीय योगेश चन्द्र चटर्जी का सारा क्रांतिकारी जीवन और उनके सारे जीवन का इतिहास इस बात का साक्षी है कि उन्होंने सही मायने में समझा कि एक क्रांतिकारी युग की आवश्यकता क्या होती है। उन्होंने यह भी समझा कि इस देश में जो आज़ादी की लड़ाई हुई उसे मंज़िल तक पहुंचाने के लिए हमें क्या-क्या काम करने होंगे।

हमारे कई मित्रों ने इस बात का ज़िक्र किया कि अगर हम सब इस बिल को मंज़ूर कर लेते हैं, इस विधेयक को पारित कर देते हैं तो जो हमने वायदे किये थे राजाओं के साथ, वे पूरे नहीं होंगे। हमारे माननीय मित्र लोकनाथ मिश्र जी ने उस दिन बड़े जोर-शोर से इस बात की दलील दी कि जो विश्वास दिलाया गया था राजाओं-महाराजाओं को, वह पूरा नहीं होगा और कांग्रेस पार्टी के लोगों से जनता का विश्वास, और उनके आश्वासनों में से सारे समाज का विश्वास उठ जायेगा। जब ये बात कही जाती है तो मुझे आश्चर्य होता है और साथ ही यह दुःख भी होता है कि आखिरकार आज़ादी की लड़ाई लड़ते समय क्या देश की जनता को कोई वायदा दिया था कि नहीं? और उस वायदे को पूरा करने के लिए अगर कोई कदम उठता है तो कम-से-कम माननीय लोकनाथ मिश्र जैसे लोग, यद्यपि वे गलत पार्टी में हैं, जिनके सामने युवक होने के नाते एक लम्बा भविष्य शायद पड़ा हुआ है, उनको इस बात का खयाल रखना चाहिए और आने वाले हिन्दुस्तान का मुस्तकबिल उनको मजबूर करेगा यह कदम उठाने के लिए। यह कोई कांग्रेस पार्टी की बात नहीं है, यह कोई स्वतंत्र पार्टी की बात नहीं है। इतिहास की गाड़ी जब चलती है, इतिहास का जब रथ चलता है, तो बड़ी-बड़ी पाटयां, बड़े-बड़े आदमी जो उसके सामने आने की कोशिश करते हैं, वे मिट जाते हैं। या तो इतिहास के अनुसार, समय के मुताबिक उनको बदलना होगा या इतिहास का रथ उनके सिर से निकल जायेगा, चाहे चंद्रशेखर हों या लोकनाथ मिश्र हों। पुराने दकियानूसी खयालों को लेकर या कुछ ऐसे नारों को देकर, इस तरह के स्वार्थी लोगों का पोषण अब इस देश में बहुत दिनों तक नहीं हो सकेगा, यह मैं आपको बता देना चाहता हूं। आजकल दिल्ली के अन्दर एक शहीद फिल्म चल रही है और मैं चाहता हूं कि श्री लोकनाथ मिश्र उसको एक बार जाकर देखें। अगर शहीद सरदार भगत सिंह, जिनका दादा श्री योगेश चन्द्र चटर्जी से बड़ा ताल्लुक था, उनकी ज़िंदगी के पर यह फिल्म है। मैं इसके बारे में बहुत नहीं कहूंगा, लेकिन जो तकलीफ, जो मुसीबत उन्होंने बर्दाश्त की थी, उसके पीछे कौन सा ज़ज्बा था? उसके पीछे यह ज़ज्बा था कि इतिहास में हज़ारों वर्षों से जो दबे हुए लोग थे, जिनके सिर पर हमेशा इतिहास की गाड़ी चलती रही, उनको इतिहास पर कदम रखने का हक़ दिया है।

मैं आपको बताना चाहता हूं कि ब्रिटिश साम्राज्य के मातहत हिन्दुस्तान की जो गुलामी थी, उससे भी बड़ी गुलामी देशी रजवाड़ों के नीचे जनता की थी और यह बात एक जगह नहीं, अनेक जगहों पर आपको दिखाई पड़ेगी। पंडित जवाहर लाल नेहरू जी की आत्म कथा को पढ़ लीजिए, महात्मा गांधी जी के उस समय के भाषणों को पढ़ लीजिए, क्रांतिकारियों के इतिहास को देख लीजिए, जो कुकर्म अंग्रेज़ी साम्राज्य ने इस देश के अंदर किए, उससे भी बड़े कुकर्म इस देश के रजवाड़ों और नवाबों ने इस मुल्क के अंदर किए।

मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि कोई भी हुकूमत हो, अगर उसने विश्वास दिलाया होगा, कभी दिलाया होगा, किन्हीं परिस्थितियों में दिलाया होगा, वह दूसरी बात है।

जिस समय हम इन रजवाड़ों को अपने कब्ज़े में ले रहे थे, उस समय देश की राजनीति में उथल-पुथल हुई थी और उस समय एकीकरण करना बहुत ज़रूरी था। यह भी सही है कि उनको निर्दय नहीं होना चाहिए। लेकिन 15, 18 वर्ष का समय काफी बड़ा होता है। वे यह समझने की कोशिश करें कि हिन्दुस्तान 1947 के पहले का हिन्दुस्तान नहीं रहा। आज 15 वर्ष के बाद कम-से-कम हिन्दुस्तान की आत्मा एक बार इस बात के लिए जागृत हो गयी है कि जो वायदे हमारे शहीदों ने इस मुल्क को दिये थे, जिन वादों के लिए रावी के तट पर सरदार भगत सिंह शहीद हुए थे, जिन वायदों का नारा लगाते हुए चंद्रशेखर आज़ाद इलाहाबाद में कुरबान हो गए, जिन वायदों के नाम पर हज़ारों क्रांतिकारियों ने अपने को फांसी के तख्ते में झुला लिया, उसको पूरा करने का अब समय आ गया है। अगर वे वादे पूरे नहीं होगे तो मैं माननीय गृहमंत्री जी से कहना चाहूंगा कि अगर वह इन वादों को पूरा नहीं करते, तो यह सरकार की कमज़ोरी है, इस देश की कमज़ोरी है, इस समाज की कमज़ोरी है और इस कमजोरी को लेकर न हम इस प्रजातंत्र को चला सकते हैं और न ही सरकार गरीबों के अधिकार को बहुत दिनों तक मटियामेट करती रह सकती है। आज लोकनाथ मिश्र जिस पार्टी को चला रहे हैं, स्वतंत्र पार्टी को, वह राजे-रजवाड़ों और दकियानूसी खयालों वाले पूंजीपतियों और स्वार्थी लोगों की पार्टी है। वैसे हमारी पार्टी में भी कई राजा रजवाड़े हैं लेकिन हम घबराते नहीं है। हम राजाओं को अपनी पार्टी में गुमाश्ते की तरह इस्तेमाल करते हैं और डा॰ा भाई पटेल राजाओं के गुमाश्ते के रूप में काम करते हैं। इतना ही फर्क है। राजा हमारे साथ भी हैं और उनके साथ भी हैं, लेकिन जो राजा हमारे साथ हैं, कांग्रेस पार्टी में हैं, वे कांग्रेस के सिद्धांतों के गुमाश्ते हैं और डाऽाभाई पटेल के राजा सिर्फ स्वार्थ के गुमाश्ते हैं। इस फर्क के साथ दोनों पार्टियों में राजा हैं।

माननीय उपसभापति, मैं आपसे कहना चाहता हूं कि लोकनाथ मिश्र जी ने जो सवाल उठाया है वह सही है। मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है इस बात पर, लेकिन एक बात मैं आपको बताउंगा और जैसा कि मैंने प्रारम्भ में भी कहा उनसे और उन्होंने गौर से सुना होगा। मैंने कहा था कि 10, 15 वर्ष का जो समय हमने उनको दिया, वह इसलिए दिया कि उनके साथ किसी तरह के कोई निर्दयता का व्यवहार न हो और इस बीच वे ज़माने का र∂तार को खुद समझ जायेंगे। अगर वे जमाने की गाड़ी को नहीं समझते तो वह उसके सिर पर से खुद चली जायेगी और इस चीज़ को फिर कोई नहीं रोक सकता है।

महोदय, मैं यह कह रहा था कि इस फर्क के साथ हमको और आपको गौर करना होगा इन सारी बातों के पर। आखिर, यह स्वतंत्र पार्टी, जनसंघ की पार्टी, ये पाटयां क्यों चलती हैं? इसलिए कि इस हिन्दुस्तान में 100 में से 80 फीसदी जो गरीब हैं, वे अपने अधिकारों को नहीं समझते हैं। वे अशिक्षित हैं और पढ़े लिखे नहीं है। अगर लोकनाथ मिश्र यह कहें कि 15 वर्ष से राजा रजवाडे़ भी कांग्रेस पाटी्र में हैं, तो मैं यह कहना चाहता हूं कि वे इसलिए है कि हिन्दुस्तान की 90 फीसदी गरीब जनता अपने हक को नहीं समझती है।

मैं आपको बताउंगा कि मैं क्यों चला गया। मैं इस समय व्यक्तिगत बातों को यहां पर नहीं कहना चाहता। आप इस बारे में कभी अलग से बातचीत कर लीजिए। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि अब हिन्दुस्तान की जो 90 फीसदी गरीब जनता है, वह उठ रही है, उभर रही है और आगे बढ़ती चली जायेगी। कांग्रेस पार्टी के न चाहते हुए भी वह अपने मजबूत कदम उठाने के लिए मजबूर है और इसलिए मैं कांग्रेस के साथ हूं। अगर कांग्रेस पार्टी में कोई आदमी यह चाहेगा कि इसको स्वतंत्र पार्टी के रूप में बदल दिया जाये, इस संस्था को कम्युनल संस्था बना दिया जाये तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस पार्टी की धारा मिट जायेगी और कांग्रेस भी खुद मिट जायेगी। लेकिन मैं समझता हूं कि कांग्रेस पार्टी ने जो सिद्धांत बनाये हैं वे समाजवादी आदर्श को आगे बढ़ाने के लिए है। इतिहास कांग्रेस को इस बात के लिए मजबूर कर रहा है और इतिहास की आवश्यकता को मानकर कांग्रेस पार्टी ने जिस समय अपना लक्ष्य और उद्देश्य घोषित किया कि वह समाजवाद की मंज़िल की ओर जायेगी। उस समय मैंने कांग्रेस में आना स्वीकार किया। मैं कभी भी न अपने पिछले कर्मों के लिए अपने को दोषी समझता हूं और आज जो मैं कांग्रेस पार्टी में हूं, न उसके लिए मैं अपनी आत्मा को गिरा हुआ समझता हूं। मैं लोकनाथ मिश्र जी से बड़े अदब से कहना चाहूंगा कि अगर कांग्रेस पार्टी में कोई व्यक्ति या कांग्रेस पार्टी का कोई वर्ग, कांग्रेस के माने हुए सिद्धांतों के खिलाफ काम करेगा तो उसके खिलाफ मेरी आवाज़ उतनी ही दृढ़ और निश्चित होगी जिस तरह से मैं स्वतंत्र पार्टी को एक सड़ी हुई, इतिहास की एक रद्दी और निकम्मी पार्टी मानता हूं। मैं ऐसा समझूंगा कि माननीय लोकनाथ मिश्र के पर भी इतिहास की एक मान्यता अगर कुछ साकार हुई, उनमें कुछ बुह् िआयी, तो उनको अपने बारे में फिर से सोचना चाहिए और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो जाना चाहिए ताकि नये सिरे से नये हिन्दुस्तान को बनाने की हम कुछ कोशिश कर सकें।

श्री लोकनाथ मिश्र एक व्यक्ति नहीं हैं, प्रतीक हैं। निहित स्वार्थों के प्रतीक हैं, जिनके बारे में इस बिल में कहा गया है। तो मैं माननीय मंत्री जी से कहूंगा कि श्री योगेश चन्द्र चटर्जी जी ने जो यह विधेयक इस सदन के समक्ष प्रस्तुत किया है वह आज की ज़रूरत को देखते हुए बहुत अहम है और उसको उन्हें अवश्य स्वीकार करना चाहिए। आखिर क्यों न इसको स्वीकार किया जाये। एक माननीय सदस्य ने कहा कि यह केवल इसी ज़िंदगी के लिए जो राजा हैं उनके लिए ही है। यह बात सही है लेकिन अगर उसी के लिए है तो 10, 20, या 5 वर्ष में उसका असर एक व्यक्ति पर नहीं होगा, एक इंसान पर नहीं होगा, उसका असर तो साइकालॉजिकल होगा, मनोवैज्ञानिक होगा और सारे समाज पर होगा।

मैं इस दूसरे पहलू से सोचने के लिए माननीय नफ़ीसुल हसन साहब से गुज़ारिश करूंगा। आप सोचिये कि हिन्दुस्तान के लोग कहते हैं कि आज़ादी आयी और इसके आने के बाद महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू को जो हक हासिल नहीं था वह किसी राजा को क्या हासिल हो? आज हिन्दुस्तान का एक गरीब पूछ सकता है कि सुभाष चन्द्र बोस के घर के लोगों को जो हक़ हासिल नहीं, माननीय योगेश चन्द्र चटर्जी के परिवार को जो हक़ हासिल नहीं, वह महाराजा बड़ौदा, महाराजा जयपुर, महाराजा ग्वालियर व किसी दूसरे महाराजा को क्यों हासिल होना चाहिए। उसके पीछे कौन सी ज़हनियत काम करती है। ज़हनियत केवल एक ही काम करती है और हमारे दिल व दिमाग में बैठी हुई है और वह है शहंशाहियत की इज़्ज़त।

अगर हमें जमहूरी हिन्दुस्तान बनाना है, तो श्रीमान् आपके ज़रिये मैं इस सदन से कहना चाहूंगा कि उस जमहूरी हिन्दुस्तान को बनाने के लिए हमको जमहूरियत की अपनी तालीम व तरबियत, अपने सोचने का तरीका, अपने काम करने का तरीका बनाना चाहिए। और सारी बातों का छोड़ दिया जाये, केवल एक बात को ध्यान में रखा जाये तो मैं आपसे कहूंगा कि हिन्दुस्तान का गया-से-गया गरीब अगर सोचे कि उसका वही दर्जा हो जो किसी राजा या नवाब का है, तो इसमें क्या अनुचित है?

मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई लड़ते समय जब एक क्रांतिकारी को कुछ परेशानी हुई, तो उन्होंने महात्मा गांधी को एक ख़त लिखा। इतिहास की बात मैं आपको बताता हूं कि उन्होंने यह लिखा कि बापू, अब आज़ादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते मैं थक गया हूं, घर बर्बाद हो गया है और मैं बड़ी परेशानी में हूं। महात्मा गांधी ने उस समय जो जवाब दिया था, उसमें उन्होंने यह कहा था कि जब आज़ादी की लड़ाई में कुर्बानी करते-करते दिल टूटने लगे, तो तुम उस आदमी को याद कर लेना जो सबसे गरीब हिन्दुस्तान में तुमने देखा हो, और फिर तुमको मालूम हो जायेगा कि आज भी हिन्दुस्तान में बहुत से गरीब लोग पड़े हुए हैं और उस गरीब आदमी की याद तुमको इस बात की ताकत देगी कि तुम हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई को आगे बढ़ा सको।

इसलिए आज हिन्दुस्तान में जमहूरियत को अगर आगे बढ़ाना है तो माननीय सदस्य से मैं गुजारिश करूंगा कि हिन्दुस्तान की जमहूरियत को बढ़ाने के लिए महाराजा जयपुर और महाराजा ग्वालियर को मत याद कीजिए। याद कीजिए उस गरीब को जो आज भी सिसकते हुए अपनी ज़िंदगी व्यतीत कर रहा है। अगर इस ज़हनियत को आप सोचें तो आपको मालूम होगा कि किस ज़हनियत से मजबूर होकर माननीय योगेश चन्द्र चटर्जी ने यह विधेयक पेश किया।

इन शब्दों के साथ मैं यह कहना चाहूंगा कि यह क्रांतिकारी आदमी की जो आवाज़ है वह आज सारे हिन्दुस्तान की आवाज़ होनी चाहिए। वह आवाज़ कांग्रेस हुकूमत की होनी चाहिए। उससे एक नया हिन्दुस्तान और एक नया मुस्तकबिल बिल बनेगा और मुझे विश्वास है कि यह सदन इस विधेयक को स्वीकार करेगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।