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सात वर्ष इंतज़ार के बाद आया बिल भी माडल नहीं करना चाहिए था कोठारी कमेटी की रिपोर्ट का इंतज़ार

संदर्भ: Banaras Hindu University (Amendment) Bill,1964 24 नवम्बर 1964 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभापति जी, आपके आदेश से मैं, इसके पहले कि इस बिल के बारे में कुछ कहूं, उस पुराने इतिहास की ओर इस सदन की नज़र ले जाना चाहूंगा जिसके चलते इस बिल की ज़रूरत पड़ी। 1957 में सरकार को यह अहसास हुआ कि बनारस हिन्दू यूनिवसटी में जो कुछ चल रहा है, वह ठीक नहीं है। उस समय मुदालियर कमेटी बनायी गयी और हमारे मित्र माननीय भूपेश गुप्ता जी ने उस तरफ इशारा किया। उस कमेटी की जो रिपोर्ट आयी, उसके बाद कोई भी व्यक्ति, जिसका उस विश्वविद्यालय से किसी भी प्रकार का सम्बंध रहा है, उसका सिर लज्जा से झुक जाता है।

मैं इस तफ़सील में नहीं जांगा कि रिपोर्ट कहां तक जायज़ थी और कहां तक नाज़ायज थी। लेकिन मैं ऐसा समझता हूं कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बारे में थोड़ा भी जानने वाला हर व्यक्ति इस बात को मानेगा कि वह रिपोर्ट गुस्से में लिखी गयी थी और रिपोर्ट जिस तरह से लिखी गयी थी, किसी भी विश्वविद्यालय के लिए और खासतौर से बनारस विश्वविद्यालय की परम्परा को देखते हुए इस तरह की बातों को स्वीकार करना किसी माने में उचित नहीं था। 1957 में रिपोर्ट आयी। 1958 में हमारी हुकूमत ने एक अध्यादेश लागू किया। उस पर एक शोर मचा कि विश्वविद्यालय के स्वशासन के पर यह एक बड़ा भारी हमला है। उसके बाद 1958 में एक अमेंडमेंट लाया गया। उस समय भी कहा गया कि यह अमेंडमेंट एक्ट यूनिवसटी की आटोनामी पर हमला है। सरकार ने यह कहा कि यह एक टेम्परेरी अरेंजमेंट है, थोड़े समय के लिए अरेंजमेंट हो रहा है, शीघ्र ही इसको बदल दिया जायेगा। फिर 1961 में एक बिल और लाया गया और कहा गया कि आगे एक माॅडल बिल बनाया जायेगा और अलीगढ़ और बनारस यूनिवसटियों के लिए वह बिल समान रूप से लागू किया जायेगा। मैं नहीं जानता कि 1964 में हमारे शिक्षा मंत्री ने जो बिल इस सदन के समक्ष रखा है, क्या यह वही माॅडल बिल है जिसका इंतज़ार करने के लिए, जिसकी प्रतीक्षा करने के लिए इस सदन को, इस देश को, इस विश्वविद्यालय को कहा गया था? मैं नहीं समझता कि यह कोई माॅडल बिल है किसी विश्वविद्यालय के लिए चाहे वह बनारस यूनिवसटी हो चाहे वह अलीगढ़ यूनिवसटी हो या कोई दूसरा विश्वविद्यालय हो।1964 में यह बिल आता है और मुझे बड़े अफ़सोस के साथ यह कहना पड़ता है कि इस बिल की मंशा जो है, इसकी स्प्रिट जो है, इसकी आत्मा जो है, वह मुदालियर कमेटी की रिपोर्ट है। मुदालियर कमेटी की रिपोर्ट जिस गुस्से में लिखी गयी थी वह गुस्सा थोड़ा सा ठंडा हुआ, लेकिन यूनिवसटी को आॅटोनामी देने की जो बात थी वह इस बिल से पूरी नहीं होती। आप इस बिल के ज़रिये यूनिवसटी कोर्ट बनाने जा रहे हैं। उस यूनिवसटी कोर्ट में आधे लोग बाहर के होंगे उनमें से कितने लोग नामिनेटेड करोगे, कितने लोग ऐसे होंगे जो सरकार के कब्जे़ के अंदर होंगे?

श्रीमन्, मैं आपके ज़रिये कहना चाहूंगा कि अभी हमारे मित्र माननीय मणि साहब यह कह रहे थे कि वाइस चांसलर को अधिकार दीजिए, लेकिन अधिकार देते समय आप यह सोचिये कि अनुशासन के नाम पर वाइस चांसलर महोदय उन अधिकारों का कहीं दुरुपयोग न करें। हुकूमत की ओर से कहा जायेगा कि वाइस चांसलर जब कोई भी कार्रवाई करेगा तो सोच समझकर करेगा और नेचुरल जस्टिस का ख्याल रखेगा। महोदय, मैं आपके ज़रिये कहना चाहूंगा कि उसी बनारस हिन्दू यूनिवसटी के अंदर पिछले तीन, चार, पांच वर्षों में कितने फैसले लिये गए और कितने फैसलों में विद्याथयों को छोड़ दीजिए, अध्यापक अदालतों के अंदर गए, अफसोस होता है कि न्यायाधीश, एक जज, वहां के उपकुलपति, वहां के वाइस चांसलर हैं एक दो में नहीं अनेक केसों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उपकुलपति महोदय का निर्णय गलत था, अध्यापकों के अधिकारों का अपहरण किया गया एक जस्टिस द्वारा जो वाइस चांसलर हैं। मैं इस बात को इस सिलसिले में कहना चाहता हूं जिसका ज़िक्र माननीय मणि साहब ने किया था कि कोई वाइस चांसलर चाहे विद्याथयों के अधिकारों को छीने, चाहे अध्यापकों के अधिकारों को छीने, तो क्या होने वाला है?

श्रीमन्, मेरा इस विद्यालय से बहुत दिनों तक सम्बंध नहीं रहा, दो महीने उस विश्वविद्यालय का मैं विद्यार्थी रहा। माननीय प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल जी यहीं हैं, इनके अंडर में, मैं पोलिटिकल साइंस में वहां रिसर्च करने गया, मुझे याद है, अगर मैं भूलता नहीं हूं तो आचार्य नरेनर््ी देव जी वाइस चांसलर थे, एक मीटिंग थी, हम लोग एक ही पार्टी में थे, आचार्य जी हमारे नेता थे, तो प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल जी ने कहा कि अब चंद्रशेखर पार्टी का काम थोड़ा करेगा, वह रिसर्च कर रहा है, अब वह रिसर्च करेगा। उस पर आचार्य नरेनर््ी देव जी ने कहा कि चंद्रशेखर मुल्क टूट जायेगा तो तुम्हारी रिसर्च कौन पढ़ेगा। वहां का वाइस चांसलर एक विद्यार्थी से यह कह सकता था और मैं कहता हूं कि कोई वाइस चांसलर चाहे जस्टिस हो, चाहे विद्वान् हो, यह बताये जिस ज़माने में आचार्य नरेनर््ी देव जी वाइस चांसलर थे चाहे लखनऊ यूनिवसटी के वाइस चांसलर रहे, चाहे बनारस हिन्दू यूनिवसटी के वाइस चांसलर रहे, एक राजनीतिक आदमी वाइस चांसलर रहा, लेकिन उस तुलना में अनुशासन की दूसरी मिसाल सारे हिन्दुस्तान के किसी विश्वविद्यालय में, इस ज़माने में मिलना नामुमकिन है। श्रीमन्, मैं आपको बताऊँ कि वाइस चांसलर के लिए अधिकार देने की बात नहीं होती है, वाइस चांसलर के अंदर कुछ शक्ति होनी चाहिए, वह विद्याथयों के पर अनुशासन कायम रख सके। श्रीमन्, मुझे आप क्षमा करेंगे कि मैं ऐसा कहता हूं, मैं बनारस हिन्दू यूनिवसटी में चार साल तक केवल इसलिए नहीं गया कि वहां जाने के समय परमिट लेना पड़ता था, किसी भी शिक्षा-मन्दिर के लिए इससे अधिक शर्म की बात नहीं हो सकती। इस हुकूमत को इस बात पर फश् हो सकता है कि आज बनारस हिन्दू यूनिवसटी में शान्ति है हमारे मित्र भूपेश गुप्त को तो वहां की हालत पता नहीं है लेकिन वहां विद्याथयों की कोई यूनियन नहीं बना सकते, आज बनारस हिन्दू यूनिवसटी की यह हालत है। जिस बनारस हिन्दू यूनिवसटी के प्राध्यापक विश्वविद्यालय में या विश्वविद्यालय के बाहर चाहे वह राजनैतिक प्रश्न हो चाहे अध्यात्मिक प्रश्न हो, चाहे शिक्षा सम्बंधी प्रश्न हो अगर कोई सेमिनार कोई गोष्ठी होती थी तो वहां बड़ी मात्रा में मौजूद होते थे। उनके बारे में आज क्या हैऋ अगर मैं गलत कहता हूं तो प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल जी यहां बैठे हुए हैं, वह मुझे सही करेंगे।

आज मैं माननीय शिक्षा मंत्री जी से भी कहना चाहूंगा कि आप एक सर्वे करा लें कि पिछले दिनों जबसे आपकी मुदालियर कमेटी की रिपोर्ट निकली है तब से लेकर आज तक यूनिवसटी के अंदर या बाहर जितने सेमिनार्स हुए हैं चाहे वह यूनिवसटी के बाहर काशी विद्यापीठ में हुआ हो, चाहे वह गांधी तत्व विचार परिषद में हुआ हो, चाहे ओर दूसरी जगह हुआ हो उनमें कितने बनारस यूनिवसटी के प्राध्यापकों ने हिस्सा लिया है? बनारस हिन्दू यूनिवसटी के प्राध्यापक उसमें नहीं जाते हैंऋ क्योंकि वे डरते हैं कि कल एक्सप्लेनेशन काल किया जायेगा। यह मैं व्यक्तिगत जानकारी पर कहता हूं। सारे विश्वविद्यालय में एक आतंक का वातावरण, एक परेशानी का माहौल बना हुआ है। मैं आपसे कहूं कि हिन्दुस्तान की संस्कृति और सभ्यता की, पुराने हिन्दू धर्म की और सारी बातों की शिक्षा देने का विचार इसमें रखा गया है। इसके उद्देश्य में यह है, लेकिन सारे भारत में एक भी Ωषिकुल या गुरुकुल नहीं था चाहे बडे़-से-बड़ा शहंशाह रहा हो, बडे़-से-बड़ा सम्राट रहा हो जहां कि किसी ने फौज और पुलिस भेजी हो लेकिन बनारस हिन्दू यूनिवसटी आज फौज और पुलिस की संगीनों के साए में चल रही है, उनके आतंक के अंदर चल रही है। मैं आपसे बड़े अदब से कहना चाहूंगा कि इस बात के पर गौर करें।

मैं एक दूसरी बात कहूं। मैं जस्टिस भगवती को व्यक्तिगत नहीं जानता, लेकिन मुझे एक घटना से बड़ा अफसोस हुआ, मैं उसे कहने के लिए मजबूर हूं, इसके लिए आप मुझे क्षमा करेंगे। तीन वाइस चासंलरों की तीन बातें मुझे याद आती हैं। एक यह कि दूसरे सदन में, लोकसभा में एक सदस्य है कांग्रेस पार्टी के आज-कल सदस्य हैं, उनका नाम लेना मैं ठीक नहीं समझूंगा। उनके पिता जी अंग्रेज़ी ज़माने में एक कलेक्टर के यहां नौकर थे। वह हाई स्कूल पास हुए तो उनके पिता जी ने कलेक्टर से कहा कि आपका लड़का हाई स्कूल पास हो गया है, कलेक्टर ने कहा कि वह नौकरी लेना चाहे तो नौकरी ले ले। उन्होंने कहा, नहीं हमें मालूम हुआ है, हमने सुना है कि मालवीय जी ने कोई स्कूल खोला है, आप एक चिट्ठी लिख दीजिए, उस स्कूल में मैं अपने बच्चे को पढ़ाना चाहता हूं और अंग्रेज़ कलेक्टर का ख़त लेकर के वह गरीब बाप, एक चपरासी जाता है, मालवीय जी के यहां खत देता है और फिर सारी एजुकेशन, सारी शिक्षा उसकी उनके विश्वविद्यालय में हुई और यही नहीं उनके बाद भी उनके लड़के, उनके सगे-सम्बन्धियों के लिए कहा गया कि तुमको शिक्षा दी जायेगी, तुम्हारा इस विश्वविद्यालय से पुराना नाता है। एक यह घटना है।

दूसरी, आचार्य नरेनर््ी देव जी के ज़माने की मुझे एक बात याद है। एक कम्युनिस्ट लड़का विश्वविद्यालय की परीक्षा के दो दिन पहले उनके पास गया और कहा कि आचार्य जी, मैं इम्तिहान में नहीं बैठ सकता। उन्होंने पूछा कि क्यों? उसने कहा कि तीन सौ रुपये फीस के बाकी हैं, पूअर ब्यायज़ फंड से हमको दिलवा दीजिए तो मैं परीक्षा दे सकूंगा। आचार्य देव जी ने कहा कि पूअर ब्यायज़ फंड में रुपया नहीं है। उसने कहा कि तो मैं क्या करूं? आचार्य जी ने अपने प्राइवेट सक्रेटरी को बुलाया और तीन सौ रुपये का चेक काट कर दे दिया। वह दक्षिण भारत का एक स्टूडेंट था, उसने कहा, आचार्य जी,

I am not a Socialist( I am a communist.

The reply from Acharya Narendra Dev was, "This cheque is from the ViceChancellor to a student of this University( not from Socialist to a communist." एक दूसरे वाइस चांसलर की बात है।

एक तीसरे आपके जस्टिस भगवती हैं, जिनके पर फश् है जो न्यायाधीश हैं, जिनकी न्याय-बुद्धि में किसी को ऐतराज़ नहीं होगा। इसी सदन में कुछ दिन पहले जो एक सदस्य थे, देवेन्द्र बाबू, श्री डी.पी. सिंह, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के, उनके भाई वहां गए, श्री बी.पी. कोइराला जो नेपाल के प्रधानमंत्री थे, उनके लड़के के एडमिशन के सिलसिले में। इस समय जबकि कोइराला जी जेल में हैं। देवेन्द्र बाबू के छोटे भाई उस लड़के को लेकर जाते हैं, तो उस लड़के के सामने जिसका बाप जेल के अंदर है, जिसके भविष्य के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता जस्टिस भगवती साहब जवाब देते हैं, बी.पी. कोइराला का लड़का क्यों न हो, अगर राजा महेंद्र भी कहें, तो भी इस लड़के का एडमिशन यहां नहीं होगा। आप दे दीजिए अधिकार जस्टिस भगवती को। लोगों को पावर देने से ही कभी शांति नहीं आ सकती, कभी अनुशासन नहीं रह सकता। कभी वहां का विद्यार्थी इस बात के लिए तैयार नहीं होगा कि जाकर कहे कि यह हमारे गुरु हैं, इनकी आज्ञा को मानना हमारा कर्तव्य है।

एक दूसरी चीज का ज़िक्र मैं करना चाहूंगा। श्रीमन्, यह एक्ट जो आपने बनाया है, उसमें एग्ज़ीक्यूटिव कौंसिल में अध्यापकों को कितना रिप्रेजेंटेशन दिया है? मैं यह इसलिए कहता हूं कि न केवल विद्याथयों को वाइस चांसलर साहब निकाल सकते हैं बल्कि जब चाहें वहां के अध्यापकों को भी निकाल दें। मैंने अभी ज़िक्र किया था कि बी.एच.यू. में किस तरह अध्यापकों के खिलाफ़ कार्रवाई की गयी थी और उसके खिलाफ सारे न्यायाधीशों ने कहा कि यह काम गलत हुआ है।

मेरा दूसरा कहना यह है कि 1957 से 1964 तक, सात वर्ष तक सारे देश को, सब लोगों को, इस बात के लिए इंतज़ार कराया गया कि कोई माॅडल बिल दिया जायेगा, तो आखिरकार क्या दिक्कत थी कि कोठारी कमेटी की रिपोर्ट आ जाती और कोठारी कमेटी से रिपोर्ट मांग करके कोई माॅडल बिल पेश करते? हमारे माननीय शिक्षा मंत्री जी का यह जो बिल है, मैं नहीं जानता कि इसका क्या होने वाला है? सेलेक्ट कमेटी में जा रहा है। क्या सेलेक्ट कमेटी में यह एकदम उलट दिया जायेगा और कोई माॅडल बिल बनेगा। या ऐसा होगा कि इस बिल के पास होने के बाद जब कोठारी कमेटी फिर रिपोर्ट देगी तो क्या एक माॅडल बिल फिर ले आयेगी?

मैं, श्रीमन्, आपसे यह कहना चाहूंगा कि शिक्षा-संस्थाओं में अनुशासन के सवाल पर विचार करते समय ज़्यादा संजीदगी से, ज़्यादा सोच-समझकर और भावनाओं से पर उठकर इस सवाल को हल करने के लिए कोई कदम उठाया जाये तो उचित होगा। मैं माननीय शिक्षा-मंत्री जी से आग्रह करूंगा कि इस बिल को वापस लें। कोठारी कमेटी की रिपोर्ट आने पर किसी एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट से माॅडल बिल प्रस्तुत करें जो यूनिवसटी को आॅटोनामी दे सके, जो विद्याथयों में अनुशासन के लिए प्रेरणा दे सके, जो वाइस चांसलर को सद्बुह् दे सके कि वे अपनी ज़िम्मेदारियों को संभाल सकें।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।