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बिड़लाओं ने साबित करने की कोशिश की है कि वह संसद और राष्ट्र से बड़े हैं, गठित हो उच्चशक्ति वाली समिति

संदर्भ: औद्योगिक आयोजन तथा अनुज्ञापन नीति के बारे में अंतरिम प्रतिवेदन 20 मई 1967 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभाध्यक्ष महोदय, श्री भूपेश गुप्त जी ने आंकडे़ प्रस्तुत करके मेरा काम आसान कर दिया है। मैं केवल इस प्रश्न के व्यापक पहलू पर ही विचार व्यक्त कंरूगा। यदि हम एकाधिकारी को अपार धन संचय करने की पूरी छूट दे दें तो इसमें व्यक्ति का दोष नहीं, पह्ति का या प्रणाली का दोष है। बिड़लाओं की पृथक रूप से हम इसलिए आलोचना कर रहे हैं कि इस क्षेत्र में इनका कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 39 (ख) तथा (ग) में स्पष्ट रूप से यह दिया गया है कि भौतिक साधनों के नियंत्रण तथा स्वामित्व का वितरण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे सामान्य जनों के हित में सहायता मिले और आथक प्रणाली का क्रियान्वयन इस प्रकार होना चाहिए जिससे जनहित के प्रतिकूल न हो सके। 1959 के औद्योगिक नीति संकल्प में स्पष् रूप से यह बात कही गई है कि संपत्ति का संकेंद्रीयण रोकने के लिए हर सम्भव कदम उठाया जाना चाहिए। यह बड़ी ही लज्जाजनक बात है कि इनके बावजूद कुछ लोग संविधान निर्माताओं तथा भारत सरकार के इस सद्प्रयोजन को निष्प्रभावी कर रहे हैं।

हमारे प्रतिवेदन में कहा गया था कि बिड़लाओं ने औद्योगिक उत्पादन के हर क्षेत्र में पांव फैलाये हैं। केवल एक ही मौका ऐसा था जबकि सरकार ने बिड़ला ग्रुप को अपना इस्पात संयंत्र स्थापित नहीं करने दिया था, लेकिन बिड़लाओं ने हार नहीं मानी। उन्होंने संसद को तथा सारे राष्ट्र को यह जताने की कोशिश की कि देश में रहने वाले 45 करोड़ भारतीयों से उनकी शक्ति बड़ी है। ‘इंडियन इन्ड आफ दि यू.एस.लाबी’ शीर्षक के अधीन ‘इकोनोमिक टाइम्स’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इस भारतीय व्यापार-गृह ने वाशिंगटन में इस्पात ‘लाबी’ से सम्पर्क स्थापित किया और ऐसे ‘कानसोटयम’ के साथ सम्बंध स्थापित किए जिनमें अमेरिकी हित सन्निहित था। यह नेहरू सरकार द्वारा इस्पात संयंत्र के लिए मंज़ूरी न मिलने पर प्रतिक्रया के रूप में किया गया।

महोदय, क्या यह राष्ट्र की सेवा थी? कुछ समय पूर्व इस्पात मंत्री ने बोकारो परियोजना के सिलसिले में उपस्थित कठिनाइयों के संदर्भ में लोकसभा में इस बात का उल्लेख किया था कि इस परियोजना को ‘भारतीय लाबी’ तथा ‘अमेरिकी लाबी’ असफल करने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार इस बात से इन्कार नहीं कर सकती कि बिड़ला हमारे देश की अर्थव्यस्था तथा राजनीतिक जीवन को प्रभावित करने की कोशिश करे रहे हैं।

हमारे प्रतिवेदन के अनुसार सभी राज्यों में बिड़ला के प्रतिष्ठान कार्य कर रहे हैं। यहां भी उनका उद्देश्य काफी कदाशयपूर्ण रहा है। जब उन्होंने देखा कि राज्य, केंद्रीय को प्रभावित कर रहे हैं तो उन्होंने राज्यों के मुख्य मंत्रियों तथा राज्य विधान सभाओं पर भी अपना प्रभाव डालने की कोशिश शुरू कर दी। बिड़लाओं के हितों की व्याप्ति संपूण्र्र बाधाओं के परे है। प्रेस तथा राजनीतिज्ञों के माध्यम से वे संसद तथा संपूर्ण देश पर अपना प्रभाव जमाने की नितांत कोशिश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में एल्यूमिनियम संयंत्र उनकी सबसे महान उपलब्धियों में से है। लेकिन उत्तर प्रदेश की विधान सभा की लोक लेखा समिति ने उसकी कड़ी आलोचना की थी। बिड़लाओं ने केरल में 2 रुपये 80 पैसे प्रति टन के हिसाब से बांस खरीदने के लिए सहमति दी थी लेकिन श्री नम्बूदरीपाद की अध्यक्षता में जो करार किया गया, उसमें वह कीमत 1 रुपये प्रति टन कर दी गयी। यह केरल की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा किया गया करार है। इससे ज़ाहिर होता है कि बिड़लाओं में किसी से भी अपना स्वार्थ सिह् कराने की अपार क्षमता है।

मैं बिना प्रमाण के कुछ नहीं कहना चाहता। लोक लेखा समिति के सदस्य केरल गए थे। हमने वहां करारों के बारे में चर्चा की, दस्तावेज़ देखे और हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि बिड़लाओं में सभी राज्य विधान सभाओं को प्रभावित करने की अपार क्षमता है। उपसभापति महोदया, मैं कुछ और बातें कहना चाहता हूं, इसलिए मुझे कुछ समय और दिया जाना चाहिए।

महोदय, दूसरा प्रश्न विदेशी र्मुीा से सम्बन्धित है। कुछ लोगों ने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि बिड़लाओं ने अपने उपक्रमों में विदेशी र्मुीा का भाग घटा दिया है, लेकिन हमें यह देखना है कि प्रारम्भ में क्या स्थिति थी। शुरू में उसमें विदेशी र्मुीा का भाग 80 प्रतिशत था। जब विदेशी र्मुीा आसानी से उपलब्ध थी तो बिड़लाओं को देश में सर्वाधिक राशि प्राप्त हो रही थी। क्या यह तथ्य नहीं है कि देश से बाहर बिड़ला की 12 कम्पनियां चल रही थीं? क्या इनमें से दो कम्पनियां लंदन में दि ईस्टर्न इण्डिया प्रोड्यूस लिमिटेड तथा न्यूयार्क में दि ईस्टर्न इण्डिया प्रोड्यूस, न्यूयार्क बिड़लाओं के लिए अधिक मूल्य के बीजक तथा कम मूल्य के बीजक तैयार करने का काम नहीं कर रही थी? सरकार को इसकी जांच करनी चाहिए। यदि बिड़ला विदेशी र्मुीा विनियमन अधिनियम के सभी नियमों, कार्य प्रक्रयाओं और उपबन्धों के विरुह् विदेशी र्मुीा प्राप्त करने की व्यवस्था कर सकते हैं तो अन्य प्रतिस्पर्धी क्या करेंगे?

अन्य उपक्रमों के प्रति भी बिड़लाओं का रवैया बड़ा दिलचस्प रहा है। बिहार में सोन के बराज के फाटक के निर्माण हेतु दुनिया भर के देशों से टेंडर मांगे गए थे। बिड़ला की किसी कम्पनी ने टेंडर नहीं भेजा। जैसोप्स कम्पनी ने जो टेंडर भेजा वह बड़ा उचित था, विदेशी र्मुीा के लिए उसकी मांग अपेक्षाœत कम थी। यह कम्पनी पहले मूंदड़ा के अधिकार में थी किन्तु अब इस पर सरकार का नियंत्रण है। एक आस्टिन्न्यन फर्म ने भी टेंडर भेजा था। वह मैसर्स वौइस्ट के नाम से था। उस कम्पनी ने बताया कि भारत में बिड़ला की टेक्समाको कम्पनी के साथ उसका सहयोग है। इस आधार पर उपरोक्त कम्पनी को सोन के बराज के फाटक का निर्माण कार्य दे दिया गया और जैसोप्स को आर्डर नहीं दिया गया जो कि एक सरकारी उपक्रम था। गत वर्ष केंद्रीय जल तथा विद्युत आयोग का एक दल बिहार गया। उन्होंने सारे कार्य की जांच की और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि बिड़लाओं ने सोन के बराज के फाटके लिए जो विदेशी इस्पात मंगाया उसकी कतई जरूरत नहीं थी और जैसोप्स ने खर्च के जो आंकडे़ दिये थे वे सही थे।

बिड़लाओं का दूसरा तरीका छोटे उद्यम वालों से उपक्रमों को खरीदने का है। हाल में इंडियन स्टीम शिप कम्पनी व विक्रय का जब प्रश्न उठा तो भारत सरकार ने समवाय विधि विनिमयों के अधीन बिड़लाओं को प्राथमिकता प्रदान की।

मुझे ज्ञात है कि बिड़ला की 75 कम्पनियों के पास न कोई आस्तियां हैं और न पूंजी है। फिर भी वे चल रही हैं। गत दो वर्षों के दौरान भारत सरकार ने इन उद्योगों को 85 करोड़ रुपये का ऋण प्रदान किया था। पंजाब नेशनल बैंक, यूनाइटेड कमशयल बैंक तथा अन्य गैर सरकारी बैंकों ने उन्हें लगभग 125 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की। इस तरह सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाएं बिड़लाओं के स्वार्थ की सिह् में योगदान दे रही हैं। बिड़लाओं के प्रभाव के कारण ही छोटी कारों का उत्पादन रुका पड़ा है। हाल में बिड़लाओं ने किसी चाल से एक आयात लाइसेंस हथिया लिया। उन्होंने कुछ ऐसे फालतू पुज़र््ो मंगाने शुरू कर दिए जो आयात लाइसेंस में शामिल नहीं थे। विशिष् पुलिस दल ने मामले की जांच की और प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। लेकिन वहां यह हो रहा है कि छोटे-छोटे अधिकारियों की पेशियां हो रही हैं और उच्च अधिकारियों तथा बिड़लाओं की ओर कोई अंगुली नहीं उठा रहा है।

मुझे स्वर्गीय फिरोज़ गांधी की याद आती है। उन्होंने रूबी तथा न्यू एशियाटिक इंश्योरेंस कम्पनियों का मामला उठाया था। मैं यह कह सकता हूं कि इसी रूबी इंश्योरेंस कम्पनी तथा न्यू एशियाटिक इंश्योरेंस कम्पनी का मामला इस सरकार द्वारा नियुक्त आडीटरों को सौंप दिया गया था। यह पुस्तकालय में मौजूद है। मैं तो प्रतिवेदन में सींाहित कुछ वाक्यों की चर्चा मात्र कर रहा हूं। उसमें यह कहा गया था कि न्यू एशियाटिक इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के मुख्य कार्यालय तथा शाखाओं में कर्मचारियों तथा अधिकारियों ने षडयंत्र रचा था कि लेखापुस्तकों व बहीखातों में प्रति वर्ष का लाभ इस तरह प्रदशत किया जाये जिससे शेयर होल्डरों को यह गलतफहमी रहे कि कम्पनी की स्थिति बड़ी समृह् है। इस कारण उनके सारे रिकाॅर्ड जाली थे। वही बात रुबी कम्पनी के बारे में कही गयी थी।

मैं अब आयकर अधिकारियों के प्रतिवेदनों का उल्लेख कर रहा हूं। गत तीन वर्षों से हमने रेवेन्यू आॅडिट शुरू किया है। हर बार किसी खास कम्पनी के लेखा की जांच के लिए आॅडीटर जनरल के अधिकारी जाते हैं। रेवेन्यू आॅडिट की इस पह्ति के अनुसार आॅडीटर जनरल के अधिकारी नमूने के तौर पर केवल 10 प्रतिशत आॅडिट करते हैं। गत तीन वर्षों में जब भी बिड़ला की कोई कम्पनी आॅडिट के अधीन आई तो पता चला कि निर्धारण में त्रुटियां थीं। मेरे पास बिड़ला के रजिस्टर के इस प्रकार के पृष्ठों की नकल मौजूद है। उनमें अधिकारियों ने ऐसे अनुदेश दिये हैं जिनसे उत्पादन शुल्क की राशि काफी कम हो जाती है और नियंत्रित कपड़े के मूल्य में वृह्। इसलिए जब तक कि सारी कार्य-पह्ति के ढांचे में ही परिवर्तन न किया जाए, सरकार के सारे प्रयत्नों के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होना कठिन है। जब तक बिड़ला बैंकों से अपनी इच्छानुसार काम ले सकते हैं और बैंक गैर सरकारी प्रबंधकों के हाथ में है, इस प्रकार के कदाचरणों को रोक पाना बहुत कठिन है। इसलिए सरकार को एक उच्च शक्ति प्राप्त समिति नियुक्त करनी चाहिए। यह समिति संसदीय समिति होनी चाहिए।

सरकार को बिड़लाओं की कम्पनियों की जांच करने के लिए एक उच्च शक्ति वाली समिति नियुक्त करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। उसे ऐसे कदम उठाने चाहिए जिनके दूरगामी प्रभाव हों। गै़र-सरकारी हाथों में जो ऋणदाता संस्थाएं तथा वित्तीय समितियां हैं उन पर से उनका नियंत्रण हटाया जाना चाहिए और उनका लाभ समाज को तथा सामान्य जनता को मिलना चाहिए। संसद को बिड़लाओं के इन कारनामों को और अधिक सहन नहीं करना चाहिए। ऐसा करना देश तथा राष्ट्र के हित में नहीं होगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।