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केवल सुब्र२णयम नहीं, वास्तविक अपराधी है समस्त लोहा इस्पात मंत्रालय

संदर्भ: लोक सेवा समिति के 55वें प्रतिवेदन के बारे में प्रस्ताव 27 अगस्त 1966 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से श्री करमरकर को आश्वासन दिलाना चाहता हूं कि लोक लेखा समिति प्रत्येक व्यक्ति के लिए सद्भाव तथा विचारपूर्ण रूख रखती है और विशेषकर भारत सरकार के मंत्री अथवा सचिव का तो और भी ध्यान रखती है। लोक लेखा समिति के पचासवें तथा पचपनवें एवं छप्पनवे प्रतिवेदन में यह व्यक्त किया है कि इस मामले में माननीय मंत्री का निर्णय समझा नहीं जा सका। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि वित्तीय अपराधों के इतिहास में इससे बुरा अपराधिक मामला दूसरा नहीं मिलेगा। जून, 1963 के आदेश के लिए श्री सुब्र२णयम बधाई के पात्र है। ये फर्में हिन्दुस्तान स्टील के लिए कुछ माल जापान से मंगा रही थी और वह माल घटिया किस्म का था। वह खास फर्म काले बाजार में ही समस्त माल बेचती थी, जब जांच के लिए सरकारी निरीक्षक वहां पहुंचा तो उन्हें चकमा दिया गया कि माल मिश्रित हो गया है और एक वर्ष का समय मांगा गया। उस अवधि के बाद वहां जापानी माल नाम की कोई चीज नहीं थी। इन परिस्थितयों में वह आदेश श्री सुब्र२णयम ने पास किया था।

श्री सुब्र२णयम ने स्पष्टीकरण के दौरान परिवहन मंत्रालय की जिस रिपोर्ट का उल्लेख किया वह कोई लिखित रिपोर्ट नहीं है। टेलीफोन पर सूचना मात्र थी। इसी तरह ए.पी. जय कम्पनी ने भी सभी प्रकार के नियमों का उल्लंघन किया है। उन्होंने कलकक्रो में भी एक फर्म खरीदी है। उनके पास विदेशी र्मुीा का साधन क्या है, इसे कोई नहीं जानता, फिर भी इस कम्पनी के विरुह् कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई। इस प्रकार के मामले में इंग्लैंड में मन्त्रियों को त्यागपत्र देना पड़ता है। श्री सुब्र२णयम को ऐसी परिस्थिति में त्यागपत्र दे देना चाहिए। फिर भी मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री ने इस मामले की जांच के लिए समिति नियुक्त करने की सहमति दे दी है। मैं नहीं जानता कि उक्त समिति को क्या कानूनी अधिकार प्राप्त होंगे, लेकिन यदि उसे अधिकार प्राप्त हो जाते हैं तो अच्छा होगा। मेरी मान्यता यह है कि श्री सुब्र२णयम का अपराध बड़ा नहीं है। वास्तविक अपराध समस्त लोहा इस्पात मंत्रालय का है जिन्होंने इन फर्मों को 1952 से 1963 तक अनुचित रूप से प्रोत्साहन दिया। महोदय, जब मैंने श्री भूतलिंगम् के विरुह् प्रश्न उठाया, तो मेरा उनके प्रति कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं था। कुछ दिन पूर्व श्री कृष्णमाचारी के निजी सचिव कोई रेड्डी महाशय कलकत्ता गए। भारत सरकार के लिए एक अधिकारी कलकत्ता गए और एक क्लब में काफी आयातकों तथा निर्यातकों के समक्ष उन्होंने कहा कि श्री चंद्रशेखर को साहू जैन ने 15,000 रुपये दिए ताकि वे भूतलिंगम् के विरुह् आक्षेप लगा सकें।

मैं इस सभा से निवेदन करता हूं कि इस प्रकार का प्रचार बंद किया जाना चाहिए और इस सरकार को इस तरह के मामले की जांच करवाने के लिए साहस बटोरना चाहिए। मैं गरीब आदमी हूं लेकिन मुझे अपनी ईमानदारी तथा सम्मान का बहुत ध्यान है। सभा को इस बात की ओर ध्यान देना चाहिए।

यह लोहा इस्पात मंत्रालय इस देश में लोकतांत्रिक जीवन को नष्ट करने वाले समाज विरोधी तत्वों का आश्रय स्थल रहा है, 1956 में मंत्रालय ने एक ऐसे व्यक्ति का चालान किया था जिसे पुलिस जालसाज़ तथा ठग समझती थी, बाद में श्री भूतलिंगम् ने श्री कृष्णमाचारी को एक टिप्पणी भेजी कि पुलिस अधीक्षक द्वारा इस प्रकार व्यवस्था कर ली गई है जिससे इस विशेष व्यक्ति को विक्षिप्त घोषित किया जा सके और देश के विभिन्न भागों में फिर से मामले शुरू किए जाएंगे। मेरे पास इस टिप्पणी की फोटोस्टेट मौजूद है। लेकिन मैं उसे सभा पटल पर नहीं रखूंगा। वैसे कोई भी सदस्य इस दस्तावेज़ को देख सकता है। वे कहते हैं कि वह ठग हो सकता है। लेकिन वह भारत सरकार में 2700 रुपये प्रतिमास की नौकरी पर था भारत का नागरिक था। सम्भ्रांत व्यक्ति था। यदि सरकार का यह रवैया रहा तो भ्रष्टाचार के विरुह् आवाज़ उठाने वाले लोगों की ईमानदारी, जीवन तथा संपत्ति और सम्मान की रक्षा नहीं हो सकती। महोदय, यदि जांच समिति को पूर्ण शक्तियां तथा व्यापक अधिकार नहीं दिए जाएंगे तो वह लाभदायी कार्य नहीं कर सकेगी। यदि प्रधानमंत्री तथा सभा के नेता आवश्यक समझे तो मैसर्स अमीनचंद प्यारेलाल फर्मों के समस्त दस्तावेजों तथा अभिलेखों पर पुलिस द्वारा कब्ज़ा कर लेना चाहिए ताकि उनको उनमें हेरफेर का अवसर न मिल सके। सरकार को इस दिशा में साहस से कार्य करने की आवश्यकता है जिससे वास्तविक अपराधियों को दंड दिया जा सके।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।