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विकास के लिए एक साथ उठाने होंगे कई कदम, सदन सर्वसम्मति से पास करें बिल

संदर्भ: Shopkeepers (Fixation of Price labels) bill, 1962 28, अगस्त 1963 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


मैडम, मैं क्षमा के साथ अपनी दाहिनी तरफ बैठे मित्रों के कहने पर अंग्रेज़ी में अपनी बात रखने जा रहा हूं। माननीय सदस्य श्री तारिक जी ने जो बिल पेश किया है, मैं उसका समर्थन करता हूं। जब यह बिल पेश हुआ था, तब कई सदस्यों ने इस पर संदेह जताया था। इस बिल पर सवाल उठाए गए थे। कि इससे भारतीय परम्पराओं को ठेस पहुंचेगी, एक सदस्य ने तो यहां तक कहा कि हमारे भारत के ग्रामीण इलाके रहने वाले लोग की जो वर्षों पुरानी आदत है, वह इससे प्रभावित होगी। कल प्रधानमंत्री जी ने कहा कि वह भारत के स्वाभाव को परिवतत करना चाहते हैं।

मैडम, जब कोई समाज प्रगति की राह पर आगे बढ़ना चाहता है तो वह नए रास्ते पर चलने के साथ ही स्वयं के अंदर बदलाव लाता है। ऐसा नहीं है कि हम अपनी परम्पराओं का पालन करते हुए परिवर्तन नहीं ला सकते हैं। हां, इसमें कुछ दिक्कतें आ सकती हैं लेकिन अवश्य होगा क्योंकि प्रगति के लिए कोई सुनिश्चित मार्ग नहीं होता। वह कुछ टेढ़ा-मेढ़ा होता है और सभी को उसी पर चलना होता है। जब भी कोई बदलाव की बात करता है, विकास की बात करता है, प्रगति की बात करता है तब कुछ लोग उसके विरोध में लामबंद होकर खड़े होने लगते है कि यह सम्भव नहीं है और अगर ऐसा हुआ तो इससे हमारी पुरानी मान्यताएं और परम्पराएं खतरे में पड़ जाएंगी। मैं इस सदन के अपने सभी सम्मानित साथियों से यह अनुरोध करता हूं कि वह इस तरह के तर्क सदन के पटल पर न रखें। सदन के सभी सम्मानित साथीगण इस मुद्दे पर प्रगतिदायी सोच के साथ सकारात्मक बहस करें। हमे ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे यह संदेश जाए कि हम समाज के सबसे निचले तबके के हितों के विरोध में हैं। यह सही है कि बदलाव लाने में बहुत सारी समस्याएं आएंगी लेकिन हमें उन समस्याओं के आगे झुकने के बजाय उनका डटकर मुकाबला करना होगा। इस बिल में कुछ खामियां है। बिल की डन्न्ाफटंग में कुछ गलतियां हैं। फिर भी इस बिल के साथ हमे आगे बढ़ना होगा। इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजना होगा। इस सदन के सम्मानित सदस्य ओर मेरे मित्र श्री याजी ने मिश्रित अर्थ व्यवस्था का सवाल उठाया है। मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे में कहा जाता है कि यह तभी सफल होती है, जब इसमें व्यापार नैतिक और सैद्धांतिक तौर किए जाते हैं। इस सदन के सभी सम्मानित सदस्यगण इस बात पर हमसे जरुर सहमत होंगे कि हम तभी प्रगति कर सकते है, जब हम नैतिक, सैद्धांतिक और ताकक आधार पर व्यापर करें।

मैडम, मैं श्री याजी के तर्को से सहमत नहीं हूं। अभी थोड़ी देर पहले श्री गोविन्द नायर ने बहुत साफगोई के साथ कहा कि आवश्यक वस्तुओं की कीमत की एक सीमा तय जा सकती है। फिर यह सवाल उठता है कि क्या इस माॅडल पर चलकर किया जा सकता है? हमें विकास के लिए एक साथ कई कदम उठाने की जरुरत पड़ेगी। सामाजिक सुरक्षा के ढाचें में भारी बदलाव लाना होगा। तब कहीं जाकर यह बिल अपने मकसद में कामयाब होता नजर आएगा। सरकार को समझना होगा कि किसानों को दो रुपया या तीन रुपया का भुगतान करके किसानों के जीवन में खुशहाली लाई जा सकती है। किसानों के जीवन में खुशहाली लाकर देश में बदलाव लाया जा सकता है। इससे देश प्रगति की राह पर आगे बढ़ेगा। सदन के सम्मानित सदस्य अकबर अली कह रहे थे कि मंत्री जी ने कई विदेशी मुल्कों का दौरा करके वहां के लोगों को भारत आने के लिए आमंत्रित किया है।

मैं माननीय मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि वह विदेश के लोगों को भारत बुलाकर क्या दिखाना चाहते हैं। मंत्री जी को सबसे पहले यह बताना चाहिए कि उन्होंने जो विदेशी दौरा किया है, उससे देश को क्या लाभ हुआ है। मंत्री जी क्या यह बताने की कोशिश करेंगे कि विदेशों से आने वाले लोगों को जिस तरह से दिल्ली और श्रीनगर के बाजारों में ठगा जाता है, उस पर रोक लगाने के लिए सरकार विदेशों में भारत की किस तरह की छवि को प्रदशत करना चाहती है। हम बात नैतिकता और सिद्धांतों की करते हैं लेकिन जब विदेशों से आने वाले लोगों को भारत के बाजारों में ठगा जाता है तो हमारी नैतिकता और सिद्धांत कहां चले जाते हैं। विदेशी दौरों पर जाने वाले हमारे मंत्रीगण और उनके साथ जाने वाले प्रतिनिधि मंडल के साथ अगर विदेशों में ठगी हो तो उन्हें कैसा लगेगा? हमारी सहानुभूति अपने मंत्रियों के साथ हो सकती है। श्री तारिक ने इस मामले को उठाकर सरकार के सामने बड़ी समस्या को रखा है। सरकार को चाहिए कि वह ईमानदारी और ज़िम्मेदारी के साथ इस मामले का हल ढूंढे। हमारा पूरा सहयोग सरकार के साथ रहेगा।

मैडम, मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि कुछ लोग कह रहे हैं कि इस बिल से गांव में समस्याएं पैदा होंगी। लेकिन जहां तक मैं देख रहा हूं, इस बिल में ऐसा कुछ भी नहीं है। इस बिल को एक दिन में लागू किया जा सकता है। मैं सरकार से कहना चाहूंगा कि वह एक निश्चित समय सीमा में चरणबह् तरीके से इसे लागू करे। इससे यह होगा कि इसको लागू करने में जो भी व्यवहारिक दिक्कतें आएंग, उन्हें शीघ्रता से निस्तारित किया जा सकेगा।

मैंने अपने भाषण की शुरुआत में ही कहा कि मैं इस बिल का समर्थन करता हूं। मैंने ऐसा इसलिए कहा कि क्योंकि इस बिल को लागू करके समाज के दुश्मनों को खत्म किया जा सकेगा। आज सुबह मेरे मित्र श्री फरीदुल हक अंसारी ने सदन में सवाल उठाया कि औद्योगिकीकरण से बड़े पैमाने पर लोगों को पलायन के लिए विवश होना पड़ रहा है। सरकार अपनी जमीन से विस्थापित होने वालों के लिए कुछ भी नहीं कर रही है। एक मंत्री ने कहा है कि विकास के लिए औद्योगिकीकरण जरूरी है, जहां औद्योगिकीकरण होगा, वहां के लोगों को विस्थापन की समस्या से दो-चार होना पडे़गा लेकिन मंत्री जी ने यह नहीं बताया कि विस्थापितों के हित में सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? सरकार अगर विस्थापित लोगों को उनके क्षेत्रों में लगने वाले उद्योगों में काम दे दे तो इस समस्या से तात्कालिक तौर पर थोड़ी राहत मिल सकती है। इसी तरह उद्योगपतियों और व्यापारियों की भी समस्याओं का हल किया जाना चाहिए लेकिन समाज के दुश्मनों को किसी भी कीमत में आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। इसलिए मैं सोचता हूं कि इस बिल को सर्वसम्मति से पूरे सदन को एकजुट होकर पारित करना चाहिए। इसी सदन के एक सम्मानित सदस्य ने कहा है कि मंत्री जी न तो दक्षिणपंथी हैं और न वामपंथी वह मध्यपंथी हैं।

मैं नहीं जानता कि मंत्री जी वामपंथी हैं कि दक्षिणपंथी लेकिन वह दूर की सोच रखने वाले प्रगतिशील शख्सियत हैं। मैं समझता हूं कि वह इस बिल की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेजेंगे। इसी के साथ मैं इस बिल का फिर से समर्थन करता हूं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।