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पणजी में स्थापित हो बाम्बे हाईकोर्ट की बेंच, जनविरोधी बिल सरकार वापस ले

संदर्भ: गोवा, दमन और दीव बिल 1964 4, मई, 1964 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभापति महोदय, मैं इस बिल पर अपनी बात रखने के लिए आपकी इजाजत चाहता हूं। इस बिल को संसद के दूसरे सदन में रखते हुए माननीय मंत्री जी ने कुछ इस तरह कहा था कि यह एक अनोखा बिल है। इसके समर्थन में किसी भी सदस्य ने सदन में कुछ नहीं कहा। यह राय है, माननीय मंत्री महोदय की जिन्होंने इस बिल को सदन में पेश किया। मैं नहीं जानता कि माननीय मंत्री जी ने सदन में ऐसा वक्तव्य क्यों दिया? यह बिल अभी संसद से पारित होने की प्रक्रया में है। पक्ष-विपक्ष इस बिल के विरोध और समर्थन में अपनी बात रखेगा। बिल पर लम्बी बहस होगी। उसके बाद ही यह बिल संसद से पास हो सकेगा। विपक्ष को छोडिए, इस पर कांग्रेस पार्टी के एक सदस्य जो कि हमारे अच्छे मित्र भी हैं, ने मुझसे कहा है कि इस बिल को पारित कराना आम आदमी के हितों के प्रतिकूल होगा। इसी तरह से इस बिल पर बहुत सारे लोगों ने अलग-अलग प्रतिक्रयाएं व्यक्त की हैं। मैं इस बिल का पुरजोर विरोध करता हूं क्योंकि इसके पारित होने से देश से ही नहीं, विदेशों में भी बहुत गलत संदेश जाएगा। मुझे इस बात पर बहुत आश्चर्य है कि इस बिल को खुद विदेश मंत्री ने सदन में पेश किया।

माननीय मंत्री जी का कहना है कि गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय में कोई अंतर नहीं है। मुझे इस पर भी गम्भीर आपत्ति है। केंद्रीय मंत्रालय में आपातकालीन मसलों से निपटने के लिए एक सेल स्थापित है और वहां एक बिना विभाग के मंत्री भी हैं। उन्हें ही इस तरह के मामलों को देखने की इजाजत है। विदेश मंत्रालय बेवजह इस मामले मे दखल देकर संदेह पैदा कर करा है। इस बिल के पारित होने से कोई लाभ तो नहीं होगा, लेकिन नुकसान बहुत ज्यादा होगा।

उपसभापति महोदय, जब हम बात करते हैं संविधान की धारा 370 के बारे में और कश्मीर की पूर्ण अखण्डता के सम्बंध में तो केंद्रीय सरकार का तर्क होता है कि धारा 370 भारत के संविधान में निहित है। संयुक्त राष्न्न्संघ में धारा 370 और कश्मीर को लेकर कुछ सवाल उठे हैं, यह बहुत गम्भीर मामला है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला का कहना है कि जम्मू-कश्मीर भारत के अन्य प्रदेशों के समान नहीं है लेकिन क्या होगा गोवा, दमन और दीव में? गोवा, दमन और दीव एक्ट 1962 में एक प्रावधान है कि उनके यहां बाम्बे हाईकोर्ट के फैसले लागू होंगे लेकिन माननीय मंत्री ने सदन में आकर कहा है कि संविधान की धारा 7 को रिप्लेस किया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे गोवा के एकीकरण की प्रक्रया प्रभावित होती है। माननीय मंत्री के इस बयान से महाराष्न्न् के लोगों के मन में संदेह की स्थिति पैदा हो गयी है। इससे आने वाले दिनों में गोवा के लोगो के सामने गम्भीर समस्या पैदा होगी। इस मुद्दे को बेवजह उछाला जा रहा है जबकि इससे किसी का कोई भला नहीं होने वाला है। महोदय माननीय मंत्री ने सदन में कहा कि वह गोवा के लोगों की समस्याओं को कम करने के लिए यह कदम उठा रहे हैं, इससे मैं सहमत नहीं हूं। मेरा मानना है कि इससे गोवा के लोगों की समस्याएं कम होने की बजाय और बढ़ेगी।

सरकार अगर गोवा के लोगों की हितैषी है तो उसे पृथक गोवा हाईकोर्ट बनाने की पहल करनी चाहिए। मैं समझता हूं कि गोवा की सरकार इसके खिलाफ है। मेरे सम्मानित साथी ने बताया है कि गोवा से लोकसभा के दो सदस्य आते हैं और वे दोनो ही इस बिल के खिलाफ हैं। दिल्ली यूनियन टेरिटन्न्ी है लेकिन यहां पंजाब हाईकोर्ट के फैसले लागू होते हैं। अगर दिल्ली में पंजाब हाईकोर्ट काम करता है तो फिर गोवा के लिए बाम्बे हाईकोर्ट की एक अलग बेंच पणजी में स्थापित क्यों नहीं की जा सकती। अगर सरकार सचमुच गोवा के लोगों की समस्याएं कम करना चाहती है तो पणजी में बाम्बे हाईकोर्ट की बेंच की स्थापना करे।

मुझे कानूनी दावपेंच की ज्यादा जानकारी नहीं है और न ही कानून के जानकारों से कभी कोई करीबी रिश्ता रहा है लेकिन श्री एन.सी. चटर्जी और अन्य ने न्यायिक आयुक्तों को लेकर बहुत विचार रखे हैं। मैं नहीं जानता कि इसमें कितनी सच्चाई है लेकिन कहा जाता है कि कश्मीर मामले में श्री एन.सी. चटर्जी और स्वर्गीय श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो जम्मू-कश्मीर के कुछ जजों ने इसका कड़ा विरोध किया जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने इन जजों के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए उन्हें चेतावनी दी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एक जज को त्रिपुरा में न्यायिक आयुक्त के पद पर भेजा गया। मेरे कहने का मकसद यह है कि न्यायिक आयुक्त कैसे बनते हैं, इससे समझा जा सकता है और अब सरकार कह रही है कि गोवा के लोगों का भविष्य न्यायिक आयुक्त तय करेंगे। गोवा के लोगों को गुजराती नहीं आती है। फिर सरकार न्यायिक आयुक्तों की नियुक्ति कर गोवा के लोगों की समस्या कम कर रही है या बढ़ा रही है, इस बात को अच्छी तरह समझा जा सकता है। ऐसे ही दमन और दीव के लोगों के साथ भी सरकार करने जा रही है। बाम्बे हाईकोर्ट के जज ज्यादातर मराठी या गुजराती हैं। इसलिए भाषा की समस्या लोगों के सामने खड़ी होगी। विधि सचिव ने भी एक तर्क दिया है कि गोवा के लोगों के लिए अलग से हाईकोर्ट का गठन किया जाना चाहिए। इस बिल के पारित होने से गोवा, दमन, दीव के लोगों की समस्याएं कम नहीं होने वाली हैं। उपसभापति महेादया, गोवा के लोगों ने महाराष्न्न् के साथ जाने का फैसला किया है, इसलिए केंद्रीय सरकार को अब इस मामले में कोई दखल अंदाजी नहीं करनी चाहिए। कांग्रेस हाईकमान के दबाव में महाराष्न्न् कांग्रेस के नेता इस मसले पर खुलकर नहीं बोल रहे हैं लेकिन अंदर ही अंदर वह भी यह चाहते हैं कि पणजी में बाम्बे हाईकोर्ट की बेंच की स्थापना होनी चाहिए। इसलिए मैं चाहता हूं कि सरकार महाराष्न्न् और गोवा के लोगों की जनभावानाओं की ध्यान में रखकर इस बिल को वापस ले। इस बिल का कोई भी सदस्य समर्थन करता नहीं दिख रहा है। सरकार को चाहिए कि वह कोई भी ऐसा बिल न लाए जिससे कि समाज और राष्न्न् की अखण्डता पर असर पड़े।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।