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बिना एक्सरे मशीन के टी.बी. क्लीनिक्स बेमतलब, तत्काल मिले यह सुविधा

संदर्भ: Health Survey and Planning Committee 4, दिसम्बर, 1966 को राज्यसभा में श्री चंद्रशेखर


उपसभापति महोदय, मैं केवल एक मिनट में उत्तर प्रदेश की एक समस्या की ओर माननीय स्वास्थ मंत्री जी का ध्यान दिलाना चाहता हूं। तृतीय पंचवर्षीय योजना में यह निश्चित किया गया था कि उत्तर प्रदेश मे कुल 42 टी.बी. क्लीनिक्स खोले जाएं और जिनमें लगभग 28 टी.बी. क्लीनिक्स आज उत्तर प्रदेश में चल रहे है। आश्चर्य और दुःख की बात यह है कि 28 टी.बी. क्लीनिक्स में से 02 क्लीनिक्स ऐसे है, जिनमें एक्स-रे और लेबोरेटरीज की फैसिलिटीज जो हैं, वे प्राप्य हैं। बाकी 26 टी.बीक्लीनिक्स में डा.क्टर हैं, वहां पर सरकार की ओर से दवा है, लेकिन न वहां पर एक्स-रे की केाई सुविधा है और न वहां पर लेबोरेटरीज की कोई फैसिलिटी है।

मुझे इस बीच में दो ऐसे क्लीनिक्स को देखने का मौका मिला। मैंने वहां के डा.क्टरों से पूछा कि आप यहां क्या करते हैं? सरकार की मदद से टी.बी. क्लीनिक्स खोलने के लिए पैसा खर्च होता है, उस पर डा.क्टरों को तनख्वाह दी जाती है, दवा जिस तरह से डा.क्टर चाहता है, उस तरह से बांटता है, एक्स-रे करने की उनको कोई सुविधा नहीं है क्योंकि वहां पर लेबोरटरीज की भी सुविधा नहीं है। जब मैंने उनसे पूछा की दिक्कत क्या है तो मुझे बतलाया गया-और मैं समझता हूं कि जिन लोगों ने बताया सही बताया होगा कि केंद्रीय सरकार ने ऐसे नियम बना रखे हैं कि वहीं पर एक्स-रे देंगे, जहां डा.क्टर हो, और दूसरा जो स्टाफ हो, वह बंगलौर टी.बी. क्लीनिक इन्स्टीट्यूट में ट्रेनिंग पाया हो। मुझे आश्चर्य यह जानकर हुआ कि यहां पर सरदार पटेल चेस्ट इन्स्टीट्यूट में जो लोग ट्रेनिंग पाए हैं, वही लोग जाकर बंगलौर में शिक्षण का काम करते हैं, शिक्षा देते हैं और इस सरदार पटेल चेस्ट इन्स्टीट्यूट से शिक्षा पाए हुए, ट्रेनिंग पाए डा.क्टर यूपी. में इन टी.बी. क्लीनिक्स के डा.क्टर हैं, इन्चार्ज हैं और उन डा.क्टरों से कहा जाता है कि फिर जाकर बंगलौर ट्रेनिंग लीजिए। उपसभाध्यक्ष महोदय यह भी ठीक है और वे लेने को तैयार हैं। तो फिर यूनियन गवर्नमेंट की ओर से कहा गया कि यू.पी. के क्लीनिक्स में जो आदमी है वे कम्पलीट टीम नहीं हैऋ क्योंकि वहां पर बी.सी.जी. के टैक्नीशियन्स नहीं है। और उत्तर प्रदेश में बी.सी.जी. की स्कीम जो है वह अलग स्कीम है। अब एक ऐसा पचड़ा फंसा हुआ है कि उत्तर प्रदेश के टी.बी. क्लीनिक्स में बी.सीजी. के टैक्नीशियन्स नहीं है, इसलिए वे कम्पलीट टीम नहीं है, इसलिए वहां की टीम को बंगलौर के टी.बी. इन्स्टीट्यूट में नहीं भेजा जा सकता कि वे ट्रेनिंग ले सकें। अगर वे ट्रेनिंग नहीं ले सकते तो उन्हें एक्स-रे और लेबोरेटरीज की फैसिलिटीज नहीं दी जा सकती हैं। ऐसे में वहां पर डा.क्टर बेकार पडे़ हुए है। वहां पर रोज जो दवा दी जाती है, पैसा जो खर्च किया जाता है, वह सब व्यर्थ खर्च किया जाता है।

मैंने स्वास्थ्य मंत्री जी का ध्यान इस ओर एक खत लिखकर खीचा था और मैं उम्मीद करता हूं कि इस मामले में तुरंत कार्रवाई होगी क्योंकि वर्षों से यह काम चल रहा है। अगर यही स्थिति बनाए रखनी है तो मैं समझता हूं कि ये क्लीनिक्स बंद कर दिये जाएं। ये लोग दूसरे कामों में लगाए जाएं। अगर टी.बी. क्लीनिक्स खोलना ही है, तो तुरंत बिना किसी देरी के इन टी.बी. क्लीनिक्स में एक्स-रे और लेबोरेटरीज की फैसिलिटी मिलनी चाहिए अन्यथा उन टी.बी. क्लीनिक्स के डा.क्टरों का कोई महत्व नहीं और उन टी.बी. क्लीनिक्स के चलाने का कोई मतलब नहीं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।