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हमारी आवाज़ अकेली हो या हम चार-पांच लोग बोलें, लेकिन देश को बेचने की हर साज़िश के खिलाफ हम आवाज़ उठाएंगे

संदर्भ: उत्तर प्रदेश, राजस्थान व देश के अन्य क्षेत्रों में पेयजल संकट के मामले पर 13 मई 1993 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


सभापति जी, मैं इस विषय पर बोलना नहीं चाहता था लेकिन चूंकि नाम आया तो केवल दो शब्द कहना चाहता हूं। एशियन डेवलपमेंट बैंक की कॉपी मुझे कुछ दिनों पहले मिली थी। 20 अप्रैल को मैंने माननीय वित्त मंत्री को खत लिखा। उसकी प्रतिलिपि मैंने प्रधानमंत्री जी को भेजी, स्पीकर साहब को भेजी और 20 अप्रैल से कल तक मैं इंतजार करता रहा कि कम-से-कम, कोई न कोई उत्तर वहां से आएगा। पत्र की सूचना भी मुझको कल तक नहीं मिली। कल जब कुछ मित्रों ने राज्यसभा में सवाल उठा दिया तब मैंने सदन के कुछ सदस्यों को, जिसमें श्री जसवंत सिंह, सोमनाथ चटर्जी, जार्ज फर्नान्डीज जी, अटल बिहारी वाजपेयी जी हैं, उस पत्र की प्रतिलिपि भेजी।

दुःखद प्रसंग है। हालांकि परसों जो कुछ यहां पर हुआ, उसके बाद मुझे कोई बहुत आशा नहीं है लेकिन फिर भी देश के सामने इस तरह की घटनाएं होती हैं, आप बताइए हम क्या करें। मैंने 22 दिनों तक इंतज़ार किया। मैं इतना तो जरूर समझता हूं कि प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री बहुत व्यस्त हैं। लेकिन खत का यह जवाब दे सकते थे कि मुझे खत मिला है और उस खत में जो एशियन डेवलमेंट बैंक की रिपोर्ट है, उसमें लिखा हुआ है कि इन-इन लोगों से बात हुई, यह निर्णय लिया गया है, आगे भारत सरकार यह-यह काम करेगी। सब कुछ उसमें लिखा हुआ है कि वल्र्ड बैंक ने क्या रिपोर्ट दी, आई.एम.एफ. के लोगों ने क्या रिपोर्ट दी। उन रिपोर्टों के आधार पर नरसिम्हन कमेटी बनी। उन रिपोर्टों में कहा गया है कि नरसिम्हन कमेटी क्या करेगी। ये सब बातें उसमें लिखी हुई हैं। यह भारत की सार्वभौमिकता और प्रभुसत्ता का सवाल है। यह सवाल केवल सरकार का नहीं है, राष्ट्र की गरिमा और गौरव का है। उसका कोई जवाब न दिया जाए जबकि वे सारी रिपोर्टें दुनिया की हर राजधानी में मिलती हैं, लेकिन वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट नहीं मिलेगी, आई.एम.एफ. रिपोर्ट नहीं मिलेगी, एशियन डेवलपमेंट बैंक की रिपोर्ट दूसरा कोई भेजेगा। सरकार से मैं उस रिपोर्ट की कापी मांगूगा तो सरकार उस रिपोर्ट को छुपा कर रखेगी। कोई अंत किसी चीज का होना चाहिए। पहले दिन से यह सवाल उठता रहा है कि भारत सरकार जब यह कहती है कि वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट बहुत गोपनीय नहीं है तो यह रिपोर्ट सदन के सदस्यों को क्यों नही मिलती। सरकारी अधिकारियों को मिलती है जो वल्र्ड बैंक में जाते हैं और जा करके देश के नाम पर सौदा करके चले आते हैं। यह असहनीय स्थिति है।

सभापति महोदय, आप खुद उस रिपोर्ट को, उस चिट्ठी को लेकर पढ़ लें। मैं वह चिट्ठी अखबार वालों को दे दूंगा जिससे देश के ईमानदार व्यक्ति देख लें कि यह सरकार देश को बेच रही है और हमें बेच रही है। मैं नहीं जानता कि यह सदन उस पर बहस करेगा या नहीं करेगा, सरकार जवाब देगी या नहीं, लेकिन इस विषम स्थिति को देश की जनता के सामने रखना अपना राष्ट्रीय कर्क्राव्य मानता हूं। हमारी आवाज़ अकेली हो या हम 4-5 लोग बोलें लेकिन देश को बेचने की हर साज़िश के खिलाफ हम आवाज़ उठाते रहेंगे।

सभापति महोदय, यदि माननीय संसदीय कार्यमंत्री इतनी तकनीकों की बात करते हैं तो मैं यह बताना चाहता हूं कि मैंने 20 अप्रैल को अध्यक्ष महोदय को एक पत्र लिखा था कि वह अत्यन्त गम्भीर मामला है, मैं इन दस्तावेजों को आपको इसलिए दे रहा हूं ताकि यह मामला सभा में कभी भी अल्पसूचना पर उठाया जा सके। मेरे विचार से वित्तमंत्री का यह दायित्व था कि वह कम-से-कम उस पत्र की पावती भेजें। उन्हें ऐसा करना चाहिए। प्रधानमंत्री से भी कोई उत्तर मिलना चाहिए। गुस्ताखी माफ, मैं इस मुद्दे पर पीठासीन अधिकारी से भी उत्तर की आशा कर रहा था।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।