पीठ ने कहा कि चंद्रशेखर हाउस और देश के लिए अति महत्वपूर्ण, सरकार एक दर्जन लोगों की मौत के मामले को गम्भीरता से ले
संदर्भ: जम्मू-कश्मीर में श्रमिकों की हत्या और राज्यपाल के बारे में 19 जुलाई 1966 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
उपाध्यक्ष महोदय, मैं एक बहुत दुःखद घटना की ओर आपका ध्यान आकषत करना चाहता हूं। बलिया ज़िले के बासडीह कस्बे के 12 गरीब लोग कश्मीर में मजदूरी करने के लिए गये थे। छह तारीख की रात को वे आतंकवादियों की गोली के शिकार हुए और सूचना के अनुसार वे 12 व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हुए। आज 19 तारीख है। कश्मीर सरकार ने कोई सूचना उनके परिवार वालों को नहीं दी। कल पहली बार उनमें से कोई बचा हुआ आदमी जब बलिया पहुंचा और उसने उस परिवार के लोगों को सूचना दी, तो उन्होंने मेरे पास एक फैक्स भेजा। डिस्टिन्न्क्ट मजिस्टन्न्ेट को भी उन्होंने फैक्स से सूचना दी। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने पूरी कोशिश की, मगर वे कोई सम्पर्क कश्मीर के लोगों से नहीं कर सके।
श्रीमान, मुझे तीन बजे फैक्स मिला और तीन बजे से रात को ग्यारह बजे तक मैं कश्मीर के राज्यपाल से सम्पर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन वे नहीं मिले और हर समय, या तो वे सभा में थे या बैठक में थे, यही बताया गया। मेरे कार्यालय के लोगों ने भी सम्पर्क किया, लेकिन सम्पर्क नहीं हो पाया। मैंने स्वयं फोन किया, तो मुझसे फोन नम्बर पूछा गया। मैंने फोन नम्बर बता दिया, लेकिन रात के ग्यारह बजे तक मेरी उनसे कोई बात नहीं हो सकी। मेरे सचिव ने जब उनके सचिव से पूछा, तो उनके सचिव ने बताया कि राज्यपाल महोदय बहुत व्यस्त थे, कोशिश कर रहे थे, लेकिन मिले नहीं।
उपाध्यक्ष महोदय, मैं बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन पन्द्रह-बीस वर्षों में मेरे संसदीय जीवन में यह पहला अनुभव हुआ है, जब फोन पर मैंने किसी राज्यपाल से बात करनी चाही और 12 घंटे में उन्हें मुझसे बात करने का समय नहीं मिला हो। आज तक यह मालूम नहीं है कि वे 12 लोग मर गये हैं या उनमें से कोई जीवित बचा हुआ है और वे किसी अस्पताल में हैं?
कश्मीर सरकार ने जरूरी भी नहीं समझा कि उनके परिवार वालों को जिलाधिकारी के ज़रिये सूचना भज दें। उनका कितना वेदना भरा पत्र मुझे प्राप्त हुआ है, उसे मैं यहां नहीं पढ़ना चाहता। उन्होंने केवल यही कहा है कि अगर हमें सूचना मिल जाये तो हम उनकी अंतिम क्रिया वैदिक रीति से कर दें। वे केवल यही मांग कर रहे हैं। मैं आपसे जानना चाहता हूं कि क्या कोई राज्यपाल, उनकी मर्यादा के खिलाफ कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि संसद सदस्यों के अलावा सबकी मर्यादा है, इससे उनकी मर्यादा का हनन हो जायेगा, कोई राज्यपाल कितना व्यस्त है कि 12 घण्टे तक टेलीफोन नहीं कर सकता। मुझे उनका टेलीफोन सुनने की कोई बड़ी इच्छा नहीं है। क्या सरकार के लिए यह जरूरी नहीं था कि उनकी अंतिम क्रिया के बाद, पता नहीं वह की गयी है या नहीं, उनके परिवार वालों को सूचना दी जाती? 12 गरीब लोगों की, जो हर साल वहां ईंट बनाने के लिए जाते थे, मौत हो गयी। मुझे समझ में नहीं आता की मेरा जैसा व्यक्ति क्या करे? लोग समझते हैं कि मैं सरकार चला रहा हूं। लोग समझते हैं कि सरकार में मेरी बात सुनी जा रही है। 12 घण्टे तक मैं एक राज्यपाल को सम्पर्क करने की कोशिश करता रहा हूं और राज्यपाल बात तक न करे, यह स्थिति कब तक सहन की जाएगी।
अध्यक्ष महोदय, माननीय गृहमंत्री जी यहां बैठे हुए हैं। मैं उनसे निवेदन करूंगा कि पुलिस के सिपाही अनुशासनहीन हैं। उनको अनुशासन में लाइये लेकिन क्या राज्यपाल पर कोई अनुशासन है या नहीं? उनमें कोई मानवीय संवेदना होनी चाहिए या नहीं? क्या लोग मरने के बाद कुत्तों की तरह सड़कों पर उठाकर फेंक दिए जाएंगे? क्या सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं होती कि उनके परिवार वालों को सूचना दी जाए? अध्यक्ष महोदय मैं विवश होकर यह बात आपके सामने उठा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि सरकार क्या करेगी लेकिन मैं आपसे निवेदन करूंगा कि ऐसे मानवीय सवाल के ऊपर इस सदन की कोई न कोई व्यवस्था होनी चाहिए।
जवाब में उपाध्यक्ष महोदय ने कहा कि आदरणीय चंद्रशेखर जी का कहना कि वे महत्वपूर्ण नहीं है, अपने आप में ठीक है लेकिन श्री चंद्रशेखर जी इस हाउस के लिए, इस मुल्क के लिए बहुत इम्र्पोटेंट है। और उनके साथ इस तरह का व्यवहार होना अच्छा नहीं है। मैं चाहूंगा कि गवर्नमेंट इसका सीरियस नोटिस ले।