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गुमान न करें, दिल्ली में कई मरघट ऐसे हैं जिसमें रहने वाले कभी होते थे देश के शहंशाह

संदर्भ: लाश घसीटे जाने के मामले पर 22 मार्च 1990 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


सभापति महोदय, मुझे दुःख के साथ आज इस बहस में हिस्सा लेने के लिए विवश होना पड़ा है। मैं नहीं चाहता था कि हमारे सामने ये सवाल उठे, लेकिन ज़िंदगी की वास्तविकता ऐसी है कि इससे हम नज़र को बंद नहीं कर सकते। हमारे मित्र साठे साहब ने जो चेतावनी दी है, यह वक़्त की चेतावनी है और समय रहते अगर हमने उसे स्वीकार नहीं किया तो हमारा भविष्य अंधेरे में पड़ जाएगा। हम ऐसा मानते हैं। मैं किसी व्यक्ति या समूह की ओर संकेत नहीं करता, लेकिन यह कहना चाहूंगा कि हजारों बरसों की सभ्यता और संस्क्रति का हमारा देश है, हमारी पुरानी तहजीब और तमद्दुन है, इतिहास की अनेक करवट हमने देखी हैं। राजनीतिक ढंग से कई बार हम नीचे गिरे, ऊपर उठे लेकिन तहज़ीब और तमद्दुन की, सभ्यता और संस्क्रति की वह कड़ी बराबर बनी रही। इतिहास में कई बार अनेक शासक बदले, लेकिन हमने आपसी सौहार्द बनाये रखा। मैं किसी पुरानी परम्परा का अपने को दावेदार नहीं मानता, लेकिन जो लोग अपने को पुरानी परम्पराओं का दावेदार समझते हैं, इस सदन में रोज आते हैं, सदन के दरवाजे पर लिखा है-

अयं निजः वेति गणना लघु चेतसाम्।

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।

हमारे नीतिकारों ने, हमारे शास्त्रकारों ने हजारों वर्ष पहले हमें यह निर्देश दिया था कि सारा वसुधैव एक कुटुम्ब है। मशान और कब्रगाह की एक गज जमीन के लिए हम लड़ रहे हैं। इस सदन में जो नजारा हम देख रहे हैं, उससे हमारे दिल को एक ठेस लगती है। मैं आपके ज़रिये सभी लोगों से कहना चाहूंगा कि अगर हमने समय रहते इस खतरे को नहीं पहचाना तो पता नहीं इस देश का क्या होने वाला है। कई मित्रों ने बड़ी आलोचना की थी मेरी, अब तारीफ कर रहे हैं, मैंने जब कहा था कि स्वर्ण मन्दिर में सेना भेजना दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। किसी राजनीतिक लाभ की निगाह से मैंने नहीं कहा था। मैं ऐसा मानता हूं कि इतिहास की परम्पराओं को अगर आप मिटाने की कोशिश करेंगे तो इतिहास आपको माफ नहीं करेगा। निराधार परम्पराओं को मिटाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए।

एक बात मैं सभापति महोदय, आपके ज़रिये गृहमंत्री जी से कहना चाहूंगा कि दुनिया में जहां भी अक्लियत के लोग हैं, उनके मन में गुस्सा आता है, शंका होती है, दुःख और पीड़ा होती है, जब भी वह अपनी मांगो को रखते हैं। मैं खासतौर से अपने भाई खुराना साहब से कहना चाहता हूं कि अक्लियत के लोग सारी दुनिया में हैं। चाहे वह ज़्ाुबान के अक्लियत हों या मज़हब के अक्लियत हों, एक ऐसी कटु भाषा का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उस भाषा के शब्दकोष में हम अर्थ निकालेंगे तो हम गलत राजनीतिक नतीजों पर पहुंचेंगे। उनके जज़्बातों को समझने की कोशिश करनी चाहिए। उनके मन में कोई डर है, उनके मन में यह भावना है कि उनके साथ न्याय नहीं होता है तो उनकी बात को समझकर उनके दिल से यह बात निकालनी चाहिए। चाहे अब की सरकार हो या पहले की सरकार हो। मैं गृहमंत्री से निवेदन करूंगा कि केवल कानून और व्यवस्था का यह सवाल नहीं है, यह लोगों के जज़्बातों का सवाल है।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस देश के अक्लियतों के जज़्बातों को ठेस पहुंची है। उस डर को निकालना पड़ेगा, यह डर नहीं निकालेंगे तो उस डर से जो उनके मन में एक निराशा पैदा होगी। वह निराशा इस देश को जलाकर खत्म कर देगी। बहुत से सदस्यों ने चाहे इधर के हों या उधर के, सबने कहा था कि हम पंजाब में सबकुछ राजसत्ता के सहारे ठीक कर लेंगे, किन्तु कितने बरस बीत गये, डेढ़ करोड़ सिख लोगों को हम सबक सिखाने जा रहे थे। हमारे मित्र कुमार मंगलम् ने कहा कि आप अब किसी दूसरे सम्प्रदाय को सबक सिखाने जा रहे हैं, वह लोग तो सबक सीखते हैं, सीखते रहेंगे, लेकिन इस देश को सबक सिखाने की कोशिश न करें, हम लोग अपना सबक सीखें तो ज़्यादा अच्छा होगा।

मैं नहीं मानता कि पुलिस के अधिकारियों का या किसी और का दोष है, मैं भाई हुक्मदेव जी से निवेदन करूंगा कि सब पुलिस अधिकारी निकम्मे नहीं हैं कि सबको उठाकर फेंक दिया जाये। लेकिन गृहमंत्री जी, जिन पर शुबहा है, जो किसी की लाश को कुक्रो की तरह घसीट रहें हैं, जिनकी फोटो है, क्या उनके खिलाफ भी कार्रवाई नहीं हो सकती। मैं यहां के पुलिस अधिकारियों को जानता हूं, कई लोग ईमानदार हैं, योग्यता वाले हैं, जिन पर मुझे पूरा विश्वास है। लेकिन मुझे आश्चर्य है कि आपने उस पुलिस वाले को जिसने किसी की लाश को कुक्रो की तरह खींचा उसके खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की? यदि हम कुछ नहीं करते तो इससे लगता है कि हम कुछ नहीं करना चाहते। यह जो बुनियादी सवाल है, ऐसे विवादित सवालों का जवाब सड़कों पर नहीं हो सकता और इसका फैसला शक्ति प्रदर्शन से भी नहीं होगा। इसका फैसला न्यायपालिका से हो सकता है। अगर हम न्यायपालिका को नज़रअंदाज़ करेंगे, शक्ति के ज़रिये ऐसे समाधान करने की कोशिश करेंगे, समस्याएं जटिल होंगी। भाई खुराना जी से मैं निवेदन करूंगा इतिहास हमारे और आपके लिए इंतज़ार करने वाला नहीं है। बड़े से बड़े लोग आये और इस मिट्टी में मिल गये, दिल्ली में किसी को गुमान नहीं होना चाहिए, कितने मरघट पडे़ हुए हैं और उन मरघटों में रहने वाले कभी इस देश के शहंशाह थे। आज गद्दी पर बैठना और कल गद्दी से उतरना एक बात है। आज इंसानियत की आवाज़ मर रही है उस आवाज़ को उठाने के लिए और आप सबको मिलकर कोशिश करनी चाहिए तभी इस देश के लिए कोई नयी राह निकल सकती है।

मैं गृहमंत्री जी से निवेदन करूंगा कि दिल्ली के प्रशासन में किसी एक पुलिस अधिकारी की इज्जत बचाने के लिए सारे प्रशासन को अप्रतिष्ठा का कारण मत बनाइये। अपने लिए एक कलंक मत मोल लें, कुछ लोगों ने जिन्होंने अन्याय किया है, कार्रवाई होनी चाहिए और उसमें फैसला केवल ज़्यूडिशरी से होना चाहिए, शक्ति के प्रदर्शन से नहीं होना चाहिए। इतना आप करेंगे तो शायद लोगों के दिलों के अंदर विश्वास पैदा कर सकेंगे।

मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि श्री मदन लाल खुराना जी ने दुबारा जो बात कही है, वह उतनी ही आपत्तिजनक है, आदमी है चाहे वह बंगलादेशी हो या पाकिस्तानी हो या हिन्दुस्तानी हो। अगर बंगलादेशी मर रहा है तो इससे उनको दुःख नहीं है, इससे बड़ी शर्म की बात नहीं हो सकती और यह इस संसद की मर्यादा के विपरीत है कि हम यहां कोई ऐसा वक्तव्य दें कि बंगलादेशी मरा है। इस बात को उनको नहीं कहना चाहिए। अच्छा हो वे अपनी बात को वापस लें।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।