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गोमांस खाते थे कि नहीं, यह शोध का विषय है, आठवीं दर्जे में पढ़ाने का नहीं, इससे बढ़ेगा विवाद

संदर्भ: इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से कतिपय अंशो को हटाने पर 26 नवम्बर 2001 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, मेरे जैसा आदमी हिस्ट्री के बारे में ज़रा नासमझ है। इतनी देर से जो बहस हो रही है, मैं नहीं समझ पाया कि यह बहस किस मुद्दे पर हो रही है, सिवाय श्री शिवराज पाटिल और मुलायम सिंह जी ने जो एक सवाल उठाया, उसमें कुछ तथ्य रखे गए, जिस पर राय देना सम्भव है लेकिन अन्य बातों पर राय देना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह मान लेना कि इतिहासकार ने कुछ लिख दिया और वह शाश्वत सत्य हो गया। मैंने इतिहास के बारे में यह धारणा न कभी पढ़ी है, न इतिहास की यह धारणा है। जो इतिहास लिखने वाले लोग हैं, वे भी समय-समय पर अपनी परिस्थितियों और समझ के अनुसार लिखते हैं। एन.सी.ई.आर.टी. की जो किताब है, मैं और किताबों को नहीं जानता, उस किताब को मुझे उसके एक अधिकारी ने दिखाया और मैंने उस किताब के पन्नों को उलट-उलट कर देखा। उसमें अधिकांश जो चीजें जोड़ी गयी हैं, वे एस.बी. चव्हाण कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर जो हैं, वही ज्यों का त्यों उह्ृत किया गया है। श्री एस.बी. चव्हाण सैफरानाइजेशन के फेवर में तो नही हो सकते, इतना मैं मानता हूं।

जहां तक राजस्थान का मामला है, वह जरूर एक गम्भीर मामला है। संसदीय कार्य मंत्री से कहेंगे कि वहां के लोगों से बात करें। अगर उनके लोग पुरानी बातों पर अड़े हुए हैं, तो यह बात गलत है।

श्री विजय कुमार मल्होत्रा ने जो 4-5 सवाल उठाए, यह बात बहस की हो सकती है कि उस जमाने में जब वे जंगलों में घूमते थे, गौ मांस खाते थे या नहीं? यह बात इतिहासकार लिख सकता है, उसका विश्लेषण कर सकता है लेकिन यह आठवीं दर्जे के लड़के को पढ़ाने के लिए नहीं है और अगर आज की परिस्थिति में पढ़ाया जाएगा तो इससे देश में अनावश्यक विवाद उठेगा।

यह मत समझिये कि मानसिकता, जज़्बात एक ही तरफ है, जज़्बात दूसरी तरफ भी है। सोमनाथ जी, इसलिए मैं कहता हूं, उनकी किताब को किसी ने बैन नहीं किया है, लेकिन उसके आधार पर आठवीं दर्जे के बच्चों को पढ़ाना किसी मायने में उचित नहीं हो सकता। शिक्षा मंत्री का यह अधिकार नहीं है कि किसी अन्वेषण, किसी शोध कार्य को बदल दें, लेकिन शिक्षा मंत्री का यह अधिकार है कि ऐसी बातें न पढ़वाएं जिससे तनाव पैदा हो सकता है, झगड़ा हो सकता है, जिससे लोगों के मन पर एक धक्का लग सकता है, चाहे वह तनाव एक वर्ग में पैदा हो, चाहे तनाव दूसरे वर्ग में पैदा हो, दोनों को समान महत्व देना चाहिए। अगर यह विवाद है तो आप 3-4 लोगों को, जो इतिहास के ज्ञाता लोग इस सदन में हैं, उनको बैठा दीजिए, दोनों पक्ष अपनी-अपनी बातें रख दें और उसके बाद आप निर्णय कर दें। लेकिन जहां तक एक साधारण नागरिक के नाते मैं समझता हूं, जो कुछ शोध कार्यों में है, वहां सातवें और चैथे दर्जे के लड़के को पढ़ाया जाएगा तो इस समाज को टूटने से कोई बचा नहीं सकता।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।