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राजनीति में इरादे नहीं, परिणामों का महत्व होता है, इसलिए आम सहमति बनाकर लाया जाना चाहिए विधेयक

संदर्भ: महिला आरक्षण विधेयक पर 20 दिसम्बर 1999 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


महोदय, मुझे खेद है कि मैं कुछ विलम्ब से पहुंचा हूं। मैं विपक्ष के नेता का वक्तव्य नहीं सुन पाया था। इस मुद्दे को सभा में कई बार उठाया गया है और यह मुद्दा पूर्ववर्ती सभाओं में भी उठता रहा है। कुछ मित्रों ने आपत्तियां की हैं और वे आपत्तियां काफी हद तक वैध भी हैं।

मुझे याद है कुछ समय पहले तक, श्री शरद यादव जो कि इस समय मंत्री हैं, इस विधेयक के विरुह् बोलने वाले सबसे ज्यादा मुखर वक्ता थे। इसे श्री लालू प्रसाद यादव और श्री मुलायम सिंह यादव ने भी उठाया था। उन्होंने क्या कहा, वह सभी जानते हैं। मेरे मित्र, सभा में हंगामा खड़ा करने वाले व्यक्ति ने कहा, ‘इसमें आशंका है’ और वास्तविक आशंका यह है कि यदि इस विधेयक को पारित करते हैं तो लोकसभा का स्वरूप ही बदल जाएगा। इसी कारण सरकार ने कई बार कहा है कि वह आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी। मैं नहीं जानता कि इस मुद्दे पर सभा में और ज्यादा विभाजन पैदा करने की आवश्यकता क्या है?

अन्य दूसरे मामले भी हैं। मेरे मित्र विधिमंत्री महोदय के समक्ष कई समस्याएं होंगी जिनका कि समाधान निकाला जाना है। हमें पहले आम सहमति बनाने का प्रयास करना होगा और इसके बाद विधेयक लाया जाना चाहिए। अन्यथा, और अधिक विभाजन होगा, सभा में और अधिक अव्यवस्था फैलेगी।

अध्यक्ष, महोदय कुछ लोग इरादों की बात करते हैं। परन्तु राजनीति में इरादे मायने नहीं रखते हैं, परिणामों का महत्व होता है। यदि इस विधेयक को पारित किया जाता है तो इसका परिणाम क्या होगा? हममें कुछ दूरदशता होनी चाहिए। हमें तत्काल इसमें से चुनावों में कुछ प्राप्त करने के लिए ऐसा नहीं करना चाहिए। यह विचार हमारा प्रेरक नहीं होना चाहिए। मैं विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि हमें ऐसे समय, जब भविष्य में देश के समक्ष कई कठिनाइयां हैं, सभा को न केवल संख्या की दृष्टि से अपितु मानसिक और बौह्कि रूप से विभाजित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। मुझे खेद है-मेरे मित्र संसदीय कार्य मंत्री यहां पर उपस्थित हैं। मैं नहीं जानता, हममें से किसी को भी सूचना दिए बगैर जब विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री सी.टी.बीटी. के बारे में बात करते हैं? तो उनके इरादे क्या होते हैं। हमारा महत्व नही हैं, मैं जानता हूं, परन्तु देश का भविष्य महत्वपूर्ण है और यह आरक्षण के मुद्दे से बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

महोदय, मुझे खेद है कि मैं कुछ विलम्ब से पहुंचा हूं। मैं विपक्ष के नेता का वक्तव्य नहीं सुन पाया था। इस मुद्दे को सभा में कई बार उठाया गया है और यह मुद्दा पूर्ववर्ती सभाओं में भी उठता रहा है। कुछ मित्रों ने आपत्तियां की हैं और वे आपत्तियां काफी हद तक वैध भी हैं।

मुझे याद है कुछ समय पहले तक, श्री शरद यादव जो कि इस समय मंत्री हैं, इस विधेयक के विरुह् बोलने वाले सबसे ज्यादा मुखर वक्ता थे। इसे श्री लालू प्रसाद यादव और श्री मुलायम सिंह यादव ने भी उठाया था। उन्होंने क्या कहा, वह सभी जानते हैं। मेरे मित्र, सभा में हंगामा खड़ा करने वाले व्यक्ति ने कहा, ‘इसमें आशंका है’ और वास्तविक आशंका यह है कि यदि इस विधेयक को पारित करते हैं तो लोकसभा का स्वरूप ही बदल जाएगा। इसी कारण सरकार ने कई बार कहा है कि वह आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी। मैं नहीं जानता कि इस मुद्दे पर सभा में और ज्यादा विभाजन पैदा करने की आवश्यकता क्या है?

अन्य दूसरे मामले भी हैं। मेरे मित्र विधिमंत्री महोदय के समक्ष कई समस्याएं होंगी जिनका कि समाधान निकाला जाना है। हमें पहले आम सहमति बनाने का प्रयास करना होगा और इसके बाद विधेयक लाया जाना चाहिए। अन्यथा, और अधिक विभाजन होगा, सभा में और अधिक अव्यवस्था फैलेगी।

अध्यक्ष, महोदय कुछ लोग इरादों की बात करते हैं। परन्तु राजनीति में इरादे मायने नहीं रखते हैं, परिणामों का महत्व होता है। यदि इस विधेयक को पारित किया जाता है तो इसका परिणाम क्या होगा? हममें कुछ दूरदशता होनी चाहिए। हमें तत्काल इसमें से चुनावों में कुछ प्राप्त करने के लिए ऐसा नहीं करना चाहिए। यह विचार हमारा प्रेरक नहीं होना चाहिए। मैं विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि हमें ऐसे समय, जब भविष्य में देश के समक्ष कई कठिनाइयां हैं, सभा को न केवल संख्या की दृष्टि से अपितु मानसिक और बौह्कि रूप से विभाजित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। मुझे खेद है-मेरे मित्र संसदीय कार्य मंत्री यहां पर उपस्थित हैं। मैं नहीं जानता, हममें से किसी को भी सूचना दिए बगैर जब विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री सी.टी.बीटी. के बारे में बात करते हैं? तो उनके इरादे क्या होते हैं। हमारा महत्व नही हैं, मैं जानता हूं, परन्तु देश का भविष्य महत्वपूर्ण है और यह आरक्षण के मुद्दे से बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।