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जहां भी जाता है रोशनी लुटाता है, किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता

संदर्भ:लोकसभा में 4 जून 2004 को सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने पर श्री सोमनाथ चटर्जी को श्री चंद्रशेखर की बधाई


अध्यक्ष महोदय, मैं सबसे पहले आपको सर्वसम्मति से चुने जाने के लिए बधाई देता हूं और विशेष रूप से इस बात के लिए बधाई देता हूं कि आपने (श्री सोमनाथ चटर्जी) इस पद को स्वीकार किया। इससे न केवल इस सदन की महत्ता बढ़ी है, बल्कि जनतंत्र की भी महत्ता बढ़ी है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि जब आप सदस्य के रूप में यहां पर बैठे हुए थे, तब मैंने जो कुछ भी संसद में कहा, उसमें अधिकांश समय केवल आपकी प्रेरणा रही। आपने जब कहा कि इस विषय पर मैं बोलूं, तभी मैं बोला। मैं समझता हूं कि वह प्रेरणा देने वाला अब मेरे लिए कोई नहीं रहा, इसलिए आज भी मैं मौन ही रहना चाहता था। आज भी आप ही से मुझे प्रेरणा मिली, यह मेरा सौभाग्य है। मैं ऐसा मानता हूं कि आपने हर समय शोषित, पीड़ित और उपेक्षित लोगों की बात की।

महोदय, मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि संसद में पिछले कुछ वर्षों में कमजोर लोगों की आवाज अनसुनी कर दी गयी। मैं समझता हूं कि आपके आ जाने से उनकी आवाज़ फिर से लोग सुनेंगे। यहां फिर से उनकी आवाज लोग उठाएंगे, क्योंकि अगर आवाज़ को अनसुना किया गया तो संसदीय जनतंत्र को जिंदा रखना सम्भव नहीं होगा।

महोदय, यह सही है कि आपने एक मर्यादा का पालन किया, लेकिन नीतीश जी की बात सुनकर मुझे कुछ परेशानी हुई और मुझे ऐसा लगा कि उसका ज़िक्र करना मेरे लिए आवश्यक है। कभी संगत का दोष भी होता है। मैंने हर समय आपकी बात मानी, सिवाए इसके कि सदन के बाहर जाने की, किसी मंत्री का बहिष्कार करने की, इस सलाह को मैं स्वीकार नहीं कर सका। अगर नीतीश जी यही काम करने वाले हैं तो मैं आपसे निवेदन करूंगा कि इसकी इजाजत इनको मत दीजिएगा। मैं नीतीश जी से निवेदन करूंगा कि इस बात को भूल जाएं। संसद मंत्रिमंडल का बहिष्कार करने के लिए नहीं है, जो चुने जाते हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री चुनते हैं, उनका सम्मान करना सारी संसद का कर्तव्य होता है। मैं 42 वर्ष पहले संसद में आया था, इतने वर्षों में मैंने एक बार भी वाक-आउट किया हो, किसी आज्ञा का पालन नहीं किया हो, ऐसा मुझे ज्ञात नहीं है।

अध्यक्ष महोदय, मुझे विश्वास है कि आप वहां पहुंच कर लोगों को एक प्रेरणा देंगे कि अब संसद की परम्परा का उल्लंघन न हो, इसकी मुझे पूरी आशा और विश्वास है। आप हर समय परिस्थितियों के अनुरूप उठे हैं और इस समय भी आप उस परिस्थिति में उठ करके एक नयी परम्परा कायम करेंगे। सारे सदन ने आपको विश्वास दिया है, सदन का विश्वास प्राप्त करके सारे देश को आप नया विश्वास दें और पीड़ित लोगों की आवाज़ बुलंद करें। इसी विश्वास के साथ मैं उर्दू का शेर कहना चाहूंगा-

जहां भी जाता है रोशनी लुटाता है,

किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता।

महोदय, आज आप पाटयों और सीमाओं से आबह् नहीं है, आप उससे ऊपर हैं। वहीं, ऊपर रहकर देश को एक नयी दिशा दें, यही मुझे आपसे आशा है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।