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दोनों विधेयक अति महत्वपूर्ण, इन दोनों सवालों पर सदन में विभाजन नहीं होना चाहिए

संदर्भ: हरिजन-आदिवासियों, भूमिहीनों और छोटे किसानों से जुड़े बिल पर 30 मई 1990 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष महोदय, मेरी राय में ये दोनों बिल, दोनों विधेयक बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। एक हरिजन-आदिवासियों के सवाल से जुड़ा हुआ है और दूसरा भूमिहीनों तथा छोटे किसानों से जुड़ा हुआ है। अगर इस पर कोई दो-एक सदस्य जिन्हें अवसर दिया जाता है, वह अपनी बात कहतें हैं और उनको अवसर दिया जाता है और दोनों बिल सर्वसम्मत्ति से पास हो जाते हैं तो हमको उसको मान लेना चाहिए। मैं विरोध पक्ष के नेताओं और सदस्यों से निवेदन करूंगा कि कम-से-कम सदन को इन दोनों सवालों पर बांटना नहीं चाहिए, इन्हें लेकर विभाजन नहीं होना चाहिए। हम सब मिलकर इसको सर्वसम्मति से पास कर दें। उपाध्यक्ष महोदय, हम यह आपके ऊपर छोड़ते हैं कि आप जितना समय दें, दे सकते हैं।

उपाध्यक्ष महोदय, दूसरे पक्ष के सदस्यों द्वारा अभिव्यक्त किए गये विचारों से मैं पूरी तरह सहमत हूं। मेरा यह कहना है कि सदस्यों को संशोधन प्रस्तुत करने का अधिकार है। इसके साथ ही दूसरे सदस्यों का यह संशोधन वापस लेने के लिए सदस्य को रज़ामन्द करने का भी अधिकार है। इस बात से भी सहमत हूं कि इसके लिए किसी को डराया-धमकाया नहीं जाना चाहिए। इस सदन के दोनों पक्षों द्वारा यहां जो दृश्य प्रस्तुत किया गया है, वह इस सदन की मर्यादा के अनुकूल नहीं है। हमारे लिए यही अच्छा होगा कि हम नियमों को मानें और सदन की मार्यादा बनाये रखें। इस सदन के एक सदस्य के रूप में मैं श्री रामधन जी से निवेदन करता हूं कि वह अपने संशोधन को वापस ले लें और इसके लिए उन पर कोई दवाब न डाला जाये।

क्या मुझे यह स्पष्टीकरण मिल सकता है कि सदन को नियमों में संशोधन करने का अधिकार है? यदि सदन को नियमों में सशोधन करने का अधिकार है और सदन अपनी समझ से संशोधन को वापस लेने की अनुमति देता है, तो वास्तव में यह नियम जब लागू होता है, तभी संशोधित हो जाता है। यदि आपकी बात मान ली जाए तो उस मतदान का क्या होगा जो सदन में हो चुका है? 271 सदस्यों के उस विचार का क्या होगा जो उन्होंने इस विशेष प्रश्न पर व्यक्त किया है। क्या आप सदन के रिकार्ड से सारी प्रक्रियाओं को समाप्त करवा सकते हैं। मुझे यह बताइए। आप भी सांसद हैं। आप इसे बेकार नहीं मान सकते। श्री उींाीक्रष्णन ने नियम 87 के बारे में जो कुछ भी कहा है, वह विधेयक संशोधन सम्बंधी एक स्पष् टिप्पणी है। इसलिए इसे लागू किया जाना चाहिए। मान लीजिए, आज सदन यह निर्णय करता है कि इस नियम को यहां संशोधित किया जाना चाहिए और अब बहुमत यहां नियम का संशोधन कर देता है, तो आप क्या करेंगे और उपाध्यक्ष के निर्णय की क्या स्थिति होगी?


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।