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मत्स्य के क्षेत्र में बहुराष्टिन्न्क को आमंत्रण आत्मघाती कदम, महत्वपूर्ण मुद्दा उठाने के लिए राम नाईक को बधाई

संदर्भ: सर्मुीी मछुआरों के आंदोलन के मामले पर 12 दिसम्बर 1994 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष महोदय, श्री राम नाईक ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है। यह केवल कुछेक लोगों का प्रश्न नहीं है बल्कि इसमें वह सारा समुदाय शामिल है जिनकी जीविका का आधार शताब्दियों से यह धन्धा रहा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार एक काल्पनिक दुनिया बसाने के चक्कर में एक आत्मघाती नीति का पालन कर रही है। मैं नहीं जानता कि यह कब अपनी नींद से जागेगी। हालांकि लोग इसे अपने-अपने कार्यों से जगाने की कोशिश कर रहे हैं कि लोगों और विशेषकर गरीब मछुआरों को इन बहुराष्ट्रियों का शिकार क्यों बनाया जाये? मैं नहीं समझता कि इसमें कोई उच्च प्रौद्योगिकी अथवा ऐसी कुछ महत्वपूर्ण बात है जिससे कि बहुराष्ट्रियों को आमंत्रित किया जा रहा है।

उपाध्यक्ष महोदय, यह एक महत्वपूर्ण मामला है क्योंकि लोग पूर्ण रूप से हतोत्साहित हो गये हैं। मालूम नहीं कि इस राजनीति से इस राष्ट्र का क्या होगा? मुझे उम्मीद और विश्वास है कि आप सरकार को यह वक्तव्य देने के लिए राजी कर लेंगे कि मत्स्य के क्षेत्र में बहुराष्ट्रियों को आमंत्रित करने की क्या मजबूरी थी? क्या हमारे मछुआरे समस्या का सामना नहीं कर सकते? क्या यह सिर्फ इसलिए किया गया है कि हम कुछ विदेशी मुद्रा अथवा डॉलर चाहते हैं? क्या ये डॉलर समाज को उस तनाव से बचा लेंगे जो प्रतिदिन इसमें बढ़ रहा है।

अभी-अभी मेरे मित्र श्री सुखराम जी संचार क्षेत्र में उच्च प्रौद्योगिकी पर बोल रहे थे। मेरे अन्य मित्र भी यहां उपस्थित हैं। वह हैं ऊर्जा मंत्री, जो इस देश में ऊर्जा के उत्पादन के लिए बहुराष्ट्रियों को 16.5 प्रतिशत लाभ प्रदान करने की गारंटी दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हमने अपनी सोचने-समझने की शक्ति पूर्ण रूप से गंवा दी है। भारत सरकार का न तो कोई दृष्टिकोण है और न ही कोई कार्यक्रम। उन्हें बस एक नारा मिल गया है। वह नारा उन्हें बहुराष्ट्रियों, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने दिया है और वह उन सभी नीतियों का पालन यह कहते हुए कर रही है कि उसे इस देश के सभी लोगों का समर्थन प्राप्त है। इस पर राष्ट्रीय सहमति है और उस राष्ट्रीय सहमति का कल ही प्रदर्शन हो चुका है। मैं नहीं जानता कि यह राष्ट्रीय सहमति कब तक इसे यह आत्मघाती नीति अपनाने की अनुमति देती रहेगी।

उपाध्यक्ष महोदय, यह बहुत गम्भीर मामला है। इसे उठाकर श्री राम नाईक ने महान सेवा की है। यह हमारे आत्मनिर्भर होने का प्रश्न नहीं है। भगवान इस सरकार को सद्बुह् टिदे कि वह स्वयं आत्मघाती न बनें सारे राष्ट्र को हाहाकारी करने के लिए मजबूर न करे। मुझे आशा है कि लोग इसका विरोध नहीं करेंगे और मैं यह मुद्दा उठाने के लिए श्री राम नाईक को बधाई देता हूं।

उपाध्यक्ष महोदय, आप अपने मंत्रियों को कहिए कि वे सही आचरण करना सीखें। अगर कुछ कहना है और फिर उस पर उन्हें कुछ बोलना है तो उन्हें पहले अपने स्थान पर खड़े होना चाहिए और फिर सदस्यों को बताना चाहिए।

उपाध्यक्ष महोदय, मैं व्यक्तिगत द्वेष नहीं रखता। मेरे इस नीतिगत मामले पर व्यक्तिगत मतभेद हैं। मंत्री महोदय को हर एक को यह चुनौती नहीं देनी चाहिए कि ‘‘आप सच नहीं बोल रहे हैं, आप तथ्य नहीं बता रहे हैं।’’ मैंने एक भी शब्द ऐसा नहीं कहा है जिसके बारे में मैं संतुष् नहीं हूं और मैं श्री साल्वे से कहता हूं कि वे अपनी सीमाओं को जानें और उन्हीं तक सीमित रहें।

उपाध्यक्ष महोदय, मुझे खेद है कि माननीय मंत्री पुनः गलत वक्तव्य दे रहे हैं। मैं आमने-सामने कभी बात नहीं करता। उन्होंने यह कहा था कि वे वक्तव्य देने के लिए खड़े हो रहे हैं। केवल तभी मैंने कहा था, ‘‘खड़े होकर यह वक्तव्य दीजिए कि आप गलत कह रहे हैं।’’


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।