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केवल नियमों से सदन चलाना चाहेंगे तो सदन नहीं चलेगा

संदर्भ: प्राक्रतिक आपदा को लेकर आम सहमति पर 25 मार्च 1998 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष जी, कल से नहीं बल्कि पिछले 15 दिनों से हम लोग सुनते आ रहे हैं कि देश चुनौतियों का सामना कर रहा है और आम सहमति की आवश्यकता है लेकिन प्रारम्भ में जो हुआ है, वह बड़ा अशोभनीय है। सहमति कहीं दिखायी नहीं पड़ती। मुझे दुःख इस बात का है कि प्राक्रतिक आपदा जैसी स्थिति पर भी हम लोग उलझ जाते हैं। उलझन सुलझ जाती अगर आप बड़ी क्रपापूर्वक एक-दो लोगों की बात सुन लेते। यह बात सही है कि आप इस पद पर नये हैं लेकिन हमारे पालयामेंटरी अफेयर्स मिनिस्टर बिल्कुल पुराने हैं। इस सदन की परम्परा को वह जानते हैं। सोमनाथ चटर्जी अगर खड़े होते हैं तो हमारे शर्माजी को नियम की बात नहीं उठानी चाहिए थी। नियम क्या है? केवल नियमों से सदन चलाना चाहेंगे तो सदन नहीं चलेगा। इसलिए एक-दूसरे की भावनाओं को भी समझने की जरूरत है।

मैं यह कह रहा था कि अगर किसी सदस्य के इलाके में कोई हादसा हुआ है तो उससे सरकार को पूछना चाहिए था। अगर वह सदस्य नहीं था तो उस पार्टी के नेता से पूछना चाहिए था। यह सरकार की भूल है। यह काम प्रधानमंत्री का नहीं है। यह काम उस विभाग का है। मैं समझता हूं कि वह क्रषि मंत्रालय है जो शायद इस काम को देखता है। मुझे ठीक से मालूम नहीं है। मैं नहीं जानता कि किस तरह से किन-किन लोगों ने इस डेलीगेशन को तय किया है। यह एक भयंकर भूल है। उस भूल को स्वीकार करना भी कभी-कभी जरूरी होता है।

आप इस शोर से न मुझे गुस्सा दिला सकते हैं और न मुझे चुप करा सकते हैं। मैं केवल यही निवेदन करूंगा कि अभी मुलायम सिंह जी ने जो सुझाव दिया है, सरकार सम्मानपूर्वक और शिष्टाचारपूर्वक उसको स्वीकार करे और ऐसा माहौल बनाए कि सदन में ऐसी विपदाओं पर कम-से-कम हम सहमति का रास्ता निकाल सकें।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।