संसद के एक किलोमीटर के दायरे के भीतर संसद की दिनदहाड़े हत्या देश के लिए दुर्भाग्यपूण
संदर्भ: श्रीमती फूलनदेवी की हत्या मामले पर 1 अगस्त 2001 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
उपाध्यक्ष जी, अध्यक्ष महोदय ने कहा था कि एक अपवाद के रूप में इस सवाल पर कोई बहस करना चाहे, सवाल पूछना चाहे, स्पष्टीकरण चाहे तो उसके लिए पूरा समय दिया जाएगा। चाहे दो घंटा लगे या तीन घंटा लेकिन इस सवाल पर चर्चा पूरी तरह से होगी। मैं वहां पर उपस्थित था, इसलिए कहना अपना फर्ज समझता हूं।
महोदय, श्रीमती फूलन देवी की जिस तरह से हत्या कर दी गयी है, वह हम सबके लिए अत्यंत लज्जाजनक और दुःख की बात है। संसद का अधिवेशन चलते समय संसद से एक किलोमीटर व्यास के अंदर दिन के डेढ़ बजे उनके घर के सामने हत्या हो जाये, उसके बारे में गम्भीरता से सोचने के लिए हमारे लिए ही नहीं बल्कि सारे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है। इससे सबसे बड़ी हानि यह हुई है कि देश के लोगों में एक असुरक्षा की भावना पैदा होगी। जब सांसद ही सुरक्षित नहीं है तो दिल्ली राजधानी के अंदर लोगों की जान का खतरा हो सकता है और दिन-दहाड़े हत्या हो सकती है तो फिर एक आम आदमी अपनी सुरक्षा कैसे कर सकेगा? सवाल यह नहीं कि हम डरे हैं या नहीं, हम घबराए है या नहीं लेकिन हमारे मन में यह सवाल है कि अगर शोषित, उपेक्षित समाज की महिला इस तरह से मौत के घाट उतारी जाए तो उन लोगों के बीच में कितनी दुःखद भावना पैदा होगी? आज जब श्री मुलायम सिंह जी बोल रहे थे तो उन्होंने अपने ऊपर बहुत बड़ा संयम रखा। वे जिस गम्भीरता से अपनी बात रख रहे थे, यदि सरकार उस पर सोचे तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि ऐसा लगता है कि हम लोग मौत को साधारण घटना समझ लेते हैं क्योंकि हमें सिखाया गया है कि मौत क्षणिक होती है और जीवन अनन्त है जो चलता ही रहेगा। कोई आज मरेगा, कल फिर पैदा हो जाएगा, यह दर्शन बहुत अच्छा है। लेकिन समाज को चलाने की ज़िम्मेदारी जिसके ऊपर है, जो समाज की सुरक्षा के ज़िम्मेदार हैं, उसकी भावना दूसरी होनी चाहिए। मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा, क्योंकि मेरी आवाज का कोई असर इस सरकार के वरिष्ठ लोगों पर नहीं होगा। उनके मन में ऊंची भावनाएं हैं, वे उच्च विचारों के लोग हैं। भारतीय सभ्यता और संस्क्रति के उन्नत शिखरों पर पहुंचे हुए लोग हैं। साधारण लोगों की मौत, साधारण लोगों का मान-अपमान उनके लिए नगण्य हो जाता है।
महोदय, हमारे बारे में भी कुछ लोगों ने कहा। आपसे हमारा बहुत पुराना परिचय है। मैंने ज़िंदगी के बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। बहुत बड़े-बड़े लोगों को उन कुसयों पर बैठे हुए देखा है। बहुत लोगों को लोगों के साथ अपमानजनक व्यवहार करते हुए देखा है। मैं 1962 में इस संसद में आया था, आज 2001 है। कोई भी उस कुर्सी पर बैठा हुआ, अभिमान से, गर्व से अपने सिर को उन्नत करने वाला मुझे ऐसा नहीं मिला जो बाद में आकर मेरे ही सामने आंसू बहाने के लिए मजबूर न हुआ हो। बदलती हुई दुनिया है। आंसू आज मुलायम सिंह बहा रहे हैं, आंसू आज फूलन देवी के परिवार के लोग बहा रहे हैं, उनके क्षेत्र के लोग बहा रहे हैं। लेकिन ये आंसू गरीब के आंसू हैं, बेबस के आंसू है। गरीब और बेबस का आंसू जब बहता है तो आग बनकर बड़े-बड़े महलों को जला देता है, कहीं ऐसा न हो जाए। मैं बड़े विनम्र शब्दों में आपके ज़रिये गृहमंत्री से कहूंगा कि इस मामले को ज़रा ज़्यादा गम्भीरता से लंे तथा जो भी अपराधी हो उन्हें सज़ा देने का प्रयास करें। मैं और ज़्यादा कुछ न कहकर यही कहूंगा कि उनकी याद इस संसद में हमेशा बनी रहेगी, क्योंकि अपनी तरह की यह पहली घटना है। संसद भवन की सीमा के अंदर के बारे में कहा जाता है कि यहां तीन हजार सिपाही चारों तरफ घेरा बनाकर खड़े रहते हैं। उसके बाद भी इस तरह की हत्या हो जाए और हम चुपचाप देखते रहें, इससे बड़ी लज्जाजनक बात और नहीं हो सकती है। हमें इसे गम्भीरता से लेना चाहिए।