मोटी-मोटी कितबों को पढ़ने से कुछ नहीं होगा, आपस में मिलकर निकालें रास्ता
संदर्भ: पेटन्न्ोलियम उत्पादों की कीमतों में वृह् टिपर 11 जुलाई 1996 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
अध्यक्ष महोदय, कल से इस मुद्दे पर बहस हो रही है। हम लोग वास्तविकता को झुठलाना चाहते हैं। उससे नियम हमारे लिए सहायक नहीं होंगे। श्री जसवंत सिंह जी ने एक बात कही कि सरकार ने जो काम किया है, वह स्वाभाविक प्रवृत्ति सैंसर करने की है। मैं भी ऐसा ही समझता हूं। जो सरकार ने किया, वह किसी तरह से उचित नहीं था।
विद्वान वित्तमंत्री जी, यहां नहीं है। जो कारण उन्होंने कल दिये, शायद कोई भी आदमी, जिसको संसदीय परम्परा का थोड़ा भी ज्ञान होगा तो वह उस भाषा में उसका जवाब नहीं देता। बी.जे.पी. क्या है? आईसोलेटेड है, अलग है। ये सवाल अलग हैं, राजनीतिक झगड़ा अलग है, संसद को चलाने का मामला दूसरा है। आज इस तरफ से लोग सैंसर को चाहते हैं और उस तरफ से सैंसर को मानने को तैयार नहीं हैं। झगड़ा केवल यह नहीं है। इसमें नियमों, कायदों और मोटी-मोटी किताबों को पढ़ने से कुछ नहीं होगा। अगर हम आपस में मिलकर कोई रास्ता नहीं निकालते हैं तो दूसरा रास्ता भी यही है कि आप उस रास्ते को निकालिए।
अध्यक्ष महोदय, कल आपने पुराने उह्रणों को दिया और सब देने के बाद कहा कि नियम 193 के अधीन इस पर बहस होगी। वह आपने आज के आर्डर पेपर पर रख दिया है। श्री जसवंत सिंह जी काफी विद्वान हैं और वे संसदीय परम्परा को जानते हैं। उन्होंने एक रास्ता ढूंढ लिया और उस रास्ते से उन्होंने दूसरा काम रोको प्रस्ताव दे दिया। आपने कहा कि उनको काम रोको प्रस्ताव देने का अधिकार है। अध्यक्ष महोदय, क्षमा करेंगे, अगर मैं थोड़ी धृष्टता करूं। आपको उसी समय यह कहना चाहिए था कि हमने कल इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है। यह आर्डर पेपर पर है। आप इस सवाल को मत उठाइए लेकिन आप भी सदन को निरर्थक रूप से चलाने की कोशिश कर रहे हैं। आप जीरो आवर में इस पर दो घंटे या तीन घंटे बहस कराइए। इससे न तो सदन की महत्ता बढ़ती है, न गौरव बढ़ता है और न बुनियादी सवाल पर कोई बहस आगे बढ़ती है। जिस पर कल से यह झगड़ा चल रहा है।
अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे निवेदन करूंगा कि आप या तो दोनों पक्षों को बैठाकर अभी कोई रास्ता निकालिए या मैं विरोधी दल के नेता से निवेदन करूंगा कि अगर वह वोट नहीं कराना चाहते तो आपको वोट कराकर क्या मिलने वाला है? आप जो भी कहना चाहते हैं, वह सब बहस में कहिए। मैं समझता हूं कि उनके पास उसका जवाब नहीं है कि उन्होंने दस दिन पहले ये कीमतें क्यों बढ़ायी? अच्छी अंग्रेज़ी बोल देने से संसदीय परम्पराओं का पालन नहीं होता। इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूं कि अगर कमजोरी है तो उस कमजोरी को स्वीकार करना चाहिए। उसमें कोई राजनैतिक सवाल उठाकर इस मामले को हम लोग और पेचीदा न बनाएं। मैं निवेदन करूंगा कि चूंकि आर्डर पेपर पर यह आ गया है, जसवंत सिंह भी यह जानते हैं कि आर्डर पेपर आने पर अध्यक्ष महोदय उसी सवाल पर दूसरा सवाल उठाने की अनुमति नहीं दे सकते और आपके अधिकार को स्वीकार करते हैं। आपके अधिकार को स्वीकार करना और अनुमति देने में अंतर है। आपने अपने अधिकार का प्रयोग कर लिया, अध्यक्ष महोदय, कल आपने अपने अधिकार का प्रयोग किया था, उसके अनुसार इस पर बहस चलाइए। इस मामले को और आगे मत बढ़ाइए।